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बुधवार, 10 मई 2023

द केरला स्टोरी का सबसे भयावह दृश्य कौनसा था? समीक्षा

द केरला स्टोरी का सबसे भयावह दृश्य कौनसा था? 
गोलियों की बरसात.. धमाके, गला काटना, हाथ काटना,  औरतों को जंजीरों में बांधकर बेचा जाना.... यह सब चल रहा था। मेरे लिए यह नॉर्मल था। आखिर इस्लामिक स्टेट में इससे अलग होना भी क्या था? मध्यकाल में भारत ने तो इससे भयंकर क्रूरताएँ झेली हैं। 

लेकिन मेरा कलेजा मुँह को आ गया था.. जब मजहबी 'दोस्त' के बहकावे में कन्वर्ट हो चुकी लड़की प्रॉपर्टी हासिल करने के लिए हॉस्पिटल में मरणासन्न पड़े अपने पिता से मिलने जाती है और उनके चेहरे पर थूक देती है! 

वह पिता जो शान से कॉमरेड हुआ करता था..लेकिन बेटी के कन्वर्ट होने पर जिसे हार्ट अटैक आ गया। क्यों? क्योंकि सच को सब जानते हैं और अपने फायदे के लिए दूसरे के बच्चों को मौत के मुँह में झोंक देते हैं लेकिन अपने बच्चे के साथ मजहब क्या करेगा यह उस बाप को भी पता था जिसके घर में मार्क्स, लेनिन, स्टॅलिन के बड़े-बड़े पोस्टर चिपके थे।

मैं रोई कब? अगेन... ब्लैकमेल, खून , बलात्कार, आतंकवाद.. जो अवश्यंभावी है उसे देखते हुए कलेजा कड़ा रहता है मेरा लेकिन इस सबसे पहले मेरे आँसू फूट पड़े थे.. जब स्क्रीन पर एक प्यारी सी, प्यार भरी बूढ़ी दादी आई थी। जब यह दादी अपनी चिड़िया जैसी मासूम पोती को हाथों से कौर खिला रही थी, उसे स्नेह से गोदी में सुला रही थी,मैं भीतर से फूट पड़ी थी कि इस प्यारी सी चिड़िया के पंख क्रूरता से नोंच दिए जाएंगे! क्या बीतेगी उस दादी पर? क्या बीतती होगी असल में उन परिवारों पर? 

अक्सर सिनेमा इतिहास बताते हैं लेकिन कुछ सिनेमा खुद इतिहास बनाते हैं। 'द केरला स्टोरी' ऐसा सिनेमा है जो इतिहास बनाने जा रहा है। इसमें इतनी क्षमता है कि यह केवल कुछ हजार या लाख लड़कियों को ही नहीं बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों को आतंकवाद से बचाकर उनका जीवन संवार सकता है। 

कोई फिल्म महान कब होती है? अपनी कलात्मकता से.. कथ्य से या अभिनय जैसे पहलुओं से? लेकिन मेरी दृष्टि में वह फिल्म महान है जो अपने विषय को दर्शक के मन मस्तिष्क में पूरी तरह उतार दे और 'द केरला स्टोरी' इसीलिए एक महान फिल्म दस्तावेज है... सो कॉल्ड करिश्माई सिनेमेटिक सौंदर्य न होने के बावजूद। 

यह फिल्म 100% कड़वा सच है। देश भर में प्यार के नाम पर चल रहे आतंकवाद का घिनौना सच। ये आतंकवादियों की मोडस ओपेरैंडी को अच्छी तरह खोलकर उन मासूम बच्चियों को समझा देती है जो हर कदम पर इनका शिकार हैं। 
आप फिल्म देखने जाएँ तो बारीकियों पर नजर रखिए। यह फ़िल्म किसी मनोवैज्ञानिक की तरह उनकी हर एक हरकत को उघाड़कर दिखा रही है।

जैसे, जो 'प्रेमी' कल तक लड़की के सैंडिल हाथ में उठाकर चल रहा था वही आतंकवाद में शामिल न होने पर उसी लड़की के न्यूड्स दुनियाभर में वायरल कर देता है। उसके पूरे परिवार को बर्बाद कर उसे आत्महत्या के लिए मजबूर कर देता है। यह उन लड़कियों की आँखें खोल सकता है जिनका "मेरा अयाज़/फरहान/आतिफ/ सूफी सबसे अलग है।" 
इस फिल्म में आतंकी वैसे ही दिखाए गए हैं जैसे वास्तविकता में होते हैं- बिल्कुल साफ सुथरे, पढ़े-लिखे, हाईफाई, गुड लुकिंग, चार्मिंग, वेल मैनर्ड।

किसी की बड़ी सटीक टिप्पणी पढ़ी कि 'द केरला स्टोरी' असल में 'द कश्मीर फाइल्स' का प्रीक्वल है। पहले किसी क्षेत्र में केरल की तरह जनसंख्या बदलती  है और अंततः कश्मीर का पलायन और नरसंहार सामने आता है। 

फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन , प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह, लेखक सूर्यपाल सिंह शाबाशी के हकदार हैं। उन्होंने इस आतंकवाद की मैथडोलॉजी बताई है। हम कहाँ चूक रहे हैं इसे भी समझाया है।

फिल्म को चारों लड़कियाँ अपने कंधों पर अच्छे से लेकर चली हैं। अदा शर्मा की हिम्मत और एक्टिंग, दोनों अप्रतिम हैं। एक्टिंग का मतलब आड़े-टेढ़े मुँह बनाना ही नहीं होता। वह इतनी भोली लगी है... ज्यों अनजाने में पागल कुत्तों के झुंड की ओर भागता गाय का बछड़ा ! 

फिल्म का संगीत और बैक ग्राउंड समीचीन है। असरदार है। कुछ flaws हर चीज में होते हैं। बलात्कार दृश्यों की क्रूरता दिखाने के लिए रियलिस्टिक फिल्माया गया है। लेकिन ये प्रतीकात्मक होते तो 13-14 वर्ष की बच्चियों को भी साथ बैठाकर फिल्म दिखाई जा सकती थी। खैर, OTT रिलीज के बाद माता पिता स्वविवेक से कुछ दृश्यों के अलावा पूरी फिल्म किशोरों को दिखा और समझा सकते हैं।

द केरला स्टोरी देखिए। सक्षम हों तो औरों को भी दिखाइये। यह  फिल्म नहीं, जीवन रक्षक वैक्सीन है। सुनिधि चौहान का पूरे मन से गाया टाइटल ट्रैक इसकी पूरी कहानी को सिरे से बयां कर रहा है:

ना ज़मीं मिली, ना फ़लक मिला, 
है सफ़र में अंधा परिंदा
जिस राह की मंज़िल नहीं, 
वहीं खो गया होके गुमराह

ज़िंदान को उड़ान समझ बैठा,
एक बार भी मुड़ के ना देखा
हरे पेड़ों की शाख़ें छोड़ आया
मासूम को किसने बहकाया?

हरियाली वो राहों में आती रहीं
राहें तक़रीरें रोज़ सुनाती रहीं
ना दुआ मिली, ना मिला ख़ुदा
हुआ क़ैद पागल परिंदा

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