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सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

देखि प्रताप न कपि मन संका।जिमि अहिगन महुँ गरूड़ असंका।।

🌹🌷🚩 सीताराम जय सीताराम🌹🌷
🚩 जय बजरंगबली हनुमान 🌹🌷🚩
शुभ दिवस मंगलमय हो 🌹🌷🚩
प्यारे प्यारे हनुमान, सबसे न्यारे हनुमान
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देखि प्रताप न कपि मन संका।
जिमि अहिगन महुँ गरूड़ असंका।।

देखि प्रताप न - भाव- हनुमानजी रावण की सभा में ऐसे प्रवेश किए मानो वे रावण के प्रताप को देखी ही नहीं,
ये अभिमानी रावण के लिए संदेश है।
अतः न कपि मन संका- जब उसके प्रताप को देखी ही नहीं तो संदेह,भय कैसा ?
 ये बीच का "न" देहरी दीपक है,जो रावण को उपेक्षित करता है। देखिए यहाँ पर हनुमानजी कैसे लग रहे हैं- 
जिमि अहिगन महुँ गरूड़ असंका..- जिस प्रकार सर्पों के बीच गरूड़ निडर भाव से रहता है।
 ये नागपास तो क्या पूरी रावण मंडली भी हनुमानजी के सामने तुच्छ है और वे उन राक्षसों को ऐसे देख रहे हैं मानो तूँ दुस्साहस किया तो मेरा शिकार बनोगे।
अब जो राक्षस कौतुक देखने आए थे,वे डर से बिल्कुल शांत हो गए।
कपिहिं बिलोकि दसानन- हनुमानजी को तुच्छ जानकर दशमुख रावण जोर से ठहाका लगाया - बिहसा...और गाली देने में महारत रावण...कहि दुर्बाद..- बंदर जाति के अपमान सूचक शब्द बोला।( जिस विद्वान के मुख से गाली,अपशब्द निकले ,समझिए उसकी विद्वता समाप्त हो गया है) ,
रावण देवताओं को भी गाली देता था,(दीन्ह देवतन्ह गारी पचारि)
मामा मारीच,मंत्री माल्यवंत को भी..दिन्हिसि बहु गारी - जो उसकी बात न माने तो गाली,मार पक्का है।
पर हनुमानजी के सामने तुरंत अभिमान का पारा गिर गया- सुत बध सुरति कीन्ह पुनि- प्रिय अक्षय कुमार को इसने अभी अभी मारा है,सो याद कर पुनः,चूँकि हनुमानजी को देखने के पहले भी दुखी था ,सो - उपजा हृदय बिषाद -हृदय रूपी खेत में दुख रूपी फसल ऊग गया ,
और उसका घमंड साफ हो गया। 
अब वह हनुमानजी से प्रश्न करता है- कह लंकेश-
 "कवन तैं कीसा..? ये बंदर! तुम कौन है?
 तैं - अनादर सूचक शब्द,रावण हनुमानजी को इतना जानते हुए भी अहंकार वश तुच्छ ही समझ रहा।
 केहि के बल घालेसि बन खीसा..? अरे क्रोधी दुष्ट बंदर ! तूने किसके बल पर वन को उजाड़ दिया ? ?
( रावण को संदेह है कि इसमें किसी देवता का साजिश है नहीं तो तुच्छ बंदर की इतनी हिम्मत कहाँ है?),
अपने को विश्व विजेता कहने वाला रावण के प्रिय बाग को बर्बाद किया है सो पूछा - केहि के बल...??
 कि धौं श्रवण सुनेहि नहिं मोही..? अरे मूर्ख बंदर! अभी तक तूने मेरा नाम सुना है कि नहीं? 
लगता है तुम देश दुनिया से अनजान है ??? 
अरे ,रावण का नाम सुनते इन्द्र भी मेरू पर्वत में छिप जाता है।
और
देखऊँ अति असंक सठ तोही - मैं देख रहा हूँ कि तुम बिल्कुल निडर हो,यानी तुम सठ ही हो ..!!!,
कहीं तुम पागल नहीं न हो???
 मारे निसिचर..तूने मेरे राक्षसों को मारा...केहि अपराधा..?
 अरे तूने उन्हें किस अपराध में मारे हो ??
 देखिए रावण को दुष्ट राक्षस भी निरपराध ही जान पड़े। 
बस यही है मोह की प्रबलता है,
"सपनेहु जिनके धरम न दाया" , अर्थात अत्यंत निर्दयी राक्षस भी रावण को निरपराध लग रहे हैं..।
कहुँ सठ ..? तोही न..प्रान कइ बाधा..? अरे मूर्ख,तुझे मृत्यु का भी भय नहीं है क्या???
देखिए रावण को तो हनुमानजी के मुख तेज को देखकर ही समझ जाना चाहिए था,पर अहंकार ने उसकी सारी बुद्धि भ्रष्ट कर दिया है। 
उत्तम पुलतस्य कुल में जन्म लेकर भी रावण अपनी मूर्खता से अपना बंटाधार करवाएगा।
 गोस्वामी जी कहते हैं- 
इमि कुपंथ पग देत खगेसा।रहई न तेज बुद्धि बल लेसा।।
कुमार्ग पर पैर रखते ही बुद्धि बल सब स्वतः नष्ट हो जाता है।
 सीता हरण हो या लंका दहन रावण एक चोर बनकर रह गया। और प्राण का ऐसा डर कि रावण नाम ही उल्टा लगता है। क्योंकि - परान् रावयति इति रावणः- दूसरों को रूलाने वाला को रावण कहते हैं पर यहाँ तो स्वयं ही रोने वाला है...
सुप्रभातं सुमंगलं
🌹🌷🚩सीताराम जय सीताराम
सीताराम जय सीताराम🌹🌷🚩

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