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गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए एक चुनौती बना हुआ है - ‘राम-राम’ वृक्ष

सियाराम मय सब जाग जानि... की कल्पना पूरे रामनगरी के कण-कण में साकार होती है। यहां की रज में श्री सीताराम के प्रति अगाध निष्ठा बसी है।

रामनगरी में ही एक ऐसा वृक्ष है जिसके तने, टहनियों व पत्तियों पर राम-राम अंकित मिलता है, जो कि अमिट है। अयोध्या के दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष है, जो धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है। आसपास के लोगों की इस पेड़ से अगाध निष्ठा है।

यहां वर्ष में एक बार मेला भी लगता है। कदम प्रजाति के इस पेड़ की खासियत ये है कि इसकी जड़ और डालियों पर भगवान राम का नाम लिखा है और धीरे-धीरे इस पेड़ पर भगवान का नाम लिखे होने की संख्या बढ़ती जा रही है।

आस्था, धर्म और विज्ञान अलग-अलग क्षेत्र होते हुए भी कहीं न कहीं आपस में जुड़े हैं। धर्म और आस्था की सीमा रेखा जहां समाप्त होती है वहीं से विज्ञान का क्षेत्र शुरू होता है।

आस्था और धर्म को बहुधा: विज्ञान की कसौटी पर कभी भी पूर्ण रूपेण नहीं कसा जा सकता है। दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष अपनी दूसरी पीढ़ी का पौधा है।
पहली पीढ़ी का पौधा वर्तमान वृक्ष से लगभग 50 मीटर की दूरी पर स्थित था, जो आसपास के लोगों द्वारा वहां की मिट्टी खोद लेने के कारण सूख गया था।

‘राम-राम’ वृक्ष जहां वर्तमान में स्थित है, वह यद्यपि एक उपेक्षित पुराना बाग है लेकिन धार्मिक परिदृश्य में इसे देखें तो जनश्रुति के अनुसार ये वृक्ष हनुमान जी द्वारा हिमालय से संजीवनी बूटी का पहाड़ लेकर श्रीलंका जाने के मार्ग में अवस्थित है। इस ‘राम-राम’ वृक्ष के तने के ऊपर एक सिल्की छिलका है जो समय-समय पर सूखकर जब हटता है तो उसके नीचे तने पर ‘राम-राम’, ‘सीता’ तथा श्रीरामसीता शब्द लिखे मिलते हैं जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता। ये तीनों शब्द वृक्ष के पूरे तने पर मिलते हैं।

वनस्पति विज्ञान के आधार पर जब इस वृक्ष की बात होती है तो अभी तक ‘राम-राम’ वृक्ष के वानस्पतिक नाम का निर्धारण नहीं हो सका है। जिस खेत में पेड़ है उसके मालिक उदय प्रकाश वर्मा बताते हैं कि इस पेड़ पर दशकों पूर्व अचानक भगवान राम का नाम लिखा देखा गया।
जिसके बाद से पेड़ के हर दल पर भगवान का नाम अंकित होता है। इस चमत्कारी पेड़ की महिमा जब लोगों को पता चली तो इस पेड़ की पूजा शुरू हो गई। प्रतिदिन सुबह आठ बजे एक पुजारी इस पेड़ की पूजा करते हैं। वहीं साल में पितृ विसर्जन के दिन इस पेड़ के नीचे मेला भी लगता है।

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