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शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

समाज के सभी वर्णों के लोगों के आर्थिक उन्नयन का आधार - छठ पूजा

हिन्दू वर्ण-व्यवस्था "व्यवस्था" की बात थी इसलिये वहाँ त्योहारों और संस्कारों के माध्यम से ऐसे प्रावधान रखे गये थे, ऐसे रीति-रिवाज गढ़े गये थे कि उसमें समाज के सभी वर्णों के लोगों के आर्थिक उन्नयन का आधार मौजूद था। 

ऐसा ही एक बड़ा माध्यम बनाया गया था छठ पर्व को; जो आज बिहार की सीमा से बाहर निकल कर वैश्विक स्वरूप लेने की ओर अग्रसर है।

ये पर्व न जाने कब से समाज के अर्थ-संचालन को गति देता रहा है; जिससे समाज के हरेक तबके का आर्थिक उन्नयन होता रहा और समाज को धर्मांतरण के खतरे से भी बचा रहा।

पिछले साल छठ पूजा के अगले दिन मैं एक अखबार में छपी खबर पढ़ रहा था, जिसमें लिखा था कि इस छठ के अवसर पर केवल मुजफ्फरपुर जिले के अंदर सूप और बांस की टोकरी का व्यापार 52 करोड़ रूपए का था। बिहार में जिस जाति के लोगों का सूप और टोकरी के व्यवसाय पर एकाधिकार है वो सबके सब "डोम जाति" के हैं जिन्हें बिहार सरकार ने महादलित की सूची में रखा है। 

अब सोचिये कि सूप और टोकरी के व्यवसाय से समाज के किस वर्ग का हित-साधन हुआ? 

इस व्यवसाय से जुड़े लोग साल भर छठ पर्व की प्रतीक्षा करतें हैं; क्योंकि अकेले इस पर्व से ही उनकी आमदनी इतनी हो जाती है कि पूरे साल उन्हें धन का अभाव नहीं रहता। रोचक बात ये है कि इस व्यवसाय में सहभागिता अधिकांशतः महिलाओं की होती है। इसी तरह छठ पर्व के दौरान मिट्टी के बने चूल्हे, हाथी की प्रतिमा और कुंभ (घड़े) की बिक्री भी उतनी ही होती है जो कुंभकार समाज को लाभान्वित करता है। गन्ने , दूसरे मौसमी फल और केले की खेती करने वालों की साल भर में जितनी बिक्री नहीं होती उतनी अकेले इस पर्व में हो जाती है।

आज उपभोक्तावाद अपने चरम पर है, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ लगभग हमारे घरों में घुस चुकी है पर एक बिहारवासी होने के नाते मुझे गर्व है कि मेरे यहाँ का ये त्योहार केवल और केवल मेरे देश के लोगों को रोजगार देता है। इसलिये छठ स्वदेशी भाव जागरण और और अपने लोगों को रोजगार देने का बहुत बड़ा माध्यम भी है।

छठ पर्व का महत्त्व हम बिहार-वासियों के लिये केवल यहीं तक नहीं है। आज मिशनरियों ने अपने मत-प्रचार के लिये बिहार को निशाने पर लिया हुआ है पर अपने "इन्वेस्टमेंट" के अनुरूप उन्हें बिहार में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह लोक-आस्था का महापर्व छठ भी है। एक ही घाट में व्रत करते व्रतियों में समाज के कथित उच्च जाति के लोगों से लेकर समाज के निचले पायदान पर खड़े लोग भी होतें हैं, जहाँ जाति-भेद और अस्पृश्यता पूरी तरह मिट जाता है। 

"जाति से इतर व्रत करने वाली हरेक महिला देवी का रूप होती है जिसके पैर छूकर प्रसाद लेने को लोग अपना सौभाग्य समझतें हैं।"

ट्रेन में किसी भी तरह कष्ट सह के अगर कोई बिहारवासी छठ पर अपने घर जाता है तो उसका मजाक मत बनाइये, उसके ऊपर चुटकुले मत बनाइये। कम से कम इस बात के लिये उसका अभिनन्दन करिये कि उसने अपनी परंपरा को इतने कष्ट सह कर भी अक्षुण्ण रखा है और अपने समाज के सबसे निम्न तबके के न सिर्फ आर्थिक उन्नयन में परोक्ष सहायता कर रहा है बल्कि उन्हें विधर्मियों के पाले में भी जाने से बचाये रखा है।

पिछले वर्ष नाक तक लगे सिंदूर के कारण छठ व्रती महिलाओं का मजाक उड़ाने वाली "मैत्रियी पुष्पाओं" के निशाने पर छठ का पर्व इसीलिये आया था क्योंकि यह पर्व उनके आकाओं द्वारा मतान्तरण का फसल काटने देने में बाधा बन रहा है, साथ ही इस पर्व में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दाल नहीं गल पा रही है और तो और उत्तर आधुनिकता और नारीवाद का फ़र्ज़ी आडम्बर भी ध्वस्त हो रहा है; क्योंकि नाक तक सिंदूर लगाने वाली महिलाएँ इस परंपरा को दकियानूसी परंपरा नहीं मानतीं।

हर्ष की बात है कि छठ पर कु-प्रचार करने की कोशिश करने वाली पुष्पा सरीखी "विष-कन्याओं" के खिलाफ हर राज्य से लोगों ने आगे आकर उसका विरोध किया था।

समाज की शक्ति इसी तरह संगठित रहे तो भारत का हित हमेशा अक्षुण्ण रहेगा।

दलित- महादलित और जाति की राजनीति करने वालों के पास छठ जैसे त्योहार का कोई विकल्प है जो उन लोगों का इतने बड़े पैमाने पर आर्थिक उन्नयन करती हो?  और अगर नहीं है तो क्यों नहीं वो हिन्दू धर्म के उज्ज्वल पक्षों को स्वीकार करते हैं? 

छठ को एक अलग नज़रिये से भी देखने का भाव जाग्रत हो, इस पोस्ट का यही हेतू है।

~ अभिजीत
Abhijeet Singh भइया।।

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

Life me सफलता क्या है ??

Life me सफलता क्या है ??

*4 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने कपड़ों को गीला नहीं करते।*

*8 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने घर वापिस आने का रास्ता जानते है।*

*12 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने अच्छे मित्र बना सकते है।*

*18 वर्ष की उम्र में मदिरा और सिगरेट से दूर रह पाना सफलता है।*

*25 वर्ष की उम्र तक नौकरी पाना सफलता है।*

*30 वर्ष की उम्र में एक पारिवारिक व्यक्ति बन जाना सफलता है।*

*35 वर्ष की उम्र में आपने कुछ जमापूंजी बनाना सीख लिया ये सफलता है।*

*45 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपना युवावस्था बरकरार रख पाते हैं।*

*55 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम हैं।*

*65 वर्ष की आयु में सफलता है निरोगी रहना।*

*70 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप आत्मनिर्भर हैं किसी पर बोझ नहीं।*

*75 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने पुराने मित्रों से रिश्ता कायम रखे हैं।*

*80 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आपको अपने घर वापिस आने का रास्ता पता है।*

*और 85  वर्ष की उम्र में फिर सफलता ये है कि आप अपने कपड़ों को गीला नहीं करते।*

अंततः यही तो जीवन चक्र है.. जो घूम फिर कर वापस वहीं आ जाता है जहाँ से उसकी शुरुआत हुई है और 

*यही जीवन का परम सत्य है।*
*संभाल कर रखिए अपने को*...!!!!
👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽👍🏽

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।
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🌷 आनंद ही आनंद है 🌷

खो गया वो भोला सा बचपन, और खो गयी वो दीवाली


रसोई घर के दरवाजे का सहारा लेकर
माँ को देखता था, और राह देखता था कि कब पकवान और मिठाईया बन कर तैयार होंगे? कब दीवाली आएगी?
अब सब कुछ इन पैकेट के फरसाण और पैकेट की मिठाइयों में कही खो गया है
खो गया वो भोला सा बचपन, और खो गयी वो दीवाली

हर त्यौहार पर काफी दिनो पहले सफाई। फिर घर सजाना।और फिर तरह तरह के पकवान।जो दीपावली के बाद काफी दिनो तक चलते थे। शाला जाते समय टिफिन मे यही बची हुई मिठाईयां, शकरपारे,गुजिया कितने अच्छे लगते थे। काश! वह पल फिर से लौट आए और हम बच्चे बन जाये।
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रविवार, 13 अक्टूबर 2019

शरदपूर्णिमा की रात्रि में स्वास्थ्य प्रयोग

🌹शरदपूर्णिमा की रात्रि में स्वास्थ्य प्रयोग...🌹

🌹शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है । ये किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायी हैं ।

🌹इस रात्रि में शरीर पर हल्के-फुल्के परिधान पहनकर चन्द्रमा की चाँदनी में टहलने, घास के मैदान पर लेटने से त्वचा के रोमकूपों में चन्द्र-किरणें समा जाती हैं और बंद रोम-छिद्र प्राकृतिक ढंग से खुलते हैं । शरीर के कई रोग तो इन चन्द्र-किरणों के प्रभाव से ही धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं ।

    🌹इन चन्द्र-किरणों से त्वचा का रंग साफ होता है, नेत्रज्योति बढ़ती है एवं चेहरे पर गुलाबी आभा उभरने लगती है । यदि देर तक पैरों को चन्द्र-किरणों का स्नान कराया जाय तो ठंड के दिनों में तलुए, एड़ियाँ, होंठ फटने से बचे रहते हैं ।

🌹चन्द्रमा की किरणें मस्तिष्क के लिए अति लाभकारी हैं । मस्तिष्क की बंद तहें खुलती हैं, जिससे स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है । साथ ही सिर के बाल असमय सफेद नहीं होते हैं ।

🌹दो पके सेवफल के टुकड़े करके शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्रकिरणें और ओज के कण समा जाते हैं । सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक लाभकारी परिवर्तन होते हैं ।

🌹इस दिन रात को चाँदनी में सेवफल 2-3 घंटे रख के फिर उसे चबा-चबाकर खाने से मसूड़ों से खून निकलने का रोग (स्कर्वीर्) नहीं होता तथा कब्ज से भी छुटकारा मिलता है ।

🌹250 ग्राम दूध में 1-2 बादाम व 2-3 छुहारों के टुकड़े करके उबालें । फिर इस दूध को पतले सूती कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में 2-3 घंटे तक रख दें । यह दूध औषधीय गुणों से पुष्ट हो जायेगा । सुबह इस दूध को पी लें ।

🌹सोंठ, काली मिर्च और लौंग डालकर उबाला हुआ दूध चाँदनी रात में 2-3 घंटे रखकर पीने से बार-बार जुकाम नहीं होता, सिरदर्द में लाभ होता है ।

🌹इस रात्रि में 3-4 घंटे तक बदन पर चन्द्रमा की किरणों को अच्छी तरह पड़ने दें । इससे त्वचा मुलायम, कोमल व कंचन-सी दमकने लगेगी ।

🌹तुलसी के 10-12 पत्ते एक कटोरी पानी में भिगोकर चाँदनी रात में 2-3 घंटे के लिए रख दें । फिर इन पत्तों को चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें । बचे हुए पानी को छानकर एक-एक बूँद आँखों में डालें, नाभि में मलें तथा पैरों के तलुओं पर भी मलें । आँखों से धुँधला दिखना, बार-बार पानी आना आदि में इससे लाभ होता है । तुलसी के पानी की बूँदें चन्द्रकिरणों के संग मिलकर प्राकृतिक अमृत बन जाती हैं ।

Note : दूध व तुलसी के सेवन में दो-ढाई घंटे का अंतर रखें ।

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बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

अपने धर्म का मज़ाक़ उड़ाते हम लोगो को शर्म क्यू नहीं आती..??

आजकल.. एक बड़ा खतरनाक प्रचलन चला है हिन्दुओं में..
वह यह कि जैसे ही कोई हिन्दू त्यौहार आने वाला होता है, हम हिन्दू खुद ही उस त्यौहार को ऐसे पेश करते हैं जैसे वो हमारे ऊपर बोझ है उनका भद्दा मजाक हम लोग फेसबुक और व्हाट्सएप पर बनाते हैं , और अपने ही त्यौहारों की पवित्रता गम्भीरता खत्म कर देते हैं !!
करवा चौथ आने वाली है, देखिए क्या लिखा है ..
:आदरणीय पति देव !
आपको सूचित किया जाता है कि आपके लम्बी आयु की वैलिडिटी खत्म होने वाली है और रिचार्ज की तिथि आ गयी है..!
:स्पेशल करवाचौथ रिचार्ज करवाकर.. लंबी उम्र पाएं।
पत्नी के त्याग का मजाक बनाकर पत्नी को लालची और रिश्वतखोर बताने लगते हैं !
हिन्दू धर्म की विडंबना देखिए :-
>जन्माष्टमी आयी तो श्री कृष्ण को टपोरी तडीपार और ना जाने क्या-क्या कहा!
>गणेश गणेश चतुर्थी आई तो गणेश जी का भी मज़ाक़ बनाया!
>नवरात्रि आयी तो ये चुटकुला आया "नौ दिन दुर्गा-दुर्गा फिर मुर्गा-मुर्गा..."
>विजयादशमी पर श्री राम-माता सीता और रावण पर चुटकुले चलेन्गे.
>और दिवाली पर भी कुछ ना कुछ.. आ जायेगा!
कभी सोचा है कि वास्तव में कौन है जो.. ये सब पोस्ट कर रहा है???
ये कभी किसी ने भी जानने की कोशिश नहीं की..! बस अपने मोबाइल पर आया तो बिना सोचे समझे फॉरवर्ड करने की वही.. भेड़ चाल चालू..!!
एक हमारा मीडिया.. पहले ही हिन्दू त्यौहारों के पीछे पड़ा है-
>होली पर पानी बर्बाद होता है लेकिन.. ईद पर जानवरों की क़ुरबानी धर्म है!
>दिवाली पर पटाके छोड़ना प्रदूषण है पर ईसाई नव वर्ष पर आतिशबाजी जश्न है!
>नवरात्री पर 10 बजे के बाद गरबा ध्वनि प्रदूषण हो जाती है, वहीं मोहरम की रात ढोल ताशे कूटना और नववर्ष की रात जानवरों की तरह 12 बजे तक बाजे बजाना धर्म है!!!
>करवा चौथ और नाग पंचमी पाखंड है वहीं ईसा का मरकर पुनः लौटना गुड फ्राइडे वैज्ञानिक है!!
हिन्दुओं को यह लगता है कि अपने पर्व का मज़ाक़ बनाना सही है तो.. इससे बड़ी लानत क्या होगी??
इस तरह के मैसेज बनाने वाले हिन्दू विरोधी तत्व जानते हैं कि  हम हिन्दू अपने धर्म को लेके सजग नहीं हैं और एडवांस्ड दिखने के चक्कर में कुछ भी फॉरवर्ड कर देंगे तभी ये ऐसे मैसेज बनाकर सर्कुलेट करते हैं!!
किसी और धर्म के लोगों को उनके धर्म के जोक्स पढ़ते या फॉरवर्ड करते देखा है क्या ?
उनको तो छोड़ो, आप भी उनके धर्म के जोक्स फॉरवर्ड करने से पहले 10 बार सोचते हो कि ये मैसेज आगे भेजूँ या नहीं??
तो अपने धर्म का मज़ाक़ उड़ाते हम लोगो को शर्म क्यू नहीं आती..??
मेरा करबद्ध निवेदन है कि अपने हाथों से अपने धर्म का अपमान ना करें और अपने सभी मित्रो, रिश्तेदारो को अपने ही धर्म का मज़ाक ना उडाने की सलाह दें.
प्रभु श्री कृष्ण नें कहा था ~  "यदि आप धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म भी आपकी रक्षा करेगा ||
गर्व करे अपने हिन्दू होने पर, अपने हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति पर.

सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

सेविंग्स कीजिए सुखी रहिए

*सेविंग्स कीजिए सुखी रहिए*
आज मैने सोशियल मीडिया पर इंदौर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर का दुःखद  अन्त का समाचार पढा ।लगा इस आत्महत्या के लिए वह खुद जिम्मेदार है ।जिस व्यक्ति को 18 लाख का पैकेज यानी डेढ़ लाख महीना मिल रहा था ,दोनों बच्चे DPS में पढ़ते थे, Work from Home की सुविधा थी तो काम के साथ शेयर बाजार में ट्रेडिंग का भी धंधा चल रहा था । पिछले महीने नौकरी चली गई, और इस महीने पूरे परिवार ने  खुदकुशी कर ली, जबकि मां को पेंशन मिलती थी, ससुराल वालों की भी आर्थिक स्थिति अच्छी थी।जब से यह खबर पढ़ी है, मन व्यथित है।इकोनॉमी की जैसी हालत है, अभी और हज़ारों-लाखों लोगों की नौकरी जाएगी । वैसे भी जैसे-जैसे उम्र और सैलरी बढ़ती जाती है, पुरानी नौकरी जाने की संभावना उतनी ही ज़्यादा और नई नौकरी मिलने की संभावना उतनी ही कम रहती है, तो फिर क्या करें?
1-बचत:आज भी इसका कोई विकल्प नहीं है, आपकी सैलरी 2,00,000 हो या 20,000 की, एक निश्चित रकम हमेशा बचाएं, कम से कम 6 महीने का बफर स्टॉक तो रखें।अगर आप डेढ़ लाख महीना कमाने के बावजूद नौकरी जाने के महज एक महीने के भीतर आत्महत्या कर लें, आपका डेबिट और क्रेडिट कार्ड खाली हो तो ये मानिए कहीं ना कहीं गलती आपकी भी रही होगी।
2- शौक: के हिसाब से नहीं ज़रूरत के हिसाब से रहें, आदत मत पालिए, ब्रांडेड कपड़े पहनना, रेस्तरां में खाना, मॉल और मल्टीप्लेक्स में जाना अच्छा लगता है लेकिन इनके बगैर ज़िंदगी नहीं रुकती, अगर इस मद में कटौती की जाए तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
3-मां-बाप: आज भी पैसों से ज़्यादा आपको चाहते हैं। क्या हो गया अगर आप बड़े हो गए? अगर आप अपने माता-पिता को अपनी आर्थिक स्थिति, की सही जानकारी देंगे तो, आपको आर्थिक और भावनात्मक दोनों तरह की मदद मिलेगी, उनसे मदद मांगकर आप छोटे नहीं हो जाएंगे, आत्मसम्मान बाहर वालों के लिए होता है।
घर वालों से मदद मांगने में नाक छोटी नहीं हो जाएगी, इंदौर वाले केस में भी मां को पेंशन मिलती थी, ससुराल वाले भी मदद कर सकते थे, लेकिन मदद मांगी तो होती, बॉस की गाली खा सकते हैं तो अपनों से मदद मांगने में क्या बुराई है?
4-खानदानी प्रॉपर्टी: आप भले ही मूर्ख हों और बचत नहीं करते हों लेकिन आपके माता-पिता और दादा-दादी ऐसे नहीं थे, उन्होंने अपनी सीमित कमाई के बावजूद बचत कर कुछ प्रॉपर्टी जोड़ी होती है, गांव में कुछ ज़मीन ज़रूर होती है, तो याद रखिए कोई भी प्रॉपर्टी या ज़मीन-जायदाद ज़िंदगी से बड़ी नहीं है, मुसीबत के वक्त उसे बेचने में कोई बुराई नहीं है।
5-धैर्य और धीरज: आपकी कंपनी के गेट पर जो सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहता हैं उनमें से ज़्यादातर की सैलरी 10 से 20 हज़ार के बीच रहती है, देश में आज भी ज़्यादातर लोग 20 हज़ार रूपये महीने से कम ही कमाते हैं।
कभी सुना है किसी कम सैलरी वाले को आर्थिक वजह से आत्महत्या करते हुऐ? खुदकुशी के रास्ता अमूमन ज़्यादा सैलरी वाले लोग और व्यापारी ही चुनते हैं, पैसा जितना ज्यादा आता है। ज़िंदगी की जंग लड़ने की ताकत उसी अनुपात में कम होती जाती है, पैसा कमाइए लेकिन जीवटता को भी जिंदा रखिए, इमरजेंसी में काम आएगी।
6-हालात का सामना करें: इसमें कोई शक नहीं कि बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का फैशन है, लेकिन सरकारी स्कूल अभी पूरीतरह खत्म नहीं हुऐ हैं, मित्रो! याद रखिए आपमें से कई लोग सरकारी स्कूल में पढ़कर ही यहां तक पहुंचे हैं, अब भी कई लोग हैं जो सरकारी स्कूल में पढ़कर UPSC Crack कर रहे हैं, इसलिए अगर नौकरी ना रहे तो बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने को बेइज़्ज़ती मत समझिए, हो सकता है शुरू में बच्चों को अजीब लगे लेकिन बाद में वो भी समझ जाएंगे।
7-Be Reasonable/लचीलापन रखिए: अगर आपको पिछली नौकरी में 75 हज़ार या एक लाख रुपये सैलरी मिलती थी तो ज़रूरी नहीं कि नई भी इतनी की ही मिले, मार्केट में नौकरी का घोर संकट है और इस गलत फहमी में मत रहिए कि आप बहुत टैलेंटेड हैं। टैलेंट बहुत हद तक मालिक और बॉस के भरोसे पर रहता है, मालिक या बॉस ने मान लिया कि आप टैलेंटेड हैं तो फिर हैं, एक बार रोड पर आ गए तो टैलेंट धरा का धरा रह जाएगा, आपसे ज्यादा टैलेंटेड लोग मार्केट में खाली घूम रहे हैं.
8-असफलता का स्वाद: यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है, इसको हम सभी को पूरा करना चाहिए, हमारे जीवन में सफलता का जितना महत्व है उतना ही असफलता का भी होना चाहिए। हमें अपने आप को अपने बच्चों को और परिवार को यह बताना चाहिए कि हमें किसी भी कार्य में, परीक्षा में, बिजनेस में, खेल में, कृषि में असफलता भी मिल सकती हैं, असफलता का स्वाद हमें हमारे बच्चों को बचपन में ही सिखा देना चाहिए। अगर आप बच्चे के साथ कोई गेम खेल रहे हैं, कुश्ती लड़ रहे हैं, तो उस गेम में हमेशा उसको जीताए नहीं, उसे हराए और उसे हार का सामना करना भी सिखाएं, उसे बताएं कि सिक्के के दो पहलू होते हैं।
√कभी एक ऊपर रहता है, कभी दूसरा ऊपर रहता है, अर्थात समय हमेशा एकसा नहीं रहता है।
√अगर वह हमेशा जीतेगा या आप उसे जिताएंगे तो उसे यह कभी पता ही नहीं चलेगा कि, जीवन में असफलता भी मिलती है और ईश्वर ना करें, बड़ा होने पर उसे कोई असफलता मिलती है तो वह उसका सामना ही ना कर पाएं और हिम्मत हार जाएं।
मित्रों,
√आखिरी बात और कि जहां से शुरू किया था, वहीं खत्म कर रहा हूं, खुदकुशी किसी भी हालत में कोई विकल्प नहीं है, हर रात के बाद एक नई सुबह होती है, हर सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख हमेशा आता है, धैर्य बनाए रखें और ऊपर वाले पर विश्वास रखें, अंत में आत्मविश्वास की जीत होती है।
     *राधे राधे

रविवार, 6 अक्टूबर 2019

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

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रविवार, 29 सितंबर 2019

नवदुर्गा की नौ औषधियां वनस्पतियां

नवदुर्गा की नौ औषधियां वनस्पतियां              
सम्पूर्ण प्रकृति में  जगत जननी माँ आदि शक्ति भवानी दुर्गा का ही वास है वह प्रत्येक चर-अचर, जीव - जंतु, प्रकृति की समस्त वनस्पतियों और प्रकृति के हर कण कण में माँ का ही वास है!इस लिए के अनुपम सुंदर को बचाना होगा! क्यों कि प्रकृति ही हमारे जीवन के लिए एक रक्षा कवच है! इस लिए धरती मां के शृंगार अर्थात पेड़ पौधों और वनस्पतियों को मिटने से बचाना होगा!
#नवदुर्गा इन 9 प्रकार की औषधियों में विराजती है!
मां दुर्गा नौ रूपों में अपने भक्तों का कल्याण कर उनके सारे संकट हर लेती हैं। इस बात का जीता जागता प्रमाण है, संसार में उपलब्ध वे औषधियां,  जिन्हें मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के रूप में जाना जाता है।
नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है।
ऐसा माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली और और उनसे बचा कर रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच भी कहा गया है । इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष तक जीवन जी सकता है।
आइए जानते हैं दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है।
1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ -
नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।
पथया - जो हित करने वाली है।
कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
अमृता - अमृत के समान
हेमवती - हिमालय पर होने वाली।
चेतकी -चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
श्रेयसी (यशदाता)- शिवा कल्याण करने वाली।
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी -
ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वालीऔर स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी कीआराधना करना चाहिए।
3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर
नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है।
यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।
अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।
4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा  
नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिकरूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है।
कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीड़ितव्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डादेवी की आराधना करना चाहिए।
5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी
नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक  औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाउता की आराधना करना चाहिए।
6. षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया -
नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है।
इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करना चाहिए।
सप्तमं कालरात्री ति महागौरीति चाष्टम।
7.सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन-
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे
महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।
8.अष्टम महागौरी यानि तुलसी -
नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता
9. नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी -
नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे
नारायणी याशतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन
उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है।
अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।
सेवा, आराधना और समर्पण का यह पर्व आप सब के लिए मंगलमय हो।        
                              

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

घट स्थापना मुहूर्त

घट स्थापना मुहूर्त
इस वर्ष नवरात्रि की में 6 श्रेष्ठ मुहूर्त आ रहे हैं जिसके साथ में सलवार से भी अमृत सिद्धि योग जैसे विशेष 6 योग मिले हैं
इस वर्ष विक्रम संवत 2076 अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि रविवार हस्त नक्षत्र ब्रह्मा योग से नवरात्रि घट स्थापन आरंभ हो रहा है जिस वर्ष 9 दिन पुण  होते हैं उस वर्ष सम्मत अच्छा निकलता है सभी की मनोकामना पूर्ण होती है
घटस्थापना के मुहूर्त अपने-अपने परंपराओं के अनुसार घट स्थापना करनी चाहिए
घट स्थापना का प्रातकाल 6:54 से 12:21 तक घट स्थापना की से श्रेष्ठ मुहूर्त रहेंगे उसके बाद दोपहर 1:50 से 2:19 तक श्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा प्रदोष काल शाम को जिनको स्थापना करनी हो उनके लिए 6:17 से 10:54 तक श्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा
इन समय आप अपने अपने हिसाब से अपने घर पर घटस्थापना करें अखंड दीपक जलाएं या अपनी परंपराओं के अनुसार 9 दिन तक माता जी की पूजन करें
जैसा कि आपको पता है कई व्यक्ति दीपदान के लिए आप को गुमराह करते हैं आप नवरात्रि में घी का दीपक जलाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है तिल्ली का तेल सोयाबीन कपास मूंगफली के तेल से दीपक जलाने से शक्ति प्राप्त होती है
कई व्यक्ति हनुमान जी के यहां पीपल के यहां या किसी के द्वारा बताए जाने पर जैसे सरसों के तेल का दीपक जलाते हैं पहले सोच समझ कर के ही जलाएं क्योंकि सरसों के तेल के दीपक जलाने से दीपक जलाने वाले व्यक्ति के ही एक्सीडेंट घर की लक्ष्मी घर में कलेश पैदा होना क्या लक्ष्मी नष्ट होना इसलिए सरसों के तेल से कभी भी दीपक नहीं जला में अपने शत्रुओं को भी नहीं जलाने के लिए कहा जाए
नवरात्रि के अंदर आप दुर्गा सप्तशती के पाठ जैसे दुर्गा की 32 नामावली 108 नाम कुंजिका पाठ कवच अर्गला किलक देवी अथर्वशीर्ष के साथ नवाणन्यास सप्तशती न्यास एवं दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय का पाठ करें देवी रात्रि सुक्त देवी तंत्रोक्त सुक्त तीनों रहस्य के पाठ करना चाहिए
इसके अलावा कोई गायत्री के जप महामृत्युंजय अनुष्ठान  या श्री सूक्त के पाठ श्री सूक्त का पाठ उसी व्यक्ति को करना चाहिए जिस व्यक्ति के इमानदारी का पैसा आता हो हराम का पैसा नहीं आता हो जिस व्यक्ति के पास हराम का पैसा आता हो या रिश्वत जैसे पैसे आते हो या किसी को गुमराह करके पैसा निकलता हो तो श्री सूक्त के पाठ करने से उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो सकती है सोच समझकर के श्री सूक्त का पाठ करें या फिर कनकधारा स्त्रोत का पाठ करते रहें जिन व्यक्तियों को रिश्वत के पैसे आते हो या किसी को गुमराह करके पैसा निकालता हो उसे कनकधारा स्त्रोत का पाठ ही करना चाहिए जैसे कि उसकी लक्ष्मी बढ़ती रहे नष्ट नहीं हो
इस वर्ष मंगलवार को विजयादशमी पर्व रहेगा जो श्रवण नक्षत्र युक्त रहेगा जिस वर्ष मंगलवार को श्रवण नक्षत्र युक्त विजयादशमी रहती है सभी लोग खुशहाल रहते हैं राजा की विजय होती है इस वर्ष मंगलवार को दशहरा रहने के कारण भारत देश की खेती देश विदेशों में बढ़ती रहेगी एवं विजयादशमी मंगलवारी होने के कारण सभी शत्रु प्राप्त होते रहेंगे
विजयादशमी के दिन शमी  की पूजन की जाती है या अपने घर पर शम्मी का वृक्ष लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति रहेगी एवं सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती रहेगी।

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