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रविवार, 14 अक्टूबर 2012

रविवार व्रत कथा

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रविवार व्रत कथा

रविवार व्रत का महात्मयः रविवार के दिन भगवान सूर्य का व्रत किया जाता है| इस व्रत का पालन आमतौर पर महिलाएं करती हैं। रविवार के व्रत का महात्मय है कि जो भी व्रत रखकर इनकी पूजा करता है वह दैहिक और दैविक ताप से मुक्त हो जाता है। इस व्रत के करने से मान-सम्मान बढता है तथा शत्रुओं का क्षय होता है| आँख की पीडा के अतिरिक्त अन्य सब पीडाएं दूर होती है|

रविवार व्रत की कथाः एक बुढिया थी। उसका नियम था कि प्रति रविवार को सवेरे ही स्नान आदि कर, पडोसन की गाय के गोबर से घर को लीपकर फिर भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगा स्वंय भोजन करती थी। ऐसा व्रत करने से उसका घर धन-धान्य एवं आनन्द से पूर्ण था। इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर उसकी पडोसन विचार करने लगी कि यह वृद्वा सर्वदा मेरी गाय का गोबर ले जाती है। इसलिए अपनी गाय घर के भीतर बाँधने लग गई। बुढिया को गोबर न मिलने से रविवार के दिन अपने घर को न लीप सकी। इसलिये उसने ना तो भोजन बनाया और न भगवान को भोग लगाया तथा स्वंय भी उसने भोजन नही किया। इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया। रात्रि हो गई और वह भूखी सो गई। रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन न बनाने तथा भोग न लगाने का कारण पूछा। वृद्वा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया। तब भगवान ने कहा कि माता हम तुमको ऐसी गाय देते है। जिससे सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं क्योकि तुम हमेशा रविवार को गाय के गोबर से घर लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो। इससे मैं खुश होकर तुमको यह वरदान देता हूँ तथा अन्त समय में मोक्ष देता हूँ। स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान तो अर्न्तधान हो गए और जब वृद्वा की आँख खुली तो वह देखती है कि आँगन में एक अति सुन्दर गाय और बछडा बँधे हुए है। वह गाय और बछडे को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई और उसको घर के बाहर बाँध दिया। वहीं खाने का चारा डाल दिया। जब उसकी पडोसन ने बुढिया के घर के बाहर एक अति सुन्दर गाय और बछडा को देखा तो द्वेष के कारण उसका हदय जल उठा तथा जब उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह पर रख गई। वह नित्यप्रति ऐसा ही करती रही और सीधी-साधी बुढिया को इसकी खबर नहीं होने दी। तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पडोसन के कर्म से बुढिया ठगी जा रही है। भगवान ने सँध्या के समय अपनी माया से बडे जोर की आँधी चला दी। बुढिया ने अँधेरी के भय से अपनी गाय को भीतर बाँध लिया। प्रात:काल उठकर जब वृद्वा ने देखा कि गाय ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गाय को घर के भीतर बाँधने लगी। उधर पडोसन ने देखा कि बुढिया गाय को घर के भीतर बाँधने लगी है उसका सोने का गोबर उठाने का दाँव नहीं चलता तो वह ईर्ष्या से जल उठी और कुछ उपाय न देख उसने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा, महाराज! मेरे पडोस मे एक वृद्वा के पास ऐसी गाय है जो आप जैसे राजाओं के ही योग्य है। वह नित्य सोने का गोबर देती है। आप उस सोने से प्रजा का पालन करिये। वह वृद्वा इतने सोने का क्या करेगी? राजा ने यह बात सुन अपने दूतों को वृद्वा के घर से गाय लाने की आज्ञा दी। वृद्वा प्रात: ईश्वर का भोग लगा भोजन ग्रहण करने ही जा रही थी कि राजा के कर्मचारी गाय खोलकर ले गए। वृद्वा काफी रोई - चिल्लाई किन्तु कर्मचारियो के समक्ष कोई क्या कहता? उस दिन वृद्वा गाय वियोग में भोजन न खा सकी और रात-भर रो- रोकर ईश्वर से गउ को पुन: पाने के लिए प्रार्थना करती रही। उधर राजा गाय को देखकर बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन सुबह जैसे ही वह उठा, सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा। राजा यह देखकर घबरा गया। भगवान ने रात्रि मे राजा को स्वप्न में कहा कि राजा! गाय वृद्वा को लौटाने मे ही तेरा भला है। उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैने उसे यह गाय दी थी। प्रात:होते ही राजा ने वृद्वा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गाय-बछडा लौटा दिया। उसकी पडोसन दुष्ट बुढिया को बुलाकर उचित दण्ड दिया। इतना करने से राजा के महल से गंदगी दूर हुई। उसी दिन से राजा ने नगर निवासियों को आदेश दिया कि राज्य की तथा अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत करो। व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। कोई भी बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नही होता था। सारी प्रजा सुख से रहने लगी।

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