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सोमवार, 25 जुलाई 2022

पुराणों व हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लेखित पर्यावरण ज्ञान

 वृक्षारोपण के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां
 



 
 पुराणों व हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लेखित पर्यावरण ज्ञान

★ 10 कुॅंओं के बराबर एक बावड़ी,

10 बावड़ियों के बराबर एक तालाब,

10 तालाब के बराबर 1 पुत्र एवं

10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। ( मत्स्य पुराण )

★ जीवन में लगाये गये वृक्ष अगले जन्म में संतान के रूप में प्राप्त होते हैं। (विष्णु धर्मसूत्र 19/4)

★ जो व्यक्ति पीपल अथवा नीम अथवा बरगद का एक, चिंचिड़ी (इमली) के 10, कपित्थ अथवा बिल्व अथवा ऑंवले के तीन और आम के पांच पेड़ लगाता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। ( भविष्य पुराण)

★ पौधारोपण करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

★ शास्त्रों के अनुसार पीपल का पेड़ लगाने से संतान लाभ होता है।

★ अशोक वृक्ष लगाने से शोक नहीं होता है।

★ पाकड़ का वृक्ष लगाने से उत्तम ज्ञान प्राप्त होता है।

★ बिल्वपत्र का वृक्ष लगाने से व्यक्ति दीर्घायु होता है।

★ वट वृक्ष लगाने से मोक्ष मिलता है।

★ आम वृक्ष लगाने से कामना सिद्ध होती है।

★ कदम्ब का वृक्षारोपण करने से विपुल लक्ष्मी की प्राप्त होती है।


प्राचीन भारतीय चिकित्सा- पद्धति के अनुसार पृथ्वी पर ऐसी कोई भी वनस्पति नहीं है, जो औषधि न हो।

 स्कंद पुराण में एक सुंदर श्लोक है-

अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम्  दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।

अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

पिचुमन्दः = नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

न्यग्रोधः = वटवृक्ष (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

कपित्थः = कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
🌞
बिल्वः = बेल (85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

आमलकः = आँवला (74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)

आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
(उप्ति = पौधा लगाना)

        अर्थात् - जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नहीं करना पड़ेंगे।

       इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं।

अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं।
औऱ
      गुलमोहर, नीलगिरि-यूकालिप्टस, पौपलर जैसे वृक्ष अपने  देश के पर्यावरण के लिये घातक हैं।

       पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है।
 
         पीपल, बड़ और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है।

         ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है साथ ही धरती के तापमान को भी कम करते है।   

          हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर  फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षों से दूरी बनाकर  यूकेलिप्टस (नीलगिरि) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की।  यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन  ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिये लगाये जाते हैं।

 इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत ४० वर्षों में नीलगिरि के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।

शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है।

मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।।

भावार्थ-
जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान् शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है।।
    
आगामी वर्षों में प्रत्येक ५०० मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जायेगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा।

घरों में तुलसी के पौधे लगाने होंगे।

          हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने "भारत" को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते है।

        भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिये आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।

         आइये हम पीपल, बड़, बेल, नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ियों को नीरोगी एवं...

"सुजलां सुफलां पर्यावरण"  देने का प्रयत्न करें।

* पेड़ लगाकर अपना जीवन सफल बनाए

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