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सोमवार, 1 जनवरी 2024

राम की महिमा अद्भुत है -राम भक्त भी पगलाए रहते है और राम विद्रोही भी पागल हो जाते हैं -त्याग और समर्पण है राम कथा में,कांग्रेस ने भी कम “त्याग” नहीं किया

राम की महिमा अद्भुत है -
राम भक्त भी पगलाए रहते है और 
राम विद्रोही भी पागल हो जाते हैं -
त्याग और समर्पण है राम कथा में,
कांग्रेस ने भी कम “त्याग” नहीं किया -
एक आततायी बाबर ने 1527 में भव्य अलौकिक श्रीराम मंदिर को तोड़ कर अपनी इबादत के लिए एक मस्जिद बना दी और तब से सदियों से मंदिर के लिए संघर्ष होता रहा - यह हिन्दू मानस है जो कानून के सहारे अपना अधिकार वापस ले सका वरना इस्लामिक राज्य होता तो तलवार के जोर पर काम हो जाता पर ऐसा करना सनातन धर्म के DNA में है ही नहीं -

आज के हालात देख कर भी साबित होता है कि भगवान राम की महिमा अद्भुत है - एक तरफ जहां सब कुछ राममय हो रहा है और राम भक्त पागल से हुए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ भगवान राम को काल्पनिक कहने वाले राम द्रोही अलग तरह से पागल हो रहे हैं - माता शबरी जब राम की प्रतीक्षा में रोज अपने आंगन को पुष्पों से सजाती थी तब उसके आसपास के लोग कहते थे राम ने आना तो है नहीं, ये शबरी “पागल” हो गई है - तब कुछ लोग यह भी कहते थे कि भगवान के प्रेम में रम जाने को ही पागलपन कहते हैं -

दूसरी तरफ रावण और उसकी सेना भी भगवान राम के विरोध में पागलपन की स्थिति में ही थी और यही हाल आज कांग्रेस का है (कांग्रेस से मतलब कांग्रेस और समूचे विपक्ष से है) - जिन लोगों ने राम को काल्पनिक बताने में लज्जा नहीं आई और उनके विचार से राम रावण युद्ध हुआ ही नहीं, वे भी आज “पागल” हुए जा रहे हैं ये कहने के लिए कि राम तो सबके हैं लेकिन फिर भी जाएंगे नहीं - 

विरोधियों में पागलपन इसलिए है कि कैसे हिन्दू और मुस्लिम मानस दोनों को खुश रखें -इतना ही नहीं पाकिस्तान के साथ खड़ा रहने वाला फारूक अब्दुल्ला भी कह रहा है कि राम तो पूरे विश्व के हैं - उन्होंने तो हर धर्म को भाई चारा सिखाया था, उनके लिए कोई गरीब अमीर बड़ा छोटा नहीं था 

फ़ारूक़ मियां आप किस “भाई चारे” की बात कर रहे हो और भगवान राम के समय में कितने धर्मों की बात कर रहे हो जबकि वह काल केवल “सनातन धर्म” का युग था - आपने तो कश्मीर में हिंदुओं को भाई कह कर चारा बना कर हजम करा डाला जबकि भगवान राम ने तो हनुमान, सुग्रीव, विभीषण और न जाने कितनों को भाई कह कर गले लगाया परंतु किसी को “चारा” नहीं बनाया -

रामकथा तो त्याग और समर्पण की कथा है - हर किसी ने अपना अपना त्याग किया - पिता की आज्ञा मानने के लिए राम ने राजपाट त्याग दिया; कैकई ने एक पुत्र भरत के लिए दूसरे पुत्र राम को त्याग दिया, सीता ने पति के लिए सुख वैभव त्याग दिया, लक्ष्मण ने भाई के लिए सब कुछ त्याग दिया और कहते हैं जहां एक तरफ 14 वर्ष लक्ष्मण नहीं सोए तो उनकी पत्नी उर्मिला ने भी 14 वर्ष तक नींद का त्याग किया; भरत ने भगवान राम के लिए राज्य का त्याग कर दिया; हनुमान जी की तो बात ही अलग है - और इतना ही नहीं कहीं यह भी बताया गया है कि कैकई को राम के विरुद्ध भड़काने वाली मंथरा भी राम के बनवास जाने पर 14 वर्ष तक आत्मग्लानि के कारण अपने कक्ष से बाहर नहीं निकली - उसे बाहर निकाला भगवान राम ने आकर और “माता” कह कर आदर किया - इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है 

लेकिन याद रहे, आज के युग में कांग्रेस ने भी कम त्याग नहीं किया - कांग्रेस तो एक आतताई और उसकी मस्जिद के लिए खून बहाने वालों के लिए भगवान राम को ही त्याग दिया, भगवान राम की सनातन संस्कृति को ही त्याग दिया दिया जिसे मिटाने के लिए कृतसंकल्प है कांग्रेस और उसके सहयोगी - कुछ ने तो राम के भक्तों को गोलियों से भून दिया था - यह त्याग भी कुछ कम नहीं हैं - इसलिए उनका पागल होना भी स्वाभाविक ही है और यह राम की महिमा ही है - 

राम के त्रेता युग में राक्षस यज्ञ विध्वंस करने स्वयं आते थे लेकिन आज निमंत्रण मिलने पर भी आने को राजी नहीं हैं - यह राम की महिमा है

शनिवार, 30 दिसंबर 2023

खुद के भविष्य को जानने के 10 तरीके

खुद के भविष्य को जानने के 10 तरीके

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हर व्यक्ति खुद का या दूसरा को भविष्य जानने को बहुत उत्सुक रहता है तभी तो देश में लाखों ज्योतिष और बाबा मौजूद है। लेकिन क्या सचमुच ही ये लोग आपका भविष्य बताने में सक्षम हैं?
 
हम आपको बताना चाहते हैं कि ऐसे कौन से तरीके हैं जिससे आप अपना भविष्य जान सकते हो। हो सकता है कि उनमें से कुछ तरीके आप जानते हों लेकिन उसकी गहराई में कभी नहीं गए हों?

ज्योतिष विद्या : बहुत से लोग इस विद्या पर विश्वास करते हैं इसलिए पहले हम इस विद्या के बारे में ही बात करते हैं। भारत में लगभग 150 से ज्यादा ज्योतिष विद्या प्रचलित है। कुंडली ज्योतिष, लाल किताब की विद्या, अंक ज्योतिष, नंदी नाड़ी ज्योतिष, पंच पक्षी सिद्धान्त, हस्तरेखा ज्योतिष, नक्षत्र ज्योतिष, अंगूठा शास्त्र, सामुद्रिक विद्या, चीनी ज्योतिष, वैदिक ज्योतिष, टेरो कार्ड आदि।

बहुत से विद्वान मानते हैं कि यदि आप लाल किताब, सामुद्रिक शास्त्र, हस्तरेखा ज्योतिष, नक्षत्र ज्योतिष और अंगुठा शास्त्र का गहराई से अध्ययन कर लें तो आपको अपना भविष्य नजर आने लग जाएगा। ज्योतिष विद्या भारत की प्राचीन विद्या है और व्यक्ति का भविष्‍य बताने में सक्षम है। यह अलग बात हैं कि इस विद्या के जानकार आजकल मिलते नहीं है।

सपनों से जाने भविष्य : स्वप्न शात्र का भी भारत में प्रचलन है। हालांकि स्वप्न फल अति विस्तृत विषय है और आवश्यक नहीं कि प्रत्येक स्वप्न का फल विशेष हो अथवा भविष्य से संबंध रखता हो। स्वप्नों का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना गया है। यह आपकी जिंदगी का संपूर्ण हाल बयां कर देता है और भविष्य की गति भी बता देता है।

हालांकि कई स्वप्न हमारी पाचन प्रणाली से संबंधित होते हैं जो प्राय: रात्रि 2 बजे से पहले आते हैं क्योंकि उस समय तक रात्रि का भोजन अभी आमाशय में पचा नहीं होता तथा वात प्रवृत्ति का होता है। इस समय आकाश में घूमने, काले रंग, आंधी, गंदे जल आदि के स्वप्न दिखाई देते हैं।
 
जो व्यक्ति स्वप्न में सिंह-घोड़ा-हाथी-बैल, घोड़ों से जुड़े रथ देखता है, वह नि:संदेह अल्पकाल में उन्नति पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। स्वप्न में फल, फूल खाते, सूंघते देखने वाला व्यक्ति धनवान होता है। देव मूर्त, देव दर्शन, आलौकिक प्रकाश अति शुभ एवं भाग्योन्नति का सूचक होता है। इसी तरह अन्य सपनों के अन्य फल या भविष्य होते हैं।

विचारों से बनता भविष्य : भगवान कृष्ण और बुद्ध कहते हैं कि आज आप जो भी हैं, वह आपके पिछले विचारों का परिणाम है। विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही भविष्य का निर्माण करते हैं। अब आप अपनी सोच पर ध्यान देकर जान सकते हैं कि आप किस ओर जा रहे हैं। यदि आपकी सोच में नकारात्मकता ज्यादा है तो भविष्य भी नकारात्मक ही निकलेगा। आकर्षण का नियम कहता है कि आप जिस चीज़ पर फोकस करते हैं वह सक्रिय हो जाती है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60 हजार विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों का पलड़ा भारी है तो फिर भविष्य भी वैसा ही होगा और यदि ‍मिश्रित विचार हैं तो मिश्रित भविष्य होगा। अधिकतर लोग नकारात्मक फिल्में, सीरियल और गाने देखते रहते हैं इससे उनका मन और मस्तिष्क वैसा ही निर्मित हो जाता है। वे गंदे या जासूसी उपन्यास पढ़कर भी वैसा ही सोचने लगते हैं। आजकल तो इंटरनेट हैं, जहां हर तरह की नकारात्मक चीजें ढूंढी जा सकती हैं। न्यूज चैनल दिनभर नकारात्मक खबरें ही दिखाते रहते हैं जिन्हें देखकर सामूहिक रूप से समाज का मन और मस्तिष्क खराब होता रहता है।
 
टेलीपैथी से जानें भविष्य : टेलीपैथी को हिन्दी में दूरानुभूति कहते हैं। 'टेली' शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं। ये सभी दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं। आदमी के मस्तिष्क में भी इस तरह की क्षमता होती है। कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। महाभारतकाल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को कह सुनाया था।

भविष्य का आभास कर लेना भी टेलीपैथिक विद्या के अंतर्गत ही आता है। किसी को देखकर उसके मन की बात भांप लेने की शक्ति हासिल करना तो बहुत ही आसान है। इस शक्ति को योग में मन:शक्ति योग कहते हैं। ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के चित्त का ज्ञान होता है। यदि चित्त शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी।
 
ज्ञान की स्थिति में संयम का अर्थ है कि जो भी सोचा या समझा जा रहा है उसमें साक्षी रहने की स्थिति। ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है।

सम्मोहन विद्या : सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ विद्या है। सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। अंग्रेजी में इसे हिप्नोटिज्म कहते हैं। सम्मोहन का अर्थ वशीकरण नहीं है।

वर्तमान में इस विद्या के माध्यम से व्यक्ति की मानसिक चिकित्सा ही नहीं की जाती बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी निखारा जाता है। लेकिन इस विद्या द्वारा आप अपना और दूसरों का भविष्य भी जान सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में इसी विद्या द्वारा जापानी सेनाओं की पोजिशन जानी जा सकी थी। यह एक चमत्कारिक विद्या है। इस पर रशिया, जर्मन और अमेरिका में पहले भी बहुत रिसर्च हुए हैं।
 
परा और अपरा विद्या : हिन्दू धर्मग्रंथों में 2 तरह की विद्याओं का उल्लेख किया गया है- परा और अपरा। यह परा और अपरा ही लौकिक और पारलौकिक कहलाती है।

दुनिया में ऐसे कई संत या जादूगर हैं, जो इन विद्याओं को किसी न किसी रूप में जानते हैं। वे इन विद्याओं के बल पर ही भूत, भविष्य का वर्णन कर देते हैं और इसके बल पर ही वे जादू और टोना करने की शक्ति भी प्राप्त कर लेते हैं।
 
यह परा और अपरा शक्ति 4 तरह से प्राप्त होती है- देवताओं द्वारा, योग साधना द्वारा, तंत्र-मंत्र द्वारा और किसी चमत्कारिक औषधि या वस्तुओं द्वारा। परा विद्या के पूर्व अपरा विद्या का ज्ञान होना जरूरी है।
 
पेंडुलम डाउजिंग : हमारे अवचेतन मन में वह शक्ति होती है कि हम एक ही पल में इस ब्रह्मांड में कहीं भी मौजूद किसी भी तरंग से संपर्क कर सकते हैं। सारा ब्रह्मांड तरंगों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। उन तरंगों के माध्यम से हम जो जानना चाहते हैं या हमारे जो भी सवाल होते हैं, जैसे जमीन के अंदर पानी खोजना, खोई हुई चीजों को तलाशना या भविष्य में होने वाली घटना को जानना उसे हम 'डाउजिंग' कहते हैं।

डाउजिंग किसी भी छुपी हुई बात को खोजने वाली विद्या है। इसके लिए हम पेंडुलम या डाउजिंग रॉड का उपयोग करते हैं। इनमें से कोई यंत्र को हाथों से पकड़कर जब हम कोई सवाल करते हैं तो यह पेंडुलम अपने आप गति करने लगता है। जिसे हम निर्देश दे सकते हैं कि यदि जवाब सकारात्मक है तो सीधे हाथ की ओर गति करना है और जवाब यदि नकारात्मक है तो उलटे हाथ की ओर गति करना है।
 
जैसी मति वैसी गति : तीन अवस्थाएं हैं- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। जगत तीन स्तरों वाला है- एक स्थूल जगत जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है। दूसरा, सूक्ष्म जगत जिसका स्वप्न में अनुभव करते हैं तथा तीसरा, कारण जगत जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।

उक्त तीनों अवस्थाओं में विचार और भाव निरंतर चलते रहते हैं। जो विचार धीरे-धीरे जाने-अनजाने दृढ़ होने लगते हैं वे धारणा का रूप धर लेते हैं। हमारी यह धारणा ही भविष्य का निर्माण करती है। अत: अपनी दृढ़ हो गई धारणा को समझें। वह आपका डर भी हो सकता, आशंका भी और आपकी कल्पनाएं भी। धारणा बन गए विचार ही आपके स्वप्न का हिस्सा बन जाते हैं। धारणा कई तरह की होती है। हर धर्म आपको एक अलग तरह की धारणा से ग्रसित कर देता है।
 
वैज्ञानिकों ने आपके मस्तिष्क की सोच, कल्पना और आपके स्वप्न पर कई तरह के प्रयोग करके जाना है कि आप हजारों तरह की झूठी धारणाओं, भय, आशंकाओं आदि से ग्रसित रहते हैं, जो कि आपके जीवन के लिए जहर की तरह कार्य करते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि भय के कारण नकारात्मक विचार बहुत तेजी से मस्तिष्क में घर बना लेते हैं और फिर इनको निकालना बहुत ही मुश्किल होता है। यह धारणाएं ही आपके भविष्य का निर्माण करती है।
 
संकेतों से जाने भविष्य : संकेतों के अंतर्गत तिल विचार, अंग फड़कना और आसपास की प्रकृति और वातावरण को समझना आदि आते हैं। तिष के एक ग्रन्थ समुद्र शास्त्र में शरीर के अंगों के फड़कने के अर्थों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

उदाहरणार्थ किसी भी घटना के घटने से पहले हमारे शरीर के कुछ अंगों में कंपन आदि संकेत शुरू हो जाते हैं जैसा कि रामायण में भी आता है कि जैसे ही भगवान राम जब रावण से युद्ध करने के लिए निकले तभी से सीता माता को शुभ संकेत मिलने शुरू हो गए थे और रावण को सभी अशुभ संकेत आने लगे। 

अंग फड़कना विचार:-
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* पुरुष के शरीर का अगर बायां भाग फड़कता है तो भविष्य में उसे कोई दुखद घटना झेलनी पड़ सकती है। वहीं अगर उसके शरीर के दाएं भाग में हलचल रहती है तो उसे जल्द ही कोई बड़ी खुशखबरी सुनने को मिल सकती है। जबकि महिलाओं के मामले में यह उलटा है।
* किसी व्यक्ति के माथे पर अगर हलचल होती है तो भौतिक सुख
* कनपटी के पास फड़कन पर धन लाभ होता है।
* मस्तक फड़के तो भू-लाभ मिलता है।
* ललाट का फड़कना स्नान लाभ दिलाता है।
* नेत्र का फड़कना धन लाभ दिलाता है।
* यदि दाईं आंख फड़कती है तो सारी इच्छाएं पूरी होने वाली हैं
* बाईं आंख में हलचल रहती है तो अच्छी खबर मिल सकती है।
* अगर दाईं आंख बहुत देर या दिनों तक फड़कती है तो यह लंबी बीमारी। 
* यदि कंधे फड़के तो भोग-विलास में वृद्धि होती है। 
* दोनों भौंहों के मध्य फड़कन सुख देने वाली होती है। 
* कपोल फड़के तो शुभ कार्य होते हैं। 
* नेत्रकोण फड़के तो आर्थिक उन्नति होती है। 
* आंखों के पास फड़कन हो तो प्रिय का मिलन होता है। 
* होंठ फड़क रहे हैं तो वन में नया दोस्त आने वाला है।  
* हाथों का फड़कना उत्तम कार्य से धन मिलने का सूचक है। 
* वक्षःस्थल का फड़कना विजय दिलाने वाला होता है। 
* हृदय फड़के तो इष्टसिद्धी दिलाती है। 
* नाभि का फड़कना स्त्री को हानि पहुँचाता है। 
* उदर का फड़कना कोषवृद्धि होती है, 
* गुदा का फड़कना वाहन सुख देता है। 
* कण्ठ के फड़कने से ऐश्वर्यलाभ होता है।
* ऐसे ही मुख के फड़कने से मित्र लाभ होता है और होठों का फड़कना प्रिय वस्तु की प्राप्ति का संकेत देता है।
 
पक्षियों व जानवरों का व्यावहार बदलना:-
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*चींटी जब अपने अंडे ऊंचाई पर ले जाने लगे तो बारिश जरूर आती है।
*कौवा के छत पर कांव कांव करने से किसी के आने का आभास होता है।
*किसी भी घर या दुकान के मेन दरवाजे पर मकड़ी का जाला, वाहां ताला लगने का आभास कराता है।
*किसी भी अधिक बीमार को सफेद पक्षी देखना, मृत्यु का आभास है।
*यदि चलते हुए व्यक्ति पर चिड़िया बीट कर दे तो उसे राह में पड़ा हुआ धन मिलता है।
*छिपकली का किसी पर गिरना अधिकतर शुभ माना गया है।
*कबूतर को अशुभ माना गया है।
*तोते का दर्शन शुभ माना गया है।
*बिल्ली को अशुभ माना गया है।
*बकरी-बकरा शुभ माना गया है।
*मुर्गा शुभ माना गया है।
*हाथी दर्शन अति शुभ माना गया है।
*सूअर भी शुभ माना गया है।
*सांप के दर्शन दुखदाई है।
*चमगादड़ को देखना दुख, धोका, जादूटोना आदि।
*मधुमखी को अति शुभ माना गया है।
*घोड़ा भी शुभ माना गया है। भूतादि घोड़े से दूर रहते हैं।
•चील अशुभ है। चील जिस पेड़ पर आती है वो पेड़ सूख जाता है।
*चूहा यदि बिना कारण के मकान को छोड़ दे तो मकान गिर जाता है।

पूर्वाभास : भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास है। कुछ लोगों में यह अतीन्द्रिय ज्ञान काफी विकसित होता है और कुछ लोगों में कम। पशुओं और पक्षियों में यह अ‍तीन्द्रिय ज्ञान सामान्य तौर पर पाया जाता है। कुत्ते, बिल्ली, कौवे और अन्य पक्षियों में यह ज्ञान अति विकसित होता है। वैज्ञानिक इसे छठी इंद्रिय का ज्ञान कहते हैं।

विल्हेम वॉन लिवनीज नामक वैज्ञानिक का कहना है- 'हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी अन्तर्प्रज्ञा को जगाकर भविष्य काल को वर्तमान की तरह दर्पण में देख ले।' केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक भौतिकी विद्वान एड्रियन डॉन्स ने फरमाया था, 'भविष्य में घटने वाली हलचलें वर्तमान में मानव मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैं, जिन्हें साइट्रॉनिक वेवफ्रंट कहा जा सकता है। इन तरंगों की स्फुरणाओं को मानव मस्तिष्क के स्नायुकोष (न्यूरान्स) पकड़ लेते हैं। इस प्रकार व्यक्ति भविष्य-कथन में सफल होता है।
 
डरहम विश्वविद्यालय इंग्लैंड के गणितज्ञ एवं भौतिकीविद् डॉ. गेरहार्ट डीटरीख वांसरमैन का कथन है, 'मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम टाइमलेस (समय-सीमा से परे) मेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्र) के निर्धारणों के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता है, चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।' 
 
करीब एक-तिहाई लोगों की छठी इंद्रिय काफी सक्रिय होती है। उन्हें घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। यदि लगातार ध्यान किया जाए और अपनी भाविनाओं या आभासों और संकेतों की ओर ध्यान दिया जाए तो भविष्य में होने वाली घटनाओं को जानकर टाला जा सकता है। अत: खुद के व्यवहार, शरीर और मन के संकेतों को समझे। पूर्वाभास के लिए चित्त का शान्त होना अति आवश्यक है। अपनी अंतर आत्मा कि आवाज सुनना जरूरी है।


रिफाइन तेल शरीर के लिए जहर..पोस्ट लम्बा है और जीवन से जुड़ा है पूरा अवश्य पढ़े...

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केरल आयुर्वेदिक युनिवर्सिटी ऑफ रिसर्च केन्द्र के अनुसार, हर वर्ष 20 लाख लोगों की मौ तों का कारण बन गया है...रिफाईनड तेल...रिफाईनड तेल से DNA डैमेज, RNA नष्ट, हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉकेज, ब्रेन डैमेज, लकवा शुगर (डाईबिटीज), BP, नपुंसकता, कैंसर, हड्डियों का कमजोर हो जाना, जोड़ों में दर्द, कमर दर्द, किडनी डैमेज, लिवर खराब, कोलेस्ट्रोल, आंखों रोशनी कम होना, प्रदर रोग, बांझपन, पाईलस, स्केन त्वचा रोग आदि … एक हजार रोगों का प्रमुख कारण है
रिफाईनड तेल बनता कैसे हैं..??
बीजों का छिलके सहित तेल निकाला जाता है, इस विधि में जो भी Impurities तेल में आती है, उन्हें साफ करने वह तेल को स्वाद गंध व कलर रहित करने के लिए रिफाइंड किया जाता है...वाशिंग― वाशिंग करने के लिए पानी, नमक, कास्टिक सोडा, गंधक, पोटेशियम, तेजाब व अन्य खतरनाक एसिड इस्तेमाल किए जाते हैं, ताकि Impurities इससे बाहर हो जाएं; इस प्रक्रिया मैं तारकोल की तरह गाड़ा वेस्टेज (Wastage} निकलता है जो कि टायर बनाने में काम आता है, यह तेल ऐसिड के कारण जहर बन गया है 

Neutralisation― तेल के साथ कास्टिक या साबुन को मिक्स करके 180°F पर गर्म किया जाता है, जिससे इस तेल के सभी पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

Bleaching― इस विधि में POP (प्लास्टर ऑफ पेरिस) पीओपी यह मकान बनाने में काम ली जाती है, का उपयोग करके तेल का कलर और मिलाये गये कैमिकल को 130°F पर गर्म करके साफ किया जाता है।

Hydrogenation― एक टैंक में तेल के साथ निकेल और हाइड्रोजन को मिक्स करके हिलाया जाता है, इन सारी प्रक्रियाओं में तेल को 7-8 बार गर्म व ठंडा किया जाता है, जिससे तेल में पांलीमर्स बन जाते हैं, उससे पाचन प्रणाली को खतरा होता है और भोजन ना पचने से सारी बिमारियां होती हैं; निकेल एक प्रकार का Catalyst metal (लोहा) होता है जो हमारे शरीर के Respiratory system, Liver, Skin, Metabolism, DNA, RNA को भंयकर नुकसान पहुंचाता है।

रिफाईनड तेल के सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं और ऐसिड (कैमिकल) मिल जाने से यह भीतरी अंगों को नुकसान पहुंचाता है। आप गंदी नाली का पानी पी लें, उससे कुछ भी नहीं होगा क्योंकि हमारे शरीर में प्रति रोधक क्षमता उन बैक्टीरिया को लड़कर नष्ट कर देता है, लेकिन रिफाईनड तेल खाने वाला व्यक्ति की अकाल मृ त्यु होना निश्चित है।

दिल थाम के अब पढ़ें-
हमारा शरीर करोड़ों Cells (कोशिकाओं) से मिलकर बना है, शरीर को जीवित रखने के लिए पुराने Cells नये Cells से Replace होते रहते हैं नये Cells (कोशिकाओं) बनाने के लिए शरीर खून का उपयोग करता है, यदि हम रिफाईनड तेल का उपयोग करते हैं तो खून में Toxins की मात्रा बढ़ जाती है व शरीर को नये सेल बनाने में अवरोध आता है, तो कई प्रकार की बीमारियां जैसै— कैंसर Cancer, Diabetes मधुमेह, Heart Attack हार्ट अटैक, Kidney Problems किडनी खराब, Allergies, Stomach Ulcer, Premature Aging, Impotence, Arthritis, Depression, Blood Pressure हजारों बिमारियां होगी...रिफाईनड तेल बनाने की प्रक्रिया से तेल बहुत ही मंहगा हो जाता है, तो इसमें पाम ऑयल मिक्स किया जाता है, (पाम ऑयल स्वयं एक धीमी मौ त है) प्रत्येक तेल कंपनियों को 40% खाद्य तेलों में पाम ऑयल मिलाना अनिवार्य है, अन्यथा लाईसेंस रद्द कर दिया जाएगा; इससे अमेरिका को बहुत फायदा हुआ, पाम ऑयल के कारण लोग अधिक बीमार पड़ने लगेंगे, हार्ट अटैक की संभावना 99% बढ़ गई, तो दवाईयाँ भी अमेरिका की आने लगी है, हार्ट में लगने वाली स्प्रिंग (पेन की स्प्रिंग से भी छोटा सा छल्ला) दो लाख रुपये की बिकती हैं, यानि कि अमेरिका के दोनों हाथों में लड्डू, पाम ऑयल भी उनका और दवाईयाँ भी उनकी अब तो कई नामी कंपनियों ने पाम से भी सस्ता, गाड़ी में से निकाला काला ऑयल (जिसे आप गाड़ी सर्विस करने वाले के छोड़ आते हैं) वह भी रिफाईनड कर के खाद्य तेल में मिलाया जाता है, अनेक बार अखबारों में पकड़े जाने की खबरें आती है...सोयाबीन एक दलहन हैं, तिलहन नहीं...दलहन मे.. मूंग, मोठ, चना, सोयाबीन, व सभी प्रकार की दालें आदि होती है 

तिलहन में … तिल, सरसों, मुंगफली, नारियल, बादाम, ओलीव आयल, आदि आती है 

अतः सोयाबीन तेल, पेवर पाम ऑयल ही होता है, पाम ऑयल को रिफाईनड बनाने के लिए सोयाबीन का उपयोग किया जाता है

सोयाबीन की एक खासियत होती है कि यह, प्रत्येक तरल पदार्थों को सोख लेता है, पाम ऑयल एक दम काला और गाढ़ा होता है, उसमें साबुत सोयाबीन डाल दिया जाता है जिससे सोयाबीन बीज उस पाम ऑयल की चिकनाई को सोख लेता है और फिर सोयाबीन की पिसाई होती है, जिससे चिकना पदार्थ तेल तथा आटा अलग अलग हो जाता है, आटा से सोया मंगोड़ी बनाई जाती है, आप चाहें तो किसी भी तेल निकालने वाले के सोयाबीन ले जाकर, उससे तेल निकालने के लिए कहे … मेहनताना वह एक लाख रुपये भी देने पर तेल नहीं निकालेगा, क्योंकि सोयाबीन का आटा बनता है, तेल नहीं...फॉर्च्यून अर्थात आपके और आप के परिवार के फ्यूचर का अंत करने वाल...
सफोला..अर्थात सांप के बच्चे को सफोला कहते हैं
5 वर्ष खाने के बाद शरीर जहरीला 10 वर्ष के बाद सफोला (सांप का बच्चा) अब सांप बन गया है 
15 साल बाद … मृ त्यु यानि कि सफोला अब अजगर बन गया है और वह अब आप को निगल जायगा
पहले के व्यक्ति 90- 100 वर्ष की उम्र में मरते थे तो उनको मोक्ष की प्राप्ति होती थी, क्योंकि उनकी सभी इच्छाए पूर्ण हो जाती थी और आज … अचानक हार्ट अटैक आया और कुछ ही देर में M र गया?? उसने तो कल के लिए बहुत से सपने देखें हैं और अचानक M त्यु …??? गलत खान पान के कारण, अकाल मृ त्यु हो जाती है तन मन धन और आत्मा की तृप्ति के लिए सिर्फ ओलीव आयल, राइस ब्राण्ड, कच्ची घाणी का तेल, तिल, सरसों, मुगफली, नारियल, बादाम आदि का तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए ..पौष्टिक वर्धक और शरीर को निरोग रखने वाला सिर्फ कच्ची घाणी का निकाला हुआ तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए lllll

पांडवारा बत्ती (पांडवों की मशाल) है, एक ऐसा पौधा जिसे महाभारत के पांडवों ने अपने वनवास के दौरान चिमनी की मशाल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए रखा था।

प्रकृति ने अजीबोगरीब खजाना छिपा रखा है!

यह पांडवारा बत्ती (पांडवों की मशाल) है, एक ऐसा पौधा जिसे महाभारत के पांडवों ने अपने वनवास के दौरान चिमनी की मशाल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए रखा था।
आप इसकी ताज़ी हरी पत्ती के साथ भी एक मशाल जला सकते हैं - पत्ती की नोक पर लगाया जाने वाला तेल की एक बूंद प्रकाश को एक बाती की तरह काम करने लगती है।
भारत में और श्रीलंका में केवल पश्चिमी घाट के भीतर पाया जाने वाला यह पौधा तमिलनाडु के अय्यर मंदिर और भैरवर मंदिर की तरह कई दक्षिण भारतीय मंदिरों में उपयोग किया जाता है।
              🚩🚩 सनातन सर्व श्रेस्ठ है ..! 🚩🚩
                
    🙏🌹 जय श्री कृष्णा 🌹🙏

रामलला और गुलाब चच्चा*🌹🤔*1949 में अयोध्या के ज़िला मजिस्ट्रेट नायर द्वारा नेहरू की हिन्दू विरोधी नीतियों के निडर विरोध की गाथा सुन कर आपकी आँखें भर 😢 आएगी ।*

*रामलला और गुलाब चच्चा*🌹🤔

*1949 में अयोध्या के ज़िला मजिस्ट्रेट नायर द्वारा नेहरू की हिन्दू विरोधी नीतियों के निडर विरोध की गाथा सुन कर आपकी आँखें भर 😢 आएगी ।*  
*अयोध्या में हमें श्रीराम की भूमि दिलाने वाले नायक IAS के.के.नायर, का जन्म 7 सितंबर 1907 को केरल में हुआ था। भारत की आजादी से पहले, वह इंग्लैंड गए और 21 साल की उम्र में बैरिस्टर बन गए और फिर आईसीएस परीक्षा में सफल हुए।1 जून 1949 को उन्हें फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात किया गया था।*

*रामलला की प्रतिमा को अचानक अयोध्या मंदिर में रखे जाने की शिकायत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने राज्य सरकार को जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। राज्य के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने ज़िला मजिस्ट्रेट श्री के.के.नायर से पूछताछ करने का अनुरोध किया।* 

*के के नायर ने अपनी रिपोर्ट में कहा गकि हिंदू अयोध्या को भगवान राम (राम लला) के जन्मस्थान के रूप में पूजते हैं। लेकिन मुसलमान वहां मस्जिद होने का दावा करके समस्याएँ पैदा कर रहे थे। उन्होंने सुझाव दिया कि वहां एक बड़ा मंदिर बनाया जाना चाहिए। उनकी रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को इसके लिए ज़मीन आवंटित करनी चाहिए। ज़िला मजिस्ट्रेट नायर में मुसलमानों को मंदिर के 500 मीटर के दायरे में जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया. (गौरतलब है कि आज तक न तो सरकार और न ही कोर्ट इस प्रतिबंध को हटा पाई है)।*

*यह सुनकर नेहरू क्रोधित हो गये। वह चाहते थे कि राज्य सरकार इलाके से हिंदुओं को तत्काल बाहर निकालने और रामलला को हटाने का आदेश दे। मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने ज़िला प्रशासन को तुरंत हिंदुओं को बाहर निकालने और रामलला की मूर्ति को हटाने का आदेश दिया। लेकिन नायर ने आदेश लागू करने से इनकार कर दिया। दूसरी ओर, उन्होंने एक और आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि प्रतिदिन रामलला की पूजा की जानी चाहिए। आदेश में यह भी कहा गया कि सरकार को पूजा का खर्च और पूजा कराने वाले पुजारी का वेतन वहन करना चाहिए।*
*इस आदेश से घबराकर नेहरू ने तुरंत नायर को नौकरी से हटाने का आदेश दे दिया। बर्खास्त किये जाने पर नायर इलाहाबाद अदालत में गये और स्वयं नेहरू के विरुद्ध सफलतापूर्वक बहस की।कोर्ट ने आदेश दिया कि नायर को बहाल किया जाए और उसी स्थान पर काम करने दिया जाए। कोर्ट के आदेश ने जैसे नेहरू के चेहरे पर कालिख पोतने जैसा था। यह आदेश सुनकर अयोध्यावासियों ने नायर से चुनाव लड़ने का आग्रह किया।*

*लेकिन नायर ने बताया कि एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते वह चुनाव में खड़े नहीं हो सकते। अयोध्यावासी चाहते थे कि नायर की पत्नी चुनाव लड़े। जनता के अनुरोध को स्वीकार करते हुए श्रीमती शकुन्तला नायर उत्तर प्रदेश के प्रथम विधान सभा चुनाव के दौरान अयोध्या में प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरीं। उस समय पूरे देश में कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत हुई थी। अकेले अयोध्या में, नायर की पत्नी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस उम्मीदवार कई हजार के अंतर से हार गए। श्रीमती शकुंतला नायर 1952 में जनसंघ में शामिल हुईं और संगठन का विकास करना शुरू किया।*

*इससे फ़ैसले से हैरान नेहरू ने नायर पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। नायर जी ने नेहरू के अनैतिक हथकंडों से परेशान होकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में काम करना शुरू कर दिया।*

*वर्ष 1962 में जब संसद के चुनावों की घोषणा हुई तो लोगों ने नायर और उनकी पत्नी को चुनाव लड़ने के लिए मनाने में सफल रहे। वे चाहते थे कि वे नेहरू के सामने अयोध्या के बारे में बोलें। जनता ने नायर दंपत्ति को बहराइच और कैसरगंज दोनों सीटों पर जीता कर सांसद बनवाया। और एक सुखद आश्चर्य के रूप में, उनके ड्राइवर को भी फैसलाबाद से विधायक चुना गया था।*

*बाद में, इंदिरा शासन ने देश में आपातकाल लागू कर दिया और दंपति को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया 😢। लेकिन उनकी गिरफ़्तारी से अयोध्या में भारी हंगामा हुआ और डरी हुई सरकार ने उन्हें जेल से रिहा कर दिया। दंपति अयोध्या लौट आए और अपना सार्वजनिक कार्य जारी रखा। आजतक हिंदू विरोधी तत्व नायर जी द्वारा जारी आदेशों को बदल नहीं पाए हैं। नायर द्वारा जारी आदेश के आधार पर पूजा और रामलला के दर्शन अब भी जारी हैं.*

*आपातकाल की गिरफ़्तारी के कारण नायर का 7 सितंबर 1977 के दिन केरल में निधन हो गया। उनकी मृत्यु की खबर सुनने के बाद अयोध्या के निवासियों ने आँसू बहाये। उनकी अस्थियां लेने के लिए एक समूह केरल गया। अस्थियों का बड़े आदर के साथ स्वागत किया गया। उन्हें एक सुसज्जित रथ में ले जाया गया और अयोध्या के पास सरयू नदी में विसर्जित कर दिया गया।*

*नायर के प्रयासों के कारण ही हम अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि पर पूजा कर पा रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अयोध्या के लोग उन्हें एक दिव्य व्यक्ति मानते हैं। यदि नायर न होते तो क्या आज राम का जन्मस्थान हमारे पास होता? यह एक प्रश्न चिन्ह है! विश्व हिंदू परिषद ने उनके पैतृक गांव में जमीन खरीदी है और उनके लिए एक स्मारक बनाया है। गौरतलब है कि के.के. नायर के नाम से शुरू किया गया ट्रस्ट सिविल सेवा परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण प्रदान करता है।*

*आज सब प्रयास करे की हमें श्री राम की जन्मभूमि देने वाले श्री के.के.नायर की महिमा चारों और जोरों से गूंजे।*

*यह ग्रुप समाज की जागरूकता हेतु व अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां व सकारात्मक विचार जो समाज के हित के लिए हो को आदान प्रदान हेतु है...*
*https://hindi.news18.com/amp/news/delhi-ncr/ayodhya-verdict-soon-role-of-kk-nayar-dm-of-1949-ram-mandir-babri-masjid-dispute-supreme-court-jawahar-lal-nehru-dlop-2587531.html*

अपनी ही मौत का सामान तैयार करने के लिए अब हिन्दू 2,04,683 X 26,000 = Rs 5,32,17,58,000.00 (लगभग 533 करोड़ रुपये) प्रतिमास का जजिया कर देने के लिये आगे बढ़ रहा है

*भारत का विचित्र राज्य केरल -* 
_*नास्तिक Communist शासित केरल*? 
या फिर 
*धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस + मुस्लिम लीग (IUML) शासित केरल?*  ...._ 

 *केरल में मदरसों की संख्या = 21,683 ...* 

*केरल में कुल 14 जनपद (जिले)* .. 

*इसका मतलब केरल में प्रति जिला 1,459 मदरसा  ....* 

*हर जिले में 70 पंचायत*.... 

*मतलब प्रति पंचायत 22 मदरसा*  ... 

*मतलब केरल के प्रत्येक किलोमीटर पर एक मदरसा  ...* 

_*इन मदरसों में 2,04,683 मजहबी मास्टर यानी मौलवी हैं*_

*जो इस 21,683 मदरसों में मजहबी "पढ़ाई" (?) कराते हैं*  ...

  
*प्रति मदरसा 9 ऐसे मजहबी मास्टर यानी मौलवी हुए* ... 

*केरल सरकार प्रति मजहबी मास्टर को Rs.6,000/- प्रतिमास की तनख्वाह बांटती है  ...* 
*केरल के उच्च शिक्षा और अल्पसंख्यक मंत्री का नाम है K. T. Jalil जो कि SIMI का सदस्य था* ... 

*इसनें SIMI के Ban होने पर CPI (M) की सदस्यता लेली* ...

 
*अब SIMI का यह सदस्य कम्युनिस्ट राज में केरल का शिक्षा मंत्री है* ... 

*अभी के समय 2,04,683 X 6000 = Rs. 1,22,80,98,000.00 (यानी कि लगभग 123 करोड़ ) रुपये*
 *प्रति मास का जजिया कर हिन्दू भरते हैं इन मजहबी मास्टरों को  ...* 

_*यहाँ से निकले हुए "तालिबान" का प्लेसमेंट ISIS में होता है जिसमे से अभी 14 पकड़े गये हैं।*

 *ISIS-Khorasan के बम - बन्दूक मारनें वाले विभाग में कामगार के रूप में  ...* 
 *केरल का यह शिक्षा मन्त्री जो कि "जलील"  है,* 

*अब इन मजहबी मास्टरों यानि कि मौलवियों की तनख्वाह 26,000 करने की मांग की है , जिसको पूरा करने की  तैयारी केरल की कम्युनिस्ट सरकार कर रही है  ....* 
_*इसका मतलब अपनी ही मौत का सामान तैयार करने के लिए अब हिन्दू 2,04,683 X 26,000 = Rs 5,32,17,58,000.00 (लगभग 533 करोड़ रुपये) प्रतिमास का जजिया कर देने के लिये आगे बढ़ रहा है*  ..._   
. 
*कोई भी हिन्दुओं की ऐसी संस्था नहीं है जिसके कर्मचारी को कोई सरकार वेतन देती हो* - 
*जैसे* 
*कोई पुजारी, कोई मन्दिर या धर्मार्थ संस्थान*  ... 

*उल्टे सरकार हिन्दुओं के मन्दिरों के रुपए ले लेती है और काफिरों की मारने की शिक्षा देने वालों को उस पैसे से तनख्वाह बाँटती है* .... 
*हिन्दू मंदिरों और संस्थाओं को सरकारी दासता से मुक्त करो*...

*अब हमें अपने रुपए*  
*अपना गला काटने वालों को नहीं देना है,* 
*इसलिये इसके विरुद्ध सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर एक जोरदार मुहिम चलानें की आवश्यकता है* 
*जिसमें आप सब के सहयोग की आवश्यकता है*... !

🙏🇮🇳🚩

अमेरिका में रसोई में भोजन बनाना छोड़ने का दुष्परिणाम

अपन सब बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं अपने बच्चे बच्चियों को पढाई तो खूब करा रहे हैं परन्तु घर के काम बिल्कुल भी नहीं सीखा रहे हैं इसका खामीयाजा आने वाले वर्षो में अपने बच्चे बच्चियों को भुगतना पड़ेगा
बचाव के लिए 
बच्चे एवं बच्चियों दोनों को सुबह उठते ही घर में झाड़ू लगाना, पोंछे लगाना, बर्तन मांजना, कपड़े धोना, साग सब्जी कांट छांट कर बनाना, आटा गूंथना, रोटी बनाना, सिलाई, कढाई, बुनाई, सहित घर के छोटे मोटे हर काम सीखाना बहुत जरुरी है

*अमेरिका में रसोई में भोजन बनाना छोड़ने का दुष्परिणाम*
अमेरिका में क्या हुआ जब घर में खाना बनाना बंद हो गया ? 
1980 के दशक के प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी लोगों को चेतावनी दी थी कि यदि वे परिवार में आर्डर देकर बाहर से भोजन मंगवाऐंगे तो देश मे परिवार व्यवस्था धीरे धीरे समाप्त हो जाएगी। 
साथ ही दूसरी चेतावनी दी  थी कि यदि उन्होंने बच्चों का पालन पोषण घर के सदस्यो के स्थान पर बाहर से पालन पोषण की व्यवस्था पर ही केन्द्रित किया तो यह भी बच्चो के मानसिक विकास व परिवार के लिए घातक होगा।लेकिन बहुत कम लोगों ने उनकी सलाह मानी। 
घर में खाना बनाना लगभग बंद हो गया हैऔर बाहर से खाना मंगवाने की आदत (यह अब नॉर्मल है), अमेरिकी परिवारों के विलुप्त होने का कारण बनी है जैसा कि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी।
घर मे खाना बनाना मतलब परिवार के सदस्यों के साथ प्यार से जुड़ना।
*पाक कला मात्र अकेले खाना बनाना नहीं है। बल्कि केंद्र बिंदु है, पारिवारिक संस्कृति का।*
घर मे अगर कोई किचन नहीं है , बस एक बेडरूम है, तो यह घर नहीं है, यह एक हॉस्टल है या सीधे शब्दों मे कहें तो एक धर्मशाला(सराय) है।

*अब उन अमेरिकी परिवारों के बारे में जाने जिन्होंने अपनी रसोई बंद कर दी और सोचा कि अकेले बेडरूम ही काफी है?*
1-1971 में, लगभग 72% अमेरिकी परिवारों में एक पति और पत्नी थे, जो अपने बच्चों के साथ रह रहे थे।
2020 तक, यह आंकडा 22% पर आ गया है।
2-पहले साथ रहने वाले परिवार अब नर्सिंग होम (वृद्धाश्रम) में रहने लगे हैं।
3-अमेरिका में, 15% महिलाएं एकल महिला परिवार के रुप में रहती हैं।
4-12% पुरुष भी एकल परिवार के रूप में रहते हैं।
5-अमेरिका में 19% घर या तो अकेले रहने वाले पिता या माता के स्वामित्व में हैं।
6-अमेरिका में आज पैदा होने वाले सभी बच्चों में से 38% अविवाहित महिलाओं से पैदा होते हैं।उनमें से आधी लड़कियां हैं,  जो बिना परिवारिक संरक्षण के अबोध उम्र मे ही शारीरिक शोषण का शिकार हो जाती है ।
7-संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 52% पहली शादियां  तलाक में परिवर्तित होती हैं।
8- 67% दूसरी शादियां भी  समस्याग्रस्त हैं।

 अगर किचन नहीं है और सिर्फ बेडरूम है तो वह पूरा घर नहीं है।
संयुक्त राज्य अमेरिका विवाह की संस्था के टूटने का एक उदाहरण है।
*हमारे आधुनिकतावादी भी अमेरिका की तरह दुकानों से या आनलाईन भोजन ख़रीदने की वकालत कर रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि भोजन बनाने की समस्या से हम मुक्त हो गए हैं। इस कारण भारत में भी परिवार धीरे-धीरे अमेरिकी परिवारों की तरह नष्ट हो रहे हैं।*
जब परिवार नष्ट होते हैं तो मानसिक और शारीरिक दोनों ही स्वास्थ्य बिगड़ते हैं। बाहर का खाना खाने से अनावश्यक खर्च के अलावा शरीर मोटा और संक्रमण के प्रति संवेदनशील और बिमारियों का घर  हो जाता है।
शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।

*इसलिए हमारे घर के बड़े-बूढ़े लोग, हमें बाहर के खाने से बचने की सलाह देते थे*
लेकिन आज हम अपने परिवार के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं...",
स्विगी और ज़ोमैटो के माध्यम से अजनबियों द्वारा पकाए गए( विभिन्न कैमिकल युक्त) भोजन को ऑनलाइन ऑर्डर करना और खाना, उच्च शिक्षित, मध्यवर्गीय लोगों के बीच भी फैशन बनता जा रहा है।
दीर्घकालिक आपदा होगी ये आदत...
*आज हमारा खाना हम तय नही कर रहे उल्टे ऑनलाइन कंपनियां विज्ञापन के माध्यम से मनोवैज्ञानिक रूप से तय करती हैं कि हमें क्या खाना चाहिए...*
हमारे पूर्वज निरोगी और दिर्घायु इस लिए थे कि वो घर क्या ...यात्रा पर जाने से पहले भी घर का  ताजा खाना बनाकर साथ मे ही ले जाते थे ।
*इसलिए घर में ही बनाएं और मिल-जुलकर खाएं । पौष्टिक भोजन के अलावा, इसमें प्रेम और स्नेह निहित है।*

*इस संदेश को कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे*
*कुछ लोग नही भेजेंगे लेकिन मुझे यकीन है आप जरूर भेजेंगे*

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सोमवार, 25 दिसंबर 2023

25 दिसंबर/जन्म-दिवस अटल बिहारी वाजपेयी भारत के दसवें प्रधानमंत्री

*२५ दिसंबर/जन्म-दिवस*
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*अटल बिहारी वाजपेयी*
*भारत के दसवें प्रधानमंत्री*
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पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में शिन्दे की छावनी में २५ दिसंबर १९२४ को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। 
कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम॰ए॰ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिता जी के साथ-साथ कानपुर में ही रहते थे कानपुर से ही एल॰एल॰बी॰ की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलता पूर्वक करते रहे।

वह भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक थे और सन् १९६८ से १९७३ तक वह उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके थे। सन् १९५२ में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन् १९५७ में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। सन् १९५७ से १९७७ तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में सन् १९७७ से १९७९ तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनायी। १९८० में जनता पार्टी से असन्तुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। ०६ अप्रैल १९८० में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिये भी निर्वाचित हुए। लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् १९९६ में प्रधानमन्त्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। १९ अप्रैल १९९८ को पुनः प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में १३ दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए।

सन् २००४ में कार्यकाल पूरा होने से पहले भयंकर गर्मी में सम्पन्न कराये गये लोकसभा चुनावों में भा॰ज॰पा॰ के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (एन॰डी॰ए॰) ने वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और भारत उदय (अंग्रेजी में इण्डिया शाइनिंग) का नारा दिया। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से काँग्रेस ने भारत की केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त की और भा॰ज॰पा॰ विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई। 

अटल सरकार ने ११ और १३ मई १९९८ को पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया कि अति विकसित जासूसी उपग्रहों व तकनीक से संपन्न पश्चिमी देशों को इसकी भनक तक नहीं लगी। यही नहीं इसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए आर्थिक विकास की ऊँचाईयों को छुआ।

१९ फरवरी १९९९ को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की।

कुछ ही समय पश्चात पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतरराष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का बहुत नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरु किए गए संबंध सुधार एकबार पुनः शून्य हो गए।

भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (अंग्रेजी में- गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल प्रोजैक्ट या संक्षेप में जी॰ क्यू॰ प्रोजैक्ट) की शुरुआत की गई। इसके अंतर्गत दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्गों से जोड़ा गया। ऐसा माना जाता है कि अटल जी के शासनकाल में भारत में जितनी सड़कों का निर्माण हुआ इतना केवल शेरशाह सूरी के समय में ही हुआ था।
एक सौ वर्ष से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया।

संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया। 

नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये।
राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं।

आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों के मूल्योंं को नियन्त्रित करने के लिये मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया। उड़ीसा के सर्वाधिक निर्धन क्षेत्र के लिये सात सूत्रीय निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया।

आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त किया।
ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शुरू की।

ये सारे तथ्य सरकारी विज्ञप्तियों के माध्यम से समय समय पर प्रकाशित होते रहे हैं।
वाजपेयी अपने पूरे जीवन अविवाहित रहे। उन्होंने लंबे समय से दोस्त राजकुमारी कौल और बी॰एन॰ कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को उन्होंने दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकार किया। राजकुमारी कौल की मृत्यु वर्ष २०१४ में हो चुकी है। अटल जी के साथ नमिता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य रहते थे। वह हिंदी में लिखते हुए एक प्रसिद्ध कवि थे। उनके प्रकाशित कार्यों में कैदी कविराई कुंडलियां शामिल हैं, जो १९७५-७७ आपातकाल के दौरान कैद किए गए कविताओं का संग्रह था, और अमर आग है। अपनी कविता के संबंध में उन्होंने लिखा, "मेरी कविता युद्ध की घोषणा है, हारने के लिए एक निर्वासन नहीं है। यह हारने वाले सैनिक की निराशा की ड्रमबीट नहीं है, लेकिन युद्ध योद्धा की जीत होगी। यह निराशा की इच्छा नहीं है लेकिन जीत का हलचल चिल्लाओ।"

राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी। विख्यात गज़ल गायक जगजीत सिंह ने अटल जी की चुनिंदा कविताओं को संगीतबद्ध करके एक एल्बम भी निकाला था।

वाजपेयी को २००९ में एक दौरा पड़ा था, जिसके बाद वह बोलने में असक्षम हो गए थे। उन्हें ११ जून २०१८ में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था, जहाँ १६ अगस्त २०१८ को शाम १७:०५ बजे उनकी मृत्यु हो गयी। 
अटल जी की अस्थियों को देश की सभी प्रमुख नदियों में विसर्जित किया गया।
सर्वतोमुखी विकास के लिये किये गये योगदान तथा असाधारण कार्यों के लिये २०१५ में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

गोमती चक्र की उपयोगिता

 गोमती चक्र की उपयोगिता 

बहुत उपयोगी प्रश्न पूछा है , गोमती चक्र की उपयोगिता क्या है ?

सोया भाग्य जगा देते हैं , गोमती चक्र

शनिवार को लोहा ( कार , ट्रेक्टर या और कोई वाहन ) खरीद लेते हैं , एक दो अपवाद छोड़कर ,इस दिन खरीदा हुआ लोहा कभी वफ़ा नहीं देता । शनिवार को यदि घर की नीवं रखते हैं , वो घर शुभ फलदायी होता है। शुक्रवार को यदि झाड़ू ख़रीदकर लाते हैं ,तो समझो लक्ष्मी माता घर ले आये। ये कुछ उदहारण जो हमारे जीवन पर बहुत असर डालते हैं। शुभ समय ,शुभ दिन , शुभ मुहूर्त पर चीजें खरीदना ,हमारे जीवन पर बहुत असर डालती हैं।

कुछ चीजें हैं , जिनको घर लाने में किसी शुभ समय ,शुभ दिन , शुभ मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं , और उनको कभी भी खरीदो हमेशा वफ़ा ही देती हैं। जैसे गोमती चक्र , नाम आपने सुना होगा , लेकिन इसका प्रभाव और चमत्कार नहीं देखा होगा।

जिस घर में गोमती चक्र हो , वैवाहिक जीवन सफल और सुखी रहता है,कोई हारी बीमारी नहीं होती ,दुकान व्यापार सही चलता है, घर के सभी सदस्य व्यापार ,नौकरी ,पढाई में उन्नति करते हैं ,ग्रह कलेश नहीं होता । फालतू के खर्चे और कर्जा नहीं होता।

गोमती चक्र अभिमंत्रित कैसे करें? ये भी कई लोगों का सवाल है

तो बता दें , माता गोमती नदी के गोमती चक्र और माता नर्मदा नदी से निकलने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग अभिमंत्रित नहीं करने होते। इनको घर पर पूजा के स्थान पर रख कर साधारण पूजा कीजिए ,अपार शुभ फल देंगे।

तांत्रिक क्रियाओं में इसका बहुत उपयोग किया जाता है। जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है लेकिन इसका प्रभाव असाधारण होता है।गोमती चक्र कम कीमत वाला ऐसा पत्थर है। जो गोमती नदी में मिलता है।

गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं। पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट से सम्बंधित कई रोग दूर हो जाते हैं।

धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने नियमित " श्री नम:" का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं। उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी।

गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं। माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है , हमेशा पैसा हाथ में रहता है। कर्जा नहीं होता ,आय के स्त्रोत बने रहते हैं ,आय के नए साधन बनते हैं।

इनकी बहुत ही खास बात ये है की ,ये सर्वसुलभ हैं , आसानी से खरीदे जा सकते हैं। आप ऑनलाइन ले सकते हो ,किसी भी पूजा पाठ की दूकान से ले सकते हो। और ये कम खर्च में बहुत सस्ते मिल जाते हैं।


16000 रानियों की चिता की राख से अल्लाउद्दीन ने "सवा चौहत्तर मन सोना" (एक मन = 37.3242 किग्रा ) लूटा था।

 कभी प्रसिद्ध इतिहासविद् अतुल रावत की किताब पढ़ियेगा ।

जिसमें बताया है कि

16000 रानियों की चिता की राख से अल्लाउद्दीन ने

"सवा चौहत्तर मन सोना"

(एक मन = 37.3242 किग्रा ) लूटा था।

यह जूता है उनके मुँह पर जो इस विषय पर भंसाली जैसे बॉलीवुड भाँडो के लिये सहानुभूति रखते हैं अल्लाउद्दीन की मरघटी मोहब्बत का आखिर यही अर्थशास्त्र है!!

अतुल रावत का कथन पढ़िए –

"भारतीय सन्दर्भ में लोक परंपरा किस प्रकार इतिहास को संरक्षित किये रहती है यह पद्मिनी की महान गाथा से स्पष्ट है"।

जौहर की ज्वाला शांत होने के बाद अलाउद्दीन ने उस विशाल चिता को भी नहीं छोड़ा।

सभी राजपूतानियाँ पूरा श्रृंगार करके चिता पर आरूढ़ हुई थीं। अलाउद्दीन ने चिता की राख से "सवा चौहत्तर मन सोना" लूटा था।

हिन्दू समाज ने राजपूतानियों के उस महान बलिदान की स्मृति बनाये रखने के लिए एक लोक परंपरा आरम्भ की जो अब से पचास -साठ वर्ष पूर्व तक चलती रही – हिन्दू अपने पत्रों पर "सवा चौहत्तर का अंक" अंकित किया करते थे।

इसका आशय यह था कि जिसको पत्र लिखा गया है उसके अलावा यदि कोई अन्य व्यक्ति इस पत्र को खोले तो उसे वही पाप लगे जो पाप पद्मिनी की चिता से सवा चौहत्तर मन सोना लूटने पर अल्लाउद्दीन को लगा था।

लोक इतिहास संरक्षण का यह अनूठा तरीका था। इसीलिए यह इतिहास दो पीढ़ी पहले तक तो बचा रहा।

ये हमारा दुर्भाग्य है कि वर्तमान पीढ़ी विकृत इतिहास और अल्प इतिहास ही पढ़ पायी है, इन्हें अपनी ठसक से नीचे उतरकर खुद को पहचानने की फुर्सत ही नहीं!

वास्तविक से दूर सपनों में जीने की आदि युवा पीढ़ी इस संरक्षण के योग्य बची ही नहीं हैं जो महारानी पद्मिनी को रज मात्र भी समझ पाये

🙏

जौहर कुंड चित्तौड़गढ़

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