हां ली थी पर तब पता नही था मौत से टक्कर हुई है….
सीधे घटनास्थल की ओर लिए चलता हूं आपको जहां थोड़े समय पूर्व ही ये घटना घटित हुई थी।
हमारे इंदौर से निकट पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र है जिसके अंतर्गत बजरंगपुरा नामका एक गांव आता है, मौत से टक्कर यहीं पर थी।
मित्रों बजरंगपुरा का नाम बजरंगपुरा इसीलिए है क्योंकि यहां एक बहुत विशाल हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है।
उन दिनों परम मित्र नई नई स्कॉर्पियो एन गाड़ी लाया था वो भी फोर बाय फोर, यानी सही मायनों में एक एसयूवी जो कच्चे पक्के रास्तों या बिना रास्तों पर भी चलने का दम भर रही थी।
"चलो देखा जाए कहां कहां तक स्कॉर्पियो जा सकती है!"
मन में अद्भुत विचार ने जन्म लिया और पूरी मित्र मंडली ने खुली बाहों से इस विचार का स्वागत किया।
तो बस साहब मार्च महीने के एक भले इतवार के दिन हम छः लड़के तैयार होके नई नवेली स्कॉर्पियो एन में सवार फोर लेन हाईवे से गुजरते हुए बजरंगपुरा के जंगलों में घुस गए।
मुझे ज्यादा नहीं पता पर कुछ खदान थी उस पहाड़ पर जहां जगह जगह मशीनों से पत्थर काटे जाने के बड़े बड़े गढ्ढे बने हुए थे, दो दिन भारी पानी बरसा था तो गढ्ढों में दो तीन फीट पानी भी जमा हो गया था।
एडवेंचरप्रेमी हम छहों जन गाड़ी की एक्सट्रीम टेस्ट ड्राइव करते हुए ऊंची चढ़ाई चढ़ाकर इसको बजरंगपुरा के ऊपर समतल जमीन तक ले गए, कुछेक बार गियर डाउन करने के अलावा गाड़ी मक्खन जैसी पहाड़ चढ़ गई बिना किसी समस्या के।
अब वापसी में हमारे सामने वही सीधी चढ़ाई एक खड़ी ढलान बनकर खड़ी थी।
दो दिन के तेज पानी ने कीचड़ और मिट्टी से मिलकर भयानक फिसलन पैदा कर दी थी, ऊपर से हम इसी रास्ते से चढ़कर गए थे तो टायरों ने उस पहले से फिसलन भरे रास्ते में चार चांद लगा दिए थे।
मैं गया तो नही हूं पर जैसा लोग बताते है की चार धाम या हिमाचल में ऐसी संकरी रोड मिलती है जहां एक हल्का सा गलत स्टीयरिंग मोड़ और आप सीधे खाई में जायेंगे जहां से चीथड़े ही मिलेंगे, वैसी ही ये रोडनुमा पगडंडी हो रखी थी पहाड़ी से उतार की।
"।। चलत बिमान कोलाहलु होई जय रघुबीर कहइ सबु कोई ।।"
बोलकर गाड़ी चालू की और बढ़ चला नीचे की ओर।
"चलत बिमान…" श्रीरामचरितमानस के लंका काण्ड के अंतिम दोहों में से एक अर्धाली है उस मंगलमय प्रसंग की जब प्रभु श्री राम मां जानकी और लक्ष्मण जी समेत सभी वानर सखाओ और विभीषण जी के साथ लंका से पुष्पक में में बैठकर अवध की ओर प्रस्थान करते है।
मुझे गुरुदेव ने सिखाया था की जब भी यात्रा शुरू करते समय साइकिल पर बैठ या स्कूटर पर या बाइक पर या कार–बस–ट्रेन में या हवाई जहाज में बैठे तो ये अर्धाली एक बार बोल लेना यात्रा शुरू होने से पहले।
जिन्दगी में कभी एक्सीडेंट से मृत्यु नही होगी तेरी! राम तेरी रक्षा करेंगे!
हां तो मैंने भाईसाहब हिल डिसेंट कंट्रोल चालू किया और धीमे धीमे गाड़ी नीचे उतारने लगा।
गाड़ी लगभग डेढ़ टन की और हम छः जन मिलाकर लगभग दो टन का वजन लगभग सीधी ढलान से नीचे आ रहा था, पहियों से बने गढ्ढों में गाड़ी स्लिप मार रही थी मुझे अच्छे से एहसास हो रहा था स्टीयरिंग काटते समय।
तभी एक जगह ऐसी आई उस पगडंडी पर की जहां थोड़ा सा भी ज्यादा लेफ्ट की ओर स्टीयरिंग काटता तो गाड़ी सीधे नीचे खदान के गढ्ढे में गिरना तय था।
जिन्हे कार चलाना आता है वे समझेंगे की नैसर्गिक रूप से हम राइट साइड यानी जहां स्टीयरिंग पकड़ कर बैठे है उस साइड का जजमेंट आसानी से कर पाते है बनिस्बत लेफ्ट साइड के यानी को पैसेंजर वाली साइड के।
ये तो ये नई गाड़ी, दूसरा मैं पहली बार चला रहा था, तीसरा खतरनाक ढलान पर चला रहा था और चौथा लेफ्ट साइड वाला मोड़ ज़बरदस्त खतरनाक लग रहा था।
भाईसाहब मैंने हल्का सा रेस देकर तेजी से मोड़ काट लेना चाहा पर…..
धाड़….
तेज आवाज के साथ गाड़ी किसी चीज से टकराई और एकदम से बंद हो गई!
तुरंत मैं और पीछे के दो बंदे राइट साइड वाला गेट खोलकर उतरे और भागकर देखा की आखिर हुआ क्या है!
और जो देखा तो देखकर होश उड़ गए थे!
मेरे पैर के घुटने बराबर साइज की बड़ी मजबूत सी पत्थर की शिला के आगे आकर लेफ्ट साइड का टायर टकरा गया था जिससे बड़ी तेज आवाज़ भी हुई और गाड़ी भी रुक गई थी।
पर…पर….
मैंने पत्थर देखकर समझ लिया था की तेजी से लिया टर्न मेरी गलती थी!
अगर ये पत्थर बीच में ना आता तो गाड़ी सीधे नीचे खदान के बने गढ्ढे में गिरना तय थी!
पीछे से आए दोनो मित्रों ने पत्थर देखा और फिर मेरी ओर देखा, मैने भी पत्थर की ओर आंखो से इशारा करके मित्रों को दिखाकर आसमान में प्रणाम किया!
"राम जी ने बचा लिया यार!"
बस उस समय तो मुंह से यही निकल पाया।
फिर वो दोनो मित्र बाहर ही रुके, मैने गाड़ी में बैठकर चालू करने की कोशिश की जो पहली बार में ही स्टार्ट हो गई और फिर उन दोनो मित्रों की सहायता से गाड़ी बैक लेकर फिर से पगडंडी पर लाया तो धीरे धीरे जजमेंट करते करते अंततः नीचे मैदान तक गाड़ी उतार ली।
देखो ऐसा है मित्रों की गरम खून में आप कई बार ऐसी हरकतें करते है जिसे एक समझदार बंदा दूर से देखने पर पागलपन या सुसाइड कहने के अलावा और कोई नाम ना दे।
पर आप वो हरकतें करते है क्योंकि आप वास्तव में कभी कभी मूर्खता की पराकाष्ठा पर करते है, अच्छे भले सिक्स लेन हाईवे से घुमाकर गाड़ी ऐसी पगडंडी पर भेड़ देते है जहां बाइक जाने से भी मना कर दे।
और उन मूर्खता की पराकाष्ठा भरे क्षणों में आप बस एक सही काम करते है:
"राम हमारे साथ है" इसको याद रखते है!
फिर किसी पत्थर के बहाने से राम आपके जीवन की रक्षा करते है उस समय जब आप बस मौत से टक्कर ले ही रहे होते है।
मित्रों मार्च महीने से जब से ये घटना हुई, मैं सोचता था की इसे आपलोगो के साथ साझा करूंगा लिखूंगा पर जाने क्यों मन नहीं मानता था, अभी नही/रुको/आज की और लिख ले….
अब आज यहां इंदौर में भयानक बारिश है और भारत में भी मानसून प्रवेश कर गया है, ऐसे मौसम में भारत भर के पर्यटन प्रेमी लॉन्ग ड्राइव पर निकलेंगे ही निकलेंगे, तो अपनी ओर से एक सलाह..एक नही दो सलाह देना चाह रहा हूं:
पहली तो ये की "भईया/बहना गाड़ी कंट्रोल में और सीधे सपाट रास्तों पर ही चलने देना, ऑफरोड का कीड़ा ठंडी–गर्मी के लिए रहने देना।"
दूसरी सलाह या इसे एक शुभकामना समझिए:
अपने राम को सदा स्मरण रखना! राम तो हमेशा रक्षा करते ही है भले आप कितने बड़े मूर्ख ही क्यों ना हो!
हम मूरख जो काज बिगाड़े राम वो काज संवारे…..
जय राम जी की🙏