यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

मृत्यु के चौदह प्रकार

श्री रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने मृत्यु को मरण ही नहीं माना अपितु जीवित व्यक्ति में जीवन रहते हुए भी वह तब मृत हो जाता है जब उसके अन्दर यह भाव उत्पन्न हो जाता है जिस भाव, स्वभाव का वर्णन अंगद के द्वारा रावण को समझाया जाता है। जय हो रामचरित मानस की। जय हो सनातन धर्म की।। जय हो मर्यादा पुरुषोत्तम राम की।। जय रामलला हनुमान की*

*राम और रावण का युद्ध चल रहा था, तब अंगद रावण को बोले- तू तो मरा हुआ है, तुझे मारने से क्या फायदा?*

*रावण बोला– मैं जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे?*

अंगद बोले सिर्फ साँस लेने वालों को जीवित नहीं कहते- साँस तो लुहार का भाता भी लेता है.तब अंगद ने 14 प्रकार की मृत्यु बतलाई.

अंगद द्वारा रावण को बतलाई गई, ये बातें आज के दौर में भी लागू होती है

यदि किसी व्यक्ति में इन 14 दुर्गुणों में से एक दुर्गुण भी आ जाता है तो वह मृतक समान हो जाता है !

लंका काण्ड में यह प्रसंग अत्यंत सारगर्भक और शिक्षणीय :

कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा !

अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा !!

सदारोगबस संतत क्रोधी !

विष्णु विमूख श्रुति संत विरोधी !

तनुपोषक निंदक अघखानी !

जिवत शव सम चौदह प्रानी !!

1) कामवश:-जो व्यक्ति अत्यन्त भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है; जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है; वह अध्यात्म का सेवन नहीं करता है, सदैव वासना में लीन रहता है !!

2) वाम मार्गी:-जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो; नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है; ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं !!

3) कंजूस:-अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है; जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो, दान करने से बचता हो, ऐसा आदमी भी मृत समान ही है !!

4) अति दरिद्र:-गरीबी सबसे बड़ा श्राप है; जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वो भी मृत ही है; अत्यन्त दरिद्र भी मरा हुआ है, दरिद्र व्यक्ति को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योंकि वह पहले ही मरा हुआ होता है, गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए !!

5) विमूढ़:-अत्यन्त मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है; जिसके पास विवेक, बुद्धि नहीं हो, जो खुद निर्णय ना ले सके यानि हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है, मूढ़ अध्यात्म को समझता नहीं है !!

6) अजसि:-जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है; जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता है, वह व्यक्ति मृत समान ही होता है !!

7) सदा रोगवश:-जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है; स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है, नकारात्मकता हावी हो जाती है, व्यक्ति मृत्यु की कामना में लग जाता है, जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है !!

8) अति बूढ़ा:-अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है; शरीर और बुद्धि, दोनों असक्षम हो जाते हैं, ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके !

9) सतत क्रोधी:-24 घंटे क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी मृत समान ही है; हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना, ऐसे लोगों का काम होता है, क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं, जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है; पूर्व जन्म के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है, क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है और नरक गामी होता है !!*

10) अघ खानी:-जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है; उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं, हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए, पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गोत्र, निगोद की प्राप्ति होती है !!

11) तनु पोषक:-ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो, तो ऐसा व्यक्ति भी मृतक समान ही है; जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकि किसी अन्य को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं, ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं; शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है क्योंकि यह शरीर विनाशी है, नष्ट होने वाला है !!

12) निंदक:-अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है; जिसे दूसरों में सिर्फ कमियाँ ही नज़र आती हैं, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता है, ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे, तो सिर्फ किसी ना किसी की बुराई ही करें, वह इंसान मृत समान होता है, परनिंदा करने से नीच गोत्र का बन्ध होता है !!

13) परमात्म विमुख:-जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है; जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं; हम जो करते हैं, वही होता है, संसार हम ही चला रहे हैं, जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है !!

14) श्रुति, संत विरोधी:-जो संत, ग्रंथ, पुराण का विरोधी है, वह भी मृत समान होता है; श्रुत और सन्त ब्रेक का काम करते हैं, अगर गाड़ी में ब्रेक ना हो तो वह कहीं भी गिरकर एक्सीडेंट हो सकता है; वैसे ही समाज को सन्त के जैसे ब्रेक की जरूरत है नहीं तो समाज में अनाचार फैलेगा !

।। 🌹🌹जै श्री राधे राधे जी ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

function disabled

Old Post from Sanwariya