ऐसा प्रतीत होता है सनातन धर्म को अधिकाधिक जानने की आवश्यकता है क्योंकि इसी प्रकार ये क्रम चलता रहा तो सभी एकसाथ इस धर्म के विषय मे अनर्गल प्रलाप करते रहेंगे, सहिष्णु होने का अर्थ सभी कुछ सहन करना नही है ,
आपको इस मुहावरे को नकारत्मक अर्थ अधिक प्रिय लगता है क्योंकि इसमें सनातन धर्म का अपमान दॄष्टिगत होता है, परन्तु आज आपको इसका वास्तविक अर्थ ज्ञात होने का समय आ गया है।
- गोबर गणेश मुहावरे का संदर्भ पुराणों से जुड़ा है,
प्रथम कथा के अनुसार
- देवों-दानवों में हुए अमृतमंथन के दौरान नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला पांच कामधेनुएं भी निकली थीं। देवों को दानवों के संत्रास से मुक्ति दिलाने के लिए आदिशक्ति दुर्गा ने सुरभि गाय के गोबर से गणेशजी की रचना की। उन्हें शक्तियां प्रदान कर स्वयं का वाहन सिंह प्रदान किया, गोबर से गणेश की रचना एक महान उद्धेश्य के निमित हुई, देवी दुर्गा ने अपनी शक्तियों का संचार कर उसे समर्थ बनाया। गणेशजी ने दानवों का संहार किया और गणनायक या गणपति की उपाधि प्राप्त की।
द्वितीय कथा के अनुसार
- हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है उसके वर्णन को लिपिबद्ध करना उनके वश का नहीं था। अतः उन्हें एक लेखक की आवश्यकता थी जो उनके कथन और विचारों को बिना बाधित किए लेखन कार्य करता रहे. क्योंकि बाधा आने पर विचारों की सतत प्रक्रिया प्रभावित हो सकती थी. अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की, गणेश जी ने कहा कि मैं महाभारत लिख तो दूंगा। आपको अनवरत कथा बताते रहना होगा, यदि आपकी कथा रुकी तो मेरी लेखनी तो रुकेगी ही साथ ही मैं लेखन का कार्य भी छोड़ दूंगा, आपकी कथा पूर्ण हो या अपूर्ण। व्यासजी ने इसे मान लिया और गणेशजी से अनुरोध किया कि वे भी मात्र अर्थपूर्ण और सत्य बातें, समझ कर लिखें। इसके पीछे उनकी धारणा यह थी कि महाभारत और गीता सनातन धर्म के सबसे प्रामाणिक पाठ के रूप में स्थापित हो गणपति जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, परन्तु उन्हें जल पीना भी वर्जित था। अतः गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर गोबर और मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा। ऐसा माना जाता है कि व्यासजी जो भी श्लोक बोलते थे, गणेशजी उसे शीघ्रतापूर्वक लिख लेते थे। अतः व्यासजी ने गणेशजी की गति को मंद करने के लिए सरल श्लोकों के पश्चात एक कठिन श्लोक बोलते थे। महाभारत का लेखन कार्य गणेश चतुर्थी को आरम्भ हुआ और अनन्त चतुर्दशी को सम्पन्न हुआ था। उस दिन गणेश जी के शरीर के तापमान को अल्प करने के लिए और उनके लेप को हटाने के लिए जल अर्पण किया । समीप के एक जलकुंड में उन्हें बैठाया अतः उस दिन से गणेश विसर्जन का आरम्भ माना जाता है।
गोबर गणेश के प्रचलित नकारत्मक अर्थ
- गोबरगणेश मुहावरे में यह संदर्भ दॄष्टिगत नही हो पाता है परन्तु नकारत्मक अर्थवत्ता पूर्णतया दिख रही है।
- लौकिक अर्थों में किसी व्यक्ति को गोबरगणेश कहने के पीछे यही आशय है कि वह मूर्ख है और पौराणिक गोबरगणेश की तरह उसमें अलौकिक क्षमता नहीं हैं, वह निरा मिट्टी का माधौ है।
- कुछ मूर्ख देसी गौ के गोबर में उभरी रेखाओं में नजर आती विभिन्न आकृतियों में भी गणेश का रूपाकार देखते हुए गोबरगणेश को इससे जोड़ते हैं।
- धन्यवाद
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