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सोमवार, 25 जुलाई 2022

पुराणों व हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लेखित पर्यावरण ज्ञान

 वृक्षारोपण के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां
 



 
 पुराणों व हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लेखित पर्यावरण ज्ञान

★ 10 कुॅंओं के बराबर एक बावड़ी,

10 बावड़ियों के बराबर एक तालाब,

10 तालाब के बराबर 1 पुत्र एवं

10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। ( मत्स्य पुराण )

★ जीवन में लगाये गये वृक्ष अगले जन्म में संतान के रूप में प्राप्त होते हैं। (विष्णु धर्मसूत्र 19/4)

★ जो व्यक्ति पीपल अथवा नीम अथवा बरगद का एक, चिंचिड़ी (इमली) के 10, कपित्थ अथवा बिल्व अथवा ऑंवले के तीन और आम के पांच पेड़ लगाता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। ( भविष्य पुराण)

★ पौधारोपण करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

★ शास्त्रों के अनुसार पीपल का पेड़ लगाने से संतान लाभ होता है।

★ अशोक वृक्ष लगाने से शोक नहीं होता है।

★ पाकड़ का वृक्ष लगाने से उत्तम ज्ञान प्राप्त होता है।

★ बिल्वपत्र का वृक्ष लगाने से व्यक्ति दीर्घायु होता है।

★ वट वृक्ष लगाने से मोक्ष मिलता है।

★ आम वृक्ष लगाने से कामना सिद्ध होती है।

★ कदम्ब का वृक्षारोपण करने से विपुल लक्ष्मी की प्राप्त होती है।


प्राचीन भारतीय चिकित्सा- पद्धति के अनुसार पृथ्वी पर ऐसी कोई भी वनस्पति नहीं है, जो औषधि न हो।

 स्कंद पुराण में एक सुंदर श्लोक है-

अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम्  दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।

अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

पिचुमन्दः = नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

न्यग्रोधः = वटवृक्ष (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

कपित्थः = कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
🌞
बिल्वः = बेल (85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

आमलकः = आँवला (74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
(उप्ति = पौधा लगाना)

        अर्थात् - जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नहीं करना पड़ेंगे।

       इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं।

अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं।
औऱ
      गुलमोहर, नीलगिरि-यूकालिप्टस, पौपलर जैसे वृक्ष अपने  देश के पर्यावरण के लिये घातक हैं।

       पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है।
 
         पीपल, बड़ और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है।

         ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है साथ ही धरती के तापमान को भी कम करते है।   

          हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर  फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षों से दूरी बनाकर  यूकेलिप्टस (नीलगिरि) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की।  यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन  ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिये लगाये जाते हैं।

 इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत ४० वर्षों में नीलगिरि के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।

शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है।

मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।।

भावार्थ-
जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान् शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है।।
    
आगामी वर्षों में प्रत्येक ५०० मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जायेगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा।

घरों में तुलसी के पौधे लगाने होंगे।

          हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने "भारत" को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते है।

        भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिये आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।

         आइये हम पीपल, बड़, बेल, नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ियों को नीरोगी एवं...

"सुजलां सुफलां पर्यावरण"  देने का प्रयत्न करें।

* पेड़ लगाकर अपना जीवन सफल बनाए

शनिवार, 23 जुलाई 2022

कामिका एकादशी व्रत 24 जुलाई 2022 रविवार

कामिका एकादशी व्रत आज 
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प्रत्येक वर्ष सावन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन कामिका एकादशी व्रत रखा जाता है। इस साल कामिका एकादशी व्रत 24 जुलाई 2022 रविवार के दिन रखा जाएगा। वैसे तो हर में माह दो एकादशी तिथि पड़ती है, लेकिन सावन माह में पड़ने वाली एकादशी की कई विशेषाएं होती हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा आराधना की जाती है। कामिका एकादशी के दिन शंख, चक्र गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। धार्मिक मान्यता है कि कामिका एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को जीवन में किए गए समस्त पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही व्यक्ति धन धान्य की प्राप्ति होती हैं।  

कामिका एकादशी की तिथि
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कामिका एकादशी तिथि की शुरुआत- 23 जुलाई 2022, शनिवार सुबह 11 बजकर 27 मिनट से
कामिका एकादशी तिथि का समापन- 24 जुलाई 2022, रविवार दोपहर 1 बजकर 45 मिनट पर
उदयातिथि के अनुसार कामिका एकादशी का व्रत 24 जुलाई को रखा जाएगा।

कामिका एकादशी की पूजा विधि
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कामिका एकादशी के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें। सबसे पहले पूजा के मंदिर में दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें। फिर पूजा की तैयारी शुरू करें। एक चौकी में पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। 
भगवान को फल, फूल, तिल, दूध, पंचामृत और तुलसी आदि अर्पित करें। तुलसी जरूर चढ़ाएं, क्योंकि तुलसी के बिना भगवान विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती जाती है। इसके बाद कामिका एकादशी की व्रत कथा पढ़ें या सुनें। आखिर में आरती करें। 

कामिका एकादशी व्रत का महत्व
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धार्मिक मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने और पूजन करने से न सिर्फ भगवान विष्णु बल्कि पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। साथ ही इस व्रत को करने से सभी बिगड़े काम भी बनने लगते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसे व्यक्ति जिन्हे किसी बात का भय हो उन्हें कामिका एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कामिका एकादशी व्रत कथा
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कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन, आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी तथा चातुर्मास्य माहात्म्य मैंने भली प्रकार से सुना। अब कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, सो बताइए।

श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।

नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।

जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।

जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।

हे नारद! स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से।

तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है।

कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।

ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।


बुधवार, 20 जुलाई 2022

अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है ?

*गंगा जल*
अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है ? सर्दी के मौसम में कई बार खांसी हो जाती है। जब डॉक्टर से खांसी ठीक नही हुई तो किसी ने बताया कि डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तब गंगाजल पिलाना चाहिए।
गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है ; तो डॉक्टर साहिब बोले- नहीं ! कई रोगों का इलाज भी है। दिन में तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिया और तीन दिन में खांसी ठीक हो गई। यह अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।
कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करता ही था, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाता था। इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।

करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया। दिलचस्प ये है कि इस समय वैज्ञानिक भी पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की गजब की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई-कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है। डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है। 

गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता है- जिसे हम अभी तक नहीं समझ पाए हैं। डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।

वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?

दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है। डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।

गंगा *माता* इसलिए है कि गंगाजल अमृत है, जब तक अंग्रेज किसी बात को प्रमाणित नहीं करते तब तक भारतीय लोग सत्य नहीं मानते। भारतीय लोग हमारे सनातन ग्रन्थों में लिखी किसी भी बात को तब तक सत्य नहीं मानेंगे जब तक कि कोई विदेशी वैज्ञानिक या विदेशी संस्था उस बात की सत्यता की पुष्टि नहीं कर दे। इसलिए इस आलेख के वैज्ञानिकों के 
वक्तव्य BBC बीबीसी हिन्दी सेवा से साभार लिये गये हैं...
*हर हर गंगे...🙏🏻🙏🏻

सोमवार, 18 जुलाई 2022

मेरी इस मजदूरी का हिसाब भगवान् रखते हैं।

*कर्म का हिसाब... ✍🏻*
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*नोएडा अस्पताल में एक कोरोना पेशेंट का केस आया। मरीज बेहद सीरियस था।*

*एक मरीज डिस्चार्ज हुआ उसके स्थान पर एडमिट किया गया, अस्पताल के मालिक डॉक्टर शर्मा जी ने तत्काल खुद जाकर आईसीयू में केस की जांच की, आक्सीजन लगवाई गई जब डॉक्टर साहब बाहर आये अपने स्टाफ को कहा कि इस व्यक्ति को किसी प्रकार की कमी या तकलीफ ना हो और उससे एडवांस पैसे भी न लेवें।।* 

*मरीज तकरीबन 15 दिन तक अस्पताल में रहा। जब बिल्कुल ठीक हो गया रिपोर्ट नेगेटिव आई उसको डिस्चार्ज करने का दिन आया तो उस मरीज का तकरीबन ढाई लाख रुपये का बिल अस्पताल के मालिक और डॉक्टर की टेबल पर आया।*

*डॉक्टर ने अपने अकाउंट मैनेजर को बुला करके कहा... इस व्यक्ति से एक पैसा भी नहीं लेना है। ऐसा करो तुम उस मरीज को लेकर मेरे चेंबर में ले आओ।* 

*मरीज व्हीलचेयर पर चेंबर में लाया गया। डॉक्टर ने मरीज से पूछा - "भाई ! क्या आप मुझे पहचानते हो ?"*

*मरीज ने कहा लगता तो है कि मैंने आपको कहीं देखा है।*

*डॉक्टर ने कहा, याद करो, लगभग दो साल पहले शाम के 6-7 बजे ग्रेटर नोएडा के आगे जंगल में तुमने एक गाड़ी ठीक की थी। उस रोज मैं परिवार सहित वृन्दावन से बांके बिहारी जी का दर्शन करके लौट रहा था कि अचानक कार में से धुआं निकलने लगा और गाड़ी बंद हो गई।*

*कार एक तरफ खड़ी कर मैंने चालू करने की कोशिश की, परंतु कार चालू नहीं हुई। अंधेरा थोड़ा-थोड़ा घिरने लगा था। चारों और जंगल और सुनसान था। परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर चिंता और भय की लकीरें दिखने लगी थी और सब ठाकुर जी से प्रार्थना कर रहे थे कि कोई मदद मिल जाए।*

*थोड़ी ही देर में कृपा कर दी मेरे बांके बिहारी ने या यूं कहूँ चमत्कार कर दिया। बाइक के ऊपर तुम आते दिखाई पड़े। हम सब ने दया की नजर से हाथ ऊंचा करके तुमको रुकने का इशारा किया।*

*तुमने बाईक खड़ी कर के हमारी परेशानी का कारण पूछा। तुमने कार का बोनट खोलकर चेक किया और कुछ ही क्षणों में कार चालू कर दी।*

*हम सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। हम सभी को ऐसा लगा कि जैसे भगवान ने आपको हमारे पास भेजा है*

*क्योंकि उस सुनसान जंगल में हम में से किसी के भी फोन में सिग्नल नहीं आ रहे थे या क्या कारण था किसी का नम्बर नहीं मिल रहा था ना ही नेट चल रहा था बच्चे साथ थे उनकी चिंता ज्यादा थी तुमने मुझे बताया था कि तुम यहीं पास में गैराज चलाते हो।*

*मैंने आपका आभार जताते हुए कहा था कि रुपए पास होते हुए भी ऐसी मुश्किल समय में मदद नहीं मिलती।*

*तुमने ऐसे कठिन समय में हमारी मदद की, इस मदद की कोई कीमत नहीं है, यह अमूल्य है परंतु फिर भी मैं पूछना चाहता हूँ कि आपको कितने पैसे दूं ?*

*उस समय तुमने मेरे आगे हाथ जोड़कर जो शब्द कहे थे, वह शब्द मेरे जीवन की प्रेरणा बन गये हैं तुमने कहा था कि मेरा नियम और सिद्धांत है कि मैं मुश्किल में पड़े व्यक्ति की मदद के बदले कभी कुछ नहीं लेता।*

*मेरी इस मजदूरी का हिसाब भगवान् रखते हैं।*

*उसी दिन मैंने सोचा कि जब एक सामान्य आय का व्यक्ति इस प्रकार के उच्च विचार रख सकता है, और उनका संकल्प पूर्वक पालन कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं कर सकता। और मैंने भी अपने जीवन में यही संकल्प ले लिया है। दो साल हो गए है, मुझे कभी कोई कमी नहीं पड़ी, अपेक्षा पहले से भी अधिक मिल रहा है।*

*यह अस्पताल मेरा है। तुम यहां मेरे मेहमान हो और तुम्हारे ही बताए हुए नियम के अनुसार मैं तुमसे कुछ भी नहीं ले सकता।*

*ये तो भगवान् की कृपा है कि उसने मुझे ऐसी प्रेरणा देने वाले व्यक्ति की सेवा करने का मौका मुझे दिया। "ऊपर वाले ने तुम्हारी नमजदूरी का हिसाब रखा और वो हिसाब आज उसने चुका दिया। मेरी मजदूरी का हिसाब भी ऊपर ननवाला रखेगा और कभी जब मुझे जरूरत होगी, वो जरूर चुका देगा।*

*डॉक्टर ने मरीज से कहा... तुम आराम से घर जाओ, और कभी भी कोई तकलीफ हो तो बिना संकोच के मेरे पास आ सकते हो। मरीज ने जाते हुए चेंबर में रखी भगवान् कृष्ण की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा कि... हे प्रभु ! आपने आज मेरे कर्म का पूरा हिसाब ब्याज सहित चुका दिया।*

*सदैव याद रखें कि आपके द्वारा किये गए कर्म आपके पास लौट कर आते है और वो भी ब्याज समेत।*

*जितना हो सकता है लोगों की मदद करें। आपका हिसाब ब्याज समेत वापस आएगा...!!*
             
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शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

अस्थिसंहार को आयुर्वेद में औषधि के रुप में सबसे ज्यादा प्रयोग हड्डियों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है



Asthisanhar: बेहद गुणकारी है अस्थिसंहार –
अस्थिसंहार का परिचय (Introduction of Asthisanhar)

अस्थिसंहार नाम से ही यह स्पष्ट हो जाता है यह हड्डियों से संबंधित नाम हैं क्योंकि अस्थि का मतलब हड्डी होता है। अस्थिसंहार को हिन्दी में हड्डीजोड़ कहते हैं। अस्थिसंहार को आयुर्वेद में औषधि के रुप में सबसे ज्यादा प्रयोग हड्डियों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा भी अस्थिसंहार पेट संबंधी समस्या, पाइल्स, ल्यूकोरिया, मोच, अल्सर आदि रोगों के उपचार में भी काम आता है। आगे अस्थिसंहार किन-किन बीमारियों में फायदेमंद है इसके बारे में विचार करने के पहले उसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

अस्थिसंहार क्या है? (What is Asthisanhar in Hindi)

आयुर्वेद में और स्थानीय लोगों में भी अस्थिजोड़ चूर्ण का प्रयोग टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने के लिये करते हैं। इसकी लगभग 8 मी तक लम्बी आरोही पर्णपाती लता होती है। जो देखने में चतुष्कोणीय तथा अस्थि शृंखला जैसी प्रतीत होती है, पुराने तने पत्रविहीन होते हैं। इसका प्रयोग अस्थि संबंधी बीमारियों के चिकित्सा में किया जाता है।

अस्थिसंहार प्रकृति से मधुर, कड़वा, तीखा, गर्म, लघु, गुरु, रूखी, कफवातशामक, पाचक और  शक्तिवर्द्धक होता है।

अस्थिसंहार कृमि, अर्श या पाइल्स, नेत्ररोग, अपस्मार या मिरगी, घाव या अल्सर, आध्मान या पाचन तथा दर्दनाशक होता है।

अस्थिसंहार के पौधे से प्राप्त ग्लूकोसाइड हृदयपेशी पर नकारात्मक (नेगेटिव) क्रोनोट्रापिक (Chronotropic) प्रभाव डालता है। यह परखनलीय परीक्षण में अस्थिजनन क्रियाशीलता (Osteogenic activities) दिखाता है।

अन्य भाषाओं में अस्थिसंहार के नाम (Names of Asthisanhar in different languages)
अस्थिसंहार का वानास्पतिक नाम Cissus quadrangularis Linn. (सीस्सुस क्वॉड्रंगुलारिस्) Syn-Vitis quadrangularis (Linn.) Wall. ex. Wight है। अस्थिजोड़ Vitaceae (वाइटेसी) कुल का है। अस्थिजोड़ को अंग्रेजी में Bone setter (बोन सेटर) कहते हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों में अस्थिसंहार को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।

Asthisanhar in-
Sanskrit-ग्रन्थिमान्, अस्थिसंहार, वज्राङ्गी, अस्थिश्रृंखला, चतुर्धारा;

Hindi-हड़जोड़, हड़संघारी, हड़जोड़ी, हड़जोरवा;

Oriya-हडोजोडा (Hadojoda);

Urdu-हरजोरा (Harjora);

Assamese–हरजोरा (Harjora);

Kannada–मंगरोली (Mangaroli), मंगरवल्ली (Mangaravalli);

Gujrati- चौधरी (Choudhari),  हारसाँकल (Harsankal);

Tamil-अरुगानी (Arugani), इन्दीरावल्ली (Indiravalli), वज्रवल्ली (Vajravalli);

Telugu-वज्रवल्ली (Vajravalli), नाल्लेरु (Nalleru), नुललेरोतिगे (Nullerotige);

Bengali-हाड़भांगा (Harbhanga), हरजोर (Harjora);

Marathi-कांडबेल (Kandavela), त्रीधारी (Tridhari), चौधरी (Chaudhari);

Malayalam–बननालमपरान्ता (Bannalamparanta), चांग्लम परांदा (Changalam paranda)।

English-एडिबल स्टेमड वाइन (Edible stemmed vine), वेल्ड ग्रेप (Veld grape), विंग्ड ट्री वाइन (Winged tree vine);

Persian-हर (Har)।

अस्थिसंहार के फायदे (Hadjod Benefits and Uses in Hindi)

अब तक हड़जोड़ के बारे में बात कर रहे थे चलिये जानते हैं कि अस्थिसंहार  हड्डियों के अलावा किन-किन बीमारियों में और कैसे काम करता है।

तमक श्वास में हड़जोड़ का प्रयोग (Hadjod Uses in Bronchial asthma in Hindi)

ब्रोंकियल अस्थमा में हड़जोड़ का औषधीय गुण लाभकारी साबित हो सकता है। 5-10 मिली हड़जोड़ रस को गुनगुना कर पिलाने से तमक श्वास में लाभ होता है।

पेट संबंधी समस्या में फायदेमंद हड़जोड़ (Hadjod Benefits in Stomach related Problems in Hindi)

अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में  समस्याएं होने लगती है। हड़जोड़ का औषधीय गुण घरेलू इलाज में बहुत काम आता है। 5-10 मिली हड़जोड़ पत्ते के रस में मधु मिलाकर पिलाने से पाचन क्रिया ठीक होती है तथा उदर संबंधित समस्याओं से आराम मिलता है।

अर्श या पाइल्स से दिलाये राहत हड़जोड़ (Hadjod Beneficial in Piles in Hindi)

अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें  हड़जोड़ का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है।

उपदंश (जेनिटल पार्ट्स में घाव) में हड़जोड़ के फायदे (Uses of Hadjod in Chancre in Hindi)

उपदंश मतलब जननांग यानि जेनिटल पार्ट्स में घाव जैसा हो जाता है, लेकिन इस घाव में दर्द नहीं होता है। एक भाग तालमखाना, 1/2 भाग अस्थिसंहार, 1/4 भाग दालचीनी तथा 2 भाग शर्करा के चूर्ण को 14 दिनों तक दूध के के साथ सुबह शाम सेवन करने से उपदंश में लाभ होता है। (इस अवधि में तेल, अम्ल या एसिडिक फूड तथा नमक रहित आहार लेना चाहिए।) इसके अलावा हड़जोड़ तने के रस का लेप करने तथा तने के रस का सेवन करने से उपदंश आदि रतिज रोगों में लाभ होता है।


डिलीवरी के बाद के दर्द से दिलाये राहत हड़जोड़ (Hadjod Beneficial in Post Delivery Pain in Hindi)

हड़जोड़ के तना एवं पत्तों को पीसकर लेप करने से डिलीवरी के दर्द से आराम मिलता है।

प्रदर या ल्यूकोरिया में  हड़जोड़ के फायदे (Hadjod Benefits in Leukorrhea in Hindi)

महिलाओं को अक्सर योनि से सफेद पानी निकलने की समस्या होती है। सफेद पानी का स्राव अत्यधिक होने पर कमजोरी भी हो जाती है। इससे राहत पाने में हड़जोड़ का सेवन फायदेमंद होता है। 5-10 मिली हड़जोड़ काण्ड रस का सेवन करने से अनियमित आर्तवस्राव तथा श्वेतप्रदर या सफेद पानी में लाभ होता है।

गठिया के दर्द से दिलाये राहत हड़जोड़ (Benefits of Hadjod to Get Relief from Gout in Hindi)

अक्सर उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों में दर्द होने की परेशानी शुरू हो जाती है लेकिन हड़जोड़ का सेवन करने से इससे आराम मिलता है। एक भाग छिलका रहित तना तथा आधा भाग उड़द की दाल को पीस कर, तिल तेल में छान कर, वटिका बनाकर सेवन करने से वातरोगों में लाभकारी होता है। 15 दिनों तक अस्थिसंहार का व्यंजन आदि के रूप में सेवन करने से अस्थिभंग या हड्डियों के टूटने में शीघ्र लाभ होता है तथा तीव्र वात के बीमारियों में लाभ मिलता है।


हड्डियों को जोड़ने में फायदेमंद हड़जोड़ (Hadjod Benefits in Bone Fracture in Hindi)

हड्डियों को जोड़ने में हड़जोड़ बहुत ही लाभकारी होता है लेकिन इसके इस्तेमाल करने का  तरीका सही होना चाहिए।

-भग्न अस्थि या संधि पर हड़जोड काण्ड कल्क का लेप करने से शीघ्र भग्न संधान होता है।

-10-15 मिली हड़जोड़ स्वरस को घी में मिलाकर पीने से तथा भग्न स्थान पर इसके कल्क में अलसी तैल मिलाकर बांधने से भग्न अस्थि का संधान होता है।

-2-5 ग्राम हड़जोड़ मूल चूर्ण को दुग्ध के साथ पिलाने से भी टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है।

रीढ़ की हड्डी के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद हड़जोड़ (Benefits of Hadjod to Get Relief from Backpain in Hindi)

अगर रीढ़ की हड्डी के दर्द से परेशान हैं तो हड़जोड़ का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद तरीके से काम करता है। हड़जोड़ के पत्तों को गर्म करके सिंकाई करने से दर्द कम होता है।

मोच का दर्द करे कम हड़जोड़ (Hadjod Beneficial in Cramps in Hindi)

अगर मोच आने पर दर्द कम नहीं हो रहा तो हड़जोड़ का घरेलू उपाय बहुत ही लाभकारी होता है। हड़जोड़ स्वरस में तिल तैल मिलाकर, पकाकर, छानकर लगाने से मोच तथा वेदना में लाभ होता है।

व्रण या घाव में फायदेमंद हड़जोड़ (Hadjod Benefits in Ulcer in Hindi)

कभी-कभी अल्सर का घाव सूखने में बहुत देर लगता है या फिर सूखने पर पास ही दूसरा घाव निकल आता है, ऐसे में हड़जोड़ का प्रयोग बहुत ही फायदेमंद होता है। जले हुए घाव अथवा कीट के काटने पर हुए घाव में हड़जोड जड़ के रस का लेप लाभप्रद होता है।

ब्लीडिंग करे कम हड़जोड़ (Benefits of Hadjod in Bleeding in Hindi)

अगर कटने या छिलने पर ब्लीडिंग कम नहीं हो रहा है तो हड़जोड़ का प्रयोग लाभकारी होता है। हड़जोड़ स्वरस को लगाने से क्षतजन्य रक्तस्राव का स्तम्भन होता है। इसके अलावा 2-4 मिली तने और जड़ के रस को पीने से शीताद, दंत से रक्तस्राव, नासिका से रक्तस्राव तथा रक्तार्श या बवासीर में खून आना आदि में काम आता है।


पूरे शरीर में दर्द से दिलाये आराम हड़जोड़ (Hadjod Benefits in Pain in Hindi)

सोंठ, काली मिर्च तथा अस्थिसंहार प्ररोह पेस्ट (1-2 ग्राम) का सेवन करने से सर्वांग शूल या दर्द से राहत मिलती है।

अस्थिसंहार का उपयोगी भाग (Useful Parts of Hadjod)

आयुर्वेद में हड़जोड़ के तना, पत्र तथा जड़ का औषधि के रुप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

अस्थिसंहार का इस्तेमाल कैसे किया जाता है? (How to Use Hadjod in Hindi?)

बीमारी के लिए हड़जोड़ के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए हड़जोड़ का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।चिकित्सक के परामर्शानुसार-

-2-4 मिली तने जड़ का रस

-1-2 ग्राम पेस्ट

-5-10 मिली पत्ते का रस

अस्थिसंहार कहां पाया और उपजाया जाता है? (Where Hadjod is Found and Grown in Hindi?)

समस्त भारत के उष्ण प्रदेशों तथा पश्चिमी हिमालय में उत्तराखण्ड से लेकर पश्चिमी घाट के वनों तक यह पाया जाता है।

शाकाहारियों के आहार के साथ हो रहा है छल।

🚩 *Voice Of Hinduism🔥* 
 
*🚩 शाकाहारियों के आहार के साथ हो रहा है छल।*


*🚩 जिलेटिन*
 *कसाईखानों से प्राप्त जानवरों की हड्डियों, त्वचा और रेशों को उबालकर बनाया जाता है।*

*🚩 काॅचीनील*
 *लाल रंग की डाई है जो कुछ खास तरह के कीड़ों को पीसकर बनाई जाती है।*

*🚩 शेलैक* 
*कीड़ों के मृत शरीर से प्राप्त होता है। 333 ग्राम शेलैक बनाने के लिए करीबन 100000 कीड़े मारने पड़ते हैं और इसका प्रयोग जेम्स और नटीज़ में होता है।*
 
*🚩 ग्लिसरीन/ ग्लिसरॉल* 
*अधिकांश ग्लिसरीन जानवरों से प्राप्त होता है। यह पेट्रोलियम से भी निर्मित किया जा सकता है।लेकिन अंतिम उत्पाद के रूप में ग्लिसरीन के निर्माताओं को इसके स्रोत की जानकारी नहीं होती इसीलिए यह जानवरों से ही प्राप्त किया जाता है।*

*🚩 स्टीयरिक एसिड*
 *जानवरों से मिलने वाली चर्बी को पिघलाकर प्राप्त किया जाता है। इसे साबुन, कैंडल्स और कॉस्मेटिक्स में प्रयोग किया जाता है।*

*🚩 यह सभी लक्ज़री चीजें जानवरों के मारे बिना अभी बनाई जा सकती हैं,पर उसके लिए आपको अपनी जेब पर पर नियंत्रण करना होगा।ऐसी चीजें खरीदना बंद कीजिए जिनके लिए मासूम जानवरों को मारा जाता है।*

*🚩 आप कुछ ऐसा नहीं कर पा रहे तो उन चीजों को बनाने वालों और बेचने वालों को लिखिए कि वह ऐसा करना बंद करें और नये विकल्प तलाशें।* 

*🚩 आखिरकार वह भी एक भारतीय ही था जिसने अमेरिकी कोर्ट की मदद लेकर मैकडाॅनाल्ड कंपनी को सच बोलने पर मजबूर कर दिया था।*  

*🚩 कई सालों से वह कंपनी झूठ बोल रही थी कि उसकी चिप्स वनस्पति तेल में तली जाती हैं। अब हम सब जान गए हैं के चिप्स को वनस्पति तेल में तलने से पहले बीफ टलो अर्थात गाय की चर्बी में डुबोया जाता है।*

*🚩 लेबल को ध्यान से पढकर व गुप्त codes को गूगल करके ( माँस-निर्मित है अथवा वनस्पति से निर्मित है..यह जानकर) ही उसका सेवन में उपयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि लिखा है कि Non-Dairy Fats तो उसका अभिप्राय है कि उत्पाद में ऐनिमल फैट (प्राणीजन्य चर्बी) का प्रयोग किया गया है।*

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रविवार, 10 जुलाई 2022

10 जुलाई,2022 देवशयनी एकादशी है

*10 जुलाई,2022  देवशयनी एकादशी है ।*
 आज से देवता चार माह तक विश्राम करेंगे  इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि देवता सो जायेंगे।
धर्म प्रधान समाज होने के कारण भारत में विज्ञान को भी धर्म के आधार पर ही समझाया गया है। यह विज्ञान से जुड़ा हुआ ही तथ्य है।वास्तव में तो पंचतत्व (पृथ्वी, अग्नि,जल ,वायु और आकाश) में ही सम्पूर्ण देवता निहित है।वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही ये पाँचों तत्व अपना स्वभाव बदल लेते हैं।पृथ्वी पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां उग आती है।जगह-जगह पानी भर जाने से मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।विभिन्न प्रकार के रेंगने वाले जहरीले जीव बिलों में पानी भर जाने से सतह पर आ जाते हैं।अग्नि मन्द पड़ जाती है। खुले में हवन आदि शुभ धार्मिक कार्य करना कठिन हो जाता है।वर्षा जल मिल जाने से अधिकांश जल दूषित हो जाता है तथा हवा में भी लगभग चालीस प्रतिशत पानी की मात्रा हो जाती है।आकाश में बादल छाये रहने के कारण धूप धरती तक नहीं पहुँच पाती है।अर्थात पाँचों प्रमुख देवता अपना स्वभाव बदल लेते हैं।
      अतः ऐसे समय कोई सामजिक (विवाह आदि) अथवा मांगलिक कार्य करने में अनेक संकटों का सामना करना पड़ेगा और हमारा शरीर भी तो इन पाँच तत्वों से मिलकर ही बना है इसलिये जो प्रभाव बाहर है वही हमारे शरीर के अंदर होंगे।अगर बाहर मन्दाग्नि है तो हमारे शरीर की भी अग्नि (पाचन क्षमता) कमजोर पड़ जाती है।
      इन सब बातों का ध्यान करके हमारे पूर्वजों ने देवशयनी ग्यारस से लेकर देवउठनी ग्यारस (शरद ऋतु) तक को चातुर्मास का रूप देते हुए देवता विश्राम काल मानते हुए लम्बी यात्राओं, सामाजिक तथा विशेष मांगलिक कार्यक्रमों पर धार्मिक रोक लगा दी।
      समुद्र में इस समय मछलियाँ पकड़ने पर भी रोक रहती है,क्योंकि यह जलीय जीवों का प्रजनन काल रहता है।धर्मप्रधान समाज होने से उसने यह मन से स्वीकार कर लिया और एक स्थान पर रहते हुए अपना व्यावसायिक कर्म के साथ व्यक्तिगत धार्मिक उपासना को प्राथमिकता दी।गाँव-गाँव में मंदिरों-चौपालों पर सावन-भादौ में रामचरित मानस या अन्य धार्मिक ग्रंथों का वाचन होता है । इसलिये आईये हम सब अपने धर्म का पालन करें । यही विज्ञान है।.    
       इन सोये हुए देवताओं की रखवाली करना हम सब का सामाजिक और नैतिक दायित्व है।. किन्तु आज पहले जैसी परिस्थिति नहीं हैं।लोगों के व्यवसाय भी ऐसे हो गये हैं कि यात्राएँ करना ही पड़ती है।किन्तु फिर भी जितना हो सके हम इन पंचतत्वों की रक्षा का इस समय कोई न कोई संकल्प लें।पौधे लगायें, पानी रोकें, नदियों,पहाड़ों, जलस्रोतों,जंगल की रक्षा करें।धरती,जल,आकाश, वायु को प्रदूषित होनें से बचायें।
    यही सोये हुए देवताओं की रक्षा करना है ।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

संस्कृत भाषा से ही विश्व की सभी भाषाओं का उद्गम हुआ है

*🚩आज विश्व की सबसे पवित्र, दिव्य, वैज्ञानिक, रहस्यमय, गौरवशाली भाषा संस्कृत के, आज के आधुनिक परिपेक्ष्य में उपयोगिता को समझेंगे।

*🚩 देववाणी संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, संस्कृत भाषा से ही विश्व की सभी भाषाओं का उद्गम हुआ है, लेकिन भारतवासी भूल गए क्योंकि ये सब इतिहास में पढ़ाया नहीं जाता है।*

*🚩 भारतीय हिंदू देवी-देवताओं की आराधना करके और संस्कृत भाषा का प्रयोग करके जापान संसार में तकनीक के मामले में नंबर 1 पर है, लेकिन भारत में ऐसी विडंबना है कि भारतवासी पाश्चात्य संस्कृति से आकर्षित होकर हिंदू देवी-देवताओं और अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं।*
*🚩 सृष्टि के अस्तित्व से ही संस्कृत भाषा बोली जाती थी। ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने संसार का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत में था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।*

*🚩 संस्कृत, विश्व की सबसे प्राचीनतम ग्रंथ (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।*

*🚩 संस्कृत की सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।*

*🚩 संस्कृत ही एक मात्र साधन है जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।*

*🚩 संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।*

*🚩 संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है और एक संस्कार है। संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है और वसुधैव कुटुम्बकम की सर्वोच्च भावना है।*

*🚩 अब तो नासा ने भी माना कि संस्कृत भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसका प्रयोग करके कंप्यूटर पर काम करना अत्यंत सरल है। नासा का कहना है कि 6th और 7th generation super computers संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे।*

*🚩 संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियाँ (Beams of light) निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियाँ हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने।*

*🚩 कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, अंतःस्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।*

*🚩 संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक राज्य (official state language) भाषा है।*

*🚩 अरब आक्रमण से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा थी।*

*🚩 कर्नाटक के मट्टुर (Mattur) ग्राम में आज भी लोग संस्कृत में ही बोलते हैं।*

*🚩 जर्मनी के 14 विश्वविद्यालय लोगों की भारी माँग पर संस्कृत (Sanskrit) की शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन आपूर्ति से ज्यादा माँग होने के कारण वहाँ की सरकार संस्कृत (Sanskrit) सीखने वालों को उचित शिक्षण व्यवस्था नहीं दे पा रही है।*
*🚩 हिन्दू विश्वविद्यालय के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाता है।*

*🚩 संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है।*

*🚩 यूनेस्को (UNESCO) ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अपनी सूची में संस्कृत वैदिक जाप को जोड़ने का निर्णय लिया गया है। यूनेस्को (UNESCO) ने माना है कि संस्कृत भाषा में वैदिक जप मानव मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।*

*🚩 शोध से पाया गया है कि संस्कृत (Sanskrit) पढ़ने से स्मरणशक्ति (याददाश्त) बढ़ती है। एक अमेरिकी शोध में सिद्ध हुआ है कि वैदिक मंत्रों को याद करने से दिमाग के उस हिस्से में बढोतरी होती है जिसका काम संज्ञान लेना है, यानी कि चीजों को याद करना है ।*

*-डॉ. जेम्स हार्टजेल, न्यूरो साइंटिस्ट*

*🚩 संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे- अहं गृहं गच्छामि >या गच्छामि गृहं अहं दोनों ही ठीक हैं।*

*🚩 नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। जैसा के ऊपर बताया गया है।*

*🚩 संस्कृत भाषा में किसी भी शब्द के समानार्थी शब्दों की संख्या सर्वाधिक है। जैसे हाथी शब्द के लिए संस्कृत में १०० से अधिक समानार्थी शब्द हैं।*

*🚩 संसार का सबसे सम्पन्न और प्रचुरतम साहित्य संस्कृत भाषा ने ही प्रदान किया है।*

*🚩 आप सभी संस्कृत भाषा को अपने दैनिक दिनचर्या का अनिवार्य भाग बनायें। बच्चों को भी संस्कृत भाषा में देवताओं की पौराणिक स्तुति, गीता पाठ व उपनिष्दों की नीतियाँ कंठस्थ करायें। उन्हें निरन्तर प्रोत्साहन दें। देवभाषा का उपहास करने वाले अज्ञानियों, नकारात्मक पूर्वाग्रह से ग्रस्त, नास्तिक, मूर्खों को भी शिक्षित करने का प्रयास करें।* 

*🚩 संस्कृत सम्भाषण के कुछ शब्द आप आज से ही अपने नित्यचर्या में लागू करें।*
*Welcome नहीं "स्वागतम्" कहें।*
*Sorry नहीं "क्षम्यताम्" कहें।*
*Sir नहीं "श्रीमान्" कहें।*
*Good night नहीं "शुभरात्रि" कहें।*
*See you नहीं "पुनः मिलामः" कहें।*
*My name is नहीं "मम् नाम" कहें।*
*All is well नहीं "सर्वं कुशलम्" कहें।*
*At what time नहीं "कस्मिन् समये" कहें।*
*Please sit down नहीं "उपविशन्तु" कहें।*
*I am a teacher (fem) नहीं "अहम् एक अध्यापिका अस्मि" कहें।*

*🚩 संस्कृत कोई प्राक्षेपास्त्र विज्ञान (rocket science) नहीं है और न ही History channel के परगृही (aliens) की भाषा है। यह मिथ्या तर्क देकर अंग्रेजों ने भारतीयों को संस्कृत भाषा के उपयोग से होनेवाले लाभों से वंचित कर दिया है। उनकी कूटनीति की चालों और मैकाले के दासत्व बनाने वाले मायाजाल का भेदन कीजिए।*

*🚩 अंग्रेजी को बोलने की अपेक्षा संस्कृत बोलने में वास्तविक स्वाभिमान को स्वीकार कीजिए। स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था जिस दिन भारत के काश्मीर (प्राचीन कश्मीर का पौराणिक नाम) से लेकर कन्याकुमारी के सागर तट तक निवास करने वाली आर्य जाति संस्कृत में सम्भाषण करेगी तो उसके उच्चारण से ही वह दिव्य ऊर्जा से सम्पन्न हो जायेगी। संसार में फिर उसे कोई परास्त नहीं कर सकेगा।*

*🚩 हमारी केन्द्र सरकार से यह सविनय प्रार्थना है कि सभी विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन अनिवार्य किया जाए।*


जोधपुर में शुरू हुई शुद्ध सात्विक भोजन की व्यवस्था - नाम है "The सात्विक Diet"

जोधपुर और ज़ायका दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसे में जोधपुर वालों को शुद्ध स्वादिष्ट खाना घर से बाहर कहीं मिल जाए तो कहना ही क्या।
ऐसे ही शुद्ध सात्विक भोजन की व्यवस्था शुरू हुई है पावटा सी रोड आर्य समाज भवन के बिल्कुल पास। 

देशी ढाबे का नाम है "The सात्विक Diet"

यहाँ आपको मिलेगा देशी तंदूर में बनी हुई मल्टी ग्रेन आटे की रोटी, मिट्टी की हांडी में बनी पंचमेल की दाल और स्पेशल चटनी। ये देशी खाना आपको परोसा हुआ मिलेगा पत्तल में वो भी मात्र 60 रुपए में। चाहें तो अलग से गौशाला का बिलौने का घी और घर के बिलोने की छाछ भी ले सकते हैं। 

जोधपुर में इसकी शुरुआत हुई है एक आम आदमी द्वारा, जिसका सहयोग किया जा रहा है आर्य समाज, महामंदिर और गौ-सेवक राकेश जी निहाल द्वारा। 

निवेदन है एक बार परिवार सहित ज़रूर ज़रूर इस स्वाद का आनंद लें।

रविवार, 3 जुलाई 2022

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान जो एक दिवस में सिद्ध होती है

 नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान जो एक दिवस में सिद्ध होती है

नाभि दर्शना अप्सरा साधना बेहद आसान है. इसलिए इसे करने के लिए अधिकतर लोग लालायित रहते हैं. आपने कई ऐसी नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र सिद्धि के बारे सुना होगा जो आसानी से सिद्ध हो जाती है और साधक की हर इच्छा को पूरा करती है.

मुख्य रूप से इस तरह की साधना का उदेश्य समृद्धि और यश पाना होता है.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि काफी आसान भी होती है और लम्बे समय तक चलने वाली साधना भी ये आप पर निर्भर है की आप कौनसी साधना करना चाहते है. अप्सरा सिद्धि के बाद कभी भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देती है. ये आपको अपने होने का अहसास करवाती है.

आप नाभि दर्शना अप्सरा की साधना के पूर्ण होने के बाद अप्सरा का अहसास अपने आसपास कर सकते है क्यों की ये जहाँ भी होती है वहां का माहौल सुगंधमय हो जाता है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के दौरान सबसे बड़ी मुश्किल होती है नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र की स्थापना की अगर नाभि दर्शना अप्सरा यंत्र आपके पास ना हो तो आप अष्टदल पद्म के ऊपर चावल की ढेरी बनाकर उसके ऊपर सुपारी रखकर उस शक्ति का आवाहन कर सकते हैं.


नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र में 21 माला का विधान है. एक दिवसीय साधना होने की वजह से ये साधना जितनी आसान लगती है उससे कही ज्यादा खतरनाक इसके दुष्प्रभाव है. अप्सरा साधना के बाद साधक को जो अलौकिक रहस्यों की समझ होती है वो उसके Third eye activation की वजह से होती है.

पारलौकिक जगत के रहस्य को देखने के बाद साधक मानसिक संतुलन रख पाता है या नहीं ये उसके मस्तिष्क की स्थिरता पर निर्भर करता है. अगर आप इस तरह की साधना कर रहे है तो सावधान रहे क्यों की आसान दिखने वाली साधनाओ के अपने खतरे होते है.


नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र

एक शब्द में कहे तो ये एक दिवसीय साधना है और जो साधक ये साधना कर लेता है उसे सुख, यौवन की प्राप्ति हो जाती है. जब कोई साधक शुरुआती स्तर पर होता है और उसे अप्सरा सिद्धि हो जाती है तो वो अपना जीवन खुशियों से भर सकता है.

अप्सरा साधना सिद्धि बेहद आसान है लेकिन, ये साधक के स्थिर चित पर निर्भर करती है की उसे अप्सरा की प्राप्ति होती है या नहीं.


ऐसा माना जाता है की अप्सरा साधना करने के बाद साधक का जीवन वासना से परे हो जाता है और वो भोग से ऊपर उठकर साधना में आगे बढ़ना शुरू कर देता है. यहाँ शेयर किया गया नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र एक दिवसीय साधना का भाग है.

अगर आप अप्सरा साधना विधि विधान के साथ पूरा करना चाहते है तो इस साधना से शरूआत करे. आपको अलौकिक रहस्यों के अनुभव भी होंगे और साधना मार्ग में आगे बढ़ने का मौका भी मिलेगा.

कौन हैं अप्सरा?

अप्सराओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह निश्‍चित तथ्य है कि समुद्र-मंथन में पहले रम्भा अप्सरा की उत्पत्ति हुई, और उसके पश्‍चात् अमृत घट और तत्काल पश्‍चात् भगवती लक्ष्मी प्रकट हुईं, इसलिए अप्सराओं का महत्व अन्य रत्नों की अपेक्षा अत्यधिक है.


रूप, रस और जल तत्व प्रधान होने के कारण ही इनका नाम अप्सरा पड़ा और इनके गुण देवताओं के गुणों के समान ही पूर्ण रूप से प्रभावशाली हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना को पूरा करने वाले साधक में अलौकिक रहस्यों को समझने की समझ आ जाती है.

ये भी कहा जाता है कि इन्द्र ने 108 ॠचाओं की रचना करके इन अप्सराओं को प्रकट किया. रम्भा के अलावा जिन अन्य अप्सराओं का वेदों और पुराणों में जिक्र आता है, उनके नाम हैं उर्वशी, मेनका, और तिलोत्तमा. नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की उत्पति भी इसी समय हुई थी.

साधना-पथ में साधक अपने मन पर नियंत्रण चाहता है जिससे कि वह अपने अंतर्मन में उतर कर मनन कर सके, पर मन में तो कामनाएं बसती हैं और वे मूलतः प्रेम-जनित होती हैं. अब हृदय अर्थात् उर में जो बस जाती है, उसे उर्वशी कहते हैं और उर्वशी तो हम सबके मन में है.

उर्वशी-जनित भाव के कारण ही तो प्रेम की तरंगें मन में उठती हैं और प्रीत में किसी प्रकार की बंदिश नहीं होती.

शरद पूर्णिमा की रात जब आसमान से चांदनी की शीतल किरणें भी प्रेम में संतप्त युगलों को दग्ध कर देती हैं, उस रात्रि में नाभि दर्शना अप्सरा साधकों के आह्वान पर सुरपुर से धरती पर आती है.

ब्रह्म साधना से भी आवश्यक और उसे करने से पूर्व अप्सरा साधना साधक को करनी चाहिए.


नाभि दर्शना अप्सरा की साधना

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र को सिद्ध करने के पीछे कई रहस्य है. सौन्दर्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति, वय में षोडशी और कोमलता से लबालब कमनीय शरीर जो अपने यौवन से इतराया और प्रेम से सिंचित है. प्रतिपल भीनी खुशबू में नहाया तन नाभि-दर्शना के आने की सूचना देता है.

इस अप्सरा की काली और लम्बी आंखें, लहराते हुए झरने की तरह केश और चन्द्रमा की तरह मुस्कुराता हुआ चेहरा, कमल नाल की तरह लम्बी बांहें और सुन्दरता से लिपटा हुआ पूरा शरीर एक अजीब सी मादकता बिखेर देता है.

इन्हें इन्द्र का वरदान प्राप्त है कि जो इसके सम्पर्क में आता है, वह पुरुष पूर्ण रूप से रोगों से मुक्त होकर चिर यौवनमय बन जाता है, उनके शरीर का कायाकल्प हो जाता है, और पौरुष की दृष्टि से वह अत्यन्त प्रभावशाली बन जाता है.


नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना विधान

  • इस साधना को आप शरद पूर्णिमा, रमा एकादशी, रूप चतुर्दशी अथवा किसी भी शुक्रवार को सम्पन्न करें.
  • यह रात्रिकालीन साधना है, इस साधना को रात्रि में 10 बजे के पश्‍चात् सम्पन्न करना चाहिये.
  • नाभिअप्सरा साधना साधक अपने घर में या किसी भी अन्य स्थान पर एकांत में सम्पन्न कर सकता है.
  • इस साधना में बैठने से पूर्व साधक स्नान कर सुन्दर, सुसज्जित वस्त्र पहनें एवं अपने वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र का छिड़काव करें.
  • साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठें.
  • इस साधना में सुगन्धित पुष्पों का प्रयोग करना चाहिये. साधक साधना से पहले ही दो सुगन्धित पुष्पों की माला की व्यवस्था कर लें.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की शुरुआत में सर्वप्रथम अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरुचित्र स्थापित कर, पंचोपचार गुरु पूजन सम्पन्न करें. गुरुदेव से साधना में सफलता का आशीर्वाद प्राप्त कर, मूल साधना सम्पन्न करें

बाजोट पर एक ताम्र पात्र में अद्वितीय ‘नाभि दर्शना महायंत्र’ को स्थापित करें. केशर से यंत्र पर तिलक कर यंत्र का सुगन्धित पुष्पों, इत्र, कुंकुम इत्यादि से पूजन करें. यंत्र के सामने सुगन्धित अगरबत्ती एवं शुद्ध घृत का दीपक लगावें.

इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक नाम, अमुक पिता का पुत्र, अमुक गौत्र का साधक नाभि दर्शना अप्सरा को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह सुख आनन्द एवं ऐश्‍वर्य प्रदान करे.

इसके बाद ‘नाभि दर्शना अप्सरा माला’ से नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप सम्पन्न करें, इसमें 21 माला नाभि दर्शना अप्सरा मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न हो जाना चाहिए.

॥ ॐ ऐं श्रीं नाभिदर्शना अप्सरा प्रत्यक्षं श्रीं ऐं फट्॥

अगर बीच में घुंघरूओं की आवाज आवे या किसी का स्पर्श हो, तो साधक विचलित न हों और अपना ध्यान न हटावें, अपितु 21 माला मंत्र जप एकाग्रचित्त होकर सम्पन्न करें, इस साधना में जितनी ही ज्यादा एकाग्रता होगी, उतनी ही ज्यादा सफलता मिलेगी.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के 21 माला मंत्र जप पूरी एकाग्रता के साथ सम्पन्न करने के पश्‍चात् अप्सरा माला को साधक स्वयं के गले में डाल दें. तथा सुगन्धित पुष्पों की एक माला को यंत्र पर चढ़ा दे तथा दूसरी माला भी स्वयं के गले में डाल दें.


साधना में सिद्धि के संकेत

मंत्र जप की पूर्णता पर साधक को यह आभास या प्रत्य होने लगता है कि अप्सरा घुटने से घुटना सटाकर बैठी है. जब साधक को यह आभास या प्रत्य हो जाएं तो साधक नाभि दर्शना अप्सरा से वचन ले लें कि मैं जब भी अप्सरा माला से एक मंत्र जप करूं, तब तुम्हें मेरे सामने उपस्थित होना है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र के दौरान मैं जो चाहूं वह मुझे प्राप्त होना चाहिए, पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा का उल्लंघन न हो.

तब नाभि दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर अपना हाथ रखकर वचन देती है, कि मैं जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी. तब इस साधना को पूर्ण समझें, और साधक अप्सरा के जाने के बाद अपने साधना स्थल से उठ खड़ा हो.

साधक को चाहिए कि वह इस घटना को केवल अपने गुरु के अलावा और किसी के सामने स्पष्ट न करें, क्योंकि साधना ग्रन्थों में ऐसा ही स्पष्ट उल्लेख आया है.

साधना सम्पन्न होने पर नाभि दर्शना अप्सरा महायंत्र को अपने घर में किसी गोपनीय स्थान पर रख दें, जो गले में अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख दें, जिससे कि कोई दूसरा उसका उपयोग न कर सके.

apsara sadhna ke nuksan

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र में सफलता के बाद जब भी नाभिदर्शना अप्सरा को बुलाने की इच्छा हो, तब इस महायंत्र के सामने अप्सरा माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला जप कर लें. अभ्यास होने के बाद तो यंत्र या माला की आवश्यकता भी नहीं होती, केवल मात्र सौ बार मंत्र उच्चारण करने पर ही प्रत्य प्रकट हो जाती हैं.

नाभि दर्शना अप्सरा साधना मंत्र को स्त्रियां भी सिद्ध कर सकती हैं, नाभि दर्शना अप्सरा के रूप में उन्हें अभिन्न सखी प्राप्त हो जाती है, और उस सखी के साहचर्य से साधिका के शरीर का भी कायाकल्प हो जाता है, और ऐसी साधिका अत्यन्त सुन्दर, यौवनमय और सम्मोहक बन जाती हैं.

वास्तव में ही यह साधना बालक या वृद्ध किसी भी वर्ण या जाति का व्यक्ति या स्त्री सम्पन्न कर सकते हैं, और यदि विश्‍वास एवं श्रद्धा के साथ इस साधना को सम्पन्न करें, तो अवश्य ही पूर्ण सफलता मिलती है.

नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र साधना सिद्धि विधान अंतिम शब्द

अगर आप अप्सरा साधना में रूचि रखते है तो आपको सबसे आसान और एक दिवसीय नाभि दर्शना अप्सरा शाबर मंत्र की साधना के विधान को जरुर पूरा करना चाहिए. कलयुग में जहाँ सात्विक साधना को सिद्ध करना बेहद मुश्किल है वही अप्सरा और यक्षिणी साधना को सिद्ध करना बेहद आसान है.


ये दोनों ही शक्तियां पृथ्वी के वायुमंडल में सबसे करीब है. अगर आप नाभि दर्शना अप्सरा साधना पूर्ण विधि को फॉलो करे तो आपको अप्सरा सिद्धि हो सकती है. ध्यान रहे की गुरु के बगैर ये साधना कर रहे है तो अपने विवेक और चित को स्थिर रखे.

कई बार हम जोश जोश में साधना की शुरुआत तो कर लेते है लेकिन, आगे बढ़ने पर जैसे ही हमें अलौकिक रहस्यों के दर्शन होने लगते है हम अपना विवेक खो देते है. ऐसे में ये साधना खतरनाक हो सकती है.

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