जिसने भी लिखा उसको नमन करते हुए यह रचना फारवर्ड कर रहा हूंँ। पति-पत्नी की नोक झोंक में प्रयुक्त सम्पूर्ण हिंदी वर्णमाला संकलित कविता...
😆😆
मुन्ने के नंबर कम आए,
पति श्रीमती पर झल्लाए,
दिनभर मोबाइल लेकर तुम,
टें टें टें बतियाती हो...
खा़क नहीं आता तुमको,
क्या मुन्ने को सिखलाती हो?
यह सुनकर पत्नी जी ने,
सारा घर सिर पर उठा लिया l
पति देव को लगा कि ज्यों,
सोती सिंहनी को जगा दिया l
अपने कामों का लेखा जोखा,
तुमको मैं अब बतलाती हूंँ l
आओ तुमको अच्छे से मैं,
क ,ख, ग,घ सिखलाती हूँ l
सबसे पहले "क" से अपने,
कान खोलकर सुन लो जी..
"ख"से खाना बनता घर में,
मेरे इन दो हाथों से ही!
"ग"से गाय सरीखी मैं हूंँ,
तुम्हें नहीं कुछ कहती हूँ l
"घ" से घर के कामों में मैं,
दिनभर पिसती रहती हूँ l
पतिदेव गरजकर यूंँ बोले..
"च" से तुम चुपचाप रहो
"छ" से ज्यादा छमको मत,
मैं कहता हूंँ खामोश रहो!
"ज" से जब भी चाय बनाने,
को कहता हूंँ लड़ती हो..
गाय के जैसे सींग दिखाकर,
"झ" से रोज झगड़ती हो!
पत्नी चुप रहती कैसे,
बोली "ट" से टर्राओ मत
"ठ" से ठीक तुम्हें कर दूँगी..
"ड" से मुझे डराओ मत!
बोले पतिदेव सदा आफिस में,
"ढ" से ढेरों काम करूंँ..
जब भी मैं घर आऊंँ,
"त" से तुम कर देतीं जंग शुरू!
"थ" से थक कर चूर हुआ हूंँ..
आज तो सच कह डालूँ मैं!
"द" से दिल ये कहता है...
"ध" से तुमको धकियाऊंँ मैं!
बोली "न" से नाम न लेना,
मैं अपने घर जाती हूँ!
"प" से पकड़ो घर की चाबी
मैं रिश्ता ठुकराती हूँ!
"फ" से फूल रहे हैं छोले,
"ब" से उन्हें बना लेना l
" भ" से भिंडी सूख रही हैं,
वो भी तल के खा लेना...!!
"म" से मैं तो चली मायके,
पत्नी ने बांधा सामान l
यह सुनते ही पति महाशय,
के तो जैसे सूखे प्राण
बोले "य" से ये क्या करती
मेरी सब नादानी थी...
""र" से रूठा नहीं करो.....
तुम सदा से मेरी रानी थी!
"ल" से लड़कर कहते हैं कि..
प्रेम सदा ही बढ़ता है!
"व" से हो विश्वास अगर तो,
रिश्ता कभी न मरता है l
"श" से शादी की है तो हम,
"स" से साथ निभाएंगे...
"ष" से इस चक्कर में हम....
षटकोण भले बन जाएंगे!
पत्नी गर्वित होकर बोली,
"ह" से हार मानते हो!
फिर न नौबत आए ऐसी
वरना मुझे जानते हो!
"क्ष" से क्षत्राणी होती है नारी
" त्र" से त्रियोग भी सब जानती है
"ज्ञ" से हे ज्ञानी पुरुष! चाय पियो
और खत्म करो यह राम कहानी!ं
🤣🤣🤣🤑🤑🤣🤣
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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शनिवार, 21 अगस्त 2021
पति-पत्नी की नोक झोंक में प्रयुक्त सम्पूर्ण हिंदी वर्णमाला संकलित कविता...
हमारे देखते देखते इतिहास बदलने की कोशिशें हो रही है।
हमारे देखते देखते इतिहास बदलने की कोशिशें हो रही है।
बंगाल चुनाव के बाद जबरदस्त तरीके से हिंदुओं पर अत्याचार किये गए। लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया में उन्हें आने नहीं दिया गया।
बंगलौर और दिल्ली दंगों में कहानियां एकदम से पलट दी गई।
अफगानिस्तान में जिस तरह से महिलाओं पर होने वाले अमानवीय अत्याचारों को झुठलाया जा रहा है, इतना दुस्साहस, इतनी बौद्धिक बदमाशी हम भारतीयों के लिए कल्पना से भी परे हैं।
आज जब मीडिया और कैमरे के जमाने में इतना नट सकते हैं तो हम समझ सकते हैं कि इन लोगों ने हमारे पुराने इतिहास के साथ क्या क्या नहीं किया होगा?
सबने देखा कि कैसे #बहादुर_प्रचारित किये जाने वाले कायर अफगानी अपनी पत्नी बेटियों को जाहिल भेड़ियों के आगे फेंक कर जहाजों में लटक लटक कर भाग रहे हैं।
खुले आम लड़कियां बेची जा रही है, ऐसे तो बकरा मंडी भी नहीं सजती।
घरों से खींच खींच कर मासूम 6-7 साल की रोती कलपती बच्चियों को 55 साल के अधेड़ घसीट कर ले जा रहे हैं।
हम नहीं कहते, वे स्वयं ही इसे फतेह मक्का कह रहे हैं!!
तो कल्पना कर सकते हैं कि इनकी जितनी भी फतेह हुई है उनके बाद इनकी कृति क्या रही होगी। न जाने कितनी सभ्यताएं खून के आंसू रोई होंगी।
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि एक भी सेक्यूलर, वामपंथी या कट्टर मौलाना को इन सबका जरा भी अफसोस नहीं है!!
मुसलमानों के सबसे बड़े हितैषी होने का दावा करने वाले एक सेकंड की भी यह बहस नहीं करवा रहे कि अफगानिस्तान में कौन, किसको, क्यों मार रहा है?
स्वयं को संसार के सबसे बड़े विचारक मानने वाले ये कितने असहाय हैं कि समस्या के मूल में झांकना भी नहीं चाहते।
भारत की यह देशद्रोही गैंग अत्यंत उत्साहित हैं। वे प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब तालिबान वहाँ से पूरब की ओर रुख करे और हमारे यहाँ भी गजवा ए हिन्द हो!!
इन्होंने तो यहाँ तैयारी भी शुरू कर दी है। तलवारों पर धार दी जा रही है, आग्नेयास्त्र सम्भाले जा रहे हैं, तालिबानियों के लिए कालीन बिछा रहे हैं और पूरी उम्मीद लगा रहे हैं कि कब वे आएं और कब ये उनके साथ मिलकर मध्ययुगीन नग्न नर्तन करते हुए अधूरी अतृप्त इच्छाओं को पूरा कर सकें।
और ये सब कौन लोग हैं?
जो मानवाधिकार के विभिन्न एनजीओ चलाते हैं।
जो महिलाओं की असमानता पर टेसुए बहाते हैं।
जो बच्चों को न्याय दिलाने पर सेमिनारों में भाषण देते हैं।
जो अखबारों में न्याय, समानता और जीवन मूल्यों के लेख लिखते हैं।
जो हमारे धर्मग्रंथों को बारम्बार कोसते हुए पाठ्यक्रम में #तटस्थवैज्ञानिकनिरपेक्ष इतिहास को सम्मिलित करने की वकालत करते हैं।
बड़े लुभावने नाम रखकर सद्व्यवहार की बात करने वाले ये लोग कितने बौने हैं?
ज्यों ही इन्हें लगा कि ऐसा भी हो सकता है, इनके भीतर का पशु जग गया।
ये भूल गए कि हम बड़ी शुचितापूर्ण भाषा बोलने वाले हैं, भरपूर काफिर महिलाएं मिलने की संभावना होते ही, कच्ची कलियां मसलने की इनकी आदिम राक्षसी वासना भड़क गई और खुलकर नीचता पर उतर आए।
"थोड़ी बहुत अव्यवस्था" के लिए अमरीका जिम्मेदार, मोदी जिम्मेदार, अफगान जिम्मेदार, किन्तु मजाल जो इनके मुंह से खूनी खेल खेलते वास्तविक अत्याचारियों के विरुद्ध एक भी शब्द निकला हो।
भात्सप्प यूनिवर्सिटी की तो ये मजाक उड़ाते हैं, लेकिन स्वयं इनकी यूनिवर्सिटी, इनके प्रोफेसर, इनके विश्लेषकों की भयंकर पोल खुल चुकी है।
आप स्वयं निर्णय लीजिए कि इन कथित बुद्धिजीवी इतिहासकारों का वर्तमान विश्लेषण बोध इतना पक्षपातपूर्ण है जो सारे संसार के देखते देखते, कैमरे के सामने इतना झूठ प्रपंच और तथ्यों से तोड़ मरोड़ कर सकते हैं तो इनके आकाओं ने जो भारतीय इतिहास लिखा है वह कितना घृणित, लिजलिजा और शरारतपूर्ण होगा।
हिन्दू गद्दारों की वजह से हिंदुस्तान में हिन्दूओं पर संकट 😢 रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला-
😢हिन्दू गद्दारों की वजह से हिंदुस्तान में हिन्दूओं पर संकट😢
रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला-
बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहने अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदहारण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता तोर पर पढ़ाया जाता हैं।
अब वास्तविकता जानिये और सेक्युलर घोटाले को जानिये-
हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री बहुत ही कम पढ़े लिखे मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के पोषक और हिन्दू विचारधारा का अनन्य विरोधी दुष्ट नेहरू ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये।उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलावरों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं को जबरन धर्मान्तरित किया, उन पर कोई अत्याचार किये और मूर्ख मौलाना ने नेहरू की सलाह को मानते हुए न केवल सत्य को छुपाया अपितु उसे पूर्णतया विकृत भी कर दिया।
रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ भी यही अत्याचार हुआ। जब रानी को पता चला की बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र तो लिखा। मगर हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिख कर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका।
मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है-
सुल्तान के पत्र का हुमायूँ पर बुरा प्रभाव हुआ। वह आगरे से चित्तोड़ के लिए निकल गया था। अभी वह गवालियर ही पहुंचा था। उसे विचार आया, "सुलतान चित्तोड़ पर हमला करने जा रहा है। अगर मैंने चित्तोड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा। " यह विचार कर हुमायूँ गवालियर में ही रुक गया और आगे नहीं सरका।
इधर बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ को घेर लिया। रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का फैसला हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया। ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।
बहादुर शाह किले में लूटपाट कर वापिस चला गया। हुमायूँ चित्तोड़ आया। मगर पुरे एक वर्ष के बाद आया।परन्तु किसलिए आया? अपने वार्षिक लगान को इकठ्ठा करने आया। ध्यान दीजिये यही हुमायूँ जब शेरशाह सूरी के डर से रेगिस्तान की धूल छानता फिर रहा था। तब उमरकोट सिंध के हिन्दू राजपूत राणा ने हुमायूँ को आश्रय दिया था। यही उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ था। एक काफ़िर का आश्रय लेते हुमायूँ को कभी इस्लाम याद नहीं आया। और धिक्कार है ऐसे राणा पर जिसने अपने हिन्दू राजपूत रियासत चित्तोड़ से दगा करने वाले हुमायूँ को आश्रय दिया। अगर हुमायूँ यही रेगिस्तान में मर जाता। तो भारत से मुग़लों का अंत तभी हो जाता। न आगे चलकर अकबर से लेकर औरंगज़ेब के अत्याचार हिन्दुओं को सहने पड़ते।
इरफ़ान हबीब, रामचन्द्र गुहा,रोमिला थापर सरीखे लेखकोँ ने इतिहास का केवल विकृतिकरण ही नहीं किया अपितु उसका पूरा बलात्कार ही कर दिया। हुमायूँ द्वारा इस्लाम के नाम पर की गई दगाबाजी को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और रक्षाबंधन का नाम दे दिया। हमारे पाठयक्रम में पढ़ा पढ़ा कर हिन्दू बच्चों को इतना भ्रमित किया गया कि उन्हें कभी सत्य का ज्ञान ही न हो। इसीलिए आज हिन्दुओं के बच्चे दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ पर गाइड उन्हें हुमायूँ को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के रूप में बताते हैं।
इस लेख को रक्षाबंधन के पवित्र पर्व तक जन जन तक पहुचाएं और झूठ की नींव पर खड़े मुस्लिम चाटुकारों और सेक्युलरों के इरादों को बेनकाब करने में सहयोगी बनें।
अंधभक्त कहने वालों के लिए विशेष
अंधभक्त कहने वालों के लिए विशेष
आपको प्रशांत किशोर नाम याद है ....?
जरा दिमाग पर जोर डालिये और मात्र छह साल पहले 2014 अगस्त याद कीजिये जब काँग्रेस ने प्रशांत किशोर को ठेका दिया था राहुल गाँधी को राजनीति में चमकाने का ....!
प्रशांत ने 350 करोड़ में राहुल गाँधी को राजनीति का सूरज बना देने का कॉन्ट्रेक्ट साइन किया था ..!
अगस्त के आखिर में प्रशांत किशोर ने बाकायदा सोशल मीडिया पर एक विज्ञप्ति निकाली थी कि जो लोग सोशल मीडिया पर लिखने में एक्सपर्ट हैं वे उससे जुड़े ओर करीब 60 हजार लोगों की लिस्ट बनी थी ...!
मुंबई में एक मीटिंग रखी गई और दूसरी
बनारस में !
लगभग पाँच हजार लोगों को छाँट कर एक आईटी सेल बनाई गई जो दिन रात काँग्रेस को अपग्रेड करते थे ...!
दूसरा आपको "द वायर" याद है!
जिसने अमित शाह के बेटे पर 300% मुनाफा कमाने का आरोप लगाया था और रातों-रात चर्चा में आई थी ..?
हालाँकि 'द वायर' ने बाद में केजरीवाल की तरह माफी भी माँगी और कोर्ट में जुर्माना भी भरा था,
लेकिन द वायर को चर्चा में आना था सो वह आ गई ...!
अब तीसरा हाल ही का –
"कैम्ब्रिज अनालिटिका" को याद कीजिये!
हजार करोड़ लेकर काँग्रेस से सरकार बनवाने का कॉन्ट्रेक्ट इसी कम्पनी ने लिया था ...!
ये कैम्ब्रिज अमेरिकी कम्पनी है, जिसने ट्रम्प का प्रचार किया था और कांग्रेस ने इसी बेस पर इसे राहुल गाँधी के लिये हजार करोड़ देकर यहाँ भारत में एप्रोच किया ....!
अब प्रशांत किशोर ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है लेकिन जाते-जाते आईटी सेल दे गया ....!
उसकी बनाई आईटी सेल के हर व्यक्ति को बीस हजार से लेकर योग्यता अनुसार लाख से ऊपर तक महीने की तनख्वाह दी जाती है ...!
प्रशिक्षण देकर लाइव डिबेट के लिये तैयार किया जाता हैं ! हर विषय को कैसे हैंडल करना है इसपर बाकायदा किताबें छपी हुई है ...!
और ये सब लोग रात-दिन अपनी तनख्वाह बढ़ाने के चक्कर में सोशल मीडिया पर लगे हुए हैं जो आज भी जारी है और हर महीने काँग्रेस सैंकड़ों करोड़ पानी की तरह इन पर बहा रही है ....!
अब 'द वायर' जैसी हजारों वेबसाईट और ब्लॉग धड़ल्ले से चल रहे हैं जिनका काम सिर्फ न्यूज लिंक क्रिएट करना है और वही न्यूज बनानी है जो आईटी सेल चाहती है।
कैम्ब्रिज ने इनसे दो कदम आगे बढ़कर वो फार्मूला आजमाया जो ये गोरे शुरू से आजमाते हैं ...!
कैम्ब्रिज ने 2014 के वोट प्रतिशत और किस जगह से कितने आये, किस जाति से कितने आये इसकी डिटेल निकाली, और इन वोटों को तोड़ने की उसने बाकायदा आधिकारिक घोषणा की कि वह इस हिंदुत्व की एकता को ही तोड़ देंगे -- 'न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी!'
प्रशांत किशोर से लेकर कैम्ब्रिज के बीच और भी बहुत प्रयास हुए हैं ...!
अब इस गेम को समझिये कि कहाँ से आते हैं वो फोटोशॉप जो नफरत फैलाते हैं?
कैसे गलत न्यूज रातों-रात वायरल हो जाती है ...?
कैसे मोदी के बयान को तोड़कर उसे गलत सिद्ध करने के लिये तुरन्त लिंक न्यूज फैल जाते हैं ...?
कैसे अखबार की एडिट-कटिंग तुरन्त मिल जाती है ...?
लेकिन बात यहीं तक नही हैं, ये मोदी विरोध के चक्कर में कब देश का विरोध करने लगे इन्हें भी नहीं पता ...!
कब जातिवाद के चक्कर मे धर्म को गालियाँ देने लगे इन्हें भी नहीं पता !
मोदी विरोध के फेर में ये भारत को ही गालियाँ देने लगे हैं ....!
आईटी सेल के हर व्यक्ति को मोदी विरोध का पैसा मिलता हैं जो जितना ज्यादा प्रभावी ढंग से विरोध करेगा उतना ही ज्यादा पैसा मिलेगा ..!
लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि हमारी अक्ल घास चर रही है ...!
केवल छह साल में इनका फैलाया जहर इस हद तक फैल गया कि दिमाग में एक दूसरे के लिये सिर्फ नफरत की जगह है बाकी ब्लैंक ...!
याद रखिये "अंध विरोध की काट अंधभक्त होना ही है" हमारे आपके जैसे अंधभक्तो ने प्रशांत किशोर, द वायर और कैम्ब्रिज जैसों को घुटनों पर ला दिया है, और आगे भी कोई देशविरोधी होंगे तो उन्हें भी लाएंगे ...!
क्योंकि हम देशभक्तों का अभी ब्रेनवाश नहीं हुआ है और ना ही ये गद्दार कर सकते हैं ...!
सुख-दुःख का सम्बन्ध सन्तान से नहीं
सुख-दुःख का सम्बन्ध सन्तान से नहीं
एक बुजुर्ग आदमी स्टेशन पर गाड़ी में चाय बेचता है।गाड़ी में चाय बेच कर वह अपनी झोपड़ी में चला गया। झोपड़ी में जा कर अपनी बुजुर्ग पत्नी से कहा कि दूसरी ट्रेन आने से पहले एक और केतली चाय की बना दो।दोनों बहुत बुजुर्ग हैं। आदमी बोला कि काश हमारी कोई औलाद होती, तो वह हमें इस बुढ़ापे में कमा कर खिलाती, औलाद न होने के कारण हमें इस बुढ़ापे में भी काम करना पड़ रहा है। उसकी पत्नी की आँखों में आँसू आ गए।उसने चाय की केतली भर कर अपने पति को दे दी।
बुजुर्ग आदमी चाय की केतली ले कर वापिस स्टेशन पर गया। उसने वहाँ प्लेटफॉर्म पर एक बुजुर्ग दम्पती को सुबह से लेकर शाम तक बेंच पर बैठे देखा। वे दोनों किसी भी गाड़ी में चढ़ नहीं रहे थे। तब वह चाय वाला बुजुर्ग उन दोनों के पास गया और उन से पूछने लगा कि आप ने कौन सी गाड़ी से जाना है? मैं आप को बता दूँगा कि आप की गाड़ी कब और कहाँ आएगी?
तब वह बुजुर्ग दम्पती बोले कि हमें कहीं नहीं जाना है।हमें हमारे छोटे बेटे ने यहाँ एक चिट्ठी दे कर भेजा है और कहा है कि हमारा बड़ा बेटा हमें लेने स्टेशन आएगा और अगर बड़ा बेटा ना पहुँचे तो इस चिट्ठी में जो पता है, वहाँ आप पहुँच जाना।हमें तो पढ़ना लिखना आता नहीं है, आप हमें बस यह चिट्ठी पढ़ कर यह बता दो कि यह पता कहाँ का है, ताकि हम लोग अपने बड़े बेटे के पास पहुँच जायें।
चाय वाले ने जब वह चिट्ठी पढ़ी वह वही जमीन पर गिर पड़ा। उस चिट्ठी में लिखा था कि ये मेरे माता पिता हैं, जो इस चिट्ठी को पढ़े वह इनको पास के किसी वृद्धाश्रम में छोड़ आये।
चाय वाले ने सोचा था कि मैं बेऔलाद हूँ, इसलिए बुढ़ापे में काम कर रहा हूँ, अगर औलाद होती तो काम न करना पड़ता।इस बुजुर्ग दम्पती के दो बेटे हैं, पर कोई भी बेटा इनको रखने को तैयार नहीं है।
बाबा नंद सिंह जी संगत को यह घटना सुनाते थे और संगत से पूछते थे कि बताओ औलाद होनी चाहिए या नहीं। सुख-दुःख तो अपने कर्मों के अनुसार मिलता है, न कोई औलाद सुख देती है न कोई औलाद दुःख देती है। सुख और दुःख का औलाद से कोई कनेक्शन नहीं है।ये हमारी ग़लतफ़हमी है।
शुक्रवार, 20 अगस्त 2021
किसी के लोन गारंटर बनने जा रहे हैं तो पहले आपको कुछ जरूरी बातों का पता होना चाहिए.
श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार - वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि
यह सिर्फ भाई बहन का ही त्योहार नही जो बल्कि जो जिससे रक्षा अपेक्षा या याचना अपेक्षा रखता उसे रक्षा सूत्र बांध सकता है। अपने आराध्य को भी रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है ।
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था। अनन्तर भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने के पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
इसी तरह कथा में विष्णु को सुतल से लाने लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांध वर में भगवान विष्णु को पुनः प्राप्त किया ।
प्राचीन काल में रक्षा बंधन भाई बहन का त्योहार था ही नही शास्त्रो में इसका कोई मन्त्र कथा नही है । मुगल काल मे जेहादी तालिबान से अपनी बहनों की रक्षा लिए यह प्रथा प्राम्भ हुई ।
रक्षा सूत्र बांधने का जो प्रचलित मंत्र है उसमें भी इसी घटना का उल्लेख है। आइए जानते हैं क्या है रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र…
प्राचीन समय में पुरोहित अपने यजमान के कल्याण हेतु उसके दाहिने हाथ में एक पवित्र धागा (सूत्र) बांधते थे जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता था। युद्ध से पूर्व रक्षासूत्र रूप में एक राजा अन्य राजा को भी रक्षा सूत्र और पाती भेजते थे जो कि हाथ मे बांध युद्ध में साथ देने लिए आते। यह एक दुसरे की रक्षा भाव की समृद्ध परंपरा आज भी उसी रूप में चली आ रही है। पुरोहित और यजमान भी एक दूजे को रक्षा सूत्र बांध सकते है ।
गुरु-शिष्य और मित्र के द्वारा भी अपने शिष्य व मित्र को रक्षा सूत्र बाँधने की परंपरा है। संघ की शाखाओ में स्मययं सेवक परम् गुरु स्वरूप ध्वज को और सहसंघी स्वयं सेवक स्वयं सेवको को रक्षा सूत्र बांधते है। इसी तरह
अपने ईष्ट को भी रक्षा सूत्र का महत्व है। कई जगह पुजारी व पुरुष भी दुर्गा देवी के रूप को रक्षा सूत्र बांधते है। मन्दिरो में अपने आराध्य को भी रक्षा सुत्र बंधने की परंपरा चली आ रही है।
रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र
रक्षा सूत्र बाँधते समय पुरोहित एक विशेष मंत्र का उच्चारण करते हैं जो इस प्रकार है-
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
रक्षा सूत्र के इस पवित्र मंत्र का अर्थ
दानवीर, महाबली राजा बलि जिस (रक्षा सूत्र) से बंध गए थे उसी से मैं तुम्हें भी बाँधता हूँ। फिर रक्षा सूत्र को संबोधित करते हुए- हे रक्षा! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।
अर्थात् जिस प्रकार भगवान वामन ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था उसी प्रकार मैं तुम्हें भी इस रक्षासूत्र रूपी धर्म-बंधन में बाँधता हूँ। हे रक्षा! तुम स्थिर रहो।
सारत: इस मंत्र का भाव यही है कि जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बाँधा जा रहा है वह अपने धर्म में स्थिर रहे और दैवी शक्तियाँ उसकी रक्षा करें।
रक्षाबंधन के अवसर पर बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं। समान्यतः ऐसा माना जाता है कि भाई को रक्षासूत्र बांधकर बहनें अपनी रक्षा का वचन लेती हैं।
यह बात तो निश्चय ही सत्य है किंतु इसके साथ हम रक्षासूत्र के इतिहास पर दृष्टि डालें तो रक्षाबंधन का एक उद्देश्य यह भी ज्ञात होता है कि बहन रक्षा सूत्र बाँधकर भाई को कर्त्तव्यपालन की याद दिलाती हैं तथा उसके सुख, शांति, दीर्घायु व कल्याण की कामना करती हैं।
गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी में भी रक्षाबंधन का प्रचलन अनेक स्थानों पर है। पत्नी अपने पति के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधकर उनके धर्मपथ पर चलने की कामना करती है और पति अपने गर्हस्थ के सम्यक् निर्वहन का वचन देता है।
पुराण शास्त्रो में
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था।
भागवत, देवी भावत, भविष्य पुराण आदि में इस सम्बंध में कथा है कि
12 वर्ष तक देव दानव युद्ध चलता रहा लेकिन देवता विजयी नही हो रहे थे । हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने। तब गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किरे और देव राज इंद्र को रक्षा सूत्र बांध दिए।
इंद्राणी शचि ने जिस दिन इंद्र की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी। इसके बाद देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इस पौराणिक कथा के अनुसार, एक पत्नी अपने सुहाग की रक्षा के लिए श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन अपने पति की कलाई में रक्षासूत्र बांध सकती है।
इसीतरह वामन अवतार और राजा बलि की कथा है
भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
भगवान वामन ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखे, इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के सामने कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया।
पैर रखते ही बलि सुतल लोक में पहुंच गया। बलि की उदारता से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य प्रदान किया। बलि ने वर मांगा कि भगवान विष्णु उसके द्वारपाल बनें। तब भगवान को उसे यह वर भी प्रदान करना पड़ा। पर इससे लक्ष्मीजी संकट में आ गईं। वे चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा?
तब देवर्षि नारद ने उपाय बताया कि बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दो और उससे भाई बना कर भगवान विष्णु को वरदान में वापस ले लेवे। लक्ष्मीजी ने ऐसा ही किया। उन्होंने बलि की कलाई पर राखी (रक्षासूत्र) बांधी। बलि ने लक्ष्मीजी से वर मांगने को कहा। तब उन्होंने अपने विष्णु को मांग लिया। रक्षासूत्र से देवी लक्ष्मी को अपने स्वामी पुन: मिल गए।
रक्षासूत्र (कलावा) पुरुषों के दाहिने हाथ में, महिलाओं के बाएँ हाथ में तथा अविवाहित बालिकाओं के भी दाहिने हाथ में बांधने का विधान है। कहीं-कहीं इसे गले और कमर में बाँधने की परंपरा है।
रक्षा सूत्र लिए किसी विशेष राखी का भी प्रावधान नही है । एक सुत का धागा भी काफी है किंतु भाव पूर्ण हो । सूती धागे की बनी मोली भी उत्तम मानी गई है।
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत्।
स सर्वदोष रहित सुखी सम्वत्सरे भवेत्॥
अर्थात् जो लोग इस प्रकार विधिपूर्वक रक्षाबंधन का आयोजन करते हैं वे संवत्सर पर्यन्त सभी दोषों से रहित होकर सुखी होते हैं।
इस वर्ष 2021 का रक्षाबन्धन रविवार 22 अगस्त को है
गुरुवार, 19 अगस्त 2021
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