*100 करोड़ लोगों के रोजगार की योजना*
जी हां , स्वतंत्र रोजगार ! नौकरी नहीं ! अपना स्वयं का रोजगार, वह भी हजारों पीढ़ियों तक आनंद के साथ प्राप्त होने वाला रोजगार.....। *परिणाम* - राष्ट्र की सभी समस्याओं का समाधान। जी हां , रोजगार के साथ-साथ राष्ट्र की सभी की सभी समस्याओं का समाधान।
राष्ट्र के शहरों में मेक इन इंडिया की मशीनों से दी जाने वाली रोजगार योजना कुछ हजार लोगों को अमीर बना कर करोड़ों - करोड़ों लोगों को गरीब मात्र गरीब बनाने वाली योजना है। यह मशीन के उद्योगों की व्यवस्था भारत की आबादी की शक्ति के लिए बेरोजगारी बढ़ाकर भारतीय प्रजा के प्राण समान संस्कृति के लिए विनाश ही विनाश लाने वाली योजना (व्यवस्था) है।
भारत में विकास लाने वाली,भारतीय प्रजा में वास्तविक विकास लाने वाली एकमात्र व्यवस्था है। वह है गोचर भूमि और जल की व्यवस्था स्थापित करना। जो इस प्रकार हैं....( *1* ) भारत के हर गांव के बाहर जो गोचर भूमि होती है। उस पर षड्यंत्र के तहत उगाएं गए अंग्रेजी बबूल को हटाना।
गोचर भूमि से अंग्रेजी बबूल हटाकर गोचर भूमि की बाउंड्री पर चारों और छोटे छोटे तालाब खोदना। गोचर में घास के बीज की बुवाई करके कुछ बड़े वृक्षों का रोपण करना। फुआरा सिस्टम से घास को पानी पिला कर हम प्रतिवर्ष खरबों टन चारा प्राप्त कर पाएंगे। प्राचीन रोजगार के प्राण समान गोवंश को एक बार की इस व्यवस्था से हजारों वर्षों तक चारा प्राप्त होता रहेगा। (सूचना - विकसित करने की कार्य पद्धति में परिवर्तन संभावित है) ( *2* ) भरपूर मात्रा में गोवंश की हत्या करने के पश्चात गोवंश के उपलों के इंधन की कमी हुई। इंधन की पूर्ति के लिए लोगों ने वृक्ष काटे। वृक्ष कटने से मिट्टी बह कर नदियों में चली गई। परिणामत: नदियों में पानी रुकना व जमीन में उतरना बंद हो गया।अतः सभी नदियों में से 10 से 40 फीट मिट्टी निकाल लेनी चाहिए। मिट्टी पुनः नदी में ना जाए इसलिए नदी की पाल पर और संपूर्ण गांव में गहराई की जड़ों वाले वृक्षों का रोपण करना होगा। तथा नदी की पाल पर और गांव की खाली जगहों पर घास उगानी होगी।
भारत में 6 लाख 50 हजार गांव है। जहां उपरोक्त यह दोनों प्रकार की व्यवस्था करने मात्र से ही 100 करोड़ लोगों को बिल्कुल सरलता पूर्वक रोजगार(व्यवसाय) उपलब्ध कराने के मार्ग खुल जाते हैं। मात्र 3 वर्षो की मेहनत से राष्ट्र को आर्थिक मजबूती के साथ अजेय शक्ति के रूप में निश्चित ही खड़ा कर सकते हैं। यह सभी व्यवसाय एक दूसरे की पूरक हैं। एक दूसरे की रक्षक हैं। एक दूसरे की पोषक हैं। अर्थात सभी मिलजुल कर ही यह सभी व्यवसाय(अर्थ पुरुषार्थ) कर सकते हैं। हर हाथ को काम देने वाली यह व्यवस्था जीवित रखकर एक गांव में 1500 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं । इस हिसाब से संपूर्ण भारत में 100 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं। आइए इसे हम विस्तार से देखते हैं....।
[ *सूत्र* :-- एक गांव में..... परिवार (5 सदस्य) के हिसाब से ...... लोगो को रोजगार प्राप्त होगा। संपूर्ण भारत (650000 गांव) मैं...... करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा।]
*✓ *कृषि* - कृषि के लिए सबसे महत्वपूर्ण गोबर के खाद की ओर पानी की उपरोक्त व्यवस्था होने से एक गांव में 200 परिवार के हिसाब से संपूर्ण भारत में 65 करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा।(200×5=1000×650000 = 65 करोड) *परिणाम* - धरती माता को बिना जहर का नुकसान पहुंचाए , लोगों को कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों से मुक्ति मिलेगी। किसान लगभग बिना पैसे लगाए आज की अपेक्षा कई गुना अधिक उत्पादन कर पाएंगे। युद्ध काल में अन्न भंडार, औद्योगिक क्षेत्र , जल भंडार (डेम) पर बम वर्षा कर दे तो उससे कई गांव व शहर बर्बाद हो सकते हैं। किंतु उससे अधिक नुकसान सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलने से होता है। अंततःभूखे मर रही जनता में विद्रोह होने की संभावना रहती है।
जिसे प्राचीन नदी, तालाब जैसी व्यवस्था से रोक सकते हैं। युद्ध के समय महंगे बमो की वर्षा शहरों पर ही होती है। किसी भी बम के सामने बम डाले जा सकते हैं। किंतु रक्षा के लिए गोमूत्र , गो दूध , घी से रोग प्रतिकार शक्ति बढ़ाने की आवश्यकता होगी । गोबर के यज्ञ की ,घर ऑफिस में गोबर के लिंपन की , खेत, जल भंडारों पर गोबर , गोमूत्र के भरपूर छिड़काव की आवश्यकता होगी।
*✓ *बैल घानी -* एक गांव में 2 बैल घानी के चलने से 2 परिवार के हिसाब से और शहरों में चलाई जाने वाली बैल घानी के हिसाब से संपूर्ण भारत में 1 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। घानी बनाने वालों के रोजगार अलग से। *परिणाम* - कोलस्ट्रोल बढ़ाने वाले केमिकल तेल से मुक्ति पाकर लाखों लोगों का जीवन हार्ट अटैक से बचेगा।
*✓ *चर्म उद्योग* - गोचर की व्यवस्था और पारंपरिक जल की व्यवस्था होगी तो भरपूर मात्रा में गोवंश होगा। इन गोवंश मैं कुदरती मृत्यु पाने वाले गोवंश से चमड़ा प्राप्त होगा। इस चमड़े से अनेक वस्तुएं बनाई जा सकती है। हर गांव में 10
दलित परिवार को यह रोजगार प्राप्त होगा। उसके हिसाब से 3 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - रोजगार प्राप्त होने से नशे से दूर रहेंगे। कोई उनकी शक्ति का दुरुपयोग नहीं कर पाएंगे।
*✓ *गुरुकुल* - पर्याप्त जगह के साथ प्राचीन पद्धति से शारीरिक व बौद्धिक शिक्षा देने वाले गुरुकुल हर गांव में 2 शुरू करें तो उससे 20 परिवार को रोजगार प्राप्त होगा उसके हिसाब से संपूर्ण भारत में 6.5 करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - 64 और 72 कलाएं सीख कर जीवन की संपूर्ण योग्यता प्राप्त करेंगे। संस्कार युक्त शिक्षा पाकर राष्ट्र,धर्म और संस्कृति के रक्षक बनेंगे। मोक्षलक्षी शिक्षा पाकर मनुष्य जन्म को सार्थक करेंगे।
*✓ *बैल गाड़ी* - जल्दी पहुंचने की अंधी दौड़ में गाड़ी चलाने हेतु विदेशों से पेट्रोल मंगाया जाता है। मांस के बदले पेट्रोल खरीदने के लिए राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार रूप गोवंश के लहू की नदियां बहाकर राष्ट्र को पीछे धकेला जाता है। इसकी अपेक्षा गांव के हर घर में अपनी स्वयं की बैल गाड़ी का उपयोग करके अर्थव्यवस्था मजबूत कर सकते हैं। बैलगाड़ी (घोड़ा गाड़ी, ऊंट गाड़ी) से रोजगार प्राप्त करने वाले हर गांव से 10 परिवार हो तो भारत भर में 65 लाख परिवार होते हैं और यही रोजगार की व्यवस्था शहरों में की जाए तो 35 लाख परिवार होते हैं। कुल हुए 1 करोड़ परिवार अर्थात 5 करोड लोगों को बैलगाड़ी से रोजगार प्राप्त हो सकता है। बैल गाड़ियां बनाने वालो को रोजगार अलग से। *परिणाम* - युद्ध , विश्व युद्ध के समय में रेलवे लाइनों और सड़कों के टूटने की संभावना रहती है। और वाहनों को चलाने के लिए पेट्रोल का आना भी बंद हो जाता है। उस समय में गांव के कच्चे रास्तों से बैल गाड़ीया ही प्रजा की और प्रजा के सामग्री को पहुंचाने के लिए बेड़ा पार कराती है। इसी कमी के कारण कई राष्ट्रों ने भूतकाल में पराजय प्राप्त की है। इस व्यवस्था से हम ही हमारी सेना को बचा सकते है। सभी को स्वयं के गांव में ही रोजगार मिल जाएगा तो अंधी दौड़ के द्वारा अरबों खरबों रुपए डीजल तेल के द्वारा विदेशों में जा रहे हैं। उस पर रोक लग जाएगी। पैसों में बचत होगी जीडीपी में सुधार होगा।
*✓ *सफेद सोना* - गोवंश का पालन पोषण होने से सफेद सोने का अर्थात घी का बहुत बड़ी मात्रा में उत्पादन करना सरल हो जाएगा। एक गांव में 20 परिवार के हिसाब से संपूर्ण भारत में 6.5 करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - नपुंसक बनाने वाला, खराब कोलस्ट्रोल से हार्ट अटैक लाने वाला डालडा व नकली घी के नाम पर धोखा देना बंद हो जाएगा।
*✓ *जुलाहा* -चरखा चलाकर मुख्यतः दलित बंधुओं के परिवार की महिलाओ द्वारा घर में ही सूत (धागा) बनाया जाए तो हर गांव से 20 परिवार संपूर्ण भारत से 6.5 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* -अहिंसक भाव मे वृद्धि होगी । हिंदू समाज में एकता बढ़ेगी।
*✓ *हथकरघा* - एक समय विदेशो में सोने के भाव कपड़ा बिकता था। हाथों से कपड़ा बनाने वालों को घर में ही रोजगार प्राप्त करा कर एक गांव से 20 परिवार संपूर्ण भारत से 6.5 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - शरीर ढकने के लिए किसी को अर्धनग्न नहीं रहना पड़ेगा। इस कपड़ा व्यवसाय को विदेशों में फैलाने का सुवर्ण अवसर प्राप्त होगा।
*✓ *जड़ी बूटि* - इस व्यवस्था से संपूर्ण भारत में जड़ी बूटि बहुत बड़ी मात्रा में उगेगी। विश्व में कहीं प्राप्त न होने वाली जड़ी बूटियां हमारे भारत में हैं। जिसे पहचान कर हर गांव से
10 परिवार संपूर्ण भारत से 3 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। हर गांव से 2 वैद्य राज के परिवार को रोजगार मिलेगा वह अलग से। *परिणाम* - कुदरत के इस प्रसाद का उपयोग करवाकर संपूर्ण विश्व को रोगमुक्त बनाने का सुवर्ण अवसर प्राप्त होगा।
*✓ *कुंभार* - घर बनाने के नाम पर गांव के लोगों से सीमेंट और लोहे की फैक्ट्री वाले करोड़ों अरबों रुपए ले जाते हैं। उस की अपेक्षा सभी को प्राप्त हो सके उस तरह के गोबर, चुना, गार, मिट्टी,मुढ के मकान बनाने को प्रोत्साहन देना चाहिए। यह घर बहुत ही कम कीमत में बना सकते हैं।ठंडी में गर्मी देने वाले और गर्मी में ठंडक देने वाले कुदरत के अनुकूल होते हैं। यह घर 200 से 500 वर्ष का आयुष्य रखने वाले होते हैं। भूकंप से रक्षा करने वाले होते हैं। इसके साथ रसोई में काम आने वाले मिट्टी के सारे बर्तन, छत पर लगने वाले केलुड़े, खिलौने इत्यादि का निर्माण कर सकेंगे। 1 गांव से 15 परिवार के हिसाब से संपूर्ण भारत में 5 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* -किसी को भी मानव भंगार बनकर झुपड़पट्टी में नहीं रहना पड़ेगा।
*✓ *कंसारा* - रसोई में काम आने वाले सभी तांबा,पीतल, कांसा जेसी धातु के बर्तन हाथों से बनाकर रोजगार प्राप्त करने वाले एक गांव से 10 परिवार के हिसाब से संपूर्ण भारत में 3 करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा।
*परिणाम* -इन बर्तनों के उपयोग से स्वास्थ्य में बहुत लाभ होता है। इन बर्तनों में लगाए हुए पैसे एक इन्वेस्ट के रूप में उपयोगी होंगे।
*✓ *लोहार* - घर में, कृषि में, युद्ध केऔजार,गांव के हर एक के व्यापार में जो लोहे की सामग्री लगती है। इत्यादि। उसे अपने घर की भट्टी में लोहे को पिघलाने से लेकर सभी सामग्री को हाथों से बनाने का व्यवसाय करने वाले एक गांव मे 10 परिवार के हिसाब से संपूर्ण भारत मे 3 करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - यह व्यवसाय करने वाले बंधुओं के शरीर लोहे जैसे मजबूत बन जाते हैं।
*✓ *हैंडमेड पेपर* -स्कूल,कॉलेज,ऑफिस,अखबार इत्यादि में काम आने वाले पेपर वृक्ष के वेस्ट पत्तों से कम पानी का उपयोग करके बना सकते हैं। मशीन का उपयोग किए बिना हाथों से यह पेपर तैयार कर सकते हैं। यह रोजगार एक गांव से 10 परिवार उसके हिसाब से संपूर्ण भारत में 3 करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - कुदरत के अनुकूल और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना बनाए जा सकेंगे।
*✓ *गुड़ शक्कर* -भयंकर बीमारियों से बचने के लिए बिना जहर से उत्पादन करने वाले गृह उद्योग से एक गांव में 10 परिवार तो उसके हिसाब से संपूर्ण भारत में 3 करोड लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - बहुत ही अच्छी क्वालिटी के गुड़, शक्कर की सभी सामग्रियों का उत्पादन करवा सकेंगे।
*✓ *ऊन* - जल व गोचर की व्यवस्था से भरपूर मात्रा में भेड़ बकरियां होगी उनके शरीर पर जो बाल होते हैं। यह असली ऊन कहलाती है। जिसके वस्त्र व अन्य सामग्रियां तैयार करने वाले हर गांव से 20 परिवार के हिसाब से संपूर्ण भारत में 6.5 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। *परिणाम* - ठंडी से मर रहे लोगों की रक्षा होगी। चमड़ी के रोग उत्पन्न करने वाले नकली ऊन से रक्षा होगी।
*✓ *नमक* - संपूर्ण भारत के समुद्री किनारे पर रहने वाले 2 करोड़ लोगों से प्राचीन पद्धति के अनुसार नमक तैयार करवाकर इन्हें मच्छीमारी के हिंसक कार्य से छुटकारा दीला सकते हैं। *परिणाम* - हल्के , केमिकल वाले , लूटने वाली कंपनियों से प्रजा को छुटकारा मिलेगा।
*✓ *अन्य* - बढ़ई (लकड़ी का कार्य) , सोनी(सोना ,चांदी का कार्य) , दर्जी(कपड़ा सिलाई कार्य) , मोची(जूता चप्पल कार्य) , नाई(बाल काटना) , पेंटर(कलरकार्य) , सराफा(पैसों की लेनदेन) , चरवाहा(गोवंश चराना) , कंदोई(मिठाई व रसोई कार्य) , भामभी(प्रचार कार्य) , ढोली(ढोल बजाना कार्य) *परिणाम* - यह सभी और अन्य कई तरह के रोजगार के संभावना की सूची बनाएंगे तो 200 करोड़ के ऊपर जाएगी।
*✓ *विकेंद्रित व्यवस्था ही चक्रव्यूह से निकाल सकती है...।*
लुप्त की गई उपरोक्त रोजगार की जानकारी संपूर्ण नहीं है।
जो समय पर सामने आ जाएगी। रोजगार की यह संख्या
कहीं कम अधिक हो सकती है। किंतु कुल संख्या का अंदाज यही है। यह सभी व्यवसाय जहां आवश्यकता हो वहीं उत्पादन होने से ट्रांसपोर्टिंग के खर्च से व प्रदूषण से रक्षा होगी। राष्ट्र को अनावश्यक खरबो रुपयों के तेल के नुकसान से बचत होगी।
मुस्लिम और अंग्रेज आक्रांताओं ने जो लूटा उससे अनेकों गुना अधिक यंत्र उद्योगों से कुछ हजार लोगों द्वारा लूटा जा रहा है। यह उद्योग राष्ट्र को आर्थिक कमजोर करते हुए भयंकर बेरोजगारी और हमेशा की गुलामी की खाई में धकेल रहे हैं। ऐसा विकास किस काम का जो हम 99% भाई बंधुओं का शोषण करके, पीछे धकेल कर, गरीब बना कर, उनकी रोजी-रोटी छीन कर करोड़पति बन जाए। इससे बनावटी सुखी बन सकते हैं । वास्तविक शांति नहीं पा सकते।
राष्ट्र की रक्षा प्राचीन उद्योगों को प्रोत्साहन देकर ही कर सकते हैं। अनाज, घी, दूध, इंधन, पानी की कमी, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, गरीबी, हिंसा, रोटी, कपड़ा, मकान इत्यादि इन सभी समस्याओं के चक्रव्यूह से उपरोक्त गोचर और पानी की व्यवस्था स्थापित करके ही निकल सकते हैं । यही विकेंद्रित व्यवस्था भारत माता को पुनः परम वैभव के शिखर पर बिराजमान कर सकती है।