आजकल खाप पंचायत याने जात पंचायत पर काफी बहस होती दिखाई दे रही है. एक समय
में माहेश्वरी समाज के प्रबंधन में माहेश्वरी पंचायत की महत्वपूर्ण भूमिका
होती थी, समस्याओं को पंचायत में ही सुलझाया जाता था. फिर धीरे-धीरे
माहेश्वरी पंचायते बंद होती गयी. कुछ
समाजशास्त्री कहते है की जात पंचायते समाज को जोड़े रखने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है समाज की समस्याओं को भी सुलझाती है. यह एक ऐसी व्यवस्था
है जहाँ समाज के लोग अपना समय देकर, बिनाशुल्क समस्या सुलझाते है. जात
पंचायतों के विरोधियों का कहना होता है की, पंचायतों के फैसले/ निर्णय कई
बार गलत होते है. पंचायतों के समर्थक कहते है की पुलिस भी कई बार गलत काम
कर जाती है; कोर्ट के फैसले भी कई बार गलत साबित हुए है तो क्या उन
व्यवस्थाओं को बंद करने की बाते होती है? नहीं! तो जात पंचायतों के बारेमें
ही ऐसा क्यों सोचा जाता है. हर एक व्यवस्था में समय के अनुसार सुधार होते
रहते है; जात पंचायतों में भी उचित सुधार करते हुए इस व्यवस्था का लाभ लिया
जाना चाहिए.
शायद आज माहेश्वरी पंचायत कार्यरत होती तो कहीं पर भी बूढ़े माँ-बाप को उनके बच्चे घरसे बाहर ना निकाल पाते, शायद लड़कियाँ अन्य जातिमे शादियाँ नही करती, अन्य लोगोंसे समाज के भाई- बहनों को, बेपारियों को कही कोई तकलीफ नही होती. समाज के संगठन भी एक तरह से जात पंचायतों का ही आधुनिक स्वरुप है लेकिन यह संगठन जात पंचायतों की तरह काम में कारगर या असरदार नही दिखाई देते है, जात पंचायतों की तरह विश्वसनीयता पाने में भी सफल नही हुए है.
शायद आज माहेश्वरी पंचायत कार्यरत होती तो कहीं पर भी बूढ़े माँ-बाप को उनके बच्चे घरसे बाहर ना निकाल पाते, शायद लड़कियाँ अन्य जातिमे शादियाँ नही करती, अन्य लोगोंसे समाज के भाई- बहनों को, बेपारियों को कही कोई तकलीफ नही होती. समाज के संगठन भी एक तरह से जात पंचायतों का ही आधुनिक स्वरुप है लेकिन यह संगठन जात पंचायतों की तरह काम में कारगर या असरदार नही दिखाई देते है, जात पंचायतों की तरह विश्वसनीयता पाने में भी सफल नही हुए है.
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