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सोमवार, 29 जुलाई 2024

श्रावण सोमवार पर कैसे करे शिव पूजा

श्रावण सोमवार पर कैसे करे शिव पूजा 
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सामान्य मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति
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देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्रावण सोमवार के साथ ही सम्पूर्ण श्रावण मास का व्रत विशेष महत्व रखता हैं।  इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं। इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृद्धों के द्वारा किया जा सकता हैं।

आज के दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर तथा शिवपूजन,रुद्राभिषेक, शिवरात्रि कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व "ॐ नम: शिवाय" का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं। व्रत के दूसरे दिन ब्राह्मण को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके संतुष्ट किया जाता हैं।

त्रोयदशी और चतुर्दशी में जल चढ़ाने का विशेष विधान
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श्रावण सोमवार व्रत में उपवास या फलाहार की मान्यता है। ऐसे में साधकों को पूरी तैयारी पहले ही कर लेनी चाहिए। सूर्योदय से पहले उठे। घर आदि साफ कर स्नान करें और साफ वस्त्र पहने। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और भगवान को गंगा जल सहित, दूध, बेलपत्र, घतुरा, भांग और दूव चढ़ाएं। इसके अलावा फल और मिठाई भगवान को अर्पण करें। सोमवार के दिन मान्यता है कि रात में भी जागरण करना चाहिए। इस दौरान 'ऊं नम: शिवाय' का जाप करते रहें। शिव चालीसा, शिव पुराण, रूद्राक्ष माला से महामृत्युंज्य मंत्र का जाप करने से भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और साधक का कष्ट दूर करते हैं।

श्रावण मास के मौके पर त्रोयदशी और चतुर्दशी में जल चढ़ाने का विशेष विधान है। ऐसे में त्रोयदशी और चतुर्दशी के संगम काल में अगर जल चढ़ाया जाए तो यह सबसे शुभ होगा।

शिवपूजन में ध्यान रखने की कुछ खास बाते 
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(१)👉 स्नान कर के ही पूजा में बेठे
(२)👉 साफ सुथरा वस्त्र धारण कर ( हो शके तो शिलाई बिना का तो बहोत अच्छा )
(३)👉 आसन एक दम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन हो तो उत्तम )
(४)👉 पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे
(५)👉 बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खंडित बिल्व पत्र मत चढ़ाये )
(६)👉 संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहा से जल पसार हो रहा हे वहा से वापस आ जाये )
(७)👉 पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करे
(८)👉 बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर शकते हे
(९)👉 शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र हे )

  पूजन सामग्री 
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शिव की मूर्ति या शिवलिंगम, अबीर- गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिलिपत्र बिल्व फल, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंट, आरती यह सब चीजो का होना आवश्यक है।

पूजन विधि 
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श्रावण सोमवार के दिन शिव अभिषेक करने के लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग को अर्पित किये जाते है। व्रत के दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहिए। सोमवार के अगले दिन अथवा प्रदोष काल के समय सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

जो इंसान भगवन शंकर का पूजन करना चाहता हे उसे प्रातः कल जल्दी उठकर प्रातः कर्म पुरे करने के बाद पूर्व दिशा या इशान कोने की और अपना मुख रख कर .. प्रथम आचमन करना चाहिए बाद में खुद के ललाट पर तिलक करना चाहिए बाद में निन्म मंत्र बोल कर शिखा बांधनी चाहिए

शिखा मंत्र👉  ह्रीं उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी मस्शोणित भक्षणे। तिष्ठ देवी शिखा मध्ये चामुंडे ह्य पराजिते।।

आचमन मंत्र
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ॐ केशवाय नमः / ॐ नारायणाय नमः / ॐ माधवाय नमः 
तीनो बार पानी हाथ में लेकर पीना चाहिए और बाद में ॐ गोविन्दाय नमः बोल हाथ धो लेने चाहिए बाद में बाये हाथ में पानी ले कर दाये हाथ से पानी .. अपने मुह, कर्ण, आँख, नाक, नाभि, ह्रदय और मस्तक पर लगाना चाहिए और बाद में ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय बोल कर खुद के चारो और पानी के छीटे डालने चाहिए

ह्रीं नमो नारायणाय बोल कर प्राणायाम करना चाहिए

स्वयं एवं सामग्री पवित्रीकरण
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'ॐ अपवित्र: पवित्रो व सर्वावस्था गतोपी व।
 य: स्मरेत पूंडरीकाक्षम सह: बाह्याभ्यांतर सूचि।।

(बोल कर शरीर एवं पूजन सामग्री पर जल का छिड़काव करे - शुद्धिकरण के लिए )

न्यास👉  निचे दिए गए मंत्र बोल कर बाजु में लिखे गए अंग पर अपना दाया हाथ का स्पर्श करे।
ह्रीं नं पादाभ्याम नमः / ( दोनों पाव पर ),
ह्रीं मों जानुभ्याम नमः / ( दोनों जंघा पर )
ह्रीं भं कटीभ्याम नमः / ( दोनों कमर पर )
ह्रीं गं नाभ्ये नमः / ( नाभि पर )
ह्रीं वं ह्रदयाय नमः / ( ह्रदय पर )
ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः / ( दोनों कंधे पर )
ह्रीं वां कंठाय नमः / ( गले पर )
ह्रीं सुं मुखाय नमः / ( मुख पर )
ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः / ( दोनों नेत्रों पर )
ह्रीं वां ललाटाय नमः / ( ललाट पर )
ह्रीं यां मुध्र्ने नमः / ( मस्तक पर )
ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः / ( पुरे शरीर पर )
तत्पश्चात भगवन शंकर की पूजा करे

(पूजन विधि निम्न प्रकार से है)
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तिलक मन्त्र👉   स्वस्ति तेस्तु द्विपदेभ्यश्वतुष्पदेभ्य एवच / स्वस्त्यस्त्व पादकेभ्य श्री सर्वेभ्यः स्वस्ति सर्वदा //

नमस्कार मंत्र👉 हाथ मे अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर नमस्कार करें।
 श्री गणेशाय नमः 
 इष्ट देवताभ्यो नमः 
 कुल देवताभ्यो नमः 
 ग्राम देवताभ्यो नमः 
 स्थान देवताभ्यो नमः 
 सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः 
 गुरुवे नमः  
 मातृ पितरेभ्यो नमः
ॐ शांति शांति शांति

गणपति स्मरण 
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 सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गज कर्णक  लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक।।
धुम्र्केतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः  द्वाद्शैतानी नामानी यः पठेच्छुनुयादापी।।
विध्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमेस्त्था। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बर्धरम देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम। प्रसन्न वदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नोपशाताये।।
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि सम प्रभु। निर्विघम कुरु में देव सर्वकार्येशु सर्वदा।।

संकल्प👉 
(दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले :)
'ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ---*--- नगरे ---**--- ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ शुभ पुण्य तिथौ -- +-- गौत्रः --++-- अमुक शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌ महागणपति प्रीत्यर्थम्‌ यथालब्धोपचारैस्तदीयं श्रावण सोमवार पूजनं करिष्ये।''

इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।

नोट👉  ------ यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें ------ यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें ---- यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें ---- यहाँ पर अपना नाम बोलकर शर्मा/ वर्मा/ गुप्ता आदि बोलें

द्विग्रक्षण - मंत्र👉  यादातर संस्थितम भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वात:/ स्थानं त्यक्त्वा तुं तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गछतु //

यह मंत्र बोल कर चावाल को अपनी चारो और डाले।

वरुण पूजन👉  
अपाम्पताये वरुणाय नमः। 
सक्लोप्चारार्थे गंधाक्षत पुष्पह: समपुज्यामी।
यह बोल कर कलश के जल में चन्दन - पुष्प डाले और कलश में से थोडा जल हाथ में ले कर निन्म मंत्र बोल कर पूजन सामग्री और खुद पर वो जल के छीटे डाले

दीप पूजन👉 दिपस्त्वं देवरूपश्च कर्मसाक्षी जयप्रद:। 
साज्यश्च वर्तिसंयुक्तं दीपज्योती नमोस्तुते।।
( बोल कर दीप पर चन्दन और पुष्प अर्पण करे )

शंख पूजन👉   लक्ष्मीसहोदरस्त्वंतु विष्णुना विधृत: करे। निर्मितः सर्वदेवेश्च पांचजन्य नमोस्तुते।।

( बोल कर शंख पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

घंट पूजन👉 देवानं प्रीतये नित्यं संरक्षासां च विनाशने।
 घंट्नादम प्रकुवर्ती ततः घंटा प्रपुज्यत।।

( बोल कर घंट नाद करे और उस पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

ध्यान मंत्र👉  ध्यायामि दैवतं श्रेष्ठं नित्यं धर्म्यार्थप्राप्तये। 
धर्मार्थ काम मोक्षानाम साधनं ते नमो नमः।।

( बोल कर भगवान शंकर का ध्यान करे )

आहवान मंत्र👉   आगच्छ देवेश तेजोराशे जगत्पतये।
पूजां माया कृतां देव गृहाण सुरसतम।।

( बोल कर भगवन शिव को आह्वाहन करने की भावना करे )

आसन मंत्र👉   सर्वकश्ठंयामदिव्यम नानारत्नसमन्वितम। कर्त्स्वरसमायुक्तामासनम प्रतिगृह्यताम।।

( बोल कर शिवजी कोई आसन अर्पण करे )

खाध्य प्रक्षालन👉 उष्णोदकम निर्मलं च सर्व सौगंध संयुत। 
पद्प्रक्षलानार्थय दत्तं ते प्रतिगुह्यतम।।

( बोल कर शिवजी के पैरो को पखालने हे )

अर्ध्य मंत्र👉  जलं पुष्पं फलं पत्रं दक्षिणा सहितं तथा। गंधाक्षत युतं दिव्ये अर्ध्य दास्ये प्रसिदामे।।

( बोल कर जल पुष्प फल पात्र का अर्ध्य देना चाहिए )

पंचामृत स्नान👉 पायो दाढ़ी धृतम चैव शर्करा मधुसंयुतम। पंचामृतं मयानीतं गृहाण परमेश्वर।।

( बोल कर पंचामृत से स्नान करावे )

स्नान मंत्र👉 गंगा रेवा तथा क्षिप्रा पयोष्नी सहितास्त्था। स्नानार्थ ते प्रसिद परमेश्वर।।

(बोल कर भगवन शंकर को स्वच्छ जल से स्नान कराये और चन्दन पुष्प चढ़ाये )

संकल्प मन्त्र👉 अनेन स्पन्चामृत पुर्वरदोनोने आराध्य देवता: प्रियत्नाम। 

( तत पश्यात शिवजी कोई चढ़ा हुवा पुष्प ले कर अपनी आख से स्पर्श कराकर उत्तर दिशा की और फेक दे ,बाद में हाथ को धो कर फिर से चन्दन पुष्प चढ़ाये )

अभिषेक मंत्र👉  सहस्त्राक्षी शतधारम रुषिभी: पावनं कृत। तेन त्वा मभिशिचामी पवामान्य : पुनन्तु में।।
( बोल कर जल शंख में भर कर शिवलिंगम पर अभिषेक करे ) बाद में शिवलिंग या प्रतिमा को स्वच्छ जल से स्नान कराकर उनको साफ कर के उनके स्थान पर विराजमान करवाए

वस्त्र मंत्र👉 सोवर्ण तन्तुभिर्युकतम रजतं वस्त्र्मुत्तमम। परित्य ददामि ते देवे प्रसिद गुह्यतम।।
( बोल कर वस्त्र अर्पण करने की भावना करे )

जनेऊ मन्त्र👉  नवभिस्तन्तुभिर्युकतम त्रिगुणं देवतामयम। उपवीतं प्रदास्यामि गृह्यताम परमेश्वर।।
( बोल कर जनेऊ अर्पण करने की भावना करे )

चन्दन मंत्र👉 मलयाचम संभूतं देवदारु समन्वितम। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर शिवजी को चन्दन का लेप करे )

अक्षत मंत्र👉 अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कंकुमुकदी सुशोभित। 
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर।। 
(बोल चावल चढ़ाये )

पुष्प मंत्र👉 नाना सुगंधी पुष्पानी रुतुकलोदभवानी च। मायानितानी प्रीत्यर्थ तदेव प्रसिद में।।
( बोल कर शिवजी को विविध पुष्पों की माला अर्पण करे )

तुलसी मंत्र👉 तुलसी हेमवर्णा च रत्नावर्नाम च मजहीम / प्रीती सम्पद्नार्थय अर्पयामी हरिप्रियाम।।
( बोल कर तुलसी पात्र अर्पण करे )

बिल्वपत्र मन्त्र👉  त्रिदलं त्रिगुणा कारम त्रिनेत्र च त्र्ययुधाम। 
त्रिजन्म पाप संहारमेकं बिल्वं शिवार्पणं।।
( बोल कर बिल्वपत्र अर्पण करे )

दूर्वा मन्त्र👉  दुर्वकुरण सुहरीतन अमृतान मंगलप्रदान।
आतितामस्तव पूजार्थं प्रसिद परमेश्वर शंकर :।।
( बोल करे दूर्वा दल अर्पण करे )

सौभाग्य द्रव्य👉  हरिद्राम सिंदूर चैव कुमकुमें समन्वितम।
सौभागयारोग्य प्रीत्यर्थं गृहाण परमेश्वर शंकर :।।
( बोल कर अबिल गुलाल चढ़ाये और होश्के तो अलंकर और आभूषण शिवजी को अर्पण करे )

धुप मन्त्र👉 वनस्पति रसोत्पन्न सुगंधें समन्वित :।
देव प्रितिकारो नित्यं धूपों यं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर सुगन्धित धुप करे )

दीप मन्त्र👉  त्वं ज्योति : सर्व देवानं तेजसं तेज उत्तम :.।
आत्म ज्योति: परम धाम दीपो यं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर भगवन शंकर के सामने दीप प्रज्वलित करे )

नैवेध्य मन्त्र👉  नैवेध्यम गृह्यताम देव भक्तिर्मेह्यचलां कुरु।
इप्सितम च वरं देहि पर च पराम गतिम्।।
( बोल कर नैवेध्य चढ़ाये )

भोजन (नैवेद्य मिष्ठान मंत्र) 👉
ॐ प्राणाय स्वाहा.
ॐ अपानाय स्वाहा.
ॐ समानाय स्वाहा
ॐ उदानाय स्वाहा.
ॐ समानाय स्वाहा 
( बोल कर भोजन कराये )

नैवेध्यांते हस्तप्रक्षालानं मुख्प्रक्षालानं आरामनियम च समर्पयामि 

निम्न ५ मंत्र से भोजन करवाए और ३ बार जल अर्पण करें और बाद में देव को चन्दन चढ़ाये।

मुखवास मंत्र👉 एलालवंग संयुक्त पुत्रिफल समन्वितम। 
नागवल्ली दलम दिव्यं देवेश प्रति गुह्याताम।। 
( बोल कर पान सोपारी अर्पण करे )

दक्षिणा मंत्र👉 ह्रीं हेमं वा राजतं वापी पुष्पं वा पत्रमेव च।
दक्षिणाम देवदेवेश गृहाण परमेश्वर शंकर।।
( बोल कर अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा अर्पण करे )

आरती मंत्र👉 सर्व मंगल मंगल्यम देवानं प्रितिदयकम।
निराजन महम कुर्वे प्रसिद परमेश्वर।। ( बोल कर एक बार आरती करे )
बाद में आरती की चारो और जल की धरा करे और आरती पर पुष्प चढ़ाये सभी को आरती दे और खुद भी आरती ले कर हाथ धो ले।

अथवा भगवान गंगाधर की आरती करें

🕉 भगवान् गंगाधर की आरती 🕉

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा। त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥ 
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने। गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥ 
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता। रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥ 
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता। तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥ 
क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌। इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥ 
बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता। किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥ 
धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते। क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥ 
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता। चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥ 
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते। अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥ 
कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌। त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥ 
सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌। डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥ 
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌। वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥ 
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌। इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥ 
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते। नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥ 
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा। अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥ 
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा। रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥ 
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते। शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥

पुष्पांजलि मंत्र👉 पुष्पांजलि प्रदास्यामि मंत्राक्षर समन्विताम।
तेन त्वं देवदेवेश प्रसिद परमेश्वर।।
( बोल कर पुष्पांजलि अर्पण करे )

प्रदक्षिणा👉 यानी पापानि में देव जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वाणी नश्यन्तु प्रदिक्षिने पदे पदे।।
( बोल कर प्रदिक्षिना करे )
बाद में शिवजी के कोई भी मंत्र स्तोत्र या शिव शहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ करे अवश्य शिव कृपा प्राप्त होगी।

पूजा में हुई अशुद्धि के लिये निम्न स्त्रोत्र पाठ से क्षमा याचना करें।

।।देव्पराधक्षमापनस्तोत्रम्।।

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:।
मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरित चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं 

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्

न मोक्षस्याकाड्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:

नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव

आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्

मत्सम: पातकी नास्ति पापन्घी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु।।

टंकण अशुद्धि के लिए क्षमा प्रार्थी।

पं देवशर्मा
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श्रावणशिवरात्रि पर कैसे करे शिव पूजा 
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सामान्य मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति
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देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्रावण शिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं। यह पर्व श्रावण कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह उपवास 26 जुलाई मंगलवार के दिन का रहेगा। इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न होकर, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं। इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृद्धों के द्वारा किया जा सकता हैं।

आज के दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर तथा शिवपूजन,रुद्राभिषेक, शिवरात्रि कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व "ॐ नम: शिवाय" का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं। व्रत के दूसरे दिन ब्राह्मण को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके संतुष्ट किया जाता हैं।

त्रोयदशी और चतुर्दशी में जल चढ़ाने का विशेष विधान
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शिवपूजन में ध्यान रखने की कुछ खास बाते 
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(१)👉 स्नान कर के ही पूजा में बेठे
(२)👉 साफ सुथरा वस्त्र धारण कर ( हो शके तो शिलाई बिना का तो बहोत अच्छा )
(३)👉 आसन एक दम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन हो तो उत्तम )
(४)👉 पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे
(५)👉 बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खंडित बिल्व पत्र मत चढ़ाये )
(६)👉 संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहा से जल पसार हो रहा हे वहा से वापस आ जाये )
(७)👉 पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करे
(८)👉 बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर शकते हे
(९)👉 शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र हे )

  पूजन सामग्री 
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शिव की मूर्ति या शिवलिंगम, अबीर- गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिलिपत्र बिल्व फल, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंट, आरती यह सब चीजो का होना आवश्यक है।

पूजन विधि 
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महाशिव रात्रि के दिन शिव अभिषेक करने के लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग को अर्पित किये जाते है। व्रत के दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहिए। शिवरात्रि के अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

जो इंसान भगवन शंकर का पूजन करना चाहता हे उसे प्रातः कल जल्दी उठकर प्रातः कर्म पुरे करने के बाद पूर्व दिशा या इशान कोने की और अपना मुख रख कर .. प्रथम आचमन करना चाहिए बाद में खुद के ललाट पर तिलक करना चाहिए बाद में निन्म मंत्र बोल कर शिखा बांधनी चाहिए

शिखा मंत्र👉  ह्रीं उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी मस्शोणित भक्षणे। तिष्ठ देवी शिखा मध्ये चामुंडे ह्य पराजिते।।

आचमन मंत्र
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ॐ केशवाय नमः / ॐ नारायणाय नमः / ॐ माधवाय नमः 
तीनो बार पानी हाथ में लेकर पीना चाहिए और बाद में ॐ गोविन्दाय नमः बोल हाथ धो लेने चाहिए बाद में बाये हाथ में पानी ले कर दाये हाथ से पानी .. अपने मुह, कर्ण, आँख, नाक, नाभि, ह्रदय और मस्तक पर लगाना चाहिए और बाद में ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय बोल कर खुद के चारो और पानी के छीटे डालने चाहिए
ह्रीं नमो नारायणाय बोल कर प्राणायाम करना चाहिए

स्वयं एवं सामग्री पवित्रीकरण
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'ॐ अपवित्र: पवित्रो व सर्वावस्था गतोपी व।
 य: स्मरेत पूंडरीकाक्षम सह: बाह्याभ्यांतर सूचि।।

(बोल कर शरीर एवं पूजन सामग्री पर जल का छिड़काव करे - शुद्धिकरण के लिए )

न्यास👉  निचे दिए गए मंत्र बोल कर बाजु में लिखे गए अंग पर अपना दाया हाथ का स्पर्श करे।
ह्रीं नं पादाभ्याम नमः / ( दोनों पाव पर ),
ह्रीं मों जानुभ्याम नमः / ( दोनों जंघा पर )
ह्रीं भं कटीभ्याम नमः / ( दोनों कमर पर )
ह्रीं गं नाभ्ये नमः / ( नाभि पर )
ह्रीं वं ह्रदयाय नमः / ( ह्रदय पर )
ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः / ( दोनों कंधे पर )
ह्रीं वां कंठाय नमः / ( गले पर )
ह्रीं सुं मुखाय नमः / ( मुख पर )
ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः / ( दोनों नेत्रों पर )
ह्रीं वां ललाटाय नमः / ( ललाट पर )
ह्रीं यां मुध्र्ने नमः / ( मस्तक पर )
ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः / ( पुरे शरीर पर )
तत्पश्चात भगवन शंकर की पूजा करे

(पूजन विधि निम्न प्रकार से है)
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तिलक मन्त्र👉   स्वस्ति तेस्तु द्विपदेभ्यश्वतुष्पदेभ्य एवच / स्वस्त्यस्त्व पादकेभ्य श्री सर्वेभ्यः स्वस्ति सर्वदा //

नमस्कार मंत्र👉 हाथ मे अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर नमस्कार करें।
 श्री गणेशाय नमः 
 इष्ट देवताभ्यो नमः 
 कुल देवताभ्यो नमः 
 ग्राम देवताभ्यो नमः 
 स्थान देवताभ्यो नमः 
 सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः 
 गुरुवे नमः  
 मातृ पितरेभ्यो नमः
ॐ शांति शांति शांति

गणपति स्मरण 
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 सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गज कर्णक  लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक।।
धुम्र्केतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः  द्वाद्शैतानी नामानी यः पठेच्छुनुयादापी।।
विध्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमेस्त्था। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बर्धरम देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम। प्रसन्न वदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नोपशाताये।।
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि सम प्रभु। निर्विघम कुरु में देव सर्वकार्येशु सर्वदा।।

संकल्प👉 
(दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले :)
'ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ---*--- नगरे ---**--- ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ शुभ पुण्य तिथौ -- +-- गौत्रः --++-- अमुक शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌ महागणपति प्रीत्यर्थम्‌ यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।''
इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।

नोट👉  ------ यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें ------ यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें ---- यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें ---- यहाँ पर अपना नाम बोलकर शर्मा/ वर्मा/ गुप्ता आदि बोलें

द्विग्रक्षण - मंत्र👉  यादातर संस्थितम भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वात:/ स्थानं त्यक्त्वा तुं तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गछतु //

यह मंत्र बोल कर चावाल को अपनी चारो और डाले।

वरुण पूजन👉  
अपाम्पताये वरुणाय नमः। 
सक्लोप्चारार्थे गंधाक्षत पुष्पह: समपुज्यामी।
यह बोल कर कलश के जल में चन्दन - पुष्प डाले और कलश में से थोडा जल हाथ में ले कर निन्म मंत्र बोल कर पूजन सामग्री और खुद पर वो जल के छीटे डाले

दीप पूजन👉 दिपस्त्वं देवरूपश्च कर्मसाक्षी जयप्रद:। 
साज्यश्च वर्तिसंयुक्तं दीपज्योती नमोस्तुते।।
( बोल कर दीप पर चन्दन और पुष्प अर्पण करे )

शंख पूजन👉   लक्ष्मीसहोदरस्त्वंतु विष्णुना विधृत: करे। निर्मितः सर्वदेवेश्च पांचजन्य नमोस्तुते।।

( बोल कर शंख पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

घंट पूजन👉 देवानं प्रीतये नित्यं संरक्षासां च विनाशने।
 घंट्नादम प्रकुवर्ती ततः घंटा प्रपुज्यत।।

( बोल कर घंट नाद करे और उस पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

ध्यान मंत्र👉  ध्यायामि दैवतं श्रेष्ठं नित्यं धर्म्यार्थप्राप्तये। 
धर्मार्थ काम मोक्षानाम साधनं ते नमो नमः।।

( बोल कर भगवान शंकर का ध्यान करे )

आहवान मंत्र👉   आगच्छ देवेश तेजोराशे जगत्पतये।
पूजां माया कृतां देव गृहाण सुरसतम।।

( बोल कर भगवन शिव को आह्वाहन करने की भावना करे )

आसन मंत्र👉   सर्वकश्ठंयामदिव्यम नानारत्नसमन्वितम। कर्त्स्वरसमायुक्तामासनम प्रतिगृह्यताम।।

( बोल कर शिवजी कोई आसन अर्पण करे )

खाध्य प्रक्षालन👉 उष्णोदकम निर्मलं च सर्व सौगंध संयुत। 
पद्प्रक्षलानार्थय दत्तं ते प्रतिगुह्यतम।।

( बोल कर शिवजी के पैरो को पखालने हे )

अर्ध्य मंत्र👉  जलं पुष्पं फलं पत्रं दक्षिणा सहितं तथा। गंधाक्षत युतं दिव्ये अर्ध्य दास्ये प्रसिदामे।।

( बोल कर जल पुष्प फल पात्र का अर्ध्य देना चाहिए )

पंचामृत स्नान👉 पायो दाढ़ी धृतम चैव शर्करा मधुसंयुतम। पंचामृतं मयानीतं गृहाण परमेश्वर।।

( बोल कर पंचामृत से स्नान करावे )

स्नान मंत्र👉 गंगा रेवा तथा क्षिप्रा पयोष्नी सहितास्त्था। स्नानार्थ ते प्रसिद परमेश्वर।।

(बोल कर भगवन शंकर को स्वच्छ जल से स्नान कराये और चन्दन पुष्प चढ़ाये )

संकल्प मन्त्र👉 अनेन स्पन्चामृत पुर्वरदोनोने आराध्य देवता: प्रियत्नाम। 

( तत पश्यात शिवजी कोई चढ़ा हुवा पुष्प ले कर अपनी आख से स्पर्श कराकर उत्तर दिशा की और फेक दे ,बाद में हाथ को धो कर फिर से चन्दन पुष्प चढ़ाये )

अभिषेक मंत्र👉  सहस्त्राक्षी शतधारम रुषिभी: पावनं कृत। तेन त्वा मभिशिचामी पवामान्य : पुनन्तु में।।
( बोल कर जल शंख में भर कर शिवलिंगम पर अभिषेक करे ) बाद में शिवलिंग या प्रतिमा को स्वच्छ जल से स्नान कराकर उनको साफ कर के उनके स्थान पर विराजमान करवाए

वस्त्र मंत्र👉 सोवर्ण तन्तुभिर्युकतम रजतं वस्त्र्मुत्तमम। परित्य ददामि ते देवे प्रसिद गुह्यतम।।
( बोल कर वस्त्र अर्पण करने की भावना करे )

जनेऊ मन्त्र👉  नवभिस्तन्तुभिर्युकतम त्रिगुणं देवतामयम। उपवीतं प्रदास्यामि गृह्यताम परमेश्वर।।
( बोल कर जनेऊ अर्पण करने की भावना करे )

चन्दन मंत्र👉 मलयाचम संभूतं देवदारु समन्वितम। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर शिवजी को चन्दन का लेप करे )

अक्षत मंत्र👉 अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कंकुमुकदी सुशोभित। 
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर।। 
(बोल चावल चढ़ाये )

पुष्प मंत्र👉 नाना सुगंधी पुष्पानी रुतुकलोदभवानी च। मायानितानी प्रीत्यर्थ तदेव प्रसिद में।।
( बोल कर शिवजी को विविध पुष्पों की माला अर्पण करे )

तुलसी मंत्र👉 तुलसी हेमवर्णा च रत्नावर्नाम च मजहीम / प्रीती सम्पद्नार्थय अर्पयामी हरिप्रियाम।।
( बोल कर तुलसी पात्र अर्पण करे )

बिल्वपत्र मन्त्र👉  त्रिदलं त्रिगुणा कारम त्रिनेत्र च त्र्ययुधाम। 
त्रिजन्म पाप संहारमेकं बिल्वं शिवार्पणं।।
( बोल कर बिल्वपत्र अर्पण करे )

दूर्वा मन्त्र👉  दुर्वकुरण सुहरीतन अमृतान मंगलप्रदान।
आतितामस्तव पूजार्थं प्रसिद परमेश्वर शंकर :।।
( बोल करे दूर्वा दल अर्पण करे )

सौभाग्य द्रव्य👉  हरिद्राम सिंदूर चैव कुमकुमें समन्वितम।
सौभागयारोग्य प्रीत्यर्थं गृहाण परमेश्वर शंकर :।।
( बोल कर अबिल गुलाल चढ़ाये और होश्के तो अलंकर और आभूषण शिवजी को अर्पण करे )

धुप मन्त्र👉 वनस्पति रसोत्पन्न सुगंधें समन्वित :।
देव प्रितिकारो नित्यं धूपों यं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर सुगन्धित धुप करे )

दीप मन्त्र👉  त्वं ज्योति : सर्व देवानं तेजसं तेज उत्तम :.।
आत्म ज्योति: परम धाम दीपो यं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर भगवन शंकर के सामने दीप प्रज्वलित करे )

नैवेध्य मन्त्र👉  नैवेध्यम गृह्यताम देव भक्तिर्मेह्यचलां कुरु।
इप्सितम च वरं देहि पर च पराम गतिम्।।
( बोल कर नैवेध्य चढ़ाये )

भोजन (नैवेद्य मिष्ठान मंत्र) 👉
ॐ प्राणाय स्वाहा.
ॐ अपानाय स्वाहा.
ॐ समानाय स्वाहा
ॐ उदानाय स्वाहा.
ॐ समानाय स्वाहा 
( बोल कर भोजन कराये )

नैवेध्यांते हस्तप्रक्षालानं मुख्प्रक्षालानं आरामनियम च समर्पयामि 

निम्न ५ मंत्र से भोजन करवाए और ३ बार जल अर्पण करें और बाद में देव को चन्दन चढ़ाये।

मुखवास मंत्र👉 एलालवंग संयुक्त पुत्रिफल समन्वितम। 
नागवल्ली दलम दिव्यं देवेश प्रति गुह्याताम।। 
( बोल कर पान सोपारी अर्पण करे )

दक्षिणा मंत्र👉 ह्रीं हेमं वा राजतं वापी पुष्पं वा पत्रमेव च।
दक्षिणाम देवदेवेश गृहाण परमेश्वर शंकर।।
( बोल कर अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा अर्पण करे )

आरती मंत्र👉 सर्व मंगल मंगल्यम देवानं प्रितिदयकम।
निराजन महम कुर्वे प्रसिद परमेश्वर।। ( बोल कर एक बार आरती करे )
बाद में आरती की चारो और जल की धरा करे और आरती पर पुष्प चढ़ाये सभी को आरती दे और खुद भी आरती ले कर हाथ धो ले।

अथवा भगवान गंगाधर की आरती करें

🕉 भगवान् गंगाधर की आरती 🕉

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा। त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥ 
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने। गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥ 
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता। रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥ 
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता। तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥ 
क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌। इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥ 
बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता। किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥ 
धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते। क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥ 
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता। चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥ 
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते। अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥ 
कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌। त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥ 
सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌। डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥ 
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌। वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥ 
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌। इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥ 
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते। नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥ 
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा। अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥ 
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा। रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥ 
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते। शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥

पुष्पांजलि मंत्र👉 पुष्पांजलि प्रदास्यामि मंत्राक्षर समन्विताम।
तेन त्वं देवदेवेश प्रसिद परमेश्वर।।
( बोल कर पुष्पांजलि अर्पण करे )

प्रदक्षिणा👉 यानी पापानि में देव जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वाणी नश्यन्तु प्रदिक्षिने पदे पदे।।
( बोल कर प्रदिक्षिना करे )
बाद में शिवजी के कोई भी मंत्र स्तोत्र या शिव शहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ करे अवश्य शिव कृपा प्राप्त होगी।

पूजा में हुई अशुद्धि के लिये निम्न स्त्रोत्र पाठ से क्षमा याचना करें।

।।देव्पराधक्षमापनस्तोत्रम्।।

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:।
मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरित चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं 

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्

न मोक्षस्याकाड्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:

नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव

आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्

मत्सम: पातकी नास्ति पापन्घी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु।।


〰️〰️🔸〰️ साभार 〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️

ऐसी ग़ज़ब की तस्वीरें जिसे समझने के लिए दो बार देखना होगा?

 

चलिए देखते हैं ऐसी तस्वीरें जिसे समझने के लिए दो बार देखना होगा।

1.

विवरण : क्या आप को भी घुटनों के बजाय बच्चे के चेहरे दिखाई दे रहें हैं।

2.

विवरण : अपने पिछले जीवन में यह कछुआ कोई दाढ़ी वाला आदमी था। :D

3.

विवरण : सभी मोटरसाइकल चलाने वालों की एक लंबी पैर वाली प्रेमिका होनी चाहिए।

4.

विवरण : यह आदमी एक इंसान होने का दिखावा करने वाला एक एलियन लगता है।

5.

विवरण : मुझे लगा कि कुर्सी टूट गई है।

6.

विवरण : पेड़ थका हुआ है, इसलिए वह आराम करने के लिए बैठ गया।

7.

विवरण : सिर्फ कुर्सियों का प्रतिबिंब।

8.

विवरण : बच्चे की टोपी में बाप का सिर??

9.

विवरण : जब आप अंततः स्नातक हो गए, लेकिन नौकरी नहीं पा सके। :(

10.

विवरण : इस आदमी का पेट, एक प्रसिद्ध अभिनेता का चहरे सा लग रहा है।

11.

विवरण : वह सिर्फ नल नहीं है। :D

12.

विवरण : दो भवन गले मिल रहे हैं। :D

13.

विवरण : बेचारा लड़का। :(

14.

विवरण : ये लडकी की लम्बी ढाढ़ी है या एक बिल्ली :D

15.

विवरण : किसका हाथ है ये… लड़की का या लड़के का :D

16.

विवरण : मैगजीन से बाहर झाकती हुई लड़की :)

17.

विवरण : थोड़ा उलझन भरी है ये तस्वीर।

18.

विवरण : स्वेटर में सिर है या टोपी का स्वेटर :D

19.

विवरण : चार टांगों वाली लड़की है या लड़की जैसा डोगी :D

20.

विवरण : ये कुर्सियाँ ही सब कुछ हैं। लेकिन यह भी भ्रामक है। :D

चित्र स्त्रोत: गुगल

दोस्ती की संभावना………. बकरा - कसाई संबंध।

 

एक बकरा कसाई से दोस्ती करना चाहता है। बकरे का खयाल है कि दोस्ती हो जायेगी तो कसाई उसकी गरदन काटना बंद कर देगा। इस कारण उसने कसाई से मीठे शब्दों में संवाद शुरू किया…….

'...मैं शाकाहारी हूं।' कसाई बोला, 'रहो। मेरे को कोई प्रॉब्लम नहीं है।'

बकरा बोला, 'मैं अहिंसावादी हूं।' कसाई बोला, 'रहो। मेरे को कोई प्रॉब्लम नहीं है।'

बकरा बोला, "तो क्या मैं मान लूं कि अब तुम मेरी गरदन नहीं काटोगे?" कसाई बोला, 'तुमको मिसअंडरस्टैंडिंग है। तुम्हारी गरदन मैं नहीं, ये छुरा काटता है।'

'लेकिन, मेरी गरदन काटने से छुरे को क्या फायदा?'……. 'बात फायदे की नहीं है, स्वभाव की है। काटना छुरे का स्वभाव है।'

'लेकिन, छुरा साग भाजी भी तो काट सकता है?' 'काट तो सकता है। पर, छुरा बोलता है - मैं अपना स्वभाव नहीं बदलूंगा।' 'मगर, छुरा तो तुम्हारे हाथ में है। तुम उसको समझाओ ना !!'

'देखो, वो अपनी मरजी का मालिक है। मैं छुरे की आजादी नहीं छीन सकता।' बकरे ने कसाई से दोस्ती करने कि पूरा कोशिश की। पर बीच में छुरे की आजादी आ गई। अब, आजादी तो जन्मसिद्ध अधिकार होता है। और, छुरा के मुआमले में तो वो मृत्युसिद्ध अधिकार भी होता है।

तो कहने का मतलब है कि बकरा कसाई से दोस्ती करना चाहता है….

लेकिन, रास्ते में छुरे की आजादी आ गई। वैसे, बकरे को एक बात पता नहीं है। कसाई आदमी होते हुए भी सिर्फ आदमी नहीं होता। धंधा भी होता है। और, दुनिया में कोई अपना धंधा बंद नहीं करता।

एक बात और, कसाई सिर्फ एक धंधा नहीं है..

एक भावना भी है।

एक परंपरा है।

एक सोच है।

ऐसी सोच जो चाहती है कि दुनिया भर के बकरे उससे डर कर रहें… हमेशा। जब तक बकरा डरता रहेगा, कसाई डराता रहेगा। जो डर गया सो बकरा! अगर, बकरा को बकरा बन कर नहीं रहना है, तो उसको इस डर से बाहर निकलना होगा।

कैसे….???

यह सोचना बकरे का काम है।

बकरा आशावादी है।

वो इंसानियत की बात करता है।

सद्भावना की बात करता है।

अहिंसा की बात करता है।

शराफत की बात करता है।

सहानुभूति की बात करता है।

करुणा की बात करता है।

बकरे को उम्मीद है कि एक दिन कसाई का दिल पसीज जाएंगा। काश कि ऐसा हो सकता….. !.!

लेकिन एक हकीकत ये भी है- जिसका दिल पसीजता है, वो कसाई नहीं होता।

ये लोग कैसे धार्मिक जगह बैठकर हिंदुओं का धर्म भृष्ट कर रहे है

 जागो हिंदू जागो

दिल्ली हरिद्वार मार्ग पर स्थित छोटा हरिद्वार गंगा घाट पर पिछले महीने जाना हुआ ।दर्शन के बाद पास ही स्थित होटल गंग नहर फ़ूड पॉइंट पर खाने का ऑर्डर किया जैसे ही खाना खाना शुरू किया तो सब वातावरण अजीब सा लगा तभी देखा कि जिस लड़के ने मुझे खाना सर्व किया था वो लड़का दूसरी टेबल साफ़ के रहा और पोंछा लगा रहा है मुझे बहुत अजीब सा लगा अब मेरा मन वो खाना खाने का बिलकुल नहीं रहा।मैंने पूछा मलिक से मिलाओ तो वो मुझे सामने भगत सिंह की तस्वीर के नीचे कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के पास ले गया।मुझे देखकर वो व्यक्ति खाना खा रहा था जो कि मांस था और जिस प्लेट में मुझे दिया था उस प्रकार की ही प्लेट थी वो अपना खाना छुपाते हुआ बोला जी बताओ ।मैंने बोला आपके होटल पर कोई व्यवस्था ठीक नहीं है वर्कर भी सब बिलकुल गंदे और सफ़ाई जो कर रहा उससे ही खाना सर्व करवा रहे आप तो वो बोला आपको खाना है तो खाओ नहीं तो पैक करवा के ले जाओ कहीं फ़ेक देना चाहे .बिल आपको देना पड़ेगा तभी उसने भाटी बोलकर एक लड़के को बुलाया की इनका बिल करवाओ और खाना पन्नी में डालकर दे दो ।मैं चुपचाप काउंटर पर पैसा दे कर खाना वहीं छोड़ कर दोबारा घाट पर आ गया तभी मेरी नज़र होटल की शौचालय साफ़ कर बाहर निकले कर्मचारी पर गई तो मैंने उससे घाट पर बैठकर बात की तो मेरे होश उड़ गए। उसने बताया कि ये होटल तोहीद कसाई का है और यहाँ सब कर्मचारी मुसलमान कसाई बिरादरी के हैं जिनका तोहिद ने सबके नाम हिन्दू रखें हुए हैं । उसने बताया जो काउंटर पर बैठते हैं उसका नाम आदिल कसाई है उसको पंडित कहते हैं

सोहेल कसाई को सनी चौधरी

शोएब कसाई को त्यागी जी

शाहरुख़ कसाई को आरके

कलवा कसाई को अमन

इमरान कसाई को बंटी

जुनैद कसाई को जैन साब

शहनवाज़ कसाई को विनोद

शहज़ाद कसाईको सोनी जी

नदीम कसाई को सोनू

दानिश कसाई को दानवीर

बिलाल कसाई को बिल्लू चाय

अनास कसाई को हन्नू

आदिल छोटा को खट्टर

तौफ़ीक़ इलाही कसाई तन्नू

मैंने पूछा ये जिसको इसने भाटी कहकर बुलाया था ये मुझे लगा नहीं हिन्दू तो उसने बताया ये हारून कसाई है इसको भाटी बोलते है .सुनकर मेरे तो दिमाग़ सन्न रह गया कि ये लोग कैसे धार्मिक जगह बैठकर हिंदुओं का धर्म भृष्ट कर रहे है .अतः भाइयों ये पोस्ट ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करो जिससे किसी हिंदू भाई का धर्म भृष्ट होने से बच जाये….

कैसी विडंबना है रे भाई

गंगा घाट पर बैठा तोहिद कसाई

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सोचिए हाशिम अंसारी जो अयोध्या में एक छोटी सी टेलर की दुकान चलाता था वह 60 सालों तक बाबरी मस्जिद का पक्षकार के तौर पर मुकदमा लड़ा क्योंकि उसका कहना था कि बाबरी ढांचा एक मस्जिद था

 

सोचिए हाशिम अंसारी जो अयोध्या में एक छोटी सी टेलर की दुकान चलाता था वह 60 सालों तक बाबरी मस्जिद का पक्षकार के तौर पर मुकदमा लड़ा क्योंकि उसका कहना था कि बाबरी ढांचा एक मस्जिद था और अयोध्या के तत्कालीन डीएम नैयर साहब ने मेरे सामने मूर्तियां रखी थी

उसके मरने के बाद उसका बेटा इकबाल अंसारी पक्षकार बना जिसकी एक छोटी सी पंचर की दुकान है

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं यह सब बातें आपको क्यों बता रहा हूं

दरअसल आप समझिए हिंदुओं की सोच और शांति दूतों की सोच में क्या फर्क होता है। इतनी गरीबी में रहने के बाद भी यह कभी नहीं बिका.. अगर इसकी जगह कोई हिंदू होता तो शायद कब का बिक चुका होता और हिंदुओं का क्या कहें जब इसका घर एक दुर्घटना में जल गया था तब अयोध्या के हिंदुओं ने ही हाशिम अंसारी का नया घर बनवाने में मदद किया इतना ही नहीं उसे मुकदमे के लिए बार-बार कोर्ट जाना पड़ता था तो हिंदुओं ने उसे अंबेसडर कार खरीद कर दिया था और हाशिम अंसारी के निधन पर मुस्लिमों से ज्यादा हिंदू जुटे थे

और यह बड़े गर्व से बताता था कि मुझे मुकदमा के लिए मुस्लिमों से ज्यादा डोनेशन हिंदू देते हैं

बुधवार, 24 जुलाई 2024

#क्या_शिवलिंग_मे_रेडियोएक्टिव_होते_हैं?हाँ 100% सच है!!भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे ।

#क्या_शिवलिंग_मे_रेडियोएक्टिव_होते_हैं?
हाँ 100% सच है!!

भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे ।

भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।

▪️ शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें।

▪️ महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं।

▪️ क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।

▪️ भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।

▪️ शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।

▪️ तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।

▪️ ध्यान दें कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।

▪️ जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है।

 ●विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।●

▪️ आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बनाये गये हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडु का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79°E 41’54” Longitude की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।

▪️ यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंचभूत कहते हैं। पंचभूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्हीं पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों को प्रतिष्टापित किया गया है।

जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, 
आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, 
हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, 
पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम् में है और अतं में 
अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है!

वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।

▪️ भौगोलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।

▪️ इन मंदिरों का करीब पाँच हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं थी। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्टापित किया गया था? उत्तर भगवान ही जानें।

▪️ केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते हैं। _आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयोग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है, यह आज तक रहस्य ही है।_

श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है।
तिरुवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। 
अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। 
कंचिपुरम् के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और 
चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान की निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।

▪️ अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच लिंगों को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। _हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसी विज्ञान और तकनीकी थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है।_ माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते हैं। *इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है।* संभवतया यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाये गये हों जो 81.3119° E में पड़ता है!? उत्तर शिवजी ही जाने।

*_कमाल की बात है "महाकाल" उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों के बीच का सम्बन्ध (दूरी )देखिये_*
▪️ उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी

▪️ उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी

▪️ उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी

▪️ उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी

▪️ उज्जैन से मल्लिकार्जुन- 999 किमी

▪️ उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी

▪️ उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी

▪️ उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी

▪️ उज्जैन से रामेश्वरम्- 1999 किमी

▪️ उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी

हिन्दू धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता था ।

उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है, जो सनातन धर्म में हजारों सालों से मानते आ रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले ।

और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला। आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।

🙏🌹 हर हर महादेव 🌹🙏

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

मंगला गौरी व्रत विशेष -उपवास विधि

मंगला गौरी व्रत विशेष
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उपवास विधि 
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मंगला गौरी व्रत श्रावण मास में पडने वाले सभी मंगलवार को रखा जाता है. श्रावण मास में आने वाले सभी व्रत-उपवास व्यक्ति के सुख- सौभाग्य में वृ्द्धि करते है. सौभाग्य से जुडे होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है. इस उपवास को करने का उद्धेश्य अपने पति व संतान के लम्बें व सुखी जीवन की कामना करना है।

पूजन सामग्री
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मंगलागौरी व्रत-पूजन के लिये निम्न सामग्री चाहियें।

1. फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग, जीरा, धनिया (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए), साडी सहित सोलह श्रंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडियां इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के सूखे मेवे 16 बार. सात प्रकार के धान्य (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) 16 बार।

मंगला गौरी व्रत कैसे करें 
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इस व्रत को करने वाली महिलाओं को श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए. श्रावण मास के प्रथम मंगलवार की सुबह, स्नान आदि से निर्वत होने के बाद, मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लिपेट कर, लकडी की चौकी पर रखा जाता है. इसके बाद गेंहूं के आटे से एक दीया बनाया जाता है, इस दीये में 16-16 तार कि चार बतियां कपडे की बनाकर रखी जाती है।

व्रत विधि
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मंगला गौरी उपवास रखने के लिये सुबह स्नान आदि कर व्रत का प्रारम्भ किया जाता हैं।

एक चौकी पर सफेद लाल कपडा बिछाना चाहियें।

सफेद कपडे पर चावल से नौ ग्रह बनाते है, तथा लाल कपडे पर षोडश माताएं गेंहूं से बनाते है।

चौकी के एक तरफ चावल और फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है।

दूसरी और गेंहूं रख कर कलश स्थापित करते हैं। कलश में जल रखते है।

आटे से चौमुखी दीपक बनाकर कपडे से बनी 16-16 तार कि चार बतियां जलाई जाती है।

सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है।

पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं।

इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है।

फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती है।

मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं।

सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूडियां चढाते है। अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं।

कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती हैं। अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं।

मंगलागौरी व्रत का वर्णन तथा व्रत कथा
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ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! अब मैं अत्युत्तम भौम व्रत का वर्णन करूँगा, जिसके अनुष्ठान करने मात्र से वैधव्य नहीं होता है। विवाह होने के पश्चात पाँच वर्षों तक यह व्रत करना चाहिए. इसका नाम मंगला गौरी व्रत है। यह पापों का नाश करने वाला है। विवाह के पश्चात प्रथम श्रावण शुक्ल पक्ष में पहले मंगलवार को यह व्रत आरंभ करना चाहिए। केले के खम्भों से सुशोभित एक पुष्प मंडल बनाना चाहिए और उसे अनेक प्रकार के फलों तथा रेशमी वस्त्रों से सजाना चाहिए। उस मंडप में अपने सामर्थ्य के अनुसार देवी की सुवर्णमयी अथवा अन्य धातु की बनी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। उस प्रतिमा को सोलह उपचारों से, सोलह दूर्वा दलों से सोलह चावलों से तथा सोलह चने की दालों से मंगला गौरी नामक देवी की पूजा करनी चाहिए और सोलह बत्तियों से सोलह दीपक जलाने चाहिए. दही तथा भात का नैवेद्य भक्तिपूर्वक अर्पित करना चाहिए. देवी के पास ही पत्थर का सील तथा लोढ़ा स्थापित करना चाहिए. पाँच वर्ष तक इस प्रकार से करने के पश्चात उद्यापन करना चाहिए।

माता को वायन प्रदान करना चाहिए जिसकी विधि आप सुनिए – अपने सामर्थ्य अनुसार एक पल प्रमाण सुवर्ण की अथवा उसके आधे प्रमाण की अथवा उसके भी आधे प्रमाण की मंगला गौरी की प्रतिमा निर्मित करानी चाहिए. अपनी शक्ति के अनुसार स्वर्ण आदि के बने तंडुलपूरित पात्र पर वस्त्र तथा रमणीय कंचु की ओढ़नी रखकर उन दोनों के ऊपर देवी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. पास में चाँदी से निर्मित सिल तथा लोढ़ा रखकर माता को वायन प्रदान करना चाहिए. इसके बाद सोलह सुवासिनियों को प्रयत्नपूर्वक भोजन कराना चाहिए. हे विप्र ! इस विधि से व्रत करने पर सात जन्मों तक सौभाग्य बना रहता है और पुत्र, पुत्र आदि के साथ संपदा विद्यमान रहती है।

सनत्कुमार बोले – सर्वप्रथम इस व्रत को किसने किया था और किसको इसका फल प्राप्त हुआ? हे शम्भो ! जिस तरह से मुझे इसके प्रति निष्ठा हो जाए, कृपा करके वैसे ही बताइए।

ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! पूर्वकाल में कुरु देश में श्रुतकीर्ति नामक एक विद्वान्, कीर्तिशाली, शत्रुओं का नाश करने वाला, चौसंठ कलाओं का ज्ञाता तथा धनुर्विद्या में कुशल राजा हुआ था. पुत्र के अतिरिक्त अन्य सभी शुभ चीजें उस राजा के पास थी. अतः वह राजा संतान के विषय में अत्यंत चिंतित हुआ और जप-ध्यानपूर्वक देवी की आराधना करने लगा तब उसकी कठोर तपस्या से देवी प्रसन्न हो गई और उस से यह वचन बोली – हे सुव्रत ! वर माँगों।

श्रुतकीर्ति बोला – हे देवी ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे सुन्दर पुत्र दीजिए. हे देवी ! आपकी कृपा से अन्य किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है. उसका यह वचन सुनकर पवित्र मुसकान वाली देवी ने कहा – हे राजन ! तुमने अत्यंत दुर्लभ वर माँगा है, फिर भी कृपा वश मैं तुम्हें अवश्य दूंगी. किन्तु हे राजेंद्र ! सुनिए, यदि परम गुणी पुत्र चाहते हो तो वह केवल सोलह वर्ष तक जीवित रहेगा और यदि रूप तथा विद्या से विहीन पुत्र चाहते हो तो दीर्घजीवी होगा. देवी का यह वचन सुनकर राजा चिंतित हो उठा और पुनः अपनी पत्नी से परामर्श कर के उसने गुणवान तथा सभी शुभ लक्षणों से संपन्न सोलह वर्ष की आयु वाला पुत्र माँगा तब देवी ने भक्ति संपन्न राजा से कहा – हे नृपनन्दन ! मेरे मंदिर के द्वार पर आम का वृक्ष है, उसका एक फल लाकर मेरी आज्ञा से अपनी भार्या को उसे भक्षण करने हेतु प्रदान करो. जिससे वह शीघ्र ही गर्भ धारण करेगी, इसमें संदेह नहीं है.
प्रसन्न होकर राजा ने वैसा ही कियाऔर उसकी पत्नी ने गर्भ धारण कर लिया. दसवें महीने में उसने देवतुल्य सुन्दर पुत्र को जन्म दिया तब हर्ष तथा शोक से युक्त राजा ने बालक का जातकर्म आदि संस्कार किया और शिव का स्मरण करते हुए उसका नाम चिरायु रखा. इसके बाद पुत्र के सोलह वर्ष के होने पर पत्नी सहित राजा चिंता में पड़ गए और वे विचार करने लगे कि यह पुत्र बड़े कष्ट से प्राप्त हुआ है और मैं इसकी दुःखद मृत्यु अपने ही सामने कैसे देख सकूंगा, ऐसा विचार कर के राजा ने पुत्र को उसके मामा के साथ काशी भेज दिया. प्रस्थान के समय राजा की पत्नी ने अपने भाई से कहा कि कार्पटिक का वेश धारण कर के आप मेरे पुत्र को काशी ले जाइए. मैंने भगवान् मृत्युंजय से पूर्व में पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और कहा था कि – “हे विश्वेश ! आप जगत्पति की यात्रा के लिए मैं उस पुत्र को अवश्य भेजूंगी”. अतः आप मेरे पुत्र को आज ही ले जाइए और सावधानीपूर्वक इसकी रक्षा कीजिएगा।

 अपनी बहन की यह बात सुनकर भांजे के साथ वह चल पड़ा। कई दिनों तक चलते-चलते वह ‘आनंद’ नामक नगर में पहुंचा. वहाँ सभी प्रकार की समृद्धियों से संपन्न वीरसेन नाम वाला राजा रहता था. उस राजा की एक सर्वलक्षण संपन्न, युवावस्था प्राप्त, मनोहर तथा रूपलावण्यमयी मंगलागौरी नामक कन्या थी. सभी उपमानों को तुच्छ कर के सौंदर्य-अभिवृद्धि को प्राप्त वह कन्या किसी समय सखियों के साथ नगर के उपवन में क्रीड़ा करने के लिए गई हुई थी. उसी समय वह चिरायु तथा उसका मामा वे दोनों भी वहाँ पहुँच गए और उन कन्याओं को देखने की लालसा से वहीँ विश्राम करने लगे. इसी बीच विनोदपूर्वक क्रीड़ा करती हुई उन कन्याओं में से किसी एक ने कुपित होकर राजकुमारी को रांडा – यह कुवचन कह दिया तब उस अशुभ वचन को सुनकर राजकुमारी ने कहा – “तुम अनुचित बात क्यों बोल रही हो, मेरे कुल में तो इस प्रकार की कोई नहीं है. मंगला गौरी की कृपा से तथा उनके व्रत के प्रभाव से विवाह के समय जिस के सर पर मेरे हाथ से अक्षत पड़ेंगे, हे सखी ! वह यदि अल्प आयु वाला होगा तो भी चिरंजीवी हो जाएगा.” इसके बाद वह सभी कन्याएं अपने-अपने घर चली गई।

उसी दिन राजकुमारी का विवाह था. बाह्लीक देश के दृढ़धर्मा नामक राजा के सुकेतु नाम वाले पुत्र के साथ उसका विवाह निश्चित किया गया था. वह सुकेतु विद्याहीन, कुरूप तथा बहरा था तब सुकेतु के साथ आए हुए उन लोगों ने विचार किया कि इस समय कोई दूसरा श्रेष्ठ वर ले जाना चाहिए और विवाह संपन्न हो जाने के बाद वहाँ सुकेतु पहुँच जाए. उन लोगों ने चिरायु के मामा के पास जाकर याचना की कि आप इस बालक को हमें दे दीजिए, जिस से हमारा कार्य सिद्ध हो जाए. इस पृथ्वी पर परोपकार के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है. उनकी बात सुनकर चिरायु का मामा मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि इसने उपवन में पहले ही कन्या मंगला गौरी की बात सुन ली थी फिर भी उसने एक बार कहा कि आप लोग इसे किसलिए मांग रहे हैं? कार्य की सिद्धि हेतु वस्त्र, अलंकार आदि मांगे जाते हैं, वर तो कहीं भी नहीं माँगा जाता तथापि आप लोगों का सम्मान रखने के लिए मैं इसे दे रहा हूँ।

इसके बाद चिरायु को वहाँ ले जाकर उन लोगों ने विवाह संपन्न कराया. सप्तपदी आदि के हो जाने पर रात्रि में शिव-पार्वती की प्रतिमा के समक्ष उस चिरायु ने हर्षयुक्त होकर मंगलागौरी के साथ शयन किया. उसी दिन चिरायु के सोलह वर्ष पूर्ण हो चुके थे और अर्धरात्रि में साक्षात काल सर्परूप में वहाँ आ गया. इसी बीच संयोगवश राजकुमारी जाग गई. उसने उस महासर्प को वहाँ देखा और वह भय से व्याकुल होकर कांपने लगी तभी उस कन्या ने धैर्य धारण सोलह उपचारों से सर्प की पूजा की और पीने के लिए उसे दूध दिया. उसने दीनता भरी वाणी में उस सर्प की प्रार्थना तथा स्तुति की. मंगलागौरी प्रार्थना करने लगी कि मैं उत्तम व्रत को करुँगी जिससे मेरे पति जीवित रहें, ये जिस तरह से चिरकाल तक जीवित रहें, आप वैसा कीजिए.
इतने में सर्प वहाँ स्थित एक कमण्डलु में प्रवेश कर गया और उस मंगलागौरी ने अपनी कंचुकी से उस कमण्डलु का मुँह बाँध दिया. इसी बीच उसका पति अंगड़ाई लेकर जाग गया और अपनी पत्नी से बोला – हे प्रिये ! मुझे भूख लगी है तब वह अपनी माता के पास जाकर खीर, लड्डू आदि ले आई और उसके द्वारा दिए भोज्य पदार्थ को उसने प्रसन्न मन होकर खाया. भोजन के पश्चात् हाथ धोते समय उसके हाथ से अँगूठी गिर पड़ी. ताम्बूल खाकर वह पुनः सो गया. इसके बाद मंगलागौरी कमण्डलु को फेंकने के लिए जाने लगी. विधि की कैसी गति है कि उस कमण्डलु में से बाहर की ओर जगमग करती हुई हारकान्ति को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई. घट में स्थित उस हार को उसने अपने कंठ में धारण कर लिया. इसके बाद कुछ रात शेष रहते ही चिरायु का मामा आकर उसे ले गया. इसके बाद वर पक्ष के लोग सुकेतु को वहाँ ले आए. उसे देख मंगलागौरी ने कहा कि यह मेरा पति नहीं है तब उन सभी ने उससे कहा – हे शुभे ! तुम यह क्या बोल रही हो? यहाँ तुम्हारा कोई परिचायक हो तो उसे हम लोगों को बताओ।

मंगलागौरी बोली – जिसने रात्रि में नौ रत्नों से बानी अँगूठी दी है, उसकी अंगुली में इसे डालकर परिचायक निशानी देख लें. मेरे पति ने रात्रि में मुझे जो हार दिया था, उसके रत्नों का समुदाय कैसा है, इस बात को यह बताए, यह तो कोई अन्य ही है. इसके अतिरिक्त रात्रि में आम सींचते समय उनका पैर कुमकुम से लिप्त हो गया था, वह मेरी जांघ पर अब भी विद्यमान है, उसे आप लोग शीघ्र देख लें. साथ ही रात में परस्पर भाषण तथा भोजन आदि जो कुछ किया गया था, उसे भी यह बता दें तब यह निश्चय ही मेरा पति है।

इस प्रकार उसका वचन सुनकर सभी ठीक है-ठीक है कहने लगे किन्तु जब एक भी बात न मिली तब सभी ने सुकेतु को उसका पति होने से निषिद्ध कर दिया और वर पक्ष वाले जिस तरह से आए थे उसी तरह से चले गए. उसके बाद अपने वंश को बढ़ाने वाले, महान यश से संपन्न तथा परम मनस्वी मंगलागौरी के पिता ने अन्न, पान आदि का सत्र चलाया. उन्होंने वर पक्ष का वृत्तांत कानों-कान सुन लिया कि स्वरुप से कुरूप होने के कारण लोगों के द्वारा किसी अन्य को वर के रूप में आदरपूर्वक लाया गया था तब उन्होंने अपनी कन्या को परदे के भीतर बिठा दिया. उसके बाद एक वर्ष बीतने पर यात्रा करके चिरायु अपने मामा के साथ यह देखने आया कि विवाह के बाद वहाँ क्या हुआ? तब उसे गवाक्ष के भीतर से देखकर वह मंगलागौरी अत्यंत प्रसन्न हुई और माता-पिता से बोली कि मेरे पति आ गए हैं।

राजा ने अपने सुहृज्जनों को बुलाकर पूर्व में कहे गए सभी परिचायकों को निशानी को देखकर मंद मुस्कान वाली अपनी कन्या चिरायु को सौंप दी. राजा ने शिष्टजनों को साथ लेकर विवाह का उत्सव कराया. इसके बाद राजा वीरसेन ने वस्त्र, आभूषण आदि, सेना, घोड़े, रथ और अन्य भी बहुत-सी सामग्रियां देकर उन्हें विदा किया।

उसके बाद कुल को आनंदित करने वाला वह चिरायु पत्नी तथा मामा को साथ लेकर सेना के साथ अपने नगर पहुँचा. लोगों के मुख से उसे आया हुआ सुनकर उसके माता-पिता को विशवास नहीं हुआ, उन्होंने सोचा कि प्रारब्ध अन्यथा कैसे हो सकता है! इतने में वह अपने माता-पिता के पास आ गया और स्नेह से परिपूर्ण वह चिरायु भक्तिपूर्वक उनके चरणों में गिर पड़ा, तब अपने पुत्र का मस्तक सूंघ कर उन दोनों ने परम आनंद प्राप्त किया. पुत्रवधु मंगलागौरी ने भी सास-ससुर को प्रणाम किया. तब सास उसे अपनी गोद में बिठाकर सारा वृत्तांत शीघ्रतापूर्वक पूछने लगी।

हे महामुने ! तब पुत्रवधु ने भी मंगलागौरी के उत्तम व्रत माहात्म्य तथा जो कुछ घटित हुआ था वह सब वृत्तांत बताया. हे सनत्कुमार ! मैंने आपसे इस मंगलागौरी व्रत का वर्णन कर दिया. जो कोई भी इसका श्रवण करता है अथवा जो इसे कहता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं, इसमें संदेह नहीं है।

सूतजी बोले – हे ऋषियों ! इस प्रकार शिवजी ने सनत्कुमार को यह मंगलागौरी व्रत बताया और उन्होंने सभी कार्यों को पूर्ण करने वाले इस व्रत को सुनकर महान आनंद प्राप्त किया।

||इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वरसनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में “मंगलागौरी व्रत कथन” नामक सातवाँ अध्याय पूर्ण हुआ||

मंगला गौरी आरती 
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जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
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