22 साल का एक 'रोहन' है जो एक मिडिल क्लास फैमिली से है (जाहिर है)। उसका सपना है कि उसका एक घर हो जिसे वह घर कह सके।
रोहन 22 साल की उम्र में एक अच्छी एमएनसी में अपना करियर शुरू करता है। उसे यकीन है कि अब वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा।
एक साल के बाद, वह अपनी नौकरी से खुश है और सोच रहा है कि डाउन पेमेंट देकर वह एक घर खरीद ले।
वह इस बात से मुग्ध है कि महज 23 साल की उम्र में उसने एक घर खरीद लिया है जिसे वह 'घर' कह सके।
वह 20 साल की ईएमआई होम लोन लेता है।(सिर्फ भावनाओं में आकर)
स्रोत: गूगल इमेजेज
उसके माता-पिता खुश हैं। वह एक बढ़िया और लजीज़ इंस्टाग्राम पोस्ट डालना शुरू कर देता है। उसके दोस्त थोड़े ईर्ष्यालु हैं। वह अपनी उन चीजों के बारे में शेखी बघारने लगता है जिन्हें वह हांसिल कर चुका है और खुद को 'कामयाब' बताने लगता है।
3 साल बाद अभी भी उसी कंपनी में अच्छी कमाई कर रहा है। अब वह सोच रहा है कि ईएमआई पर कार खरीद ली जाए क्योंकि कार को अपनाने का सपना बड़े अरमानों से संजोए रखा था। ( बस भावनाओं में आकर)
वह 5 साल की ईएमआई कार लोन पर एक कार खरीद लेता है।
वह खुश है। वह सफल है। वह विदेशों की सैर कर रहा है। उसकी एक प्रेमिका है (हो भी क्यों नहीं)।
उससे जलने वाले यार- दोस्त भी ऐसा ही करते जाते हैं। वे भी लोन पर एक घर और एक कार खरीदते हैं। (भावनाओं में ही)
लेकिन
3 साल बाद, उसे लगने लगता है कि उस पर ऑफिस की कोई सियासत चल रही है। उसे लगता है कि इस एमएनसी कंपनी में काम करने के तौर तरीके बिगड़ गए है। उसे प्रमोशन भी नहीं मिल रहा है।
वह अभी भी उसी कंपनी के साथ सिर्फ इसलिए जुड़ा हुआ है क्योंकि उससे कर्ज की रस्सी बंधी हुई है। वह बहुत कुछ सहता रहता है और आखिर में कंपनी बदलने का फैसला के ही लेता है।
अब वह 3 महीने से नौकरी की तलाश में है। वह अपनी बचत से अपनी ईएमआई पे कर रहा। किसी प्रतिष्ठित एमएनसी में नौकरी नहीं मिलने के कारण वह उदास सा रहने लगा है।
वह किसी छोटे मोटे कंपनी में नौकरी नहीं करना चाहता क्योंकि उसके स्टैंडर्ड ऊंचे ही रहते हैं। वह केवल टॉप लेवल की एमएनसी चाहता है।
9 महीने बीत जाते हैं। उनकी बचत लगभग खत्म हो चुकी है। आखिरकार उसे अपना घर और कार किसी और को बेचनी पड़ती है। वह आखिरकार अपने कर्ज के जाल से बाहर आ गया है। वह पुराने महफ़िल में वापस आ गया है।
किसी चीज को खरीदना बस एक भावनात्मक निर्णय है, तार्किक निर्णय नहीं।
ये जो कुछ कहा वही इस सवाल का जवाब है। हम चीजें इसलिए खरीदते हैं क्योंकि उससे हमारा जज्बाती जुड़ाव होता है, और कुछ नहीं।
जब चीजें खरीदने की बात आती है तो ज्यादातर लोग 'रोहन' की तरह हो जाते हैं।
हम एक अच्छा हेडफोन (4 हजार की कीमत का) सिर्फ इसलिए खरीदते हैं क्योंकि यह हमें एक अच्छा स्टेटस सिंबल देता है।
हम आई फोन खरीद लेते हैं।
हम ऐसी चीजें खरीदते रहते हैं, अपने जरूरत के लिहाज से नहीं , सिर्फ इसलिए क्योंकि हमने जिंदगी भर उसकी तमन्ना अपने खाबों में रखी है।
(वैसे किसी रोहन से मेरा कोई गिला-शिकवा है नहीं)
अपडेट
जो लोग इस उत्तर पर शक कर रहे हैं, उनके लिए उनसे मेरी कोई दो राय नहीं। मैं किसी ऐसे व्यक्ति की तस्वीर दिखा रहा हूं जो ठीक ऐसे काम करता है जो लगभग हर कोई करता है।
कैश फ्लो होते ही वह चीजें खरीदना शुरू कर देता है। वह ब्रांडेड ईयरफोन या आईफोन की तरह "छोटी चीजों" (जो असल में छोटी नहीं हैं) से शुरू करते हैं।
(मैंने अपने एक दोस्त से कभी पूछा था कि ऐसा क्यों कर रहे हैं? उसका जवाब था कि वह जिंदगी के मजे ले रहा है और खुद पर ही पूरे वेतन को खर्च करना चाहता है।)
चीजों का पैमाना छोटा हो तब तो ठीक है।
पर यह बढ़ते चला जाता है और वह ऐसी चीजें खरीदते जाते हैं जो उसके कैश फ्लो की पहुंच से बाहर भी हो जाती है।
मेरा कहना यह है कि अगर आप सच में घर या कार खरीदकर अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं, तो आप कैश फ्लो के बारे में कुछ क्यों नहीं करते?
अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी तरह के होम लोन पर निर्भर क्यों रहें?
आप ये बात सुनकर चिढ़ जाएंगे, मगर सच्चाई यही है कि सीधे नगद से कुछ करने के लिए आपके पास गट्स नहीं हैं। आप और भी जोर नहीं लगाना चाहते हैं। आप कोई आसान रास्ता निकालना चाहते हैं। ऊपर बताया गया व्यक्ति कोई मूर्ख नहीं था, वह भावुक था।
एक कहावत है "जो व्यक्ति अपनी नब्ज को बेहतर तरीके से संभाल ले, फिर हिसाब से फैंसले ले वह किसी भी होड़ मे मुकाम हांसिल कर ही लेता है।"
आप भी हीरे की खान खोद सकते हैं?
पढ़ने के लिए शुक्रिया !!
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