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शनिवार, 25 अगस्त 2012

इस चर्चित बयान के बाद अचानक दुनिया के सभी पश्चिमी विद्वान, हिन्दुत्व को समझने के लिए भारत की ओर दौड़ पड़े —

इस पोस्ट को लेकर मुझे हिन्दू होने की मर्यादा मत सिखाना....
बहेके जा रहे सेक्युलर प्रभाव को लेकर यह पोस्ट है.....
यही है चरित्र निर्माण इसाईयो का, यही हैं असलियत इसायियोंकी......

पोलैंड के न्यायालय में एक नन ने निवेदन रखा कि हिन्दू धर्म और इस्कॉन पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये क्यूंकि यह श्रीकृष्ण कि महिमा मंडित करते है जबकि श्रीकृष्ण ने १६१०८ विवाह किया था जिससे सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण एक चरित्रहीन व्यक्ति थे,
हिन्दुओं के अधिवक्ता ने सुनवाई के समय कहा कि "न्यायाधीश महोदय आप आ
ज्ञा दीजिये नन महोदया को कि नन बनते समय उनहोंने जो शपथ लिया था उसे दोहराएँ" , नन ने दोहराने से मना कार दिया, हिन्दुओं के अधिवक्ता ने पुनः न्यायाधीश महोदय से निवेदन किया कि "आप शपथ दोहराने के लिए कहिये" पर नन ने पुनः मना कार दिया इस पर हिन्दुओं के अधिवक्ता ने न्यायाधीश महोदय से कहा कि "यदि आप आज्ञा दें तो मैं वह शपथ न्यायालय में दोहरा सकता हूँ" , न्यायाधीश ने आज्ञा दिया , हिन्दुओं के अधिवक्ता ने कहा पुरे विश्व में नन बनते समय लड़कियां यह शपथ लेती है कि "मै जीजस को अपना पति स्वीकार करती हूँ और उनके अलावा किसी अन्य पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाउंगी, " तो न्यायाधीश महोदय यह बतैये कि अबसे पहले कितने लाख ननों ने जीसस से विवाह किया और भविष्य में भी ना जाने कितने लोग विवाह करेंगे तो क्या ईसाईयों और इसाई धर्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये ? जिस पर नन ने अपना केस वापस ले लिया!!
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एक और सच्ची घटना -
जर्मनी में एक बहस के दौरान एक मिशनरी पादरी ने कहा, "हिन्दुओं ने कभी भी भारत से बाहर निकलकर अपने धर्म का प्रचार-प्रसार इसलिए नहीं किया, क्योंकि वे जानते थे कि इसकी कोई कीमत ही नहीं है…"

तत्काल इसका प्रतिवाद करते हुए एक विद्वान मैक्समुलर ने कहा, "यदि कोई व्यक्ति अपनी माँ की सुन्दरता का प्रचार करते हुए खुद की कीमत आँकता है, तो बाहरी दुनिया उसकी माँ को वेश्या समझती है… जबकि यदि तुम्हें अपनी माँ की इज़्ज़त बढ़ानी हो तो अपने कर्मों के द्वारा बढ़ाओ…। प्रत्येक माँ की कीमत उसके बेटे द्वारा किए गए कर्मों द्वारा सिद्ध होती है, यदि पुत्र के कर्म सत्कर्म हैं तो स्वयमेव ही उसकी माँ की इज़्ज़त बढ़ जाती है… इस हेतु उसे बाहर निकलकर प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता नहीं है…"
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जर्मनी के तत्कालीन कट्टर चर्च ने इस बयान के लिए मैक्सम्यूलर को प्रतिबन्धित कर दिया था… इस चर्चित बयान के बाद अचानक दुनिया के सभी पश्चिमी विद्वान, हिन्दुत्व को समझने के लिए भारत की ओर दौड़ पड़े —

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