नंदी / Nandi
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नन्दी भगवान शिव के प्रधान अनुचर एवं भक्त हैं। बिना नन्दी के शिव तत्त्व का उद्देश्य समझना कठिन है। नन्दी का शाब्दिक अर्थ हर्ष, प्रसन्नता आदि है। भगवान शिव का परिवार समग्र विश्व में एक अद्वितीय उदाहरण है, जहां परस्पर विरोधी तत्त्व वास करते हैं और सभी प्रसन्न रहते हुए भक्तों की प्रसन्नता के लिए सदैव चिंतित रहते हैं।
शिव पुराण के अनुसार ऋषि सनत्कुमार ने भगवान शिव के अनुचर
नन्दी से पूछा कि आप भगवान शिव के अंश से कैसे उत्पन्न हुए और आपने शिवत्व को कैसे प्राप्त किया, इसके विषय में मुझे कृपा करके कुछ बताएं। इसके पश्चात् भगवान नन्दी ने अपने संदर्भ में बताते हुए कहा कि जब ऋषि शिलाद को पितरों के उद्धार की इच्छा से संतान प्राप्ति की इच्छा हुई, तब शिलाद ने देवराज इंद्र की प्रसन्नता के लिए तप किया। इंद्र ने प्रसन्न होकर शिलाद से कहा, ‘मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं, आप वर मांगो।’ शिलाद ने कहा, ‘हे देवराज इंद्र, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आप मुझे एक अयोनिज अमर पुत्र दीजिए।’ इंद्र ने कहा, ‘हे मुनिश्रेष्ठ मैं तुम्हें अयोनिज मृत्यरहित पुत्र नहीं दे सकता। मैं, देवराज इंद्र और ब्रह्मा-विष्णु कोई भी आपकी इस कामना को पूर्ण नहीं कर सकते।’ अत: इस प्रकार के पुत्र की इच्छा से महादेव भगवान शिव की अराधना करो, वे ही तुम्हें ऐसा पुत्र देंगे। इनके अनन्तर ऋषि शिलाद भगवान महादेव की तपस्या में संलग्न हो गए। ऋषि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महादेव ने उन्हें वर देते हुए कहा, ‘हे तपस्वी ब्राह्माण! मैं तुम्हारे घर नन्दी नामक अयोनिज पुत्र के रूप में प्रकट होऊंगा और तुम तीनों लोकों के पिता हो जाओगे।’
‘ऐसा कह कर भगवान महोदव अन्तर्ध्यान हो गए और शिलाद अपने आश्रम में आकर यज्ञ की तैयारी करने लगे। उसी समय मैं शिलाद पुत्र प्रलयकाल की अग्नि के सदृश देदीप्यमान होकर प्रकट हुआ। देवताओं और ऋषियों ने शिलाद के घर मेरे उत्पन्न होने की प्रसन्नता में फूलों की वर्षा कर स्तुतिगान किया। शिलाद ने भी मुझे प्रलयकार के सूर्य के सदृश त्रिनेत्र, चतुर्भुज जटामुकुटधारी बालक के रूप में देख कर कहा, ‘हे प्रभो, आपने मुझे हर्ष और आनंद से आह्लादित किया है, अत: आपका नाम नन्दी होगा और मैं आपको प्रणाम करता हूं।’ मैंने अपना दिव्यरूप छोड़ कर मानव रूप धारण किया। पांच वर्ष में ही मैंने सभी शास्त्रों एवं वेदों का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। सात वर्ष पूर्ण होने पर मित्तावरुण नाम के दो मुनि मुझे (नन्दी) देखने आए और उन्होंने शिलाद से कहा, ‘सभी शास्त्रों के ज्ञाता नन्दी की एक वर्ष आयु शेष है।’ यह सुन कर पुत्र वत्सल शिलाद पुत्र का आलिंगन कर रोने लगे। इसके बाद नन्दी ने कहा, ‘आप क्यों दु:खी हो रहे हैं। देव, दानव, काल और कोई भी मुझे मारना चाहे तो भी मेरी अल्प मृत्यु नहीं हो सकती। मैं आपकी शपथ खाकर सत्य कह रहा हूं।’ शिलाद ने कहा, ‘कौन तप? कौन ज्ञान, कौन योग और कौन तुम्हारा स्वामी है, जो तुम्हें इस दु:ख से दूर करेगा।’ तब पुत्र नन्दी ने कहा, ‘न तप से, न विद्या से। मैं मात्र महादेव शिव के भजन से मृत्यु को जीत सकता हूं।’ इसके बाद मैं पिता को प्रणाम कर उत्तम वन की ओर चला गया।
‘एकांत में जाकर मैंने कठोर तप कर बुढ़ापे और शोक नाश के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने कहा, ‘हे वत्स तुम्हें यह भय कैसे हुआ? उन दोनों मुनियों (ब्राह्माणों) को मैंने ही भेजा था। तुम नि:संदेह मेरे समान हो। तुम अपने पिता तथा मित्रजनों के साथ अजर-अमर, दु:खरहित अविनाशी गणपति हो। तुम मेरे बल हो, सदा हमारे साथ रहोगे, मेरे प्रिय होगे। मेरी कृपा दृष्टि से तुम्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा। न मृत्यु होगी और न ही तुम्हारा कभी अंत होगा।’ भगवान शिव ने निर्मल जल लेकर मुझ पर छिड़कते हुए कहा, तुम नन्दी हो जाओ। इसके बाद भगवान शिव ने अपने गणेशों का स्मरण किया और उन्हें कहा कि नन्दी मेरा प्रिय पुत्र है। इन्हें सभी गणेश्वरों में प्रमुख स्वीकार करो। विष्णु, इंद्रादि देवों के साथ सभी गणेशों ने नन्दी का अभिषेक किया। भगवान नन्दी की पूजा एवं प्रार्थना से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
NANDI
[ BULL OF LORD SHIVA]
O! Nandishwar
Thou! Carrier of Lord Shiva
Just like our body carries our soul
His four legs are Dharma, Arth [ money]
Kama [passion] and moksha [ enlightenment]
Lives on mount Kailash
Teaches us to have balance In these four ...
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नन्दी भगवान शिव के प्रधान अनुचर एवं भक्त हैं। बिना नन्दी के शिव तत्त्व का उद्देश्य समझना कठिन है। नन्दी का शाब्दिक अर्थ हर्ष, प्रसन्नता आदि है। भगवान शिव का परिवार समग्र विश्व में एक अद्वितीय उदाहरण है, जहां परस्पर विरोधी तत्त्व वास करते हैं और सभी प्रसन्न रहते हुए भक्तों की प्रसन्नता के लिए सदैव चिंतित रहते हैं।
शिव पुराण के अनुसार ऋषि सनत्कुमार ने भगवान शिव के अनुचर
नन्दी से पूछा कि आप भगवान शिव के अंश से कैसे उत्पन्न हुए और आपने शिवत्व को कैसे प्राप्त किया, इसके विषय में मुझे कृपा करके कुछ बताएं। इसके पश्चात् भगवान नन्दी ने अपने संदर्भ में बताते हुए कहा कि जब ऋषि शिलाद को पितरों के उद्धार की इच्छा से संतान प्राप्ति की इच्छा हुई, तब शिलाद ने देवराज इंद्र की प्रसन्नता के लिए तप किया। इंद्र ने प्रसन्न होकर शिलाद से कहा, ‘मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं, आप वर मांगो।’ शिलाद ने कहा, ‘हे देवराज इंद्र, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आप मुझे एक अयोनिज अमर पुत्र दीजिए।’ इंद्र ने कहा, ‘हे मुनिश्रेष्ठ मैं तुम्हें अयोनिज मृत्यरहित पुत्र नहीं दे सकता। मैं, देवराज इंद्र और ब्रह्मा-विष्णु कोई भी आपकी इस कामना को पूर्ण नहीं कर सकते।’ अत: इस प्रकार के पुत्र की इच्छा से महादेव भगवान शिव की अराधना करो, वे ही तुम्हें ऐसा पुत्र देंगे। इनके अनन्तर ऋषि शिलाद भगवान महादेव की तपस्या में संलग्न हो गए। ऋषि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महादेव ने उन्हें वर देते हुए कहा, ‘हे तपस्वी ब्राह्माण! मैं तुम्हारे घर नन्दी नामक अयोनिज पुत्र के रूप में प्रकट होऊंगा और तुम तीनों लोकों के पिता हो जाओगे।’
‘ऐसा कह कर भगवान महोदव अन्तर्ध्यान हो गए और शिलाद अपने आश्रम में आकर यज्ञ की तैयारी करने लगे। उसी समय मैं शिलाद पुत्र प्रलयकाल की अग्नि के सदृश देदीप्यमान होकर प्रकट हुआ। देवताओं और ऋषियों ने शिलाद के घर मेरे उत्पन्न होने की प्रसन्नता में फूलों की वर्षा कर स्तुतिगान किया। शिलाद ने भी मुझे प्रलयकार के सूर्य के सदृश त्रिनेत्र, चतुर्भुज जटामुकुटधारी बालक के रूप में देख कर कहा, ‘हे प्रभो, आपने मुझे हर्ष और आनंद से आह्लादित किया है, अत: आपका नाम नन्दी होगा और मैं आपको प्रणाम करता हूं।’ मैंने अपना दिव्यरूप छोड़ कर मानव रूप धारण किया। पांच वर्ष में ही मैंने सभी शास्त्रों एवं वेदों का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। सात वर्ष पूर्ण होने पर मित्तावरुण नाम के दो मुनि मुझे (नन्दी) देखने आए और उन्होंने शिलाद से कहा, ‘सभी शास्त्रों के ज्ञाता नन्दी की एक वर्ष आयु शेष है।’ यह सुन कर पुत्र वत्सल शिलाद पुत्र का आलिंगन कर रोने लगे। इसके बाद नन्दी ने कहा, ‘आप क्यों दु:खी हो रहे हैं। देव, दानव, काल और कोई भी मुझे मारना चाहे तो भी मेरी अल्प मृत्यु नहीं हो सकती। मैं आपकी शपथ खाकर सत्य कह रहा हूं।’ शिलाद ने कहा, ‘कौन तप? कौन ज्ञान, कौन योग और कौन तुम्हारा स्वामी है, जो तुम्हें इस दु:ख से दूर करेगा।’ तब पुत्र नन्दी ने कहा, ‘न तप से, न विद्या से। मैं मात्र महादेव शिव के भजन से मृत्यु को जीत सकता हूं।’ इसके बाद मैं पिता को प्रणाम कर उत्तम वन की ओर चला गया।
‘एकांत में जाकर मैंने कठोर तप कर बुढ़ापे और शोक नाश के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने कहा, ‘हे वत्स तुम्हें यह भय कैसे हुआ? उन दोनों मुनियों (ब्राह्माणों) को मैंने ही भेजा था। तुम नि:संदेह मेरे समान हो। तुम अपने पिता तथा मित्रजनों के साथ अजर-अमर, दु:खरहित अविनाशी गणपति हो। तुम मेरे बल हो, सदा हमारे साथ रहोगे, मेरे प्रिय होगे। मेरी कृपा दृष्टि से तुम्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा। न मृत्यु होगी और न ही तुम्हारा कभी अंत होगा।’ भगवान शिव ने निर्मल जल लेकर मुझ पर छिड़कते हुए कहा, तुम नन्दी हो जाओ। इसके बाद भगवान शिव ने अपने गणेशों का स्मरण किया और उन्हें कहा कि नन्दी मेरा प्रिय पुत्र है। इन्हें सभी गणेश्वरों में प्रमुख स्वीकार करो। विष्णु, इंद्रादि देवों के साथ सभी गणेशों ने नन्दी का अभिषेक किया। भगवान नन्दी की पूजा एवं प्रार्थना से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
NANDI
[ BULL OF LORD SHIVA]
O! Nandishwar
Thou! Carrier of Lord Shiva
Just like our body carries our soul
His four legs are Dharma, Arth [ money]
Kama [passion] and moksha [ enlightenment]
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Teaches us to have balance In these four ...
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