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शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

बिजली का आविष्कार : महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे।


 बिजली का आविष्कार : महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे।

युवं पैदवे पुरूवारमश्विना स्पृधां श्वेतं तरूतारं दुवस्यथः।
शर्यैरभिद्युं पृतनासु दुष्टरं चर्कत्यमिन्द्रमिव चर्षणीसहम्।।
-
ऋग्वेद अष्ट1।अ8।व21।मं10।।

प्राचीनकाल में ऊंचे उड़ने वाले गुब्बारे, पैराशूट, बिजली और बैटरी जैसे कई उपकरण थे। भारत के ऋषियों ने धर्म के साथ ही विज्ञान का भी विकास किया था। उस काल में वायुयान होते थे, बिजली होती थी, अंतरिक्ष में सफर करने के लिए अंतरिक्ष यान भी होते थे। आज बहुत से लोग शायद इस पर विश्वास करें लेकिन खोजकर्ताओं ने अब धीरे-धीरे इसे स्वीकार करना शुरू कर दिया है। किसी भी देश और उसकी संस्कृति के इतिहास को धर्म के आईने से नहीं देखा जाना चाहिए।

वैज्ञानिक ऋषियों के क्रम में महर्षि अगस्त्य भी एक वैदिक ऋषि थे। निश्चित ही आधुनिक युग में बिजली का आविष्कार माइकल फैराडे ने किया था। बल्ब के अविष्कारक थॉमस एडिसन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे बल्ब बनाने में मदद मिली।

महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। महर्षि अगस्त्य को मंत्रदृष्टा ऋषि कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या काल में उन मंत्रों की शक्ति को देखा था। ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष्ट हैं। महर्षि अगस्त्य ने ही ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था। साथ ही इनके पुत्र दृढ़च्युत तथा दृढ़च्युत के पुत्र इध्मवाह भी नवम मंडल के 25वें तथा 26वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि हैं।

महर्षि अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का पुत्र माना जाता है। उनके भाई का नाम विश्रवा था जो रावण के पिता थे। पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे। महर्षि अगस्त्य ने विदर्भ-नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह किया, जो विद्वान और वेदज्ञ थीं। दक्षिण भारत में इसे मलयध्वज नाम के पांड्य राजा की पुत्री बताया जाता है। वहां इसका नाम कृष्णेक्षणा है। इनका इध्मवाहन नाम का पुत्र था।

अगस्त्य के बारे में कहा जाता है कि एक बार इन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से समुद्र का समूचा जल पी लिया था, विंध्याचल पर्वत को झुका दिया था और मणिमती नगरी के इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया था। अगस्त्य ऋषि के काल में राजा श्रुतर्वा, बृहदस्थ और त्रसदस्यु थे। इन्होंने अगस्त्य के साथ मिलकर दैत्यराज इल्वल को झुकाकर उससे अपने राज्य के लिए धन-संपत्ति मांग ली थी।

सत्रे जाताविषिता नमोभि: कुंभे रेत: सिषिचतु: समानम्। ततो मान उदियाय मध्यात् ततो ज्ञातमृषिमाहुर्वसिष्ठम्॥ इस ऋचा के भाष्य में आचार्य सायण ने लिखा है- ‘ततो वासतीवरात् कुंभात् मध्यात् अगस्त्यो शमीप्रमाण उदियाप प्रादुर्बभूव। तत एव कुंभाद्वसिष्ठमप्यृषिं जातमाहु:



निश्चित ही बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया लेकिन एडिसन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।

 
महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-

 संस्थाप्य मृण्मये पात्रे

ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।

छादयेच्छिखिग्रीवेन

चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥

दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।

संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

-अगस्त्य संहिता

 अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।


 अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबे या सोने या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।


19 फरवरी जन्मदिवस - तपस्वी जीवन श्री गुरुजी

19 फरवरी/जन्मदिवस
*तपस्वी जीवन श्री गुरुजी*
संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने अपने देहान्त से पूर्व जिनके समर्थ कन्धों पर संघ का भार सौंपा, वे थे श्री माधवराव गोलवलकर, जिन्हें सब प्रेम से श्री गुरुजी कहकर पुकारते हैं। माधव का जन्म 19 फरवरी, 1906 (विजया एकादशी) को नागपुर में अपने मामा के घर हुआ था। उनके पिता श्री सदाशिव गोलवलकर उन दिनों नागपुर से 70 कि.मी. दूर रामटेक में अध्यापक थे।

माधव बचपन से ही अत्यधिक मेधावी छात्र थे। उन्होंने सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। कक्षा में हर प्रश्न का उत्तर वे सबसे पहले दे देते थे। अतः उन पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि जब कोई अन्य छात्र उत्तर नहीं दे पायेगा, तब ही वह बोलंेगे। एक बार उनके पास की कक्षा में गणित के एक प्रश्न का उत्तर जब किसी छात्र और अध्यापक को भी नहीं सूझा, तब माधव को बुलाकर वह प्रश्न हल किया गया।

वे अपने पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य पुस्तकंे भी खूब पढ़ते थे। नागपुर के हिस्लाप क्रिश्चियन कॉलिज में प्रधानाचार्य श्री गार्डिनर बाइबिल पढ़ाते थे। एक बार माधव ने उन्हें ही गलत अध्याय का उद्धरण देने पर टोक दिया। जब बाइबिल मँगाकर देखी गयी, तो माधव की बात ठीक थी। इसके अतिरिक्त हॉकी व टेनिस का खेल तथा सितार एवं बाँसुरीवादन भी माधव के प्रिय विषय थे।

उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर उनका सम्पर्क संघ से हुआ। वे नियमित रूप से शाखा पर जाने लगे। जब डा. हेडगेवार काशी आये, तो उनसे वार्तालाप में माधव का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो गया। एम-एस.सी. करने के बाद वे शोधकार्य के लिए मद्रास गये; पर वहाँ का मौसम अनुकूल न आने के कारण वे काशी विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक बन गये। 

उनके मधुर व्यवहार तथा पढ़ाने की अद्भुत शैली के कारण सब उन्हें ‘गुरुजी’ कहने लगे और फिर तो यही नाम उनकी पहचान बन गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी भी उनसे बहुत प्रेम करते थे। कुछ समय काशी रहकर वे नागपुर आ गये और कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन दिनों उनका सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से भी हुआ और वे एक दिन चुपचाप बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गये। वहाँ उन्होंने विवेकानन्द के गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द जी से दीक्षा ली। 

स्वामी जी के देहान्त के बाद वे नागपुर लौट आये तथा फिर पूरी शक्ति से संघ कार्य में लग गये। उनकी योग्यता देखकर डा0 हेडगेवार ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व दिया। अब पूरे देश में उनका प्रवास होने लगा। 21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरुजी सरसंघचालक बने। उन्होंने संघ कार्य को गति देने के लिए अपनी पूरी शक्ति झांेक दी। 

1947 में देश आजाद हुआ; पर उसे विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा। 1948 में गांधी जी हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। श्री गुरुजी को जेल में डाल दिया गया; पर उन्होंने धैर्य से सब समस्याओं को झेला और संघ तथा देश को सही दिशा दी। इससे सब ओर उनकी ख्याति फैल गयी। संघ-कार्य भी देश के हर जिले में पहुँच गया।

श्री गुरुजी का धर्मग्रन्थों एवं हिन्दू दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था; पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार कर दिया। 1970 में वे कैंसर से पीड़ित हो गये। शल्य चिकित्सा से कुछ लाभ तो हुआ; पर पूरी तरह नहीं। इसके बाद भी वे प्रवास करते रहे; पर शरीर का अपना कुछ धर्म होता है। उसे निभाते हुए श्री गुरुजी ने 5 जून, 1973 को रात्रि में शरीर छोड़ दिया।

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

आँखों का चश्मा उतारना - निम्न सामग्री का उपयोग करे

 नेत्र ज्योतिवर्द्धक उपचार

आँखों का चश्मा उतारना
निम्न सामग्री का उपयोग करे
बादाम 200 ग्राम ,
अखरोट 100 ग्राम ,
काली मिर्च 100 ग्राम ,
बारीक सौंफ 100 ग्राम ,
छोटी इलायची 20 ग्राम,
मिश्री(धागे वाली) 600 ग्राम

बादाम को रात को जल में भिगोकर रख दें और प्रात: छिलके निकालकर धूप में अच्छी तरह सुखा लें। इसको व अन्य सामग्री को अलग-अलग कूट पीस कर महीन चुर्ण कर लें व अच्छे से मिलाकर किसी बर्तन में रख लें।

इस मिश्रण की बीस ग्राम मात्रा दूध के साथ (गाय का दूध मिले तो ज़्यादा बेहतर) प्रतिदिन रात को भोजन से एक घंटे बाद सेवन करें। बच्चों को इससे आधी मात्रा दें तथा इस नुस्खे को कम से कम छ: माह तक प्रयोग करें और नेत्र ज्योति में चमत्कारी लाभ अनुभव कर ले।

धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए एक चुनौती बना हुआ है - ‘राम-राम’ वृक्ष

सियाराम मय सब जाग जानि... की कल्पना पूरे रामनगरी के कण-कण में साकार होती है। यहां की रज में श्री सीताराम के प्रति अगाध निष्ठा बसी है।

रामनगरी में ही एक ऐसा वृक्ष है जिसके तने, टहनियों व पत्तियों पर राम-राम अंकित मिलता है, जो कि अमिट है। अयोध्या के दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष है, जो धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है। आसपास के लोगों की इस पेड़ से अगाध निष्ठा है।

यहां वर्ष में एक बार मेला भी लगता है। कदम प्रजाति के इस पेड़ की खासियत ये है कि इसकी जड़ और डालियों पर भगवान राम का नाम लिखा है और धीरे-धीरे इस पेड़ पर भगवान का नाम लिखे होने की संख्या बढ़ती जा रही है।

आस्था, धर्म और विज्ञान अलग-अलग क्षेत्र होते हुए भी कहीं न कहीं आपस में जुड़े हैं। धर्म और आस्था की सीमा रेखा जहां समाप्त होती है वहीं से विज्ञान का क्षेत्र शुरू होता है।

आस्था और धर्म को बहुधा: विज्ञान की कसौटी पर कभी भी पूर्ण रूपेण नहीं कसा जा सकता है। दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष अपनी दूसरी पीढ़ी का पौधा है।
पहली पीढ़ी का पौधा वर्तमान वृक्ष से लगभग 50 मीटर की दूरी पर स्थित था, जो आसपास के लोगों द्वारा वहां की मिट्टी खोद लेने के कारण सूख गया था।

‘राम-राम’ वृक्ष जहां वर्तमान में स्थित है, वह यद्यपि एक उपेक्षित पुराना बाग है लेकिन धार्मिक परिदृश्य में इसे देखें तो जनश्रुति के अनुसार ये वृक्ष हनुमान जी द्वारा हिमालय से संजीवनी बूटी का पहाड़ लेकर श्रीलंका जाने के मार्ग में अवस्थित है। इस ‘राम-राम’ वृक्ष के तने के ऊपर एक सिल्की छिलका है जो समय-समय पर सूखकर जब हटता है तो उसके नीचे तने पर ‘राम-राम’, ‘सीता’ तथा श्रीरामसीता शब्द लिखे मिलते हैं जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता। ये तीनों शब्द वृक्ष के पूरे तने पर मिलते हैं।

वनस्पति विज्ञान के आधार पर जब इस वृक्ष की बात होती है तो अभी तक ‘राम-राम’ वृक्ष के वानस्पतिक नाम का निर्धारण नहीं हो सका है। जिस खेत में पेड़ है उसके मालिक उदय प्रकाश वर्मा बताते हैं कि इस पेड़ पर दशकों पूर्व अचानक भगवान राम का नाम लिखा देखा गया।
जिसके बाद से पेड़ के हर दल पर भगवान का नाम अंकित होता है। इस चमत्कारी पेड़ की महिमा जब लोगों को पता चली तो इस पेड़ की पूजा शुरू हो गई। प्रतिदिन सुबह आठ बजे एक पुजारी इस पेड़ की पूजा करते हैं। वहीं साल में पितृ विसर्जन के दिन इस पेड़ के नीचे मेला भी लगता है।

शेयर मार्केट से एक करोड़ रुपये कैसे कमायें?

 

तो सुनिए

ऐसे सभी शेयर खरीद लीजिए जो औने पौने दामों में मिल रहे हो जैसे कि

  1. trident 7, (2020)
  2. वोडाफोन आइडिया 8, (2020)
  3. Pnb 27, (2020)
  4. fsl 71, (2020)
  5. आंध्र सीमेंट 4, (2020)
  6. Ujaas 3, (2020)
  7. BCG

इत्यादि वो भी कम से कम पांच सौ शेयर सभी के।

जरूरी नहीं कि एक बार में ही सब उठा ले, अपने टारगेट सेट करें जैसे सौ शेयर लेने पर यदि एक हजार प्लस में प्रॉफिट हुआ तो सौ और शेयर खरीदूंगा।

जब प्रॉफिट होने लगे तो बेच दो तुरंत, (यदि आपका नजरिया कम समय के लिए है।)

लेकिन

सब इतनी जल्दी से नहीं होता समय लगता है, सब्र रखना पड़ता है

और सात या दस साल बाद देखिए इन्हे, की वैल्यू इनकी ऊपर की ओर जा रही है कि नहीं, यदी भाव बड़ा हुआ, तो किस्मत आपकी।

मतलब यह की यदि आप छोटे समय के लिए प्रॉफिट कमाना चाहते है तो आज खरीदिए और थोड़ा प्रॉफिट दिखने पर बेच दीजिए, लेकिन यदि आपकी सोच लंबी है तो लंबा समय का सोचे।

  1. ध्यान देने वाली बात यह है कि जो भी शेयर खरीदे उसमे कोई भी share गिरवी न रखा हो, ex आईटीसी ITC, HINDUSTAN UNILEVER, TCS, HDFC AMC, …
  2. मार्केट कैपिटल कम से कम पांच हजार करोड़ रूपए के ऊपर हो, आप चाहे तो घटा भी सकते हैं लेकिन इतना ही ज्यादा आप को टाइम लगेगा, करोड़पति बनने में।
  3. प्रोमोटर ज्यादा हो उस share के।
  4. उस share कि कंपनी में mutual फंड की हिस्सेदारी ज्यादा हो।
  5. बाहरी कंपनियों का शेयर में हिस्सेदारी भी ज्यादा हो

नहीं तो वही उत्तर मिलेगा जो नीचे दो विद्वानों ने दिया है।

ज्यादा के चक्कर में न रहे, शेयर बाजार एक कुआ है जिसमें जितना भी पैसा या पत्थर डालो, वह कम ही है।

उत्तर अभी मेरा अधूरा है क्यूंकि अभी मेरा मूड नहीं है ज्यादा बताने में, क्योंकि आजकल मेरे साथी फंडामेंटली स्ट्रॉन्ग शेयर ढूंढते हैं जो कुछ भी हो जाए गिरेगा नहीं, और यदि गिरेगा तो दो तीन महीनों में बड़ जाएगा उससे ज्यादा। जैसे HUL, INFOSYS, SBI CARDS, HDFC BANK, HDFC, HDFC LIFE, HDFC AMC, MUTHOOT FINANCE..

मूड अब बन गया है ये लीजिए:

मार्केट में nse में टोटल 1600 कंपनियां हैं, जिनमें से केवल 1328 एक्टिव हैं, जबकि bse में 5000 कंपनियां लिस्टेड हैं।

इसका यह बिल्कुल मतलब नहीं की सब खरीद लिया जाए।

जो पैसा आप खुद के लिए कभी फालतू में खर्च करते हैं उससे अच्छा आप शेयर खरीद लें। वो भी उतने ही दाम का।

फालतू के खर्च

  1. गुटखा प्रति दिन अंदाजन खर्च 20₹ (मुझे पता नहीं क्योंकि मैं खाता नहीं)
  2. सिगरेट प्रति दिन अंदाजन खर्च 20₹
  3. दारू या बीयर साप्ताहिक खर्च 250₹
  4. चाट, फुल्की इत्यादि नहीं जोड़ा है, ये सब आप खुद देख लेना, हालाकि खा सकते हैं और इसके बदले कोई शेयर नहीं खरीदना, कसम से अच्छा नहीं लगेगा मुझे।

कुल मिला कर दैनिक खर्च (20+20+250/7)= 75₹ के आसपास।

जो कि कोई काम का नहीं यदि आप इन्हे waste करते हैं।

75*4=300₹ मासिक खर्च ।

सालाना छत्तीस सौ रुपए।

अब यदि ट्राइडेंट कंपनी का शेयर खरीदते हैं जो कि 7 ₹ के आसपास चल रहा है, जिसकी कंपनी का मार्केट कैपिटल 5000 करोड़ ₹ है।

तो इसको लेने में क्या बुराई है।

आलोक इंडस्ट्रीज जो कि अभी रिलायंस ने खरीदा है, उसकी कंपनी का शेयर भी 20–22₹ के आसपास है, बताइए इसको लेने में क्या बुराई है।

टोटल 6600 कंपनी हैं इसका यह मतलब नहीं कि सब खरीद लो, आंखे बन्द कर के।

जब टीसीएस का शेयर 11–20₹ के आसपास था तब इसका मार्केट कैपिटल 5000 करोड़ ₹ के आसपास था।

और अब देख लीजिए कि अभी कितना चल रहा है 2000₹ + (दो हजार के ऊपर)

उस समय यदि 100 शेयर भी खरीदे होते तो उस समय केवल 2000₹ लगते और अभी यदि बेचते तो कम से कम 2000*100= 2,00,000₹ तो कमा ही लेते, साथ ही साथ डिविडेंड मिलता वो अलग।

जरूरी नहीं कि सब उठा लो, आंखे बन्द करके।

और हां, इसका यह मतलब भी नहीं है कि आप अभी रिलायंस के नाम के सब शेयर खरीद लो जैसे की rpower, reliance infra क्योंकि स्टार्टिंग के जो पांच पॉइंट्स हमने बताए है उनमें से एक भी सही नहीं बैठता।

पेनी स्टॉक में इन्वेस्ट करने से पहले रिसर्च जरूर करे।

ऊपर दी हुई तस्वीर का मतलब ऐसे स्टोक्स में निवेश करना हैं जिसके बारे में आप जानते हो और खरीदना चाहते हो न कि इसलिए क्योंकि आप उस स्टॉक के प्राइस वैल्यू ज्यादा चाहते हो।

जो भी शेयर खरीदे सोच समझ कर खरीदें। कम से कम पांच बार सोच कर खरीदें।

उन पैसों को इन्वेस्ट करें जो काम के नहीं है, और उसके डूब जाने के बाद भी आपको गम न हो क्योंकि आप पहले से ही फालतू में खर्च करते थे।

हाल ही में लिखा गया है 12 फरवरी 2022 (कृपया नीचे पढ़े)✓

आए दिन आप यूट्यूब पर वीडियो देखते हो तो आपको दिखेगा की ये शेयर अभी आपको मात्र 15 का मिला रहा है, और इसका टारगेट 1500 बन रहा है, मौका न चूको, इनसे खास तौर से दूर रहे, क्योंकि इन्होंने पहले से शेयर खरीद रखा था जब इस शेयर की वैल्यू 5 रूपए थी (<मान लीजिए) अब आपको 15 पर खरीदवाने के लिए कह रहा है,

अब आप ध्यान से देखिए की उस वीडियो को एक बार चला कर देखिए (आपको उस वीडियो को सुनना नहीं है) की कितने लोगों ने सिर्फ उस वीडियो को देखा है, अंदाजन मान लीजिए बहुत कम सिर्फ 2000 (2k) लोगों ने देखा है, अब जब इतने लोगों ने देखा हैं तो कल आप उसी शेयर को देखना वह शेयर एक दम से अपर सर्किट में चलेगा, और जब उस शेयर की वैल्यू 15 से 30 या 45 या मान लीजिए 60 भी हो गई या पहुंच गया अपर सर्किट में, तो समझ लीजिए वहीं से लोअर सर्किट लगना चालू हो जायेगा।

और जिन चालबाजो ने आपको कहा था की 15 में ले लो, अब वो उनका पैसा 60 का बनने पर उससे बाहर निकल गए, और उनका खुद का पैसा 12 गुना बना, और लखपति बन गए।

लेकिन जिन्होंने उसे अपर सर्किट पर खरीदा वो उनकी लुटिया डूब गई, इस शेयर बाजार के समंदर में, इसलिए कभी भी इन विडियोज पर ध्यान न दे।

एक बार अपने स्टॉक एडवाइजर से जरूर संपर्क करें या फिर किसी बड़े से इसके बारे में चर्चा करे।

जिसको और ज्यादा जानकारी चाहिए तो मुझे msg करे।

मानव चिड़ियाघर: पश्चिमी दुनिया का शर्मनाक रहस्य, 1900-1958

मानव चिड़ियाघर: पश्चिमी दुनिया का शर्मनाक रहस्य, 1900-1958

[1]

चित्र में :- एक युवा फिलिपिनो लड़की को एक अन्य भयानक 1906 190 प्रदर्शनी 'में कोनी द्वीप, न्यूयॉर्क में एक बाड़े में लकड़ी की बेंच पर बैठे हुए चित्रित किया गया है।

इन चौंकाने वाली दुर्लभ तस्वीरों से पता चलता है कि दुनिया भर में तथाकथित मानव चिड़ियाघरों ’को बाड़ों में आदिम मूल निवासी’ को रखा गया है, ताकि पश्चिमी लोग उन पर तंज कस सकें और उन पर हमला कर सकें। भयावह छवियां, जिनमें से कुछ को हाल ही में 1958 के रूप में लिया गया था, दिखाते हैं कि काले और एशियाई लोगों को क्रूरता से व्यवहार किया गया था, जो लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है।

19वीं और 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, पश्चिमी दुनिया खोजकर्ता और साहसी लोगों द्वारा वर्णित औपनिवेशिक शोषण के लिए "साहसी", "आदिम" लोगों को देखने के लिए बेताब थी।

[2]

उन्माद को खिलाने के लिए, अफ्रीका, एशिया और अमेरिका से हजारों स्वदेशी व्यक्तियों को संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में लाया गया था, जिन्हें अक्सर संदिग्ध परिस्थितियों में "मानव चिड़ियाघरों" में अर्ध-कैद जीवन में प्रदर्शन के लिए रखा जाता था।

मानव चिड़ियाघर पेरिस, हैम्बर्ग, एंटवर्प, बार्सिलोना, लंदन, मिलान और न्यूयॉर्क शहर में पाया जा सकता है।

कार्ल Hagenbeck, जंगली जानवरों में एक व्यापारी और यूरोप में कई चिड़ियाघरों के भविष्य के उद्यमी, ने 1874 में समोआ और सामी लोगों को "शुद्ध रूप से प्राकृतिक" आबादी के रूप में प्रदर्शित करने का फैसला किया। 1876 ​​में, उन्होंने मिस्र के सूडान में कुछ जंगली जानवरों और नूबियों को वापस लाने के लिए एक सहयोगी को भेजा। न्युबियन प्रदर्शनी यूरोप में बहुत सफल रही और उसने पेरिस, लंदन और बर्लिन का दौरा किया।

1878 और 1889 के पेरिस वर्ल्ड के फेयर दोनों में एक ब्लैक विलेज (ग्राम नगर) प्रस्तुत किया। 28 मिलियन लोगों ने देखा, 1889 के विश्व मेले ने 400 स्वदेशी लोगों को प्रमुख आकर्षण के रूप में प्रदर्शित किया।

[3]

1900 के विश्व मेले ने मेडागास्कर में रहने वाले प्रसिद्ध डायरमा को प्रस्तुत किया, जबकि मार्सिले (1906 और 1922) में औपनिवेशिक प्रदर्शनियों और पेरिस (1907 और 1931) में भी मनुष्यों को अक्सर नग्न या अर्ध-नग्न रूप में प्रदर्शित किया गया।

[4]

चित्र में :- 20 वीं सदी की शुरुआत में न्यूयॉर्क के कोनी द्वीप में एक सर्कल में एक साथ बैठे कपड़े में फिलीपीनों का चित्रण किया गया है, जबकि अमेरिकियों की भीड़ बाधाओं के पीछे से देखती है।

पेरिस में 1931 की प्रदर्शनी इतनी सफल रही कि छह महीने में 34 मिलियन लोगों ने इसमें भाग लिया, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित द ट्रूथ ऑन द कॉलोनीज़ नामक एक छोटी सी काउंटर-प्रदर्शनी ने बहुत कम आगंतुकों को आकर्षित किया। खानाबदोश सेनेगल गांवों को भी प्रस्तुत किया गया।

1904 में, एपाचेस और इगोरोट्स (फिलीपींस से) 1904 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों के साथ सेंट लुइस वर्ल्ड फेयर में प्रदर्शित किए गए थे। अमेरिका ने स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध के बाद, गुआम, फिलीपींस और पर्टो रीको जैसे नए क्षेत्रों को अधिग्रहित कर लिया था, जिससे उन्हें कुछ मूल निवासियों को "प्रदर्शित" करने की अनुमति मिली।

ग्रांट के कहने पर चिड़ियाघर के निदेशक विलियम होर्नडे ने बेंगा को चिंपांज़ी के साथ एक पिंजरे में प्रदर्शित किया, फिर दोहांग नामक एक संतरे के साथ, और एक तोता, और उसे द मिसिंग लिंक का लेबल दिया, जिसमें कहा गया था कि विकासवादी शब्दों में बेंगा जैसे अफ्रीकी करीब थे। वानर यूरोपीय थे। इसने शहर के पादरी के विरोध का सामना किया, लेकिन जनता ने इसे देखने के लिए कथित तौर पर झुंड बनाया।

बेंगा ने धनुष और तीर से निशाना साधा, सुतली घुमाई और एक ओरंगुटान से कुश्ती लड़ी। हालांकि, द न्यू यॉर्क टाइम्स के अनुसार, "कुछ लोगों ने बंदरों के साथ एक पिंजरे में एक इंसान के देखे जाने पर आपत्ति जताई,", शहर में काले पादरी के रूप में विवाद छिड़ गया।

[5]

20 वीं शताब्दी के आरंभ में मानव चिड़ियाघरों में, प्रदर्शन पर स्वदेशी लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अफ्रीकी आदिवासी सदस्यों को भूमध्यवर्ती गर्मी के लिए पारंपरिक कपड़े पहनने की आवश्यकता थी, यहां तक ​​कि दिसंबर के तापमान में भी ठंड थी, और फिलिपिनो ग्रामीणों को मौसमी कुत्ते के खाने की रस्म को दर्शकों के सामने करने के लिए बनाया गया था। पीने के पानी की कमी और सैनिटरी स्थितियों को भयावह करने से पेचिश और अन्य बीमारियों का सामना करना पड़ा।

चित्र में :-जर्मन प्राणीविज्ञानी प्रोफेसर लुत्ज़ हेक को हाथी और एक परिवार के साथ चित्रित किया गया है, जिसे वे 1931 में जर्मनी के बर्लिन चिड़ियाघर में ले आए थे।

[6]

"अंत में, यह मनुष्यों के वशीकरण पर नाराजगी नहीं थी जो मानव चिड़ियाघरों को समाप्त कर देते थे। द्वितीय विश्व युद्ध और उसके बाद के वर्षों में, जनता का समय और ध्यान कठोरता से दूर और भूराजनीतिक संघर्ष और आर्थिक पतन की ओर आकर्षित हुआ। 20 वीं शताब्दी के मध्य तक, टेलीविजन ने सर्कस की जगह ले ली और "चिड़ियाघर" की यात्रा की - मानव या अन्यथा - मनोरंजन के पसंदीदा मोड के रूप में, और मनोरंजन के लिए स्वदेशी लोगों का प्रदर्शन फैशन से बाहर हो गया।"

(फोटो क्रेडिट: लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस / बुंडेसरचिव)।

फुटनोट

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