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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

सोचे आनेवाली पीढी।*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी

सभी से अनुरोध है कि एक बार पढ़ियेगा अवश्य । काफी समय के बाद किसी ने बेहद सुंदर आर्टिकल भेजा है ।

🙏🏽 

*नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की..!!* 


आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।
*इसके मूल कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा है, जो कि अति संभव है एवं निम्न हैं----------------।


*1, पीहरवालों की अनावश्यक दखलंदाज़ी।*

*2, संस्कार विहीन शिक्षा*

*3, आपसी तालमेल का अभाव* 

*4, ज़ुबानदराज़ी*

*5, सहनशक्ति की कमी*

*6, आधुनिकता का आडम्बर*

*7, समाज का भय न होना*

*8, घमंड झूठे ज्ञान का*

*9, अपनों से अधिक गैरों की राय*

*10, परिवार से कटना।*

 *11. घण्टों मोबाइल पर चिपके रहना ,और घर गृहस्थी की तरफ ध्यान न देना।* 

*12. अहंकार के वशीभूत होना ।* 

पहले भी तो परिवार होता था,
*और वो भी बड़ा।*
*लेकिन वर्षों आपस में निभती थी!*
*भय था , प्रेम था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।*
*पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है*, 

*और अब कहते हैं कि मेरी बेटी नाज़ों से पली है । आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया।*

*तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?*



*शिक्षा के घमँड में बेटी को आदरभाव,अच्छी बातें,घर के कामकाज सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते।*

*माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं।*

*भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही है ।*

*मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए।*

परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।

*या तो TV या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में तांक-झांक।*

जितने सदस्य उतने मोबाईल।
*बस लगे रहो।*

बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं।
*पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता।*
सब अपने कमरे में।

*वो भी मोबाईल पर।*


बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है।
*कुत्ते बिल्ली के लिये समय है।*
*परिवार के लिये नहीं*।



*सबसे ज्यादा बदलाव तो इन दिनों महिलाओं में आया है।*

*दिन भर मनोरँजन,* 

*मोबाईल,*

*स्कूटी..कार पर घूमना फिरना ,*

*समय बचे तो बाज़ार जाकर शॉपिंग करना*

*और ब्यूटी पार्लर।*

जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।

भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं।

*होटल रोज़ नये-नये खुल रहे हैं।*
जिसमें स्वाद के नाम पर कचरा बिक रहा है।

*और साथ ही बिक रही है बीमारी एवं फैल रही है घर में अशांति।*

आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।
*बुज़ुर्ग तो हैं ही घर में बतौर चौकीदार।*


पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थीं।
*और अब नृत्य सीखकर।*
क्यों कि *महिला संगीत* में अपनी नृत्य प्रतिभा जो दिखानी है।


*जिस महिला की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है।


👌🏻*घूँघट और साड़ी हटना तो चलो ठीक है,
*लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ?
*बड़े छोटे की शर्म या डर रहा क्या ?*
वरमाला में पूरी फूहड़ता।
*कोई लड़के को उठा रहा है।*
*कोई लड़की को उठा रहा है* 
*और हम ये तमाशा देख रहे हैं, खुश होकर, मौन रहकर।*



*माँ बाप बच्ची को शिक्षा तो बहुत दे रहे हैं ,
*लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?*
ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करें।
*बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक-वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये*
*ख़ुद कमा खा ले।*
*जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो रिज़ल्ट तो वही सामने आना ही है।*


 साइँस ये कहता है कि गर्भवती महिला अगर कमरे में सुन्दर शिशु की तस्वीर टांग ले तो शिशु भी सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट होगा।
*मतलब हमारी सोच का रिश्ता भविष्य से है।*


बस यही सोच कि - अकेले भी जिंदगी जी लेगी गलत है ।
*संतान सभी को प्रिय है।*
लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं।


*पहले पुराने समय में , स्त्री तो छोड़ो पुरुष भी थाने, कोर्ट कचहरी जाने से घबराते थे।*
*और शर्म भी करते थे।*
*लेकिन अब तो फैशन हो गया है।*
पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ *तलाकनामा* तो जेब में लेकर घूमते हैं।


*पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी।*
*और अब तो समाज की कौन कहे , माँ बाप तक को जूते की नोंक पर रखते हैं।*


*सबसे खतरनाक है - ज़ुबान और भाषा,जिस पर अब कोई नियंत्रण नहीं रखना चाहता।*
कभी-कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
*लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझा जाता है।*आखिर शिक्षित जो हैं।
*और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में मिली है।*


*आखिर झुक गये तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।*
*गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।*


*आज समाज ,सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं।*


*पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों।*
*बेटा भी तो पुरुष ही है।*
*एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है।*
*जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये।*
*खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों।*
*घरवाली के लिये हार के सपने ज़रूर देखता है।*
बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।


*मैं मानता हूँ पहले नारी अबला थी।*
माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़।
*और बड़े परिवार के काम का बोझ।*


अब ऐसा है क्या ?
*सारी आज़ादी।*

मनोरंजन हेतु TV,

*कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन,* 

*मसाला पीसने के लिए मिक्सी*, 

*रेडिमेड पैक्ड आटा,

*पैसे हैं तो नौकर-चाकर,*

*घूमने को स्कूटी या कार* 

*फिर भी और आज़ादी चाहिये।*

आखिर ये मृगतृष्णा का अंत कब और कैसे होगा ?

*घर में कोई काम ही नहीं बचा।*

दो लोगों का परिवार।

*उस पर भी ताना।।*
कि रात दिन काम कर रही हूं।


*ब्यूटी पार्लर आधे घंटे जाना आधे घंटे आना और एक घंटे सजना नहीं अखरता।*


लेकिन दो रोटी बनाना अखर जाता है।

*कोई कुछ बोला तो क्यों बोला ?*

*बस यही सब वजह है घर बिगड़ने की।*
खुद की जगह घर को सजाने में ध्यान दें , तो ये सब न हो।

*समय होकर भी समय कम है परिवार के लिये।*

ऐसे में परिवार तो टूटेंगे ही।


*पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं।*और पुराने रिश्ते भी।

*आज बिड़ला सीमेन्ट वाले मजबूत घर कुछ दिनों में ही धराशायी।*

और रिश्ते भी महीनों में खत्म।


*इसका कारण है
रिश्तों मे *ग़लत सँस्कार*
*खैर हम तो जी लिये।*


सोचे आनेवाली पीढी।
*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी ?*


दिनभर बाहर घूमने के बाद रात तो घर में ही महफूज़ होती है ।
आप मानो या ना मानो आप की मर्जी मगर यह कड़वा सत्य है ।

प0 रघुवीर शर्मा

जो महिलाएं अपना कार्य नौकरों से करवाती हैं

जो महिलाएं अपना कार्य नौकरों से करवाती हैं जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है वह अधिकांश कुछ न कुछ रोगों से घिर जाती हैं उनके लिए ये पोस्ट मुझे बेहतर लगी तो शेयर कर रहा हूं हो सकता है कुछ बुरा भी लगे और कुछ शायद इस तरह से अपने को बदलने की कोशिश भी करें ।
इस पोस्ट को जरूर व पूरा पढ़ें, कटु सत्य है
 बुरा ना माने 🙏

एक दिन मैं घर के बाहर बड़े तन्मयता से  गाड़ीयां धो रही थी। साईकल पर जाता हुआ एक माली रुका और मुझसे पूछा, "कुछ पौधे वगैरह चाहिये?"
मैंने कहा,"चाहियें तो"
उसने कहा,"अपनी मैडम को बुला दो उनसे ही बात करूंगा"
मैंने अंदर जाकर कपड़े बदले और बाहर आकर कहा,"मैं ही मैडम हूँ, पौधे दिखाओ"
वो बेचारा शर्म से पानी पानी हो गया और  माफी मांगने लगा।
कसूर उसका नही था!

अक्सर बड़े घरों व बड़ी गाड़ियों में चलने वालों के घर नौकरों की पलटन होती हैं। ऐसे में कोई सोच भी नही सकता की जिनके घर में कई गाड़ियां खड़ी हों और इतना बड़ा घर हो वो लोग अपना काम खुद भी करते होंगे।

अक्सर जान पहचान वाले लोग कहते हैं कि नौकर क्यों नही लगा लेती?
तो मैं उनसे पूछती हूँ कि क्या उन्हें मैं लूली,लंगड़ी या अपाहिज नज़र आती हूँ?
यदि नही!तो फिर मैं अपना काम खुद क्यों नही कर सकती!

 यदि मुझमे अपने काम खुद करने की सामर्थ्य है तो मैं वही काम नौकर से क्यों कराऊँ?

कभी कभी मैं हैरान होती हूँ कि एक कामकाजी महिला होने के बाद भी मैं अपने सारे घर का काम खुद करना पसंद करती हूँ।

2मंज़िल के घर की सफाई,वृहद बगीचा...
लेकिन घर के झाड़ू पोचे से लेकर गार्डन की सफाई, गाड़ियों को धोना साफ करना,हर तरह का खाना बनाना,साग सब्जी लाना, कपड़े खुद धोना इस्त्री करने से लेकर बर्तन धोने और गमले पेड़ पौधे लगाने का काम भी बड़ी ही सरलता से कर लेती हूँ।

दिन में 100-200 km गाड़ी भी चला लेती हूँ,गोल्फ खेलती हूँ,5km वॉक करती हूँ।समय मिले तो पढ़ती लिखती भी हूँ ...

तो फिर हमारी वो गृहणियाँ जो नौकरी भी नही करती,आफिस नही जाती उन्हें अपने ढाई कमरों के घर साफ कराने ,चार बर्तन धोने और 8 रोटी सेकने के लिए नौकर क्यों चाहिये?

जो अंग्रेजों नौकरशाही का कोढ़ हमारे समाज में फैला कर चले गए उनके अपने देशों में घरेलू नौकर रखने का कोई रिवाज़ नही है।वहां वो लोग अपना सारा काम खुद करते हैं। लेकिन हमारे यहाँ अपने घर का काम खुद करने मे शर्म आती है,क्यो?

हमारी गृहणियों को भी जिनके पति सवेरे आफिस चले जाते हैं और शाम को घर लौटते हैं अपने 10 x 10 के कमरे साफ कराने के लिये महरी चाहिए?

मेरे अभिजात्य दोस्त लोगों में जिनकी बीबियाँ हर हफ्ते पार्लर जाती हैं उन्हें वज़न घटाने के लिए सलाद के पत्ते खाना मंज़ूर है!!gym में घण्टो ट्रेड मिल पर हांफना मंज़ूर है, लेकिन अपने घर मे एक गिलास पानी लाने के लिए नौकर चाहिए।

जो नौकरानियां हमारे घरों को साफ करने आती हैं उनके भी परिवार होते हैं बच्चे होते हैं ,ना उनके घरों में कोई खाना बनाने आता है ना ही कोई कपड़े धोने तो फिर जब वो इतने घरों का काम करके अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभा लेती हैं तो हम अपने परिवार का पालन पोषण करने में क्यों थक जाते हैं?

दरअसल हमारे यहाँ काम को सिर्फ बोझ समझा जाता है चाहे वो नौकरी में हो निजी जिंदगी में। जिस देश मे कर्मप्रधान गीता की व्यख्या इतने व्यपक स्तर पर होती है वहाँ कर्महीनता से समाज सराबोर है।हम काम मे मज़ा नही ढूंढते, सीखने का आनंद नही जानते,कुशलता का फायदा नही उठाते!

हम अपने घर नौकरों से साफ कराते हैं!

झूठे बर्तन किसी से धुलवाते हैं!

कपड़े धोबी से प्रेस करवाते हैं!

खाना कुक से बनवाते हैं!

बच्चे आया से पलवाते हैँ!

 गाड़ी ड्राइवर से धुलवाते हैं!

बगीचा माली से लगवाते हैं!

तो फिर अपने घर के लिये हम क्या करते हैं? 

कितने शर्म की बात है एक दिन अगर महरी छुट्टी कर जाये तो कोहराम मच जाता है, फ़ोन करके अडोस पड़ोस में पूछा जाता है।

जिस दिन खाना बनाने वाली ना आये तो  होटल से आर्डर होता है या फिर मेग्गी बनता है।

 घरेलू नौकर अगर साल में एक बार छुट्टी मांगता है तो हमे बुखार चढ़ जाता है। होली दिवाली व त्योहारों पर भी हम नौकर को छुट्टी देने से कतराते हैं!

 जो महिलाएं नौकरीपेशा हैं उनका नौकर रखना वाज़िब बनता है किंतु जो महिलाएँ सिर्फ घर रहकर अपना समय TV देखने या FB और whats app करने में बिताती हैं उन्हें भी हर काम के लिए नौकर चाहिये? 

सिर्फ इसलिए क्योंकी वो पैसा देकर काम करा सकती हैं? लेकिन बदले में कितनी बीमारियों को दावत देती हैं शायद ये वो नही जानती। 

आज 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को ब्लड प्रेशर ,मधुमेह, घुटनों के दर्द,कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड जैसी बीमारियां घेर लेती हैं जिसकी वजह सिर्फ और सिर्फ लाइफस्टाइल है।

यदि 2 घण्टे घर की सफाई की जाये तो 320 कैलोरी खर्च होती हैं, 45 मिनट बगीचे में काम करने से 170 कैलोरी खर्च होती हैं, एक गाड़ी की सफाई करने में 67 कैलोरी खर्च होती है,खिड़की दरवाजो को पोंछने से कंधे,हाथ, पीठ व पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं,आटा गूंधने से हाथों में आर्थ्राइटिस नही आता। कपड़े निचोड़ने से कलाई व हाथ की मानपेशियाँ मजबूत होती हैं,20 मिनट तक रोटियां बेलने से फ्रोजन शोल्डर होने की संभावना कम हो जाती है, ज़मीन पर बैठकर काम करने से घुटने जल्दी खराब नही होते।

लेकिन हम इन सबकी ज़िम्मेदारी नौकर पर छोड़कर खुद डॉक्टरों से दोस्ती कर लेते हैँ। फिर शुरू होती है खाने मे परहेज़, टहलना,जिम, या फिर सर्जरी!!

कितना आसान है इन सबसे पीछा छुड़ाना कि हम अपने घर के काम करें और स्वस्थ रहे।मैंने आजतक नही सुना की घर का काम करने से कोई मर गया हो!

लेकिन हम मध्यम व उच्च वर्ग घर के काम को करना शर्म समझते हैं। नौकर ज़रूरत के लिए कम स्टेटस के लिए ज्यादा रखा जाता है। काम ना करके अनजाने में ही हम अपने शरीर के दुश्मन हो जाते हैँ।

पश्चिमी देशों में अमीर से अमीर लोग भी अपना सारा काम खुद करते हैं और इसमें उन्हें कोई शर्म नही लगती। लेकिन हम मर जायेंगे पर काम नही करेंगे।

किसी भी तरह की निर्भरता कष्ट का कारण होती है फिर वो चाहे शारीरिक हो ,भौतिक हो या मानसिक। अपने काम दूसरों से करवा करवा कर हम स्वयं को मानसिक व शारीरिक रूप से पंगु बना लेते हैं और नौकर ना होने के स्थिति में असहाय महसूस करते हैं।ये एक दुखद स्थिति है। 

यदि हम काम को बोझ ना समझ के उसका आंनद ले तो वो बोझ नही बल्कि एक दिलचस्प एक्टिविटी लगेगा। Gym से ज्यादा बोरिंग कोई जगह नही उसी की जगह जब आप अपने घर को रगड़ कर साफ करते हैं तो शरीर से *एंडोर्फिन हारमोन* निकलता है जो आपको अपनी मेहनत का फल देखकर खुशी की अनुभूति देता है।

अच्छा खाना बनाकर दूसरों को खिलाने से *सेरोटॉनिन हार्मोन* निकलता है जो तनाव दूर करता है।

जब काम करने के इतने फायदे हैं तो फिर ये मौके क्यो छोड़े जायें!

हम अपना काम स्वयं करके ना सिर्फ शरीर बचाते है बल्कि पैसे भी बचाते हैं और निर्भरता से बचते हैं।..
🙏

कोविड़ के नए वैरिएंट के संक्रमण की रोकथाम हेतु प्रमुख शासन सचिव द्वारा निम्नानुसार दिशा-निर्देश जारी

*कोविड़ के नए वैरिएंट के संक्रमण की रोकथाम एवं बचाव हेतु आगामी दिवसों में आने वाले नववर्ष के जश्न में भीड़-भाड़ होने की संभावना के मद्देनजर प्रमुख शासन सचिव गृह (ग्रुप-7) विभाग, जयपुर द्वारा निम्नानुसार दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं:~*

*वैक्सीनेशन की अनिवार्यता*

👉🏼विशेषज्ञों की राय अनुसार जिन्होंने कोविड वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) ले ली हैं, उनमें कोरोना के नये वैरिएंट (ओमिक्रॉन) से संक्रमण का खतरा कम है। और संक्रमित होने पर इसका असर कम देखा गया है।

👉🏼समस्त विश्वविद्यालय / महाविद्यालय / विद्यालय / कोचिंग संस्थान के शैक्षणिक व अशैक्षणिक स्टाफ, 18 वर्ष से अधिक आयु के छात्र-छात्राऐं एवं संस्थान आवागमन हेतु संचालित बस, ऑटो एवं कैब के चालक को वैक्सीन की दोनों खुराक (1" & 2nd dose) लेनी होगी।

👉🏼समस्त राजकीय कार्मिकों से अपेक्षा है कि वे कोविड-19 की दोनों डोज (1st & 2nd dose) लगवा लें। 3. प्रदेश के समस्त सिनेमा हॉल्स / थियेटर / मल्टीप्लेक्स 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) लगवा ली हो, के लिए रात्रि 10:00 बजे तक खोलने की अनुमति होगी।

 👉🏼समस्त प्रकार के ऑडिटोरियम एवं प्रदर्शनी हेतु उपलब्ध स्थान रात्रि 10:00 बजे तक उन व्यक्तियों हेतु अनुमत होगा जिन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) लगवा ली हो।

 👉🏼समस्त मॉल्स / दुकानें एवं अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को रात्रि 10:00 बजे तक खोलने की अनुमति होगी एवं समस्त कार्मिकों से अपेक्षा है कि वे कोविड की दोनों डोज (1" & 2nd dose) लगवा लें। इसके साथ स्क्रीनिंग की सुविधा, मास्क का उपयोग एवं अन्य कोविड उपयुक्त व्यवहार की अनुपालना करना अनिवार्य होगा।

👉🏼सम्बन्धित संस्था प्रधान / अन्य संस्थानों के संचालकों / मार्केट एसोसिएशन / समस्त विभागाध्यक्ष / कार्यालय प्रमुख अपने स्वयं / स्टाफ / कार्मिकों के वैक्सीन की दोनों डोज (1st & 2nd dose) दिनांक 31 जनवरी, 2022 तक लगवाना सुनिश्चित करावें एवं कार्यालय के सदृश्य स्थान पर यह घोषणा भी लगाये कि स्वयं एवं स्टाफ द्वारा दोनों वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी है।

👉🏼दिनांक 31 जनवरी, 2022 पश्चात् इन स्थानों पर डबल डोज (1st & 2nd dose) वैक्सीनेटेड लोगों को अनुमत किया जायेगा तथा उल्लंघन पाये जाने पर संबंधित संस्था प्रधान / अन्य संस्थानों के संचालकों / मार्केट एसोसिएशन / समस्त
विभागाध्यक्ष / कार्यालय प्रमुख के विरुद्ध प्रशासन द्वारा नियमानुसार कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी।

*समारोह आयोजन के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश*

👉🏼सभी प्रकार के भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक, सामाजिक, राजनैतिक, खेल-कूद सम्बन्धी मनोरंजन, शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक समारोह / त्योहारों / शादी समारोह में अधिकतम 200 व्यक्तियों के सम्मिलित होने की अनुमति होगी। उक्त कार्यक्रमों में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 200 से अधिक होने पर इसकी पूर्व अनुमति जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट से प्राप्त करना अनिवार्य होगा।

*अन्य दिशा-निर्देश*

👉🏼प्रदेश में नए कोविड वैरिएंट के संक्रमण को रोकने हेतु जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की कोविड टीम द्वारा विदेश से आने वाले यात्रियों की सूचना ऑनलाईन पोर्टल [SSO loginCOVID 19 STATISTICS-District Quarantine Statistice (Form-4)) के माध्यम से इन्द्राज करने के साथ ही उक्त सूचना संबंधित जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट को प्रेषित करनी होगी, ताकि जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट द्वारा क्वारंटीन नियमों/ कोविड उपयुक्त व्यवहार की पालना की निगरानी सुनिश्चित की जा सके।

👉🏼सिटी / मिनी बसों का संचालन प्रातः 05:00 बजे से रात्रि 11:00 बजे तक अनुमत होगा। किसी भी यात्री को खड़े होकर यात्रा करने की अनुमति नहीं होगी (no standing)

👉🏼रेस्टोरेन्ट्स द्वारा होम डिलीवरी की सुविधा प्रतिदिन 24 घण्टे अनुमत होगी। Take away एवं रेस्टोरेन्ट में बैठाकर खिलाने की सुविधा, बैठक क्षमतानुसार प्रतिदिन रात्रि 10:00 बजे तक कोविड उपयुक्त व्यवहार की पालना सुनिश्चित करते हुए अनुमत होगा।

👉🏼कोविड के मामलों के प्रसार को रोकने हेतु सघन रोकथाम और समूहों / क्षेत्रों में सक्रिय निगरानी की जानी चाहिए।

👉🏼राज्यों से सटे जिलों द्वारा स्थापित सीमा चौकियों पर सख्त निगरानी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी परिपत्र / दिशा-निर्देशों के अनुसार जारी रहेगी।

👉🏼आमजन द्वारा कोविड उपयुक्त व्यवहार एवं टीकाकरण (1st & 2nd dose) के साथ-साथ मास्क का अनिवार्य उपयोग, सेनेटाईजेशन, दो गज की दूरी एवं बंद स्थानों पर उचित वेंटिलेशन का ध्यान रखना अतिआवश्यक है।
👉🏼दिनांक 03 जनवरी, 2022 से प्रदेश के समस्त सिनेमा हॉल / थियेटर / मल्टीप्लेक्स / ऑडिटोरियम एवं प्रदर्शनी हेतु उपलब्ध स्थान 50 प्रतिशत क्षमता के साथ कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) लिये हुए व्यक्तियों के लिए अनुमत होगें।

👉🏼संपूर्ण प्रदेश में प्रतिदिन रात्रि 11:00 बजे से प्रातः 05:00 बजे तक रात्रिकालीन कर्फ्यू यथावत् जारी रहेगा।

👉🏼नववर्ष के उपलक्ष में दिनांक 31 दिसम्बर, 2021 को रेस्टोरेन्ट्स का संचालन अतिरिक्त 02.30 घण्टे (रात्रि 10:00 बजे से 12:30 बजे तक) किया जा सकेगा एवं रात्रिकालीन कर्फ्यू में 2 घण्टे (रात्रि 11:00 बजे से 01:00 बजे तक) की छूट रहेगी।

*👉🏼यह आदेश तत्काल रूप से प्रभावी होगा।*

उक्त दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किये जाने पर समस्त जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट अपने स्थानीय क्षेत्राधिकार में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 से 60 एवं राजस्थान महामारी अधिनियम, 2020 के अनुसार कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे। 

इसलिए सभी से आग्रह है कि-
*कोविड अनुरूप व्यवहारों व दिशा निर्देशों की पूर्णतया पालना करें ।*

*पात्र लाभार्थी वैक्सीन की अपेक्षित डोज़ लगवाकर कोविड सुरक्षा चक्र पूर्ण करें ।*

*किसी तरह का लक्षण प्रतीत होने पर तुरन्त RTPCR टेस्ट करवाएं ।*


शनिवार, 25 दिसंबर 2021

जोधपुर के रिच प्रोडक्शन सुनिल पुरोहित द्वारा निर्देशित फिल्म - गठबंधन-एक पवित्र रिश्ता

 जय श्री कृष्णा साथियो


जोधपुर के मानवता की सेवा में समर्पित साँवरिया के अध्यक्ष श्री अभिषेक जी शर्मा के बारे में अभी तक आपने संगीतमय सुन्दरकाण्ड एवं अन्य भजन संध्या के बारे में सुना होगा

आज हम आपको जोधपुर के रिच प्रोडक्शन द्वारा बनायीं गई फिल्म -'गठबंधन-एक पवित्र रिश्ता" के बारे में बता रहे है
सुनिल पुरोहित द्वारा निर्देशित - गठबन्धन एक पवित्र रिश्ता

निर्देशक/ निर्माता:- सुनिल पुरोहित

गीत/संगीत :- कमलेश पुरोहित"निराला"

सह-निर्माता:- संजय पुरोहित

सह-निर्देशक:- मनीष कल्ला

गायक:- विनय जोशी,आशीष सोनी,बी किशोर,उमा रावल

सिनेमेटोग्राफर:-रतन जांगिड़,मुकेश जांगिड़

एडिटर:- भवानी राव

स्टील्स:- गोपाल छंगानी



कलाकार:- अनुज अरोड़ा,डिम्पल कंवर,आकांक्षा पुरोहित,रवि अग्रवाल,दिनेश शर्मा,प्रियंका अरोड़ा,प्रियंका शर्मा,स्नेहा भंडारी,स्नेहा अग्रवाल,नन्दा बोहरा,राधा गज्जा,अखिलेश गज्जा,प्रिंस प्रजापत,अभिषेक जी शर्मा, गोपाल छंगानी,दिनेश कच्छवाह,लता परिहार, प्रकुल मौर्य, शरद शर्मा,नवीन वैष्णव,चंद्रप्रकाश देवड़ा,रमेश पुरोहित,उदयकिशन पुरोहित,शोभना अरोड़ा,संजय पुरोहित,जगदीश हर्ष,विकास पुरोहित,अलका व्यास,विठल व्यास ,विजय,नितांश शर्मा,बेबी काम्या......


-'गठबंधन-एक पवित्र रिश्ता" इस मूवी को जरूर देखें
यह समाज का आईना है इस मूवी में भी बहुत कुछ है जो आज के दौर में चल रहा है मैं आशा करता हूं आप सब इस मूवी को जरूर देखेंगे लाइक कमेंट एंड शेयर जरूर करें

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रविवार, 19 दिसंबर 2021

आई आई टी जोधपुर ने डॉ. गौरव जाजू को सी वी रमन गोल्ड मैडल से सम्मानित किया



आई आई टी जोधपुर ने डॉ. गौरव जाजू को सी वी रमन गोल्ड मैडल से सम्मानित किया




डॉ. गौरव ने बढ़ाया माहेश्वरी समाज का गौरव

जोधपुर के आई आई टी में आज दिनांक 19 दिसंबर २०२१ को सांतवे दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया जिसमे आई आई टी से डॉक्टोरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले होनहार छात्र छात्राओं को डॉक्टरेट के की डिग्री प्रदान करने के साथ उत्कृष्ट शोध करने वाले विशेष छात्र को गोल्ड मैडल से भी सम्मानित किया गया  जिसमे भारतीय प्रौध्योगिकी संस्थान जोधपुर द्वारा आयोजित सांतवे दीक्षांत समारोह में डॉ. गौरव जाजू को "ब्लाइंड सिग्नल मॉडुलेशन रिकॉग्निशन थ्रू क्लस्टरिंग एनालिसिस ऑफ़ कॉन्स्टलेशन सिग्नेचर" पर शोध करने पर आई आई टी जोधपुर द्वारा जोधपुर के 2021 के सभी पीएचडी करने वाले छात्रों में सबसे उत्कृष्ट शोध करने पर "सी वी रमन गोल्ड मैडल" से सम्मानित किया गया

जोधपुर के डॉ. गौरव जाजू ने "ब्लाइंड सिग्नल मॉडुलेशन रिकॉग्निशन थ्रू क्लस्टरिंग एनालिसिस ऑफ़ कॉन्स्टलेशन सिग्नेचर" पर शोध कर देश के साथ माहेश्वरी समाज का नाम भी रोशन किया है |


डॉ. गौरव जाजू के कई शोध लेख ऐकडेमिक जनरल में प्रकाशित हुए है जिसमे उन्होंने वायरलेस सिग्नल की मॉडुलेशन को आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस द्वारा क्लासिफ़ाइ करने की तकनीक बताई है

शनिवार, 11 दिसंबर 2021

पथरी को जड़ से खत्म करने के 4 सबसे कारगर उपाय

पथरी को जड़ से खत्म करने के 4 सबसे कारगर उपाय |
80 % तक किडनी स्टोन की समस्या यूरिन में कैल्शियम और ऑक्सोलेट बढ़ने के कारन होती है | अगर आप घरेलू नुस्खों को उपयोग पथरी का ईलाज के रूप में करेंगे तो फिर आपको इसके लिए ऑपरेशन भी नहीं कराना होगा | किडनी यानि की गुर्दे हमारे शरीर के मुख्य ऑर्गन में से एक होता है,जो शरीर के अंदर हमारे खून को साफ़ करने का काम करता है| यह एक फ़िल्टर की तरह काम करते हुए हमारे खून की सारी गंदगी को मूत्र नलिका में भेज देता है |

जंहा से यह सारी गंदगी मूत्र के रास्ते शरीर के बाहर चली जाती है | लेकिन जब यह मूत्र अधिक गाढ़ा हो जाता है तो इसमें मौजूद अपशिस्ट पदार्थो से छोटे छोटे पत्थर बनने लगते है, यह किडनी और मूत्र नलिका दोनों में बनते है | इन छोटे छोटे पथरो के आसपास साल्ट जमा होने लगता है और यह बढ़ने लगते है और मूत्र के आवागमन में परेशानी पैदा करते है|  जिससे तेज दर्द , घबराहट, पेशाब में खून जैसी समस्याए आने लगती है |

जब हमारे यूरिन में कैल्शियम और ऑक्सोलेट की मात्रा बढ़ने लगती है, तो किडनी में स्टोन की समस्या आती है  | इसलिए खाने में ऐसी चीजे जिनमे ऑक्सीलेट की मात्रा अधिक होती है, उनका स्टोन होने पर कम से कम सेवन करना चाहिए | इसी के साथ कई स्थितियों में शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के कारन भी शरीर में स्टोन की प्रॉब्लम  हो जाती है | अगर आपके परिवार में पहले यह बीमारी किसी को हो चुकी है ,तो आपको भी यह होने के ज्यादा चांसेज होते है |

एक बार किडनी या किडनी से जुड़े दूसरे अंगो में  स्टोन बन जाता है, तो फिर इसे शरीर से बाहर निकालने में  बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है | और अगर स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाये तो सर्जरी करवाने तक की नौबत आ जाती है | पथरी का इलाज करने के लिए वैसे तो कई घरेलु नुस्खे है | लेकिन उनमे से कुछ ही नुस्खे ऐसे है जिनका असर कम समय में ही तेजी से होता है |

किडनी की पथरी का इलाज करेगी यह विशेष चाय | 
कॉर्न सिल्क टी से पथरी का ईलाज बहुत ही फायदेमंद है | कॉर्न सिल्क टी का मतलब होता है भुट्टे के बालों की चाय | हमारे शरीर के युरिनली सिस्टम से जुडी हुई हर तरह की बीमारी जैसे की ब्लेडर इन्फेक्शन, किडनी इन्फेक्शन और किडनी स्टोन जैसी समस्या के लिए मक्के से निकलने वाले बाल बहुत अधिक फायदेमंद होते है | इसके अंदर कई तरह के मिनरल्स और फाइबर्स की मात्रा अधिक होती है जो की हमारे शरीर में मूत्र के बहाव यानि की यूरिन फ्लो को तेजी से बढाती है |

भुट्टे के बालों की चाय बनाने की विधि

जब भी किडनी या उससे जुड़े अंगो में पथरी की समस्या होती है तो बॉडी में विटामिन सी की मात्रा को बढ़ाने की सलाह दी जाती है  जो की कॉर्न सिल्क में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | इसकी चाय बनाने के लिए हमें जरुरत होगी भुट्टे के बाल, निम्बू का रस और ऑलिव ऑइल यानि की जैतून के तेल की| सबसे पहले भुट्टे के ऊपरी छिलको को काटकर अलग कर ले | उसके बाद 3 से 4 कप पानी में एक भुट्टे से निकलने वाले बालों को डालकर तब तक बॉईल करें जब तक की पानी आधा ना रह जाये | उसके बाद इसे छानकर ठंडा होने के लिए छोड़ दे | हल्का गर्म रह जाने पर इसमें 1 से 2 निम्बू का रस और 2 चम्मच जैतून का तेल डालकर सारी  चीजों को आपस में मिक्स कर ले | इस तरह से यह ड्रिंक तैयार हो जाएगी |

kidney stone ke gharelu upay के इस नुस्खे में हमने निम्बू और जैतून के तेल का इस्तेमाल किया है| निम्बू के रस में मौजूद सिट्रिक एसिड स्टोन को तेजी से पिघलाती है  और साथ ही जैतून का तेल इससे होने वाले दर्द को काफी कम कर देता है | इस तैयार ड्रिंक का सेवन दिन में २ बार किया जा सकता है | लगातार एक हफ्ते इसका इस्तेमाल करने पर किडनी स्टोन की समस्या में कमाल का फर्क नजर आता है | भुट्टे के बालो का ज्यादा इस्तमाल करने के लिए अगर आप चाहे तो इसे सुखाकर लम्बे समय तक यूज़ कर सकते है|

किडनी स्टोन का इलाज है मूली के बीज

इसके अलावा पथरी के ईलाज के लिए मूली के बीज भी बहुत अधिक फायदेमंद होते हैं | मूली के बीजों का इस्तेमाल से पीलिया , पाइल्स और त्वचा से जुड़े रोगो में बहुत अद्भुत लाभ मिलते है | खाने में इसका स्वाद थोड़ा तीखा होता है | और यही तीखापन शरीर में मौजूद स्टोन को तोड़ने में बहुत कारगर होता है | इसलिए जिन लोगो को भी किडनी या मूत्राशय से सम्बंधित किसी भी तरह की बीमारी होती है, तो उन्हें मूली बीजों का का रोजाना सेवन करना चाहिए |

लेकिन स्टोन को बहार निकलने के लिए मूली के बीज से बना काढ़ा  ज्यादा तेजी से असर दिखाता है | मूली के बीज आपको मार्किट में आसानी से मिल जायेंगे | और अगर आप चाहे तो इसे ऑनलाइन भी खरीद सकते है |

नुस्खा बनाने की विधि
पथरी का इलाज करने के इस नुस्खे को तैयार करने के लिए 1 गिलास पानी में 2 चम्मच  मूली के बीज को डालकर तब तक बॉईल करें जब तक की पाना आधा ना रह जाये | फिर ठंडा होने के बाद इसमें 2 नीम्बुओं के रस को मिलाकर दिन में 2 बार इसका सेवन करें | लगातार 3 दिन इसका सेवन करने से किडनी स्टोन की समस्या में 50 %  तक सुधार आ जाता है |


पत्थर चट्टे की पत्तियां है गुर्दे की पथरी के लिए घरेलू उपचार 
इसके अलावा गुर्दे की पथरी के देशी इलाज में पत्थर चट्टे की पत्तियां भी लाभकारी होती है, जो हर तरह की पथरी को पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए सबसे ज्यादा असरदार होती है | पत्थर चट्टे की पत्तिया स्टोन होने पर अन्य दुसरे नुस्खों के मुकाबले ज्यादा तेजी से असर दिखाती है | इसलिए इसके पहले इस्तेमाल से ही  किडनी में मौजूद स्टोन में फर्क दिखना शुरू हो जाता है |

पुराने समय में इसका पौधा आसानी से मिल जाया करता था | लेकिन समय के साथ यह औषधि दुर्लभ होती जा रही है | अगर आपको आपके आस पास के क्षेत्र में यह नहीं मिलती है | तो इसका पूरा पौधा आप कम दामों में ऑनलाइन भी खरीद सकते है |

इसका इस्तेमाल करने के लिए इसकी पत्तियों का जूस या चटनी बनाकर भी इसका सेवन किया जा सकता है | रोजाना इसका सेवन करने से सिर्फ 7 दिनों में ही किडनी स्टोन की समस्या पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है |

किडनी में पथरी का इलाज होगा कुल्थी की दाल से 
इसके अलावा कुल्थी की दाल से पथरी का ईलाज किया जा सकता है यह पित्ताशय यानि गाल ब्लेडर में होने वाले स्टोन के लिए भी बहुत अधिक फायदेमंद होती है | इसके अंदर विटामिन A अधिक मात्रा में पाया जाता है| रोजाना इसका सेवन करने से शरीर में मौजूद स्टोन धीरे धीरे घटकर पेशाब के रास्ते बाहर आने लगता है |

कुल्थी की दाल आपको की सी भी परचूनी की दुकान में कम दामों में आसानी से मिल जाएगी | और अगर आप चाहे तो इसे ऑनलाइन भी खरीद सकते है | इसका इस्तेमाल करने के लिए इसे घर में बनी अन्य दूसरी दालों की तरह ही बनाकर रोजाना शाम के समय इसका सेवन करें |

किडनी स्टोन में फायदेमंद है राजमा 
राजमा ना सिर्फ खाने में स्वादिस्ट होता है बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभदायक होता है और शरीर में मौजूद पथरी का ईलाज में राजमा बहुत लाभदायक होता है | राजमा में प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है | और किडनी स्टोन पर पड़ते इसके प्रभाव के कारन इसे किडनी बीन्स के नाम से जाना जाता है |

राजमा किडनी और ब्लेडर संबंधी और समस्या में बेहद फायदेमंद होता है | राजमा के खाने से तो किडनी स्टोन की समस्या में तो फायदा होता है ही इसके अलावा राजमा को भिगोकर उसका पानी पिने से भी किडनी स्टोन की समस्या में फायदा पा सकते है |

किडनी स्टोन का इलाज करने के लिए जरुरी है संतुलित आहार 

पथरी( kidney stone ) की बीमारी धीरे धीरे बढ़ने वाली किसी भी दूसरी बीमारी की तरह होती है | इसलिए इस समस्या को बढ़ने से रोकने के लिए संतुलित आहार और सही मात्रा में पानी पीना बहुत जरुरी होता है | पानी ज्यादा पिने से हमारे मूत्र के बहाव में बढ़ोतरी होती है |

जिससे की शरीर में मौजूद स्टोन का आकार और ज्यादा नहीं बढ़ता है | खाने में ऐसी चीजें जिनमे कैल्शियम की मात्रा अधिक हो, जैसे की दूध  और दूध से बनी चीजें पालक, सोयाबीन, बादाम, भिंडी और तिल इन सभी चीजों का कम से कम सेवन करें | और साथ ही ऑक्सालेट रिच फ़ूड जैसे की तला हुआ आलू , चुकंदर, मुगफली, मैदा , बैगन और टमाटर के बीज इस तरह की चीजों का सेवन भी कम से कम करें |

किडनी की पथरी का इलाज करने के लिए रखे इन बातों का ध्यान 

पथरी की बीमारी होने पर आपको अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए | अधिक तले हुए भोजन और फास्टफूड खाने से यह बीमारी बढ़ती है | पथरी की समस्या होने पर अधिक देर तक भूखे ना रहे और तरल चीजों का अधिक सेवन करें | साथ ही साथ रस वाले फलों का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए | लेकिन यदि आप मांस और शराब का सेवन करते है, तो आपके इस्तेमाल किये गए किसी भी नुस्खे का कोई खास असर नहीं हो पायेगा |

इसलिए पथरी की बीमारी होने पर शराब और मांस का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए | इन सभी बातो का ध्यान रखकर आप अपनी पथरी की बीमारी से जल्द राहत पा सकते है | यदि आप मेरे बताये गए नुस्खों का सेवन करते है, और कुछ परहेज और सावधानिया बरतते है, तो आप 10 दिन में पथरी की समस्या से छुटकारा पा सकते है | लेकिन अगर आपके पथरी 15 mm से अधिक बड़ी है तो ऐसे में आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए | और उचित परामर्श लेना चाहिए |

रविवार, 28 नवंबर 2021

हिंदुओं गांठ बांध लो

हिंदुओं गांठ बांध लो।

🪢 लड़कियों का विवाह 21 वें वर्ष और लड़के का विवाह 24 वें वर्ष में हर स्थिति में हो जाना चाहिए।
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🪢 फ्लैट भूलकर मत लो जमीन खरीदो और उस पर मकान बनाओ वर्ना बच्चों का भविष्य पिंजरे के पंछी की तरह हो जाएगा।
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🪢 नयी युवा पीढ़ी को कम से कम तीन संतान पैदा करने के लिए प्रेरित करो।
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🪢 गांव से नाता जोड़ कर रखो।और गांव की पैतृक सम्पत्ति और वहां से नाता जोड़कर रखो।
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🪢 बच्चों को धर्म की शिक्षा अवश्य दो और उनके शारीरिक विकास पर ध्यान दो।
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🪢 हिंदी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग और प्रचार-प्रसार करो।
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🪢 किसी भी जेहादी और आतंकवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति से सामान लेने से बचो।
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🪢 घर में बागवानी करने की आदत डालो और यदि प्रयाप्त जगह है तो देशी गाय पालो।
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 🪢हर हिंदू के घर वाल्मीकि रामायण- योग वशिष्ठ- भागवत गीता-वेद-उपनिषद होने चाहिए जब होंगे तो पढ़ोगे भी।
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 🪢होली-दीपावली-नवरात्रि आदि जितने भी हिंदू त्योहार आयें उनमें सामूहिक यज्ञ करें।
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🪢 अपने बच्चों को प्रत्येक वर्ष एक विद्या प्रदान करें।
 जैसे संगीत विद्या-युद्ध विद्या-योग विद्या-तैराकी-भोजन बनाने की विद्या बच्चों को व्यस्त रखें।
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🪢 वर्ष में कम से कम दो पैदल तीर्थ अवश्य करें।
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🪢 प्रात: काल  5 बजे उठ जाएं और रात्रि को 11 बजे तक सोने का नियम बनाएं।
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🪢 यदि बच्चा पढ़ाई में असक्षम है तो उसको तकनीक ज्ञान दें।
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🪢 आपके बच्चों को कम से कम तीन फोन नम्बर स्मरण होने चाहिए और आपको भी।
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🪢 जब भी बाहर समाज में जाएं तो बच्चों को भी ले जाएं इससे उनका मानसिक विकास होगा।
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🪢 परिवार के साथ मिल बैठकर भोजन करने का प्रयास करें और भोजन करते समय सेल फोन और टीवी बंद कर लें।
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🪢 बच्चों को बालिवुड की फिल्मों से बचाएं और प्रेरणादायक फिल्में दिखाएं।
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🪢 जंक फूड और फास्ट फूड से बचें।
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 🪢चिकन-मटन खाने की बीमारी हो तो हिंदू विक्रेता से ही खरीदें।
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🪢 सांयकाल के समय 10 मिनट भक्ति संगीत लगाएं।
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🪢 दिखावे के चक्कर में पड़कर व्यर्थ का खर्चा ना करें।
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🪢 दो किमी तक जाना हो तो पैदल जाएं या साइकिल का प्रयोग करें।
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🪢 अपने बच्चों के मन में किसी भी प्रकार के नशे के विरुद्ध चेतना पैदा करें।
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 लड़कियां पैदा होने पर अधिक प्रसन्न हों क्योंकि सकन्द पुराण में कहा गया है कि एक लड़की 10 पुत्रों के बराबर होती है।

आंखों के लिए‌ अमृत — शहद

 आंखों के लिए‌ अमृत — शहद

आयुर्वेद में ऐसी मान्यता है कि अलग-अलग स्थानों पर लगने वाले छत्तों के शहद के गुण वृक्षों के आधार पर होते हैं। जैसे नीम पर लगे शहद का उपयोग आँखों के लिए, जामुन का मधुमेह, सहजने का हृदय, वात तथा रक्तचाप के लिए बेहतर होता है। इसके अलावा भी शहद का सेवन कई रोगों में उपयोगी है ।

पिछले कुछ समय से मोबाइल और लैपटॉप के लगातार इस्‍तेमाल करने से लोगों की लाइफस्‍टाइल बहुत ही हेल्‍दी हो गई है। कई लोगों को आंखों में सबसे ज्‍यादा समस्‍या होती है इसके लिए वो कई तरीके के आईड्रॉप भी डालते हैं या फिर जेल का इस्‍तेमाल करते हैं। लेकिन ये कितना सुरक्षित है।

अगर आपको आंखों में कोई समस्‍या है जैसे- खुजली, दर्द, सूखापन या किसी प्रकार संक्रमण तो शहद इसमें मददगार साबित हो सकता है और आपकी समस्‍या को दूर कर सकता है। आइए जानते हैं इस बारे में खास बातें-


1. आंखों के सूखेपन को दूर भगाने में मददगार -
शहद को गुनगुने पानी में मिलाएं और उससे सोने से पहले अपनी आंखों को अच्‍छे से धो लें। इससे आंखों की ड्राईनेस, लालामी और खुजली आदि की समस्‍या दूर हो जाती है।

2 आंखों में फूलापन होना -
अगर आपको आंखों के नीचे फूलापन हो गया हो, जैसाकि लम्‍बे समय तक नींद पूरी न हो पाने के कारण होता है, तो आप शहद की कुछ बूदों को वहां पर डालकर मसाज कर दें और 15 मिनट बाद धो लें।

3. कन्‍जक्‍टीवाईटिस का उपचार -
अगर आपकी आंखें आ गई हों तो आप शहद को आंखों पर लगा सकते हैं, इससे आंखों की करकराहट दूर हो जाएगी। ऐसा कई शोध से निष्‍कर्ष में पता चला है।

4. आंखों के संक्रमण को दूर भगाने में -
आंखों के संक्रमण को दूर करने में भी यह बहुत लाभदायक होता है। इसके लिए आप शहद को गुनगुने पानी में मिला लें और कॉटन बॉल से उसे आंखों के ऊपर लगाएं। इससे आंखों का संक्रमण जल्‍द ही सही हो जाएगा।

5. आंखों की मांसपेशियों को स्‍वस्‍थ बनाएं -
शहद, आंखों की मांसपेशियों को स्‍वस्‍थ बनाता है। साथ ही दृष्टि को कमजोर होने से बचाता है।

6. ग्‍लूकोमा होने से बचाएं -
अगर आंखों में शहद की बूंद को ड्रॉप की तरह डाला जाएं, तो ग्‍लूकोमा होने से बचा जा सकता है। लेकिन शहद में किसी प्रकार की मिलावट नहीं होनी चाहिए।

7. दृष्टि कमजोर होने से बचाएं -
शहद में कई सारे एंटीऑक्‍सीडेंट गुण होते हैं जो कि आंखों की नर्व को स्‍वस्‍थ बनाएं रखने में मददगार साबित हो सकते हैं। इससे निगाह में कमी नहीं आएगी, और आंखों पर लम्‍बे तक समय चश्‍मा लगाने की आवश्‍यकता भी नहीं पड़ेगी।

8. आंखों में खुजली होने पर राहत -
शहद को आंख पर लगाने से खुजली में आराम मिलती है। साथ ही आंखों के नीचे पड़ने वाले रिंकल्‍स भी सही हो जाते हैं।

9 झुर्रियां कम करे – आंखों की झुर्रियों को कम करने के लिए शहद बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए झुर्रियों पर शहद लगाएं और 15 मिनट तक आराम करें। बाद में गर्म पानी से आंखों को धो लें।

#DARJUV9 मतलब ... शुद्धता का भरोसा

हैरान कर देंगे आपको

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🐝 शहद को प्याज के साथ खाने से नपुंसकता व नाईट फॉल जैसी समस्या दूर होती हैं
🐝शहद को चुकंदर के साथ लेने से खून बढ़ता है
🐝नींबू पानी के साथ लेने से वजन घट आता है
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गुरुवार, 25 नवंबर 2021

पौराणिक कथा : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?



#पौराणिक कथा : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?
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हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाता है। अब सवाल कई उठते हैं। पहला यह कि ये योनियां क्या होती हैं? दूसरा यह कि जैसे कोई बीज आम का है तो वह मरने के बाद भी तो आम का ही बीज बनता है तो फिर मनुष्य को भी मरने के बाद मनुष्य ही बनना चाहिए। पशु को मरने के बाद पशु ही बनना चाहिए। क्या मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेतीं? या कहीं ऐसा तो नहीं कि 84 लाख की धारणा महज एक मिथक-भर है? तीसरा सवाल यह कि क्या सचमुच ही एक आत्मा या जीवात्मा को 84 लाख योनियों में भटकने के बाद ही मनुष्य जन्म मिलता है? आओ इनके उत्तर जानें...

क्या हैं योनियां 
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जैसा कि सभी को पता है कि मादा के जिस अंग से जीवात्मा का जन्म होता है, उसे हम योनि कहते हैं। इस तरह पशु योनि, पक्षी योनि, कीट योनि, सर्प योनि, मनुष्य योनि आदि। उक्त योनियों में कई प्रकार के उप-प्रकार भी होते हैं। योनियां जरूरी नहीं कि 84 लाख ही हों। वक्त से साथ अन्य तरह के जीव-जंतु भी उत्पन्न हुए हैं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियां मानी गई हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिक राबर्ट एम मे के अनुसार दुनिया में 87 लाख प्रजातियां हैं। उनका अनुमान है कि कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, पौधा-पादप, जलचर-थलचर सब मिलाकर जीव की 87 लाख प्रजातियां हैं। गिनती का थोड़ा-बहुत अंतर है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व ऋषि-मुनियों ने बगैर किसी साधन और आधुनिक तकनीक के यह जान लिया था कि योनियां 84 लाख के लगभग हैं।

क्रम विकास का सिद्धांत : 
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गर्भविज्ञान के अनुसार क्रम विकास को देखने पर मनुष्य जीव सबसे पहले एक बिंदु रूप होता है, जैसे कि समुद्र के एककोशीय जीव। वही एकको‍शीय जीव बाद में बहुकोशीय जीवों में परिवर्तित होकर क्रम विकास के तहत मनुष्य शरीर धारण करते हैं। स्त्री के गर्भावस्था का अध्ययन करने वालों के अनुसार जंतुरूप जीव ही स्वेदज, जरायुज, अंडज और उद्भीज जीवों में परिवर्तित होकर मनुष्य रूप धारण करते हैं। मनुष्य योनि में सामान्यत: जीव 9 माह और 9 दिनों के विकास के बाद जन्म लेने वाला बालक गर्भावस्था में उन सभी शरीर के आकार को धारण करता है, जो इस सृष्टि में पाए जाते हैं।

गर्भ में बालक बिंदु रूप से शुरू होकर अंत में मनुष्य का बालक बन जाता है अर्थात वह 83 प्रकार से खुद को बदलता है। बच्चा जब जन्म लेता है, तो पहले वह पीठ के बल पड़ा रहता है अर्थात किसी पृष्ठवंशीय जंतु की तरह। बाद में वह छाती के बल सोता है, फिर वह अपनी गर्दन वैसे ही ऊपर उठाता है, जैसे कोई सर्प या सरीसृप जीव उठाता है। तब वह धीरे-धीरे रेंगना शुरू करता है, फिर चौपायों की तरह घुटने के बल चलने लगता है। अंत में वह संतुलन बनाते हुए मनुष्य की तरह चलता है। भय, आक्रामकता, चिल्लाना, अपने नाखूनों से खरोंचना, ईर्ष्या, क्रोध, रोना, चीखना आदि क्रियाएं सभी पशुओं की हैं, जो मनुष्य में स्वत: ही विद्यमान रहती हैं। यह सब उसे क्रम विकास में प्राप्त होता है। 
 
हिन्दू धर्मानुसार सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है।
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार..
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया
वृक्षान्‌ सरीसृपपशून्‌ खगदंशमत्स्यान्‌।
तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
ब्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)
 
अर्थात विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई और इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ, परंतु उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई अत: मनुष्य का निर्माण हुआ, जो उस मूल तत्व ब्रह्म का साक्षात्कार कर सकता था।
 
योग के 84 आसन : योग के 84 आसन भी इसी क्रम विकास से ही प्रेरित हैं। एक बच्चा वह सभी आसन करता रहता है, जो कि योग में बताए जाते हैं। उक्त आसन करने रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। वृक्षासन से लेकर वृश्चिक आसन तक कई पशुवत आसन हैं। मत्स्यासन, सर्पासन, बकासन, कुर्मासन, वृश्चिक, वृक्षासन, ताड़ासन आदि अधिकतर पशुवत आसन ही है।
 
जैसे कोई बीज आम का है तो वह मरने के बाद भी तो आम का ही बीज बनता है तो फिर मनुष्य को भी मरने के बाद मनुष्य ही बनना चाहिए। पशु को मरने के बाद पशु ही बनना चाहिए। क्या मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेतीं? 

प्रश्न : मनुष्य मरने के बाद मनुष्य और पशु मरने के बाद पशु ही बनता है?
उत्तर : क्रम विकास के हिन्दू और वैज्ञानिक सिद्धांत से हमें बहुत-कुछ सीखने को मिलता है, लेकिन हिन्दू धर्मानुसार जीवन एक चक्र है। इस चक्र से निकलने को ही 'मोक्ष' कहते हैं। माना जाता है कि जो ऊपर उठता है, एक दिन उसे नीचे भी गिरना है, लेकिन यह तय करना है उक्त आत्मा की योग्यता और उसके जीवट संघर्ष पर।

यदि यह मान लिया जाए कि कोई पशु आत्मा पशु ही बनती है और मनुष्य आत्मा मनुष्य तो फिर तो कोई पशु आत्मा कभी मनुष्य बन ही नहीं सकती। किसी कीड़े की आत्मा कभी पशु बन ही नहीं सकती। ऐसा मानने से बुद्ध की जातक कथाएं अर्थात उनके पिछले जन्म की कहानियों को फिर झूठ मान लिया जाएगा। इसी तरह ऐसे कई ऋषि-मुनि हुए हैं जिन्होंने अपने कई जन्मों पूर्व हाथी-घोड़े या हंस के होने का वृत्तांत सुनाया। ...तो यदि यह कोई कहता है कि मनुष्यात्माएं मनुष्य और पशु-पक्षी की आत्माएं पशु या पक्षी ही बनती हैं, वे सैद्धांतिक रूप से गलत हैं। हो सकता है कि उन्हें धर्म की ज्यादा जानकारी न हो।
 
दरअसल, उक्त प्रश्न के उत्तर को समझने के लिए हमें कर्म-भाव, सुख-दुख और विचारों पर आधारित गतियों को समझना होगा। सामान्य तौर पर 3 तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधो गति। प्रत्येक जीव की ये 3 तरह की गतियां होती हैं। यदि कोई मनुष्यात्मा मरकर उर्ध्व गति को प्राप्त होती है तो वह देवलोक को गमन करती है। स्थिर गति का अर्थ है कि वह फिर से मनुष्य बनकर वह सब कार्य फिर से करेगा, जो कि वह कर चुका है। अधोगति का अर्थ है कि अब वह संभवत: मनुष्य योनि से नीचे गिरकर किसी पशु योनि में जाएगा या यदि उसकी गिरावट और भी अधिक है तो वह उससे भी नीचे की योनि में जा सकता है अर्थात नीचे गिरने के बाद कहां जाकर वह अटकेगा, कुछ कह नहीं सकते। 'आसमान से गिरे और लटके खजूर पर आकर' ऐसा भी उसके साथ हो सकता है। ...इसीलिए कहते हैं कि मनुष्य योनि बड़ी दुर्लभ है और इसे जरा संभालकर ही रखें। कम से कम स्थिर गति में रहें।

84 लाख योनियों के प्रकार जानिए...
 
84 लाख योनियां अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग बताई गई हैं, लेकिन हैं सभी एक ही। अनेक आचार्यों ने इन 84 लाख योनियों को 2 भागों में बांटा है। पहला योनिज तथा दूसरा आयोनिज अर्थात 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए और जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं उन्हें आयोनिज कहा गया। इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को 3 भागों में बांटा गया है-
 
1. जलचर : जल में रहने वाले सभी प्राणी।
2. थलचर : पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।
3. नभचर : आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।
 
उक्त 3 प्रमुख प्रकारों के अंतर्गत मुख्य प्रकार होते हैं अर्थात 84 लाख योनियों में प्रारंभ में निम्न 4 वर्गों में बांटा जा सकता है।

1. जरायुज : माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।
2. अंडज : अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं।
3. स्वदेज : मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं।
4. उदि्भज : पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं।
पदम् पुराण के एक श्लोकानुसार...
जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।। -(78:5 पद्मपुराण)
अर्थात जलचर 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप, कृमि अर्थात कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख, स्थलीय/थलचर 30 लाख और शेष 4 लाख मानवीय नस्ल के। कुल 84 लाख।
 
आप इसे इस तरह समझें
* पानी के जीव-जंतु- 9 लाख
* पेड़-पौधे- 20 लाख
* कीड़े-मकौड़े- 11 लाख
* पक्षी- 10 लाख
* पशु- 30 लाख
* देवता-मनुष्य आदि- 4 लाख
कुल योनियां- 84 लाख। 
 
'प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प' ग्रंथ में शरीर रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया गया है जिसके अनुसार 1. एक शफ (एक खुर वाले पशु)- खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि। 2. द्विशफ (दो खुर वाले पशु)- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि। 3. पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु- सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि। 

प्रश्न : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?
उत्तर : ऊपर हमने एक प्रश्न कि मनुष्य मरने के बाद मनुष्य और पशु मरने के बाद पशु ही बनता है? का उत्तर दिया था। उसके उत्तर में ही उपरोक्त प्रश्न का आधा जवाब मिल ही गया होगा। इससे पूर्व क्रम विकास में भी इसका जवाब छिपा है। दरअसल, पहले गतियों को अच्छे से समझें फिर समझ में आएगा कि हमारे कर्म, भाव और विचार को क्यों उत्तम और सकारात्मक रखना चाहिए।

क्रम विकास 2 तरह का होता है- एक चेतना (आत्मा) का विकास, दूसरा भौतिक जीव का विकास। दूसरे को पहले समझें। यह जगत आकार-प्रकार का है। अमीबा से विकसित होकर मनुष्य तक का सफर ही भौतिक जीव विकास है। इस भौतिक शरीर में जो आत्मा निवास करती है। 
 
प्रत्येक जीव की मरने के बाद कुछ गतियां होती हैं, जो कि उसके घटना, कर्म, भाव और विचार पर आधारित होती हैं। मरने के बाद आत्मा की 3 तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधो गति। इसे ही अगति और गति में विभाजित किया गया है। वेदों, उपनिषदों और गीता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की 8 तरह की गतियां मानी गई हैं। ये गतियां ही आत्मा की दशा या दिशा तय करती हैं। इन 8 तरह की गतियों को मूलत: 2 भागों में बांटा गया है- 1. अगति, 2. गति। अधो गति में गिरना अर्थात फिर से कोई पशु या पक्षी की योनि में चला जाना, जो कि एक चक्र में फंसने जैसा है।
 
1. अगति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है और उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।
2. गति : गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है।
* अगति के प्रकार : अगति के 4 प्रकार हैं- 1. क्षिणोदर्क, 2. भूमोदर्क, 3. अगति और 4. दुर्गति।
 
1. क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्युलोक में आता है और संतों-सा जीवन जीता है।
2. भूमोदर्क : भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।
3. अगति : अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।
4. दुर्गति : गति में वह कीट-कीड़ों जैसा जीवन पाता है।
 
* गति के प्रकार : गति के अंतर्गत 4 लोक दिए गए हैं: 1. ब्रह्मलोक, 2. देवलोक, 3. पितृलोक और 4. नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।
 
पुराणों के अनुसार आत्मा 3 मार्गों के द्वारा उर्ध्व या अधोलोक की यात्रा करती है। ये 3 मार्ग हैं- 1. अर्चि मार्ग, 2. धूम मार्ग और 3. उत्पत्ति-विनाश मार्ग।
 
1. अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक : अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए है।

2. धूममार्ग पितृलोक : धूममार्ग पितृलोक की यात्रा के लिए है। सूर्य की किरणों में एक 'अमा' नाम की किरण होती है जिसके माध्यम से पितृगण पितृ पक्ष में आते-जाते हैं।

3. उत्पत्ति-विनाश मार्ग : उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है। यह यात्रा बुरे सपनों की तरह होती है।
 
जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्यागकर उत्तर कार्यों के बाद यात्रा प्रारंभ करती है तो उसे उपरोक्त 3 मार्ग मिलते हैं। उसके कर्मों के अनुसार उसे कोई एक मार्ग यात्रा के लिए प्राप्त हो जाता है।
 
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुन:।। -गीता
 
भावार्थ : क्योंकि जगत के ये 2 प्रकार के शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।) जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परम गति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी) फिर वापस आता है अर्थात‌ जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है।।26।।
 
कठोपनिषद अध्याय 2 वल्ली 2 के 7वें मंत्र में यमराजजी कहते हैं कि अपने-अपने शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार शास्त्र, गुरु, संग, शिक्षा, व्यवसाय आदि के द्वारा सुने हुए भावों के अनुसार मरने के पश्चात कितने ही जीवात्मा दूसरा शरीर धारण करने के लिए वीर्य के साथ माता की योनि में प्रवेश कर जाते हैं। जिनके पुण्य-पाप समान होते हैं, वे मनुष्य का और जिनके पुण्य कम तथा पाप अधिक होते हैं, वे पशु-पक्षी का शरीर धारण कर उत्पन्न होते हैं और कितने ही जिनके पाप अत्यधिक होते हैं, स्थावर भाव को प्राप्त होते हैं अर्थात वृक्ष, लता, तृण आदि जड़ शरीर में उत्पन्न होते हैं। 
 
अंतिम इच्छाओं के अनुसार परिवर्तित जीन्स जिस जीव के जीन्स से मिल जाते हैं, उसी ओर ये आकर्षित होकर वही योनि धारण कर लेते हैं। 84 लाख योनियों में भटकने के बाद वह फिर मनुष्य शरीर में आता है।
 
'पूर्व योनि तहस्त्राणि दृष्ट्वा चैव ततो मया।
आहारा विविधा मुक्ता: पीता नानाविधा:। स्तना...।
स्मरति जन्म मरणानि न च कर्म शुभाशुभं विन्दति।।' -गर्भोपनिषद्
 
अर्थात उस समय गर्भस्थ प्राणी सोचता है कि अपने हजारों पहले जन्मों को देखा और उनमें विभिन्न प्रकार के भोजन किए, विभिन्न योनियों के स्तनपान किए तथा अब जब गर्भ से बाहर निकलूंगा, तब ईश्वर का आश्रय लूंगा। इस प्रकार विचार करता हुआ प्राणी बड़े कष्ट से जन्म लेता है, पर माया का स्पर्श होते ही वह गर्भज्ञान भूल जाता है। शुभ-अशुभ कर्म लोप हो जाते हैं। मनुष्य फिर मनमानी करने लगता है और इस सुरदुर्लभ शरीर के सौभाग्य को गंवा देता है।
 
विकासवाद के सिद्धांत के समर्थकों में प्रसिद्ध वैज्ञानिक हीकल्स के सिद्धांत 'आंटोजेनी रिपीट्स फायलोजेनी' के अनुसार चेतना गर्भ में एक बीज कोष में आने से लेकर पूरा बालक बनने तक सृष्टि में या विकासवाद के अंतर्गत जितनी योनियां आती हैं, उन सबकी पुनरावृत्ति होती है। प्रति 3 सेकंड से कुछ कम के बाद भ्रूण की आकृति बदल जाती है। स्त्री के प्रजनन कोष में प्रविष्ट होने के बाद पुरुष का बीज कोष 1 से 2, 2 से 4, 4 से 8, 8 से 16, 16 से 32, 32 से 64 कोषों में विभाजित होकर शरीर बनता है।


मंगलवार, 23 नवंबर 2021

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