दमा/अस्थमा मुद्रा------------
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दोनों हाथों की मध्यमा उंगलियों को मोड़ कर उनके नाखूनों को आपस में मिला दें। बाकी सभी उंगलियां और अंगूठा सीधा खोल कर रखें।
दमा मुद्रा को दिन में पाँच बार पाँच मिनट के लिए करें।
लाभ:
@ परंतु दमा के रोगीयों को दोनों मुद्राएं प्रतिदिन सुबह/शाम 15-15 मिनट लगानी चाहिए।
@ पहले श्वसनी मुद्रा और फिर दमा मुद्रा लगाएं। इसके साथ-साथ दमा के रोगीयों को लिंग मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्राण मुद्रा, और सूर्य मुद्रा लगाएं और अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें जो दमा के रोगीयों के लिए बहुत ही लाभकारी है।श्वसनी मुद्रा
सबसे छोटी अंगुले को अंगूठे की जड़ में लगाएं। अनामिका अंगुली के शीर्ष को अंगूठे के बीच वाले भाग में लगाएं। मध्यमा अंगूले को अंगूठे के शीर्ष भाग से मिलाएं और तर्जनी अंगुली को सीधा रखें।
श्वसनी मुद्रा दिन में पाँच बार पाँच मिनट के लिए करें।
लाभ :
@ श्वसनी मुद्रा श्वास रोगों के लिए लाभदायक है।
@ श्वास नली में जमा श्लेष्मा को बाहर निकालने में सहायक होती है।
@ परंतु दमा के रोगीयों को दोनों मुद्राएं प्रतिदिन सुबह/शाम 15-15 मिनट लगानी चाहिए।
@ पहले श्वसनी मुद्रा और फिर दमा मुद्रा लगाएं। इसके साथ-साथ दमा के रोगीयों को लिंग मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्राण मुद्रा, और सूर्य मुद्रा लगाएं और अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें जो दमा के रोगीयों के लिए बहुत ही लाभकारी है।श्वसनी मुद्रा
सबसे छोटी अंगुले को अंगूठे की जड़ में लगाएं। अनामिका अंगुली के शीर्ष को अंगूठे के बीच वाले भाग में लगाएं। मध्यमा अंगूले को अंगूठे के शीर्ष भाग से मिलाएं और तर्जनी अंगुली को सीधा रखें।
श्वसनी मुद्रा दिन में पाँच बार पाँच मिनट के लिए करें।
लाभ :
@ श्वसनी मुद्रा श्वास रोगों के लिए लाभदायक है।
@ श्वास नली में जमा श्लेष्मा को बाहर निकालने में सहायक होती है।
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