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रविवार, 6 नवंबर 2011

हम अपने देश को विदेशियों पर निर्भर रहने का पाठ पढा रहै हैं। -Sharad Harikisanji Panpaliya

विज्ञान के क्षेत्र में सब से पहले संसार में मौलिक ज्ञान भारत में ही विकसित हुआ था। उस के बाद मिस्त्र, चीन, मेसोपोटेमियां और यूनान की प्राचीन सभ्यतायें पनपी थीं मगर आज वह देश विज्ञान के क्षेत्र में पीछे रह चुके हैं। उसी प्राचीन विज्ञान को रिनेसां के बाद इंगलैणड वासियों ने अपने टेकनिकल विकास और मेहनत के बल पर अंग्रेजी भाषा में अपनाया और विश्व पर राज किया। अंग्रेजी भाषा के कारण ही उन का प्रभुत्व आज भी कायम है कियों कि उन्हों ने अंग्रैजी के गुलामों की जनसंख्या सभी देशों में पैदा करी थी। भारत में वह संख्या आज भी बढ ही रही है क्यों कि हमारे नेताओं में देश के लिये स्वाभिमान नहीं के बराबर है।

क्या हम ने कभी यह भी सोचा है कि हम बाहर से युद्ध का आधुनिक साजो - सामान, कम्पयूटर के उपकरण और साफ्टवेयर ले कर अपने देश को विकसित करने की अन्धा धुन्ध होड में तो लगे हुये हैं लेकिन अगर टेकनोलोजी देने वाले देश उन उपकरणों को ही बदल डालें या उन में कोई विशेष तबदीली कर दें जो हमारी समझ से बाहर हो तो हम क्या करें गे। जिस शाख पर बैठ कर हम गर्व से फूले नहीं समा रहै अगर उन देशों ने वह शाख ही काट दी तो हम ऐक ही झटके में नीचे गिर जाये गे। इस तरह के खतरे को दूर करने के लिये टेकनोलोजी में आत्म निर्भरता होनी नितान्त आवश्यक है – हम सिर्फ दूसरों की टेकनोलोजी की नकल करते हैं वह भी उन्हीं से सीख कर। हम अपने देश को विदेशियों पर निर्भर रहने का पाठ पढा रहै हैं।

हम टेकलोलोजी में तब तक आत्म निर्भर नहीं हो सकते जब तक हम अपनी भाषा और अपनी मौलिक जानकारी को आधार बना कर उसे विकसित नहीं करें गे । आधार बनाने के लिये आज भी संस्कृत में हमारे पास ज्ञान विज्ञान के खजाने भरे पडे हैं जिन्हें हमारे युवाओं और मैकाले परिशिक्षत बुद्धिजीवी बुद्धुओं ने देखा भी नहीं। आज हमारे संस्कृत ग्रंथों की मांग विदेशों में बढ रही है लेकिन भारत में कांग्रेसी सरकार संस्कृत के बदले उर्दू के प्रसार पर करोडों रुपये खर्च कर रही है जिस से हिन्दी का विकास और भी रुक जाये गा । आप के विकास का रास्ता अंग्रेजी से नहीं हिन्दी और संस्कृत को अपनाने से हो कर ही जाये गा। यह फैसला आप खुद करें और सरकार को भी वैसा करने के लिये मजबूर करें। यह मत भूलें कि काँग्रेस की सरकार विदेशियों की सरकार विदेशियों के लिये ही सोचती है।
-Sharad Harikisanji Panpaliya
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

माँ

माँ

१. ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आश्मां कहते हैं, जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं.......
२. बचपन में गोद देने वाली को बुढापे में दगा देने वाले मत बनना.......
३. जिन बेटों के जन्म पर माँ-बाप ने हंसी-खुशी पड़े बांटे..... वही बेटे जवान होकर कानाफूसी से माँ-बाप को बांटे...हाय ये केसी करुणता है!
४. माँ! पहले आंसू आते थे और तू याद आती थी. आज तू याद आती है और आंसू आते हैं.
५.माँ! कैसी हो...?" इतना ही पुच उसे मिल गया सब कुछ.....
६.मंगलसूत्र बेच कर भी तुम्हें बड़ा करने वाले माँ-बाप को ही घर से निकालने वाले ऐ नौजवान! तुम अपने जीवन में अमंगाल्सुत्र शुरू कर रहे हो....
७. माँ, तूने तीर्थंकरों को जना है, संसार तेरे ही दम से बना है, तू मेरी पूजा है, मन्नत है मेरी, तेरे ही क़दमों में जन्नत है मेरी.....
८. बटवारे के समय घर की हर चीज पाने के लिए झगडा करने वाले बेटे, दो चीजों के लिए उदार बनते हैं, जिनका नाम है माँ-बाप....
९. माता-पिता क्रोधी हैं, पख्य्पाती हैं, शंकाशील हैं ये साड़ी बातें बाद की हैं. पहली बात तो ये है की....वो माता-पिता हैं.
१०. घर में वृद्ध माँ-बाप से बोले नहीं, उनको संभाले नहीं और वृधाश्रम में दान करे, जीवदय में धन प्रदान करे उसे दयालु कहना....वो दया का अपमान है.
११. जो मस्ती आँखों में है मदिरालय में नहीं, अमीरी दिल की कोई महालय में नहीं, शीतलता पाने के लिए कहाँ भटकता है मानव! जो माँ की गोद में है, वह हिमालय में नहीं....!
१२. बचपन के आठ साल तुझे अंगुली पकड़ कर जो माँ-बाप स्कूल ले जाते थे, उन माँ-बाप को बुढ़ापे के आठ साल सहारा बन कर मंदिर ले जाना... शायद थोडा-सा तेरा क़र्ज़ थोडा-सा तेरा फ़र्ज़ पूरा होगा.
१३.माँ-बाप को सोने से ना मडो, तो चलेगा. हीरे से ना जड़ो, तो चलेगा. पर उनका जिगर जले और अन्दर आँसूं बहाए, यह कैसे चलेगा?
१४. जब छोटा था, तब माँ की शय्या गीली रखता था, अब बड़ा हुआ, तो माँ की आँखें गीली रखता है. हे पुत्र! तुझे माँ को गीलेपन में रखने की आदत हो गयी है...
१५. माँ-बाप की आँखों में दो बार आँसूं आते हैं, लड़की घर छोड़े तब....लड़का मुह मोड़े तब....
१६. माँ और माफ़ी दोनों एक हैं क्योंकि माफ़ करने में दोनों नेक हैं....
१७. कबूतर को दाना डालने वाला बेटा अगर माँ-बाप को दबाये तो...उसके दाने में कोई दम नहीं....
१८. माँ-बाप की सच्ची विरासत पैसा और प्रसाद नहीं, प्रमाणिकता और पवित्रता है....
१९. बचपन में जिसने तुम्हें पाला, बुढ़ापे में उसको तुमने नहीं संभाला तो याद रखो...तुम्हारे भाग्य में भड़केगी ज्वाला
२०. माँ-बाप को वृधाश्रम में रखने वाले ऐ नौजवान! तनिक सोच कि, उन्होंने तुम्हें अनाथश्रम में नहीं रखा, उस भूल की सजा तो नहीं दे रहा है ना.....
२१. ४ वर्ष का तेरा लाडला यदि तेरे प्रेम की प्यास रखे तो पचास वर्ष के तेरे माँ-बाप तेरे प्रेम की आस क्यों ना रखें...
२२. घर में माँ को रुलाये और मंदिर में माँ को चुंदरी ओधए... याद रख... मंदिर की माँ तुझ पर खुश तो नहीं...शायद khapha jarur hogi.....!!!!

ek roti koi de na saka us masoom ko

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अहिंसा परमो धर्मं

मायावती ने यू॰पी॰ मे 8 अत्याधुनिक कत्लखाने के लिए जो टेंडर मंगवाएँ है उसमे ऐसी म...शीनों का प्रयोग होगा जो 1 दिन मे हजारो मवेशियों की 'हत्या' करेगी एक ऐसी मशीन है जिसमे पशु को एक संकरी गली मे घुसेड़ा जाता है और आखिरी सिरे पर एक दर्पण होता है मवेशी उसे छूने के लिए जैसे ही अपना सिर अंदर करता है मशीन उसकी गर्दन को जकड़ लेती है और तुरंत उसका सिर धड़ से अलग हो जाता है -
क्या आपको पता है की उत्तर प्रदेश में 15 कत्लखाने खोलने की अनुमति चीफ मिनिस्टर ने दी है जहां एक कत्लखाने में एक दिन में 10000 (दस हजार) जानवरों को कटा जायेगा तो एक दिन में 15 कत्लखानों में 1,50,000 जीवों की हिंसा होगी अगर आप जीव दया प्रेमी हैं तो इस MSG को इतना विस्तार दो कि सभी इसके समर्थन में खड़े हो जाएँ और C.M. को अनुमति वापस लेनी पड़े (अहिंसा परमो धर्मं)

jai shree krishna 


भारत की नई पहचान - Sharad Harikisanji Panpaliya

पन्द्रहवीं शाताब्दी में अरबों की मार्फत योरुप पहुँचे भारतीय ज्ञान विज्ञान ने जब पाश्चात्य देशों में जागृति की चमक पैदा करी तो पुर्तगाल, ब्रिटेन, फ्राँस, स्पेन, होलैण्ड तथा अन्य कई योरुपीय देशों की व्यवसायिक कम्पनियाँ आपसी प्रतिस्पर्धा में दौलत कमाने के लिये भारत की ओर निकल पडीं थीं। उन की कल्पना में भारत के साथ उच्च कोटि की दार्शनिक्ता, धन, वैभव, व्यापार, तथा ज्ञान के भण्डार जुडे थे लेकिन इस्लामी शासकों ने भारत को नष्ट कर के जिस हाल में छोडा था वह अत्यन्त निराशाजनक था। उस समय का हिन्दुस्तान योरूप वासियों की आपेक्षाओं के उलट निकला। योरुपीय जागृति के तुलना में भारत के हर क्षेत्र में अन्धकार, घोर निराशा, अन्ध-विशवास, बीमारी, भुखमरी, तथा आपसी षटयन्त्रों का वातावरण था जिस के कारण भारत की नई पहचान चापलूसों, चाटूकारों, सपेरों, लुटेरों और अन्धविशवासियों की बन गयी।

वह पहचान आज भी लगभग वैसी ही चल रही है जिस के लिये जिम्मेदार हमारे स्वार्थी नेता, उन के काले खाते और कारनामें, कुछ स्वार्थी धर्म गुरु, मानव अधिकारों की दुहाई देने वाले कुछ विदेशियों के तनखाहिये, कानवेन्ट परिशिक्षित सेक्यूलरिस्ट और चर्च पालित मीडिया वाले हैं जिन्हों ने हमारे युवाओं को अंग्रेजी चमक दमक और उदारीकरण के बहानों से गुमराह कर रखा है। अब जरूरत है कि हम आक्रामिक विरोध का सामना अटल हो कर करें और भारतीयता को पुनर्स्थापित करें। इस सब के लिये हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान की पहचान प्रथम पादान है जिसे फिर से युवाओं को ही स्थापित करनी है। आप अंग्रेजी से कुछ सीमा तक अपनी व्यक्तिगत उन्नति कर सकते हैं परन्तु देश की उन्नति नहीं कर सकते।
 - Sharad Harikisanji Panpaliya

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शनिवार, 5 नवंबर 2011

लक्ष्मी-नारायण को प्रिय है तुलसी - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)



देवउठनी ग्यारस (एकादशी) का दिन मूलतः तुलसी के विवाह का पर्व है। पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि पाताल लोक के राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा कर बैकुंठ लौटे थे। भारतीय समाज में तुलसी के पौधे को देवतुल्य मान ऊंचा स्थान दिया गया है। यह औषधि भी है तो मोक्ष प्रदायिनी भी है। हर घर परिवार के आंगन में तुलसी को स्थान मिला हुआ है जहां नित उसे पूजा जाता है। कहा गया है कि जहां तुलसी होती है वहां साक्षात्‌ लक्ष्मी का निवास भी होता है। स्वयं भगवान नारायण श्री हरि तुलसी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। यह मोक्ष कारक है तो भगवान की भक्ति भी प्रदान करती है। क्योंकि ईश्वर की उपासना, पूजा व भोग में तुलसी के पत्तों का होना अनिवार्य माना गया है। तुलसी को भारतीय जनमानस में बड़ा पवित्र स्थान दिया गया है। यह लक्ष्मी व नारायण दोनों को समान रूप से प्रिय है। इसे हरिप्रिया भी कहा गया है। बिना तुलसी के यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना व उपासना पूरे नहीं होते। यहां तक कि श्राद्ध, तर्पण, दान, संकल्प के साथ ही चरणामृत, प्रसाद व भगवान के भोग में तुलसी का होना अनिवार्य माना गया है।

तुलसी विवाह की कथा : तुलसी विवाह का प्रचलन........

श्रीमद्भगवत पुराण के अनुसार वर्णित कथा के अनुसार तुलसी को पूर्व जन्म में जालंधर नामक दैत्य की पत्नी बताया गया है। जालंधर नामक दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया से जालंधर का वध किया था। पति जालंधर की मृत्यु से पीड़ित तुलसी पति के वियोग में तड़पती हुई सती हो गई। इसके भस्म से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ। तुलसी की पतिव्रता एवं त्याग से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी के रूप में अंगीकार किया और वरदान भी दिया जो भी तुम्हारा विवाह मेरे साथ करवाएगा वह परमधाम को प्राप्त करेगा। इसलिए देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए तुलसी विवाह का प्रचलन है।
पौराणिक कथानुसार एक बार सृष्टि के कल्याण के उद्येश्य से भगवान विष्णु ने राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व को भंग कर दिया l इस पर सती वृंदा ने उन्हें श्राप दे दिया और भगवान विष्णु पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं l इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से तुलसी विवाह का यह अनूठा रस्म प्रत्येक साल मनाया जाता है l तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है l
By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

" हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास पानी माँगा. लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक...... बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया. " कितने पैसे दूं?" लड़के ने पूछा. " पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव में कहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए." " तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देता हूँ." जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था. सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा. उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे. ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू अपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है." अब आपके दो में से एक चुनाव करना है. या तो आप इसे शेयर करके इस सन्देश को हर जगह पहुंचाएं या इसे व्यर्थ मान अपने आप को समझा लें कि इस कहानी ने आपका दिल नहीं छूआ.--

by
Sharad Harikisanji Panpaliya

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

करणी माता मंदिर, देशनोक, बीकानेर.. - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

करणी माता मंदिर, देशनोक, बीकानेर से 30 किमी स्थित है l मंदिर एक प्रारंभिक 15 रहस्यवादी सदी के लिए समर्पित है, देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है l भूरे और सफ़ेद रंग के चूहे निडर होकर मंदिर परिसर के आसपास चल रहे है, चूहों की एक बड़ी संख्या के लिए यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है l यह माना जाता है कि मृत की आत्माओं (माता के भक्तों), इन चूहों में रहते हैं l एक सफेद चूहे को देखना या जब एक चूहा आरती के समय अपने पैरो पर चलाता है, यह बहुत भाग्यशाली माना जाता है l इन चूहों के लिए दूध, मिठाई, अनाज, आदि की पेशकश की जाती है l चूहों का मंदिर है, जो स्वतंत्र रूप से बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों की उपस्थिति के बावजूद भी किसी प्लेग की कोई घटना नहीं होती l इसे एक चमत्कार के रूप में समझे l पूरी दुनिया में यह एक अद्वितीय मंदिर है, जहां चूहे आज़ादी से बाहर कदम रखते है, इन चूहों को 'काबा' कहा जाता है l
बीकानेर के शासक गंगा सिंह ने पूरा मंदिर संगमरमर में बनाया था, महाराजा ने संगमरमर और चांदी श्रंगार के साथ करणी माता मंदिर का निर्माण किया l मंदिर के गुंबदों चांदी और सोने के बने हैं l माता की मूर्ति एक फुट तीन इंच चौड़ी और ढाई फुट लम्बी है l एक अन्य कथा के अनुसार, बीकानेर के महाराजा को एक दृष्टि करणी माता दिखाई दिये l मुख्य मंदिर चक्करदार पथ के साथ और बाहरी दीवारों को लाल पत्थर से बनाया गया है, लेकिन मुख्य द्वार भव्य और उच्च है और यह संगमरमर से बना हैl जिस पर सुंदर नक्काशी का काम किया गया है l भीतरी मंदिर में संगमरमर इस्तेमाल किया गया है l मंदिर का पूरा फर्श संगमरमर का है l भीतरी मंदिर के अंदर छोटे मंदिर है, जो खुद करनी माता ने 600 साल पहले बनाया, कहा जाता है, मौजूद है l
By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

गौ वंश वध पर गुजरात में प्रतिबन्ध.....

जय श्री राधे कृष्णा...............सु-प्रभात !!!!!

गौ वंश वध पर गुजरात में प्रतिबन्ध.....
24.10.2011 धनतेरस से गुजरात में गौ-वंश वध तथा इस पशुधन के अवैध्य हेराफेरी सम्बंधित नया कानून (एनीमल प्रिजर्वेशन एमण्डमेन्ट बिल) प्रभावी हो गया है l इसमें गोवंश की कत्ल, गोवंश मांस बिक्री व संग्रहण को भी प्रतिबन्धितकिया गया है । गुजरात पशु संरछन संशोधन अधिनियम - 2011 को 19 सितम्बर को गुजरात विधानसभा ने पारित किया l राज्यपाल ने हाल ही में इस पर मुहर लगा दी है l इस कानून में दोषी पाए जाने पर एक से सात साल तक की कैद, 10 से 50 हजार रूपये के जुर्माने जैसे सख्त प्रावधान है l साथ ही गोवंश को बूचड़खाने ले जाने, गोवंश मांस की बिक्री, संग्रहण व लाने ले जाने वाले हेराफेरी के मामले में पकड़े जाने वाले वाहनों को 6 महीनो से तीन साल तक की सजा व 25 हजार रूपए का अर्थ दण्ड की सजा का सामना करना पड़ सकता है अथवा केश का अदालत में निपटारा होने तक वाहन जब्त किया जा सकेगा l अभी तक गुजरात में मुंबई पशु-संरछन अधिनियम - 1954 प्रभावी था l माननीय नरेन्द्र मोदी जी को इस नेक कार्य के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद........ जय हिन्द, जय हिंदुस्तान l

आज 'गोपष्टमी' पर्व पर हमें भी ये संकल्प लेना चाहिए, इसके लिए सभी भाइयों से प्रार्थना है क़ि इस पेज को 'लाइक' करके ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटावें l
"Gaay Mata ki JAY ho - गऊ हत्या बन्द हो"

आज आंवला नवमी : - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. आँवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं. आँवला नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नदान करने का बहुत महत्व होता है. इस दिन किया गया जप, तप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है. मान्यता है कि सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है l

आँवला नवमी पूजा.......
प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर शोड्षोपचार पूजन करना चाहिए. दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें. आंवले की जड़ में दूध चढा़एं, कर्पूर वर्तिका से आरती करते हुए वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें. आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दान आदि दें तथा कथा का श्रवण करें. घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे में या गमले में आंवले का पौधा लगा कर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिए l

आँवला नवमी महत्व.......
कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी का धार्मिक महत्व बहुत माना गया है. आंवला नवमी की तिथि को पवित्र तिथि माना गया है. इस दिन किया गया गौ, स्वर्ण तथा वस्त्र का दान अमोघ फलदायक होता है. इन वस्तुओं का दान देने से ब्राह्मण हत्या, गौ हत्या जैसे महापापों से बचा जा सकता है. चरक संहिता में इसके महत्व को व्यक्त किया गया है. जिसके अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था l

आंवला नवमी कथा..........
प्राचीन समय की बात है, काशी नगरी में एक वैश्य रहता था. वह बहुत ही धर्म कर्म को मानने वाला धर्मात्मा पुरूष था. किंतु उसके कोई संतान न थी. इस कारण उस वणिक की पत्नी बहुत दुखी रहती थी. एक बार किसी ने उसकी पत्नी को कहा कि यदि वह किसी बच्चे की बलि भैरव बाबा के नाम पर चढा़ए तो उसे अवश्य पुत्र की प्राप्ति होगी. स्त्री ने यह बात अपने पति से कही परंतु वणिक ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया. किंतु उसकी पत्नी के मन में यह बात घर कर गई तथा संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए उसने किसी बच्चे की बली दे दी, परंतु इस पाप का परिणाम अच्छा कैसे हो सकता था अत: उस स्त्री के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और मृत बच्चे की आत्मा उसे सताने लगी l
उस स्त्री ने यह बात अपने पति को बताई. पहले तो पति ने उसे खूब दुत्कारा लेकिन फिर उसकी दशा पर उसे दया भी आई. वह अपनी पत्नी को गंगा स्नान एवं पूजन के लिए कहता है. तब उसकी पत्नी गंगा के किनारे जा कर गंगा जी की पूजा करने लगती है. एक दिन माँ गंगा वृद्ध स्त्री का वेश धारण किए उस स्त्री के समक्ष आती है और उस सेठ की पत्नी को कहती है कि यदि वह मथुरा में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत एवं पूजन करे तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे. ऎसा सुनकर वणिक की पत्नी मथुरा में जाकर विधि विधान के साथ नवमी का पूजन करती है और भगवान की कृपा से उसके सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा उसका शरीर पहले की भाँति स्वस्थ हो जाता है, उसे संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है l

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