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गुरुवार, 14 मार्च 2013

अपराजिता से उपचार:

अपराजिता से उपचार:
Megrin, Clitorea Ternatea 


परिचय : अपराजिता, विष्णुकांता गोकर्णी आदि नामों से जानी जाने वाली सफेद या नीले रंग के फूलों वाली लता है जो सुंदरता के लिए पार्कों और बगीचों में लगाई जाती है। इसमें बरसात के सीजन में फलियां और फूल लगते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत आस्फोता, गिरि, विष्णुक्रान्ता, गिरीकर्णी, अश्वखुरा
हिंदी कोयल, अपराजिता।
बंगाली अपराजिता।
मराठी गोकर्णी, काजली, ना
कर्णी, काली, पग्ली सुपली।
गुजराती चोली गरणी, काली गरणी।
तेलगू नीलंगटुना दिटेन।
द्राविड़ी करप्पुका, कट्टान विरै।
अरबी माजरि, यून।
फारसी अशखीस।
अंग्रेजी मेजरीन।
लैटिन क्लीटोरिया टरनेटिया
बाहरी स्वरूप : अपराजिता सफेद और नीले रंग के फूलों के भेद से दो प्रकार की होती है। नीले फूल वाली अपराजिता भी दो प्रकार की होती है : पहली इकहरे फूल वाली तथा दूसरी दोहरे फूल वाली। इसके पत्ते छोटे और आमतौर पर गोल होते हैं। इसकी पर्वसन्धि से एक शाखा निकलती है, जिसके दोनों ओर तीन-चार जोडे़ पत्ते गुच्छे में निकलते है और आखिरी सिरे में एक ही पत्ता होता है। इस पर मटर की फली के समान लम्बी और चपटी फलियां लगती हैं।
गुण : दोनों प्रकार की कोयल (अपराजिता) चरपरी (तीखी), बुद्धि बढ़ाने वाली, कंठ (गले) को शुद्ध करने वाली, आंखों के लिए उपयोगी होती है। यह बुद्धि या दिमाग और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली है तथा सफेद दाग (कोढ़) मूत्रदोष (पेशाब की बीमारी), आंवयुक्त दस्त, सूजन तथा जहर को दूर करने वाली है।

विभिन्न रोगों में अपराजिता से उपचार:

1 सिर दर्द :- अपराजिता की फली के 8-10 बूंदों के रस को अथवा जड़ के रस को सुबह खाली पेट एवं सूर्योदय से पूर्व नाक में टपकाने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है। इसकी जड़ को कान में बांधने से भी लाभ होता है।

2 आधाशीशी, आधे सिर का दर्द, माइग्रेन :- *अपराजिता के बीजों के 4-4 बूंद रस को नाक में टपकाने से आधाशीशी का दर्द भी मिट जाता है।
*अपराजिता के बीज शीतल और विषनाशक होते हैं। इसके बीज और जड़ को एक समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर नाक में टपकाने से आधासीसी दूर होता है।
*श्वेत अपराजिता की जड़ के रस को सूंघने से आधासीसी का दर्द बंद हो जाता है।
*खांसी और बच्चों की कुकर खांसी यानी कुत्ता खांसी में लाभ होता है।"

3 गलगण्ड (घेंघा) :- सफेद अपराजिता की जड़ के एक से दो ग्राम चूर्ण को घी में मिलाकर पीने से अथवा कड़वे फल के चूर्ण को गले के अन्दर घर्षण करने से गलगण्ड रोग शांत होता है।

4 स्वर भंग (गले में खराश) :- 10 ग्राम अपराजिता के पत्ते, 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर आधा शेष रहने पर सुबह-शाम गरारे करने से, टांसिल, गले के घाव तथा स्वरभंग में लाभ होता है।

5 कामला या पीलिया :- *पीलिया, जलोदर और बालकों के डिब्बा रोग में अपराजिता के भूने हुए बीजों के आधा ग्राम के लगभग महीन चूर्ण को गर्म पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन कराने से पीलिया ठीक हो जाती है।
*कामला में अपराजिता की जड़ का 3-6 ग्राम चूर्ण छाछ के साथ देने से लाभ मिलता है। "

6 बच्चों का पेट दर्द :- अफारा (पेट में गैस बनना) या डिब्बा रोग पर इसके 1-2 बीजों को आग में भूनकर गाय के दूध अथवा घी के साथ बच्चों को देने से शीघ्र लाभ होता है।

7 मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कठिनाई ) :- अपराजिता के सूखे जड़ के चूर्ण के प्रयोग से गठिया, मूत्राशय की जलन और मूत्रकृच्छ का नाश होता है। 1-2 ग्राम चूर्ण गर्म पानी या दूध से दिन में 2 या 3 बार प्रयोग करने से लाभ होता है।

8 प्लीहा वृद्धि (बढ़ी हुई तिल्ली) :- अपराजिता की जड़ बहुत दस्तावर है। इसकी जड़ को दूसरी दस्तावर और मूत्रजनक औषधियों के साथ देने से बढ़ी हुई तिल्ली और जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) आदि रोग मिटते हैं तथा मूत्राशय की जलन भी मिटती है।

9 अंडकोष वृद्धि :- अपराजिता के बीजों को पीसकर गर्म कर लेप करने से अंडकोष की सूजन बिखर जाती है।

10 गर्भस्थापना (गर्भ ठहराने के लिए) :- सफेद अपराजिता की लगभग 5 ग्राम छाल को अथवा पत्तों को बकरी के दूध में पीस-छानकर तथा शहद मिलाकर पिलाने से गिरता हुआ गर्भ ठहर जाता है तथा कोई पीड़ा नहीं होती है।

11 सुख प्रसव :- कोयल की बेल को स्त्री की कमर में लपेट देने से शीघ्र ही प्रसव होकर पीड़ा शांत हो जाती है।

12 सूजाक :- *अपराजिता की जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम तक, शीतल चीनी 1.5 ग्राम, कालीमिर्च एक, तीनों को पानी के साथ पीसकर तथा छानकर सुबह-सुबह 7 दिनों तक पिलाने से या मूत्रेन्द्रिय को उसमें डुबोये रखने से सूजाक में शीघ्र लाभ होता है।
*अपराजिता की 5 ग्राम जड़ को चावलों के धोवन के साथ पीस-छानकर कुछ दिन सुबह-शाम पिलाने से मूत्राशय की पथरी कट-कट कर निकल जाती है।"

13 बुखार :- लाल सूत्र के 6 धागों में अपराजिता की जड़ को कमर में बांधने से तीसरे दिन आने वाला बुखार छूट जाता है।

14 श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) :- श्वेत कुष्ठ तथा मुंह की झांई पर अपराजिता की जड़ 20 ग्राम, चक्रमर्द की जड़ 1 ग्राम, पानी के साथ पीसकर, लेप करने से लाभ होता है। इसके साथ ही इसके बीजों को घी में भूनकर सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से डेढ़ से 2 महीने में ही श्वेत कुष्ठ में लाभ हो जाता है। अपराजिता की जड़ की राख या भस्म को मक्खन में घिसकर लेप करने से मुंह की झांई दूर हो जाती है।

15 श्लीपद (हाथीपांव) :- श्लीपद व नहारू पर अपराजिता की 10-20 ग्राम जड़ों को थोड़े पानी के साथ पीसकर, गर्म कर लेप करने से तथा 8-10 पत्तों की लुगदी की पोटली बनाकर सेंकने से लाभ होता है।

16 व्रण, जख्म या घाव :- हथेली या उंगलियों में होने वाला अत्यंत पीड़ायुक्त जख्म पर अपराजिता के 10-20 पत्तों की लुगदी को बांधकर ऊपर से ठंडा पानी छिड़कते रहने से जख्मों में अति शीघ्र लाभ होता है।

17 फोड़ा :- सिरके के साथ इसकी 10-20 ग्राम जड़ को पीसकर लेप करने से उठते हुए फोड़े फूटकर बैठ जाते हैं।

18 खांसी :- *अपराजिता के बीजों को सेंककर, चूर्ण बनाकर उसमे 60 से 120 मिलीग्राम गु़ड़ और थोड़ा सा सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से खांसी और श्वांस (सांस) के रोग में लाभ मिलता है। इससे दस्त के साथ बलगम शरीर से बाहर निकल जाता है जिसके कारण रोगी को बहुत आराम मिलता है।
*कफ विकार (बलगम के रोगों) में बच्चों को अपराजिता की जड़ को दूध में घिसकर रोजाना आधा से 1 चम्मच दिन में 3 बार देने से लाभ होता है।"

19 पेशाब की बीमारी में :- मूत्राशय की सूजन में अपराजिता की फांट (घोल) सुबह-शाम खाने से लाभ होता है।

20 कान में सूजन एवं जलन :- कान के चारों ओर अगर सूजन आने की वजह से नसें बढ़ गई हो तो अपराजिता के पत्तों को सैन्धव (सेंधानमक) के साथ पीसकर लगाने से लाभ होता है।

21 जिगर का रोग :- अपरजिता के बीजों को भूनकर, कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म पानी से सुबह-शाम सेवन करें, इससे यकृत वृद्धि मिट जाती है।

22 जलोदर (पेट में पानी का भरना) :- *अपराजिता की जड़ की छाल को डेढ़ से 3 ग्राम की मात्रा में पीसकर पीने से मूत्र के द्वारा पेट साफ हो जाता है।
*अपराजिता की जड़, शंखपुष्पी की जड़, दन्तीमूल और नील की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर रख लें, फिर 6 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी में पीसकर 40 ग्राम की मात्रा में गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से जलोदर में लाभ होता है।"

23 त्चचा के रोग :- अपराजिता के पत्तों का फांट (घोल) सुबह और शाम पिलाने से त्वचा सम्बंधी सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

24 पसीने से दुर्गन्ध आना :- 10 मिलीलीटर अपराजिता के पत्तों का रस अदरक के रस के साथ मिलाकर पीने से पसीना रुक जाता है। यह पसीना रोकने का बहुत ही उत्तम नुस्खा है।


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Jai shree krishna

Thanks,

Regards,


कैलाश चन्द्र  लढा(भीलवाड़ा)
www.sanwariya.webs.com
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