ॐ: 'गायत्री महामंत्र' में २४ अक्क्षर हैं! इस महामंत्र का संबंध शरीर में स्थित ऐसी २५ ग्रंथियों से हैं! जो जाग्रत होने पर सदबुद्धि प्रकाश शक्तियों को तेज करती हैं! 'गायत्री महामंत्र' दस उच्चारण से सुक्क्षम शरीर के विस्तार को २४ स्थानों से झंकार देता हैं! और उससे ऐसी लहर पैदा होती हैं! जिसका प्रभाव अद्रशेय जगत के महत्वपूर्ण तत्वों पर पडता हैं! यह प्रभाव गायत्री साधना के फलों से प्राप्त होता हैं! उपरोक्त छाया चित्र में दिखाया हैं! कि मावन शरीर के किस/किस स्थान से 'गायत्री महामंत्र' के प्रत्येक अक्क्षर का संबंध हैं॥ इस अद्भूत महामंत्र में परमेश्वर का सत्य/प्रकृति के तत्व एवं उनके संयोग से होने वाली सृष्टि संरचना का संपूर्ण विज्ञान सूत्र सिद्धांत से गुँथा हैं! यह सूत्र मंत्र ठीक उसी तरह महत्वपूर्ण हैं! जैसे कि भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र एवं गणितशास्त्र के सूत्र हैं! इसमें न केवल सृष्टि विज्ञान व ब्रह्मांड विज्ञान हैं! अपितु आत्म विज्ञान एवं साधना विज्ञान भी हैं॥
'गायत्री महामंत्र' नौ शब्दों के रूप में नौ गुण हैं।
१. तत्-जीवन विज्ञान; २. सवितु;-शक्ति संचय; ३. वरेण्य-श्रेष्ठता; ४. भर्गो-निर्मलता; ५. देवस्य-दिव्य दृष्टि; ६. धीमहि-सद्गुण; ७. धियो-विवेक; ८. यो न:-संयम; ९. प्रचोदयात्;- सेवा की साधना करनी पडती हैं॥
१. तत्-जीवन विज्ञान; २. सवितु;-शक्ति संचय; ३. वरेण्य-श्रेष्ठता; ४. भर्गो-निर्मलता; ५. देवस्य-दिव्य दृष्टि; ६. धीमहि-सद्गुण; ७. धियो-विवेक; ८. यो न:-संयम; ९. प्रचोदयात्;- सेवा की साधना करनी पडती हैं॥
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