यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

राजस्थान की सांसी जनजाति में कूकडी रस्म क्या है?

 

आज हम उस रस्म या कुप्रथा से रूबरू होंगे, जिसको शायद हमनें कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।

● सांसी जनजाति भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है। आज हम इस जनजाति में प्रचलित एक रस्म या कुप्रथा 'कूकड़ी' के बारे में जानेंगे।

• जनजातियों की भाँति हमारे समाज में भी अनेक कुप्रथाओं का प्रचलन आज भी हैं, जिन्हें रीति-रिवाज, परम्परा एवं संस्कारों का नाम देकर बढ़ावा दिया जाता है। जिससे कहीं-न-कहीं महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है। ऐसी ही एक रस्म है-'कूकड़ी प्रथा', जो सामान्यतः 'सांसी जनजाति' में प्रचलित है।

क्या है कूकड़ी रस्म ?

(प्रतीकात्मक चित्र- न्यूज इंडिया)

एक लड़की अपने परिवार को छोड़कर शादी करके ससुराल जाती है। वहाँ पर सुहागरात की रात उसका पति हाथों में सफेद धागों का गुच्छा लिए उसके कमरे में प्रवेश करता है। यह देखकर वह लड़की डर के मारे घबरा जाती है। उसके ज़हन में वे बातें सहसा याद आ जाती हैं, जो अपने घर व आस-पड़ोस की औरतों से हमेशा से सुनती आई है। पति यह जाँच करने वाला है कि उसकी पत्नी वर्जिन है या नहीं ?

• यह सोचकर उसके पूरे शरीर में शिहरन दौड़ जाती है, क्योंकि वो नहीं जानती है कि उसके साथ अब आगे क्या होने वाला है। यह सोचकर वह रोने लग जाती है। उस पलंग पर सफेद चादर बिछी हुई है एवं पति द्वारा लाई गई उस कुकड़ी को बिस्तर पर रखा जाता है। ततपश्चात पति उस लड़की के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाता है।

• सुबह उस बिस्तर पर बिछी चादर व कुकड़े को देखा जाता है। उसका पति वो गुच्छा लेकर कमरे से बाहर जाता है और वह चिल्ला-चिल्लाकर यह कहता है कि 'अरे! वो ख़राब है।'

• इतना सुनते ही लड़के के घर वाले अब उस नई दुल्हन से उसके मित्र का नाम पूछते हैं। लड़की रो-रोकर यही कहती जाती है कि उसने कभी ऐसा कुछ नहीं किया है। जब बिस्तर पर खून के निशान नहीं मिलते हैं, तब परिवार वाले उस लड़की के साथ मारपीट एवं पशुवत व्यवहार करते हैं।

• ससुराल वाले उसको खूब पीटते हैं और यह कहते हैं, कि पंचायत के सामने वो झूठा ही मान ले कि उसके जीजा के साथ शारीरिक सम्बन्ध थे।

• अगर उसकी पत्नी वर्जिन निकलती है, (बिस्तर पर खून के निशान मिलने पर भी) तब भी उसे झूठ बोलने पर मजबूर किया जाता है और पीहर पक्ष वालों से ज्यादा दहेज के लिए बाध्य किया जाता है।

Note:- (माफ कीजिएगा यह एक सत्य वर्णन है, जिसकी सत्यता के लिए मुझे थोड़े भद्दे शब्द लिखने पड़ रहे हैं, लेकिन यह सत्य है। मुझे यह लिखने के लिए मेरा कर्तव्य मजबूर कर रहा है, क्योंकि ऐसी कुप्रथाएँ महिलाओं की मान-मर्यादाओं एवं उनके आत्मसम्मान को तार-तार कर देती है। बहुत सारी महिलाओं को इसके लिए जान भी गंवानी पड़ती है।)

• यहीं उसकी चारित्रिक परीक्षा पूर्ण नहीं होती। आगे जाकर उसे इससे भी भयंकर अग्नि परीक्षा से होकर गुजरना पड़ता है।

• जिसके तहत उसे पानी में नाक पकड़कर 2–3 मिनट तक अंदर रहने को मजबूर किया जाता है। उसके बाद भी अगर लड़की के द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है, तो उसको हाथों में पीपल के पत्तों के ऊपर गर्म लौहे को जलते अंगारों पर रखकर खड़ा रहना होता है।

• हमारे इतना सोचने भर से ही हम पसीने से तरबतर हो जाते हैं, हमारी देह कम्पायमान हो जाती है, रूह में मानो जैसे लौहे की शूलें चुभो दी हो, तो सोचिए हमारे इतना सोचने भर से ही हम पिछले जन्म तक की बातें याद करने लग जाते हैं। तो जरा पल भर सोचिए, जिनको इन घिनौनी परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है, उनकी क्या दशा होती होगी, उन पर क्या गुजरती होगी, यह उनके कौनसे जन्म की सजा है ?

यह एक सोचनीय विषय है।

◆ मेरी राय में यह एक रस्म ना होकर महिलाओं के खिलाफ क्रूर एवं भयानक अत्याचार की एक घृणित कुप्रथा है।

° आप इसे किस नजरिए से देखते हैं ? यह आपके लिए एक सवाल है।

• ऐसी अनेकों कुप्रथाएँ आज भी हमारे समाज में प्रचलित है, जिनसे महिलाओं के प्रति क्रूर और आपराधिक कृत्य किया जाता है। समाज में महिलाओं की स्थिति इन प्रथाओं के कारण बहुत दयनीय हो गई है। उनके आत्मसम्मान का जरा सा भी खयाल नहीं रखा जाता है।

• वर्तमान समय में इन कुप्रथाओं को समाप्त करने की जरूरत है, जिसके लिए समाज एवं सरकार द्वारा सामूहिक रूप से आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। यही वह समय है जब मानव के अंदर छुपी हुई मानवीयता को जगाना होगा।

• कूकड़ी रस्म:- सांसी जनजाति की वह रस्म जिसमें विवाह के समय लड़की की चारित्रिक परीक्षा ली जाती है, उसे कूकड़ी रस्म कहा जाता है।

लोगों के घरों में अंधे बनकर जाओ और वहां से गूंगे बनकर निकलो

 

#शब्दो_का_महत्व


एक सहेली ने दूसरी सहेली से पूछा:- बच्चा पैदा होने की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया ?

सहेली ने कहा - कुछ भी नहीं!

उसने सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये अच्छी बात है ?

क्या उस की नज़र में तुम्हारी कोई कीमत नहीं ?

*लफ्ज़ों का ये ज़हरीला बम गिरा कर वह सहेली दूसरी सहेली को अपनी फिक्र में छोड़कर चलती बनी।।*

थोड़ी देर बाद शाम के वक्त उसका पति घर आया और पत्नी का मुंह लटका हुआ पाया।।

फिर दोनों में झगड़ा हुआ।।

एक दूसरे को लानतें भेजी।।

मारपीट हुई, और आखिर पति पत्नी में तलाक हो गया।।

*जानते हैं प्रॉब्लम की शुरुआत कहाँ से हुई? उस फिजूल के जुमले से जो उसका हालचाल जानने आई सहेली ने कहा था ।*

रवि ने अपने जिगरी दोस्त पवन से पूछा:- तुम कहाँ काम करते हो?

पवन- फलाँ दुकान में।। रवि- कितनी तनख्वाह देता है मालिक?

पवन-18 हजार।।

रवि-18000 रुपये बस, तुम्हारी जिंदगी कैसे कटती है इतने पैसों में ?

पवन- (गहरी सांस खींचते हुए)- बस यार क्या बताऊँ।।

*मीटिंग खत्म हुई, कुछ दिनों के बाद पवन अपने काम से बेरूखा हो गया।। और तनख्वाह बढ़ाने की डिमांड कर दी।। जिसे मालिक ने रद्द कर दिया।। पवन ने जॉब छोड़ दी और बेरोजगार हो गया।। पहले उसके पास काम था अब काम नहीं रहा।।*

एक साहब ने एक शख्स से कहा जो अपने बेटे से अलग रहता था।। तुम्हारा बेटा तुमसे बहुत कम मिलने आता है।। क्या उसे तुमसे मोहब्बत नहीं रही?

बाप ने कहा बेटा ज्यादा व्यस्त रहता है, उसका काम का शेड्यूल बहुत सख्त है।। उसके बीवी बच्चे हैं, उसे बहुत कम वक्त मिलता है।।

पहला आदमी बोला- वाह!! यह क्या बात हुई, तुमने उसे पाला-पोषा, उसकी हर ख्वाहिश पूरी की, अब उसको बुढ़ापे में व्यस्तता की वजह से मिलने का वक्त नहीं मिलता है।। यह तो ना मिलने का बहाना है।।

*इस बातचीत के बाद बाप के दिल में बेटे के प्रति शंका पैदा हो गई।। बेटा जब भी मिलने आता बाप ये ही सोचता रहता कि उसके पास सबके लिए वक्त है सिवाय मेरे।।*

*याद रखिए जुबान से निकले शब्द दूसरे पर बड़ा गहरा असर डाल देते हैं।।*

*बेशक कुछ लोगों की जुबानों से शैतानी बोल निकलते हैं।। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत से सवाल हमें बहुत मासूम लगते हैं।।*

जैसे-

*तुमने यह क्यों नहीं खरीदा।।*

*तुम्हारे पास यह क्यों नहीं है।।*

*तुम इस शख्स के साथ पूरी जिंदगी कैसे चल सकते हो।।*

*तुम उसे कैसे मान सकते हो।।*

वगैरा वगैरा।।

इस तरह के बेमतलबी फिजूल के सवाल नादानी में या बिना मकसद के हम पूछ बैठते हैं।।

जबकि हम यह भूल जाते हैं कि हमारे ये सवाल सुनने वाले के दिल में

नफरत या मोहब्बत का कौन सा बीज बो रहे हैं।।

आज के दौर में हमारे इर्द-गिर्द, समाज या घरों में जो टेंशन टाइट होती जा रही है, उनकी जड़ तक जाया जाए तो अक्सर उसके पीछे किसी और का हाथ होता है।।

वो ये नहीं जानते कि नादानी में या जानबूझकर बोले जाने वाले जुमले किसी की ज़िंदगी को तबाह कर सकते हैं।।

ऐसी हवा फैलाने वाले हम ना बनें।।

*लोगों के घरों में अंधे बनकर जाओ और वहां से गूंगे बनकर निकलो।।*

*(दिल से एक बार विचार जरूर करें)*

आज के समय में छुपे हुए कैमरे की क्या सार्थकता है?

 

अतुल गुरूग्राम (गुड़गांव) में एक सरकारी अध्यापक था। वह शहर की ही राजीव कॉलोनी में एक किराए का मकान लेकर रहता था। उसकी पत्नी अपने 8 साल के बेटे व 5 साल की बेटी के साथ गांव में ही रहकर अपने सास-ससुर की सेवा करती थी।

अपने खाली समय में अतुल अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ता और अपने शौक के लिए लिखता। उसने इस रोमांच के विचार से अपने ड्राइंग रूम में एक सीसीटीवी कैमरा लगवा लिया था कि वह खुद को खुद के निरीक्षण में रख सके।

यह एक अच्छा विचार था। अतुल को हमेशा इस बात का संतोष रहता था कि वह सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग में खुद को एक बुरे रूप में नहीं देखेगा। यह विचार उसे अपने निजी जीवन में अच्छा करने के लिए प्रेरित करता था।

(छवि; गूगल भाई से उधार ली है)

कोमल कुछ दिन पहले ही उसके पड़ोस में रहने आई थी, अपनी मां के साथ। कुछ दिन बाद ही उसने किसी न किसी काम के बहाने से अतुल के पास आना शुरू कर दिया। अतुल को उसका यूं आना अजीब सा लगता था; लेकिन झिझक के कारण वह कोमल को मना न कर पाया।

एक दिन कोमल किताब लेने के बहाने अतुल के पास आई। उसने चाय की फरमाइश की और खुद ही बना लाई। चाय खत्म करने के कुछ देर बाद उसने अतुल से एक लाख रुपए मांगे।

अतुल के दिमाग को एक झटका सा लगा और उसने मना कर दिया। कोमल ने अपने कपड़े अस्त-व्यस्त कर लिए और उसे छेड़छाड़ के आरोप में बदनाम करने व पुलिस में रिपोर्ट लिखाने की धमकी देने लगी।

(छवि गूगल भाई की उधारी है)

अतुल एकदम से सकपका गया और भीतर ही भीतर कांप उठा। लेकिन तभी उसे कुछ ख्याल आया और राहत सी महसूस हुई।

उधर कोमल ने चिल्लाकर पड़ोस को इकट्ठा कर लिया ताकि बाद में समझौते का दबाव बनाकर अतुल से एक मोटी रकम ऐंठ सके।

पड़ोसी अतुल को बुरा भला कहने लगे।

तभी अतुल ने फोन करके पुलिस को बुला लिया और सभी पड़ोसियों के साथ पुलिस वालों को भी सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग दिखाई। सभी का माथा ठनक गया।

आज सीसीटीवी ने अतुल का सामाजिक व आर्थिक बलात्कार होने से बचा लिया था।

अरुण कुमार उपाध्याय जी ने पुराणों के आधार पर राजवंशों पर लिखा है

 आदरणीय अरुण कुमार उपाध्याय जी ने पुराणों के आधार पर राजवंशों पर लिखा है, किन्तु उससे पूर्व आनन्द कुमार जी की पोस्ट से भूमिका स्पष्ट कर रहा हूँ, कल की पोस्ट के बाद बहुत से मित्रों के कई प्रश्न आए हैं, तो उनका समाधान भी आवश्यक है-

गुजरात में गिरनार की पहाड़ियों के पास जूनागढ़ है, जहाँ से गिर वन शुरू होते हैं वहां से थोड़ा ही दूर है | यहाँ अशोक का एक शिलालेख है | इसमें बताया गाय है की चन्द्रगुप्त मौर्य के एक सामंत पुष्यगुप्त ने यहाँ एक झील बनवाई थी, अशोक के समय तुशास्पा (जो की शायद ग्रीक था) उसने इस झील का काम पूरा करवाया | इसके नीचे शक (Scythian) राजा रूद्रदमन का लेख जोड़ा गया है | रूद्रदमन ने अपने शिलालेख में लिखवाया है की 72 वें साल ( शायद 150 AD) में एक बाढ़ और तूफ़ान से झील के नष्ट हो जाने के बाद उन्होंने इसका पुनः निर्माण करवाया | रुद्रदमन बड़े गर्व से बताते हैं की इसके लिए उन्होंने अतिरिक्त कर या जबरन किसी से मजदूरी नहीं करवाई | कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती | इसके नीचे तीन सौ साल बाद गुप्त वंश के स्कंदगुप्त लिखवाते हैं कि 455-56 AD के दौरान इस झील को फिर से ठीक करवाने का काम उन्होंने करवाया |

दरअसल जूनागढ़ का शाब्दिक अर्थ ही पुराना किला होता है | माना जाता है की कृष्ण की सेना ने यहाँ किला बनवाया था | बाद में शक, राजपूत, मुस्लिम कई राजाओं ने यहाँ राज किया | 1947 में भारत की आजादी के समय भी जूनागढ़ के अनोखे किस्से हैं | उन्हें कभी बाद में देखेंगे |

यहाँ सबसे मजेदार होता है अशोक का शिलालेख | अपने किसी भी शिलालेख में अशोक अपना नाम अशोक नहीं लिखवाते थे | उनका नाम प्रियदर्शी लिखा होता है | लगभग सारे ही उस काल के शिलालेख पाली में लिखे होते हैं | अब इतिहासकारों के लिए बड़ी समस्या हुई | प्रियदर्शी नाम समझ आये, पाली लिपि से मौर्य वंश का काल भी समझ आता था | मगर ये राजा कौन सा था ये पता नहीं चल पाता था | रोमिला थापर ने कई शिलालेखों का अनुवाद तो किया मगर अब भी अशोक को स्थापित करने में दिक्कत थी | नाम और वंशावली तो कहीं लिखी ही नहीं थी | ऐसे में पुराण काम आये |

जी हाँ वही हिन्दुओं वाले धर्मग्रन्थ पुराण | मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण और वायु पुराण में मौर्य वंश की पूरी वंशावली ही लिखी थी | तो उनके जरिये ये पक्का किया जा सका की ये जो प्रियदर्शी है वही अशोक है |

अच्छा हाँ, पुराण जो हैं वो मिथक हैं, इतिहास नहीं है???
✍🏻आनन्द कुमार

नेपाल राजवंश-
यह पूर्ण रूप में उपलब्ध है क्योंकि नेपाल स्वाधीन रहा है। यह गुह्यक स्थान था जहां विक्रमादित्य ने तपस्या की थी। नेमिनाथ (युधिष्ठिर का संन्यास नाम) का शिष्य बनने पर यह नेपाल बना। यह इण्डियन ऐण्टिकुअरी, खण्ड १३ में प्रकाशित हुई थी जिसके आधार पर पं. कोटा वेंकटाचलम ने नेपाल कालक्रम (अंग्रेजी, १९५३) लिखा।
गोपाल वंश- १. भुक्तमानगत गुप्त (४१५९-४०७१ ई.पू.), २. जय गुप्त (४०७१-३९९९), ३. परम गुप्त (३९९९-३९१९), ४. हर्षगुप्त (३०१०-३८२५), ५. भीमगुप्त (३८२६-३७८८), ६. मणिगुप्त (३७८८-३७५१), ७. विष्णुगुप्त (३७५१-३७०९), ८. यक्षगुप्त (निस्सन्तान, भारत से अहीर वंश बुलाया)-(३७०९-३६३७)
अहीर वंश-३राजा २०० वर्ष तक (३६३७-३४३७ ई.पू.)-९. वरसिंह, १०. जयमतसिंह, ११. भुवनसिंह।
किरात वंश-७ राजा महाभारत काल तक ३०० वर्ष (३४३७-३१३७ ई.पू.), उसके बाद २२ राजा ८१८ वर्ष (३१३८-२३१९ ई.पू.)
१२. यलम्बर, १३. पवि, १४. स्कन्दर, १५. वलम्ब, १६. हृति, १७. हुमति-पाण्डवों के साथ वन गया।, १८. जितेदास्ति-महाभारत में पाण्डव पक्ष से युद्ध कर मारा गया। १९. गलि (महाभारत के बाद ३६३७ ई.पू. में राजा), २०. पुष्क, २१. सुयर्म, २२. पर्भ, २३. ठूंक, २४.  स्वानन्द, २५. स्तुंक, २६. घिघ्री, २७. नाने, २८. लूक, २९. थोर, ३०. ठोको, ३१. वर्मा, ३२. गुज, ३३. पुष्कर, ३४. केसु, ३५. सूंस, ३६. सम्मु, ३७. गुणन, ३८. किम्बू, ३९. पटुक, ४०. गस्ती।
सोमवंश-१२ राजा ६०७ वर्ष (२३१९-१७२ ई.पू.)-४१. निमिष, ४२. मानाक्ष, ४३. काकवर्मन्, ४४-४८-लुप्त नाम, ४९. पशुप्रेक्षदेव-१८६७ ई.पू. में इसने भारत से कुछ व्यक्ति बुलाये। पशुअतिनाथ मन्दिर का पुनः निर्माण। (महावीर, सिद्धार्थ बुद्ध का काल)-४१-४९, ये ९ राजा ४६४ वर्ष (२३१९-१८५५ ई.पू.) ५०-५१. अज्ञात, ५२. भास्करवर्मन् (३ राजा १८५५-१७१२ ई.पू.)-इसने भारत को जीता। निस्सन्तान होने के कारण सूर्यवंशी राजा भूमिवर्मन को गोद लिया।
सूर्यवंश-३१ राजा १६१२ वर्ष (१७१२-१०० ई.पू.)-५३. भूमिवर्मन (१७१२-१६४५ ई.पू.), ५४. चन्द्रवर्मन (१६४५-१५८४), ५५. जयवर्मन (१५८४-१५०२), ५६. वर्षवर्मन (१५०४-१४४१), ५७. सर्ववर्मन (१४४१-१३६३), ५८. पृथ्वीवर्मन (१३६३-१२८७), ५९. ज्येष्ठवर्मन (१२८७-१२१२), ६०. हरिवर्मन (१२१२-११३६), ६१. कुबेरवर्मन (११३६-१०४८), ६२. सिद्धिवर्मन (१०४८-९८७), ६३. हरिदत्तवर्मन (९८७-९०६), ६४. वसुदत्तवर्मन (९०६-८४३),६५. पतिवर्मन (८४३-७९०), ६६. शिववृद्धिवर्मन (७९०-७३६), ६७. वसन्तवर्मन (७३६-६७५), ६८. शिववर्मन (६७५-६१३), ६९. रुद्रवर्मन (६१३-५४७), ७०. वृषदेववर्मन (५४७-४८६)-इस कालमें (४८७ ई.पू.) शंकराचार्य यहां आये थे तथा १२ बोधिसत्त्वों को शास्त्रार्थ में पराजित किया। नेपाल राजा को पुरी राजा के समान राजा रूप में श्रीजगन्नाथ पूजा का अधिकार। अपने पुत्र का नाम शंकराचार्य के नाम पर शंकर रखा। ७१. शंकरदेव (४८६-४६१), ७२. धर्मदेव (४६१-४३७), ७३. मानदेव (४३७-४१७), ७४. महिदेव (४१७-३९७), ७५. वसन्तदेव (३९७-३८२), ७६. उदयदेव वर्मन (३८२-३७७), ७७. मानदेव वर्मन (३७७-३४७), ७८. गुणकामदेव वर्मन (३४७-३३७), ७९. शिवदेव वर्मन (३३७-२७६), ८०. नरेन्द्रदेव वर्मन (२७६-२३४), ८१. भीमदेव वर्मन (२३४-१९८), ८२. विष्णुदेव वर्मन (१९८-१५१), ८३. विश्वदेव वर्मन (१५१-१०१)-इसका पुत्र नहीं था। अपनी पुत्री का विवाह ठाकुरी वंश के अंशुवर्मन से कर उसको राजा बनाया।
ठाकुरी वंश-२१ राजा ८९९ वर्ष (१०१ ई.पू. से ७९८ ई. तक)-८४. अंशुवर्मन (१०१-३३ ई.पू.)-इनकी व्याकरण की पुस्तक विख्यात थी जिसका उल्लेख चीनी यात्री हुएनसांग (६४२ ई.) ने किया है। इस काल में उज्जैन के परमार राजा विक्रमादित्य यहां आये तथा ५७ ई.पू. में पशुपतिनाथ में चैत्र शुक्ल से विक्रम संवत् आरम्भ किया। अंशुवर्मन के कई दानपत्र चाहमानशक में, विक्रमादित्य के आने पर विक्रम सम्वत् में हैं। इनके पुत्र जिष्णुगुप्त कुछ काल तक राजा रहने के बाद विक्रमादित्य राज्य में ज्योतिष का अध्ययन करते थे, वराहमिहिर के समकालीन। इनके पुत्र ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के लेखक   ब्रह्मगुप्त जिष्णुसुत के रूप में विख्यात।
८५. कृतवर्मन् (३३ ई.पू.-५४ ई.), ८६. भीमार्जुन (५४-१४७ ई.), ८७. नन्ददेव (१४७-१७२), ८८-अज्ञात (१७२-२३२), ८९-अज्ञात (२३२-२९९), ९०. वीरदेव (२९९-३९४), ९१. चन्द्रकेतुदेव (३९४-४६०), ९२. नरेन्द्रदेव (४६०-५१६), ९३. वरदेव (५१६-५७०)-इनके शासन में एक शंकराचार्य तथा अवलोकितेश्वर ५२२ ई. में आये थे। ९४. नरमुदि (५७०-६१५), ९५. शंकरदेव (६१५-६२७), ९६. वर्धमानदेव (६२७-६४०), ९७. बलिदेव (६४०-६५३), ९८. जयदेव (६५३-६६८), ९९. बलार्जुनदेव (६६८-६८५), १००. विक्रमदेव (६८५-६९७), १०१. गुणकामदेव (६९७-७४८), १०२. भोजदेव (७४८-७५६), १०३. लक्ष्मीकामदेव (७५६-७७८), १०४. जयकामदेव (७७८-७९८)
नवकोट ठाकुरी वंश-१.भास्करदेव, २. बलदेव, ३. पद्मदेव, ४. नागार्जुनदेव, ५. शंकरदेव-इनके राज्य में २४५ सम्वत् में प्रज्ञा पारमिता पुस्तक स्वर्ण अक्षरों में लिखी गयी थी। इनकी मृत्यु के बाद अंशुवर्मन परिवार के एक वंशज वामदेव ने द्वितीय ठाकुरी वंश का शासन आरम्भ किया।
द्वितीय ठाकुरी वंश-अंशुवर्मन् के वंशज (७२०-९४५ ई.)-१. वामदेव, २. हर्षदेव, ३. सदाशिवदेव ने ७५० ई. में पशुपतिनाथ मन्दिर के लिये सोने की छत दी तथा उसके दक्षिण-पश्चिम में कीर्तिपुर बनाया। उनके लौह-ताम्र सिक्के हैं जिन पर सिंह चिह्न है। ४. मानदेव (१० वर्ष)-चक्रविहार में सन्यासी हो गया। ५. नरसिंहदेव (२२ वर्ष), ६. नन्ददेव (२१ वर्ष), ७. रुद्रदेव (१९ वर्ष)-बौद्ध सन्यासी, ८. मित्रदेव (२१ वर्ष), ९. अत्रिदेव (२२ वर्ष), १०. अभयमल्ल, ११. जयदेवमल्ल(१० वर्ष), १२. आनदमल्ल (२५ वर्ष)-भक्तपुर आदि ७ नगर बनाये।
कर्नाटक वंश-१. नान्यदेव- नेपाल सम्वत् ९ या शालिवाहन शक ८११, श्रावन सुदी ७ को कर्नाटक के नान्यदेव नेपाल के राजा बने, भाटगाम में ५० वर्ष शासन। मिथिला पर भी शासन। २. गंगदेव (४१ वर्ष), ३. नरसिंहदेव  (३१ वर्ष), ४. शक्तिदेव (३९ वर्ष), ५. रामसिंहदेव (५८ वर्ष), ६. हरिदेव (४१ वर्ष)
✍🏻अरुण कुमार उपाध्याय

आखिर संख्या 420 को ठगी से क्यों जोड़ा जाता है?

 

अधिकतर लोगों के मुंह से 420 तो सुना ही होगा। हमारे आसपास बहुत लोग किसी गलत काम करने वाले को या झूठ बोलने वाले को 420 जरूर बोलते सुना होगा। लेकिन 420 नम्बर के बारे में कभी सोचा जरूर होगा कि आखिर हर गलत काम में इसका प्रयोग क्यों होता है।

आइए जानते हैं कि आखिर 420 का प्रयोग झूठ बोलने वाले और किसी भी गलत काम करने वाले को क्यों बोला जाता है क्या इसके पीछे कोई रोचक राज छुपा है या फिर कुछ ऐसे ही।

1. आखिर 420 किसको बोलते है

हमारे समाज में कोई भी व्यक्ति या उनके समुदाय जो किसी व्यक्ति को धोखा दें या उसे बेईमानी करके कोई संपत्ति हड़पना चाहे या किसी भी प्रकार का कोई गलत काम करता है तो कौन गलत करने वाले व्यक्तियों को 420 ही बोलते हैं।

2. इसके पीछे कानूनी कारण

भारत की कानूनी दंड संहिता के अनुसार एक धारा 420 है जिसमें यह बताया गया है कि जो कोई भी व्यक्ति को धोखा दे या उसे बेईमानी से किसी भी व्यक्ति को कोई भी संपत्ति देने या किसी बहुमूल्य वस्तु या उसके हिस्से को या किसी हस्ताक्षरित या मुहरबंद दस्तावेज जो एक बहुमूल्य वस्तुओं पर भर्ती होने में सक्षम है।

और उसको किसी बहुमूल्य वस्तुएं परिवर्तित करने या बनाने या नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है तो उस व्यक्ति को किसी की एक अवधि के लिए उसको सजा हो सकती है।

और करावास 7 साल तक भी बढ़ाया जा सकता है इसके साथ उसे आर्थिक दंड भी दिया जा सकता है।

3. 420 के पीछे कानूनी सजा

अब आप तो समझ ही गए होंगे कि 420 कोई नाम नहीं यह एक अपराध है जिसके लिए भारत सरकार द्वारा सजा भी निर्धारित की गई है।

अगर कोई व्यक्ति छल करता है या बेईमानी करके किसी संपत्ति को परिवर्तित करने या नष्ट करने की कोशिश करता है तो उसे सत साल की सजा और जुर्माना भी हो सकता है क्योंकि यह एक गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है।

यह प्राप्त किसी भी न्यायाधीश के द्वारा ही विचार किया जाता है।
अगर कोई अपराधी पीड़ित व्यक्ति से समझौता करना चाहता है तो वह बिना न्यायालय के यदि व्यक्ति से समझौता नहीं कर सकता है।इसके लिए अपराधी को न्यायालय से अनुमति लेनी पड़ेगी।

अब आप लोग समझ ही गए होंगे कि 420 कोई नाम नहीं बल्कि एक अपराध है जिसके द्वारा कोर्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को दंडित करता है और अपराधी को सजा भी देती है।

मूर्तिकला/शिल्पकला के कुछ बेहतरीन और उन्नत नमूने

मेरे लिए कला वही श्रेष्ठ है जिसे, किस प्रकार बनाया गया होगा उसका अनुमान लगाना मुश्किल हो।

गुरुत्वाकर्षण के विपरित दिखाई पड़ती ये सुंदर कला😍 अदभुत।

शा बं मोहम्मद अब्बास एक पुरस्कार विजेता समकालीन मूर्तिकार हैं, जिनकी 17 नवंबर, 2010 को 41 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।टर्मिनल 3, काहिरा एयरपोर्ट, मिस्र में दृश्य भ्रम मूर्ति, शा बं अब्बास, 2008

यूक्रेनी कलाकार नज़र बाइलक ने कांस्य और कांच का उपयोग करके "बारिश" नामक इस आश्चर्यजनक 6 फुट ऊंची मूर्तिकला का निर्माण किया।

पानी के बुलबुले का चित्रण किस प्रकार किया गया होगा🧐🥺

ये आत्माएं लग रही हैं😮

ब्रूनो कैटेलानो, कांस्य धातु की मूर्तियां। 'The art of missing pieces'

'Jesus is my Swingset'

लुजविल केंटकी, में बनाया गया ये मेमोरियल एक छोटी बच्ची की याद में।

नाएबर्ग स्कल्पचर पार्क, मिनेसोटा।

कितनी बारीकी से अलग अलग जूते बनाए गए है,🤔

शूज़ ऑन द दनुबे प्रमेनेड, विश्वयुद्ध द्वितीय के दौरान 60 यहूदियों को इस किनारे बुडापेस्ट में, मारा गया था। सो उनके 60 जूतों के जोड़े यहां मेमोरियल के हिसाब से बनाए गए है।

ताइपेई जू, के दरियाई घोड़ा 👇

आर्ट फ्रॉम द बर्निंग मैन, एक व्यक्ति और उसके अन्तर्द्वन्द की कलाकृति👇

द केयरिंग हैंड, ग्लारस, स्विट्जरलैंड।👇

आइजक कॉर्डल, द्वारा बनाया गया ये कला का अदभुत नमूना👇बर्लिन। 'The politicians discussing the climate Change'

बेल्जियम, में Vaartkapoen, sint-jans- molenbeek, में बनी ये आकृति👇

पानी के भीतर इतनी श्रेष्ठ आकृतियां👌👏 कैनकुन, अंडरवाटर म्यूजियम।

पेज ब्रैडले की कलाकृति👇A meditating sculpture,

नेल्सन मंडेला का ये विशाल 9 फुट लंबा स्टैचू, धातु से बना, साउथ अफ्रीका।👇

लोरेंजो क्विन्न का, giant hands rise from Venice canal👇

लंदन का स्विमर स्टैचू👇 ये पूरा का पूरा कबाड़ से बनाया गया है। इसे देखकर लगता है कि घास पर कोई तैराकी कर रहा है।

उत्कृष्ट😍 सिंगापुर टूरिज्म, द्वारा ये सिंगापुर के बच्चों के सागर में कूदने की कलाकृति, जो चोंग फा चेओंग, द्वारा बनाई गई है।

लोरंजो क्विन, द्वारा बनाए शिल्प 👇😍

ऐ जादुई नल👇दुनिया भर में लगाए गए है, बेल्जियम, स्पेन, स्विट्जरलैंड।

फ्रेंक कुमान, द्वारा बनाए गए स्टेनलेस स्टील के ये शिल्प👇😘

Jaume plensa, द्वारा बनाई गई कलाकृति👇इंडोनेशिया, तमंसरी, रवंग।

यह भी👇 लॉरेंजो क्विन, की ही कलाकृति है। इनके पूरे विश्व में शिल्प मौजूद हैं। ये कलाकृति, प्रकृति माता को समर्पित है।

कमाल की कला☝️😍 pauline Ohrel, द्वारा बनाई गई धातु की एकदम महीन तारों का अदभुत इस्तेमाल।

David Cerny द्वारा बनाए ये साइको एनालिस्ट सिगमुंड फ्यूड, एक खंबे से लटकते हुए। बेहद अनूठा☝️

उम्दा☝️😘

लकड़ी से बनाए गए ये☝️ शिल्प है, देब्रा बर्नियर द्वारा, जिसकी प्रेरणा है, "स्पिरिट्स ऑफ द फॉरेस्ट"।

Do ho Su, कोरिया के कलाकार, द्वारा बनाया गया ये शिल्प वाकई अद्वितीय है☝️' karma'

टिप्पणी में जरूर बताएं कैसी हैं।

चित्र स्त्रोत गूगल इमेजेस और पिन इंटरेस्ट।

सोमवार, 16 जनवरी 2023

भाषा की दरिद्रता : नाम हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है?

भाषा की दरिद्रता :  नाम 

हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? 
उत्तर भारतीय हिन्दू समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है. 
एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, बताया पोती का नाम अवीरा है, बड़ा ही यूनिक नाम रखा है। पूछने पर कि इसका अर्थ क्या है, बोले कि बहादुर, ब्रेव कॉन्फिडेंशियल। सुनते ही दिमाग चकरा गया। फिर बोले कृपा करके बताएं आपको कैसा लगा?  मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत हीअशोभनीय नाम है। नहीं रखना चाहिए. उनको बताया कि
1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित (स्त्री) 
2. स्वतंत्र (स्त्री) उसका नाम होता है अवीरा.
नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः  सा अवीरा 

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए,  बोले महाराज क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?

आजकल लोग नया करने की ट्रेंड में कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं जैसे कि लड़की हो तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा ... लड़का हो तो वियान, कियान, गियान, केयांश ...और तो और इन शब्दों के अर्थ पूछो तो  दे गूगल ...  दे याहू ... और उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला"
नाम को यूनीक रखने के फैशन के दौर में एक सज्जन  ने अपनी गुड़िया का नाम रखा "श्लेष्मा". स्वभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में था. सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! इसका अर्थ क्या होता है? तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो" मैं सर पकड़ कर 10 मिनट मौन बैठा रहा ! मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है तो पूछ बैठे. क्या हुआ have I said anything weird? मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का mucus" उसके बाद जो होना था सो हुआ.

यही हालात है उत्तर भारतीय हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग का। न जाने हो क्या गया है उत्तर भारतीय हिन्दू समाज को ? फैशन के दौर में फैंसी कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग हिन्दू समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है

अशास्त्रीय नाम न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है - जो इसके तात्कालिक कुप्रभाव हैं.
भाषा की संकरता इसका दूरस्थ कुप्रभाव है.

नाम रखने का अधिकार दादा-दादी, भुआ, तथा गुरुओं का होता है. यह कर्म उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है.
आप जब दादा दादी बनेंगे तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएँ उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उसपर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, विचार करें. अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई "श्लेष्मा" हो सकती है,कोई भी अवीरा हो सकती है।

शास्त्रों में लिखा है व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ती है.
नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।
नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत:  प्रशस्तं खलु नामकर्म।
{वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}

स्मृति संग्रह में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.
आयुर्वर्चो sभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।
 नामकर्मफलं त्वेतत्  समुद्दिष्टं मनीषिभि:।।

नाम कैसा हो--
नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है पारस्करगृह्यसूत्र  1/7/23 में बताया गया है-
द्व्यक्षरं चतुरक्षरं वा घोषवदाद्यंतरस्थं। 
दीर्घाभिनिष्ठानं कृतं कुर्यान्न तद्धितम्।। 
अयुजाक्षरमाकारान्तम् स्त्रियै तद्धितम् ।।
इसका तात्पर्य यह है कि बालक का नाम दो या चारअक्षरयुक्त, पहला अक्षर घोष वर्ण युक्त, वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा वर्ण, मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदिऔर नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त हो तद्धितान्त न हो।
जैसे देव शर्मा ,सूरज वर्मा ,कन्या का नाम विषमवर्णी तीन या पांच अक्षर युक्त, दीर्घ आकारांत एवं तद्धितान्त होना चाहिए यथा श्रीदेवी आदि।

धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं -
१ देवनाम
२ मासनाम 
३ नक्षत्रनाम 
४ व्यावहारिक नाम 

नोट -कुंडली के नाम को व्यवहार में नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए. यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की आवश्यकता होती है, व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का नाम गुप्त होना चाहिए।

हमारे शास्त्रों में वर्ण अनुसार नाम की व्यवस्था की गई है ब्राह्मण का नाम मंगल सूचक, आनंद सूचक, तथा शर्मा युक्त होना चाहिए. क्षत्रिय का नाम बल रक्षा और शासन क्षमता का सूचक, तथा वर्मा युक्त होना चाहिए, वैश्य का नाम धन ऐश्वर्य सूचक, पुष्टि युक्त तथा गुप्त युक्त होना चाहिए, अन्य का नाम सेवा आदि गुणों से युक्त, एवं दासान्त होना चाहिए।

पारस्कर गृहसूत्र में लिखा है -
शर्म ब्राह्मणस्य वर्म क्षत्रियस्य गुप्तेति वैश्यस्य

शास्त्रीय नाम की हमारे सनातन धर्म में बहुत उपयोगिता है मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण उसमें विद्यमान होते हैं. बालकों का नाम लेकर पुकारने से उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है इसीलिए नाम में यदि उदात्त भावना होती है तो बालकों में यश एवं भाग्य का अवश्य ही उदय संभव है।

हमारे सनातन धर्म में अधिकांश लोग अपने पुत्र पुत्रियों का नाम भगवान के नाम पर रखना शुभ समझते हैं ताकि इसी बहाने प्रभु नाम का उच्चारण भगवान के नाम का उच्चारण हो जाए।
भायं कुभायं अनख आलसहूं। 
नाम जपत मंगल दिसि दसहूं॥

विडंबना यह है की आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूल रूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है. इससे बचें शास्त्रोक्त नाम रखें इसी में भलाई है, इसी में कल्याण है।
जै राम जी की।

कीकर और बबूल का गोंद सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है।

 कहा जाता हैं कि सर्दियों में गर्म तासीर वाली चीजें खानी चाहिए, इससे ठंड नहीं लगती है और सीजनल बीमारियां भी दूर रहती हैं। यही वजह है कि सर्दियों में लहसुन,अदरक और काली मिर्च का खूब सेवन किया जाता है। सर्दियों में तो गोंद के लड्डू भी बड़े चाव से खाए जाते हैं।  बबूल गोंद को अक्सर लोग साधारण पेड़ समझ लेते हैं, लेकिन इसके हर हिस्से का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवा और घरेलू उपचार में किया जाता है। लेकिन गोंद  सेवन से आपकी ढलती उम्र में भी कमसिन नजर आएंगे। ये चीज है बबूल की गोंद, बबूल के तने को चीर लगाने पर जो रस निकलता है। वो सूखने पर ठोस और भूरा हो जाता है, इसे ही गोंद कहते हैं। लेकिन यह भी जानने की जरूरत है कि हर पेड़ का गोंद खाने लायक नहीं होता। कीकर और बबूल का गोंद सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। मार्केट में आपको खाने वाला गोंद आसानी से मिल जाएगा।

ऐसे करें गोंद का इस्तेमाल, 45 की उम्र में भी दिखेंगी 25 की...

गोंद खाने का तरीका:

बबूल का एक चम्मच गोंद मिश्री मिले दूध के साथ लेने से शरीर में ताकत का संचार होता है, बबूल की गोंद को मुंह में रखकर चूसने से खांसी ठीक हो जाती है, बबूल की गोंद, फली और छाल को बराबर मात्रा में लेने से कमर दर्द से छुटकारा मिलता है।

-सर्दियों में गोंद का सेवन दिमागी तरावट और जोड़ों में दर्द व जोड़ों की अन्य समस्याओं के लिए काफी फायदेमंद होता है।

ऐसे करें गोंद का इस्तेमाल, 45 की उम्र में भी दिखेंगी 25 की...

-गोंद खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता सुधरती है। इसीलिए सर्दियों में गोंद के लड्डू खाए जाते हैं।

गोंद में बहुत औषधीय गुण होते हैं साथ ही ये रक्त को शुद्ध करता है,जिससे कील मुंहासे आदि से छुटकारा मिल जाता है।

-गोंद हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। यह डिप्रेशन से भी बचाव करता है और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।

-गोंद स्किन के लिए भी बेहद फायदेमंद है। यह एक स्किन केयर एजेंट के तौर पर काम करता है।

ऐसे करें गोंद का इस्तेमाल, 45 की उम्र में भी दिखेंगी 25 की...

-जिन लोगों को फेफड़ों से संबंधित समस्या है, कमजोरी और थकान महसूस होती है, उन लोगों के लिए गोंद बड़े ही काम की चीज है।

स्त्रियों के लिए शारीरिक थकावट और बदन दर्द दूर करने का एक सामान्य परंतु कारगर तरीका


 स्त्रियों के लिए बड़ी अजीब सी बात है कि दिन भर खटने के बाद जब महिलाए रात में बिस्तर पर पहुंचती हैं तो आधे घंटे तक दर्द से कराहती रहती हैं ।




इसके कई कारण हैं ।

1 युवावस्था में दो फुल्के खाकर काम चला लेना ।

2 जंक फ़ूड ज्यादा मात्रा मे सेवन करना।

4 पानी बहुत कम पीना ।

5 छोटी छोटी बीमारियों को नज़रअंदाज करना ।

5 कास्मेटिक्स का ज्यादा मात्रा में प्रयोग करना ।

6 खान-पान मे लापरवाही करना ।

शारीरिक थकावट और बदन दर्द दूर करने का एक सामान्य परंतु कारगर तरीका :-

एक किलो मेथी दाने घी में भूनकर पीस लीजिए । अब इसमें 250 ग्राम बबूल का गोंद घी

में भून कर और पीस कर मिला दीजिए । सुबह शाम 1-1 चम्मच यानी 5-5 ग्राम पानी से निगल लीजिए । जब तक यह पूरी दवा खत्म होगी आप अपने आपको अधिक सुन्दर,

ताकतवर महसूस करेंगी । पूरे बदन में दर्द का कहीं नामोनिशान नहीं रहेगा और एक नयी

स्फूर्ति का अनुभव होगा ।

मातृभूमि से बढ़कर कोई और देश नही हो सकता,भारत मे जो अपनापन है वो किसी भी देश मे नही मिल सकता।

 डा. मीनाक्षी दो साल बाद लंदन से भारत लौटी हैं। वहाँ हर तरीके से सब कुछ बढ़िया होते हुए भी वो चैन से नही थी। विदेशी भूमि को उनका परिवार कभी अपना नहीं पाया। अब पटना  लौट कर चैन की सांस आई है।

दीपावली की कुछ शॉपिंग करने अपने प्रिय पटना मार्केट आई थीं।

तभी एक संभ्रांत महिला ने टोका, "मैडम, बहुत दिनों के बाद देखा आपको। आप शायद इंग्लैंड चली गई थीं...कितने दिनों के लिए आई हैं"।

वो बहुत अभिभूत सी थीं। वहां लंदन में कोई पहचानता भी नही था...किसी को किसी से कोई मतलब ही नही होता था और यहाँ इस महिला ने देखते ही पहचान लिया और रोक कर स्नेहप्रदर्शन भी किया।  उन्होने भी उतनी ही कोमलता से उस महिला से बात की।

अभी थोड़ा आगे बढ़ी ही थीं कि एक बड़े साड़ी शोरूम से एक सज्जन निकले और उनका अभिवादन किया,
"आप मैडम मीनाक्षी! बहुत दिनों के बाद दिखाई दी हैं। कहां रही इतने दिन?"

वो भी राकेश बाबू को पहचान कर बड़ी खुश हो गई, "अरे भाईसाहब, आपने हमें पहचान लिया। हमारी ननद के विवाह की काफ़ी खरीदारी आपके यहां से ही तो की गई थी"।

वो भी बहुत आत्मीयता से बोले, "जी बिल्कुल याद है।  आपने तो मेरे पोते को नया जीवन दिया था। मेरा परिवार तो आपका सदा ही ऋणी रहेगा।"
 उन्होने उनको शोरूम के अंदर आकर कॉफी़ पीने का आग्रह किया।  वो उस स्नेही आग्रह को ठुकरा नहीं सकीं...सारे कामों की लिस्ट उनके मन में उछलकूद मचा रही थी पर उस स्नेह...उस आत्मीयता... उस प्यार भरी मनुहार को कैसे टाल दें जिसके लिए वहाँ सुदूर इंग्लैंड में वो हर पल...हर क्षण तड़पती रही थीं।

कॉफी़ पीते पीते उन्हें बुआजी की याद आ गई।  आज सुबह ही तो वो कितना अचरज कर रही थी, "अरे मीनू, इतना बढ़िया जॉब, इतना ठाठबाट... सबसे बढ़ कर इतना सुंदर देश...सब छोड़छाड़ कर तुम लोग यहाँ वापस कैसे आ गए? जो एक बार जाता है.. बस वहीं का होकर रह जाता है।"

उस समय तो वो सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई थीं पर अब बुआजी की बात का...उनके अचरज का  जवाब देने का मन हो रहा था...देखिए बुआजी... यही अपनापन...यही अपनी पहचान ...जो शायद वहां की चमकदमक में कहीं ओझल सी हो गई थी...वहाँ की सुंदर राजसी सड़कों पर कोई पहचानने वाला नहीं था...यहाँ तो कदम कदम पर अपने लोग हैं...अपनापन है।
उसके बाद डॉ मीनाक्षी ने मुड़कर लंदन नही देखा और यही रख कर लोगो का कम पैसे में इलाज किया ताकि जरूरतमन्दों का सफल इलाज कर सकें।

💐💐शिक्षा💐💐

दोस्तों, अपनी मातृभूमि से बढ़कर कोई और देश नही हो सकता,भारत मे जो अपनापन है वो किसी भी देश मे नही मिल सकता।

function disabled

Old Post from Sanwariya