आपने श्री राजीव दीक्षित जी के बारे में कई बार सुना होगा पर क्या आप उनके
कार्यों के बारे में भी जानते है ?? अगर आपके ह्रदय में अपने देश के लिए थोडा
सा भी प्रेम है तो कृपया थोडा सा समय निकाल कर एक बार श्री राजीव दीक्षित जी
के बारे में अवश्य जाने। यहाँ श्री राजीव दीक्षित जी द्वारा किये गए कुछ
कार्यो के बारे में एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। नीचे लिखे
गए किसी भी कार्य के बारे में पूरी जानकारी के लिए उनके व्याख्यान सुने। www.rajivdixit.com*
भोपाल गैस हत्याकांड की गुनाहगार कंपनी (UNION CARBIDE - एक अमेरिकी कंपनी)
जिसकी वजह से २२,००० लोगो की जान गयी, उस कंपनी को हमारी सरकार ने माफ़
कर दिया था लेकिन श्री राजीव दीक्षित जी को यह बात नहीं जमी और उन्होंने इस
२२,००० बेगुनाह भारतीयों की हत्या करने वाली कंपनी को इस देश से भगाया।* श्री
राजीव दीक्षित जी ने १९९१ में डंकल प्रस्ताव के खिलाफ घूम-घूम कर जन-जागृति
की और रैलियाँ निकालीं।* उन्होंने विदेशी कंपनियों द्वारा हो रही भारतकी
लूट, खासकर कोका कोला और पेप्सी जैसे प्राण हर लेने वाले, जहरीले कोल्ड
ड्रिंक्स आदि के खिलाफ अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की।* १९९१-९२ में
राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कम्पनी (जो हर दिन चार करोड़ लीटर दारू
बनाने वाली थी) के शराब-कारखानों को बन्द करवाने में श्री राजीव भाई जी ने
बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।* १९९५-९६ में टिहरी बाँध के
खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चे में उन्होंने बहुत संघर्ष किया और वहाँ पर हुए पुलिस
लाठी चार्ज में उन्हें काफी चोटें भी आई। इसी प्रकार श्री राजीव दीक्षित जी
ने CARGILL, DU PONT, केडिया जैसी कई बड़ी विदेशी कंपनियों को भगाया जो इस
देशको बड़े पैमाने पर लूटने की नियत से इस देश में अपना डेरा जमाना चाहती
थी।उसके बाद १९९७ में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रख्यात् इतिहासकार प्रो०
धर्मपाल के साथ अँग्रेजों के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके
समूचे देशको संगठित और आन्दोलित करने का काम किया। अपने व्याख्यानों से देश
के स्वाभिमान को जगाने, देश को संगठित करने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान
निभाया। राजीव भाई ने स्वदेशी आंदोलन तथा आजादी बचाओ आंदोलन की शुरुआत की तथा
इनके प्रवक्ता बने। मजबूत तथ्यों और दमदार आवाज के साथ उनके व्याख्यानों में
इतनी सच्चाई और चुम्बक-जैसा आकर्षण होता था कि सभी लोग उन्हें सुनने के लिए
खींचे चले आते थे। उनके दिमाग में ५,००० से भी अधिक वर्षो का ज्ञान
समाहित था। उन्हें चलता फिरता "एनसाइक्लोपेडिया" कहा जाता है। श्री राजीव जी के
हृदय में अत्यंत तीव्र ज्वाला थी, इस भ्रष्ट तंत्र, भ्रष्ट व्यवस्था
के प्रति। इस देश कि गरीबी को देखकर उनकी आखो से आंसु निकल पड़ते थे। बिना
मीडिया की सहायता के उन्होंने पूरे देश को जगाया। राजीव दीक्षित जी के अन्दर
एक महान वैज्ञानिक, एक महान विचारक, एक महान इतिहासकार, एक महान वैद्य, एक
महान वक्ता,एक महान शोधकर्ता, एक महापुरुष के सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने
बिना दवाईयों के पूरा जीवन स्वस्थ रहने के अत्यंत सरल सिद्धांत बताये, जिनसे
आज लाखो लोग लाभान्वित हो रहे हैं। राजीव भाई ने 1857 के स्वतंत्रता
संग्राम की 150 वीं जयंती की शाम को कोलकाता में आयोजित किये गए कार्यक्रम का
नेतृत्व किया,जो कि विभिन्न संगठनों व प्रख्यात व्यक्तियों द्वारा
प्रोत्साहित व प्रचारित किया गया था और पूरे देश में मनाया गया था। उन्होंने
नयी दिल्ली में स्वदेशी जागरण मंच के नेतृत्व में 50,000 लोगों को संबोधित
किया। हमारे देश का धन विदेशी बेंको में काले धन के रूप में जमा पड़ा है, इस
बात की जानकारी सबसे पहले पूरे देश की जनता को भाई राजीव दीक्षित जी ने ही
बताई थी। जनलोकपाल जेसे कानूनों के बारे में सर्व प्रथम इस देश को श्री राजीव
दीक्षित जी ने ही बताया। राइट टू रिजेक्ट और राइट तो रिकॉल जैसे कई मजबूत
कानूनों के बारे में पूरे देश को जानकारी दी। भारत को पुनः विश्वगुरु कैसे
बनाया जाये, इसका बहुत ही सरल और प्रमाणिक उपाय श्री राजीव दीक्षित जी ने ही
बताये। हमारे देश के हजारों- लाखों साल पुराने स्वर्णिम अतीत को कई वर्षो तक
अध्ययन कर पूरे देश को इस बारे में बताया और हमारे गौरव से अवगत करवाया।
अंग्रेजी भाषा की सच्चाई के बारे में पूरे देश को बताया। संस्कृत भाषा की
वैज्ञानिकता के बारे में गहन अध्ययन कर देश को बताया। देश में पहली
बार विदेशी कंपनियों के षड्यन्त्र के बारे में बहुत बड़े स्तर लोगो पर बताया।
स्वदेशी के स्वीकार और विदेशी के बहिष्कार की बात देश को पूरी प्रमाणिकता के
साथ बताया। भारत की विश्व को क्या क्या देन रही, इस बारे में अति महत्वपूर्ण
जानकारियां बताई। श्री राजीव दीक्षित जी ने ही हमें बताया की सबसे पहले प्लेन
का आविष्कार भारत के श्री बापू जी तलपडे ने किया था वो भी राइट बंधुओ से सात
साल पहले। जन गन मन और वन्देमातरम की सच्चाई के बारे में पहली बार पूरे
देश को उन्होंने ही बताया। पहली बार इस देश में श्री राम कथा को एक नए
देशभक्ति सन्दर्भ में प्रस्तुत करने वाले भी श्री राजीव दीक्षित जी ही
है। उदारीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई को पूरे देश के सामने रखा और इसके कई
दुष्प्रभावों से देश को बचाने के लिए अपनी अंतिम स्वांस तक प्रयास करते
रहे। हमारे देश के गाँव गाँव में जाकर इस देश की हर एक समस्या को देखा, समझा
तथा उसके निवारण के लिए प्रभावशाली उपाय बताये और किये। वो होमियोपेथी और
आयुर्वेद के महान विद्वान रहे है। महर्षि वाघभट्ट जी के "अष्टांगहृदयं" नामक
ग्रन्थ को कई वर्षी तक अध्ययन कर उसे आज की जलवायु एवं परिस्थितियों
के हिसाब से पुनर्रचित किया तथा बहुत ही सरल तरीकों से उसे आम जनता के बीच
बताया जिससे हम बिना किसी दवाई के, बस खाने-पीने आदि के समय और सही तरीके
मात्र से स्वस्थ रहने के उपाय बताये। श्री राजीव दीक्षित ने लाखोँ लोगो के
दिलो-दिमाग में प्रत्यक्ष रूप से देशभक्ति की ज्वाला नहीं अपितु धधकता लावा
प्रज्वलित किया। इस देश को कैसे महाशक्ति बनाया जा सकता है, इसके लिए बहुत ही
सरल उपाय बताये जिन उपायों पर आज बहुत से लोग कार्य कर रहे हैं।ग्लोबल
वार्मिंग को रोकने के लिए बहुत ही जबरदस्त उपाय बताये। ग्लोबल वार्मिंग
एवं वैश्विक भुखमरी को एक साथ ख़त्म करने के लिए पूरे प्रमाणों के साथ सिद्ध
किया की अगर मांसाहारी खाना खाना बंद कर दिया जाये तो दोनों समस्याओं से एक
साथ छुटकारा पाया जा सकता है। विदेशी षणयंत्रों से पहली बार पूरे देश को अवगत
करवाया। उनके पास हर एक समस्या का समाधान बहुत ही सरलता और प्रमाणिकता के
साथ उपलब्ध रहता था। पेट्रोल, डीजल आदि की समस्या का छुटकारा पाने के लिए
कुछ साथियों के साथ मिलकर उन्होंने गोबर गैस से व्हिकल चलाने के सफल प्रयोग
किये जिसमें नाममात्र का खर्चा आता है।श्री राजीव दीक्षित जी ने ही पेप्सी
और कोका-कोला जैसे खतरनाक जहर के बारे में पहली बार पूरे देश को बताया तथा
लोगो को बहुत बड़े स्तर पर जागृत किया।हमारे देश की बिजली उत्पादन से
सम्बंधित समस्या के प्रमाणिक उपाय बताये। उनके द्वारा बताये गए सभी उपाय
इतने असरदार, दमदार और सरल है की उन्हें जिस दिन लागू किया जाये उसी दिन
उस समस्या का समाधान हो जाये। उनके ह्रदय में स्वदेश के प्रति इतनी तड़पथी की
वो रात दिन अपने अंतिम स्वांस तक बसस्वदेश और स्वदेशी के लिए ही कार्य करते
रहे।उन्होंने पूरे देश में १५,००० से अधिक प्रत्यक्ष व्याख्यान दिए और अगर
उनके अप्रत्यक्ष व्याख्यानों (T.V., CD, DVD, Internetetc) को शामिल किया
जायेतो गिनती करना असंभव हो जायेगा। श्री राजीव दीक्षित जी ने विभिन्न
विषयों पर अनेकों लेख व पुस्तकें लिखी हैं- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का
मकड़जाल, अष्टांग ह्रदयम्(स्वदेशी चिकित्सा), हिस्ट्री ऑफ द एमेन्सिस, भारत
और यूरोपीय संस्कृति, स्वदेशी : एक नया दर्शन, हिन्दुस्तान लिवर
के कारनामे आदि आदि। श्री राजीव दीक्षित ने पिछले ३० वर्षो तक हमारे देश के लिए
कई घातक कानूनों को बनने से रोका तथा कई अच्छे कानून बनवाने में उनका योगदान
रहा। भारतीय और पश्चिमी संस्कृति, सभ्यता आदि पर गहन अध्ययन कर पूरे देश के
सामने रखा। श्री धर्मपाल जी के साथ मिलकर हमारे पुराने गौरवशाली इतिहास को
पुनः एकत्रित किया और पूरे देश में प्रचारित किया। उन्होंने कई बार अपनी जान
पर खेलकर कई घातक कानूनों और खतरनाक विदेशी कम्पनियों को हमारे देश में आने
से रोका।देश की रक्षा करते हुए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन श्री
राजीव दीक्षितजी पीछे नहीं हटे। देश हित के कई कार्यो में कई बार उन्हें
और उनके साथियों को लाठियां-गोलियां खानी पड़ी लेकिन उन्होंने कभी अपने कदम
पीछे नहीं बढ़ाये। श्री राजीव दीक्षित ने भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के
लिए एक बहुत ही मजबूत आधार बनाकर हमें दिया है जिस पर इस देश को बहुत
जल्द महाशक्ति बनाया जा सकता है। श्री राजीव दीक्षित जी बिना मीडिया की सहायता
के ही पूरे देश के कोने कोने में जाकर रात-दिन व्याख्यान देते रहे। उनकी
आवाज जैसे भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आग उगलने वाली आवाज हो। उनके सीने में
देश के प्रति इतना प्रेम एवं तड़पथी की जेसे वो एक पल में ही इस देश को पुनः
विश्वगुरु बना दे और अगर आज ही उनके बताये गए उपायों को हमारे देश में लागू
कर दिया जाये तो सच में एक ही पल में ये देश पुनः विश्वगुरु बन सकता है। हमारे
देश की गरीबी, भूखमरी आदि विकट समस्याओं को देखकर उनका दिल भर आता था। श्री
राजीव दीक्षित ने हमें हमारे स्वर्णिम अतीत के बारे में बताकर हमारा
स्वाभिमान जगाया। 'भारत स्वाभिमान आन्दोलन' उनके दिमाग की ही देन है। स्वामी
रामदेव जी के संपर्क में आने के बाद ९जनवरी २००९ को स्वामीजी और
श्री राजीव दीक्षित जी ने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट शुरू किया और इसका पूर्ण
दायित्व अपने कंधो पर संभाला और पूरे देश के गांव-गांव शहर शहर में घूम कर
स्वदेशी कि अलख जगाई। श्री राजीव दीक्षित जी ने पूर्ण निर्भीकता के
साथ विदेशी कंपनियों की पोल खोली तथा बहुत सारी विदेशी कंपनियों को हमारे देश
से खदेड़ा जो कि हमारे देश को बहुत बुरी तरह लूट रही थी/लुटने वाली थी।श्री
राजीव दीक्षित जी ने ही डंकल प्रस्ताव के खिलाफ पूरे देश में गाँव गाँव जाकर
जागृति फैलाई वरना आज हम अन्न के दाने दाने के लिए विवश हो जाते। श्री राजीव
दीक्षित जी लाखों युवाओ को देशभक्ति की राह पर लाये और उनके जीवन को दिव्य
बना दिया जो की पश्चिमी सभ्यता एवं मानसिक गुलामी में पूर्ण रूप से डूब चुके
थे। श्री राजीव दीक्षित जी अपनी हर एक बात प्रामाणिकता के साथ कहते थे उनके
पास हर एक बात के तथ्य, सबूत होता था। उनके दिमाग में कम्पूटर से भी तेज
गणनाएँ कर पाने की अद्भुतक्षमता थी। श्री राजीव दीक्षित जी के पास बहुत बार
विदेशी कंपनियों और आसुरी ताकतों की धमकियां एवं ऑफर भी आते थे परन्तु श्री
राजीव दीक्षित ना तो कभी बिके और न ही कभी रुके। श्री राजीव दीक्षित जी पुरे
जीवन ब्रह्मचारी रहे तथा पूरा का पूरा जीवन देश हित के कार्यो में लगा दिया।
श्री राजीव दीक्षित जी ने ही हमें “पूर्ण स्वराज” की परिभाषा समझाई और
इसे प्राप्त करने के बहुत ही असरदार तरीके बताये। राजीव भाई जिनका निष्कलंक
जीवन सादगी,स्वदेशी, पवित्रता, भक्ति, श्रद्धा, विश्वास से भरा हुआ था। चाहे
लोगों ने उन्हें कितना भी कष्ट दिया हो उन्होंने उफ नहीं की।पूज्य स्वामी
रामदेव जी का राजीव भाई से पहला संवाद कनखल के आश्रम में हुआ था। राजीव भाई
लगभग दो ढाई दशक से अपना संपूर्ण जीवन लोगों के लिये जी रहे थे।राजीव भाई
भगवान के भेजे हुए एक श्रेष्ठतम रचना थे, धरती पर एक ऐसी सौगात जिसे हम चाह
कर भी पुन: निर्मित नहीं कर सकते। राजीव भाई के ह्रदय में एक ऐसी आग
थी,जिससे प्रतीत होता था कि वे अभी ही भ्रष्ट तंत्र को, भ्रष्टाचार को खत्म
कर देंगे। ‘भारत स्वाभिमान आंदोलन' के साथ आज पूरा देश उनके साथ खडा हुआ
है। हम सबको मिल करके भारत स्वाभिमान का जो संकल्प राजीव भाई ने लिया था,
उसे पूरा करना है और अब वो साकार रुप ले चुका है।जब भारत स्वाभिमान का
आंदोलन बहुत बड़े चरण पर है तो एक बहुत बडी क्षति हुई है जिसे शब्दों में
बयान नही किया जा सकता। ये ह्रदय की नहीं बल्कि समस्त राष्ट्र की पीड़ा
है। व्यक्ति जब समिष्ट के संकल्प के साथ जीने लगता है तो वो सबका प्रिय हो
जाता है। वे अपने माता-पिता के लाल नही थे, बल्कि करोडों-करोडों लोगों के
दुलारे और प्यारे थे। वे भारत माता के लाल थे। एक मां की कोख धन्य होती है जब
ऐसे लाल पैदा होते है। राजीव भाई हमारे भाई ही नहीं बल्कि देश के
करोडों-करोडों लोगों के भाई थे। प्रतिभावान, विनम्र, निष्कलंक जीवन था राजीव
भाई का। राजीव भाई को 'इन्साइक्लोपीडिया' कहा जाता था। वे चलते-फिरते अथाह
ज्ञान के सागर थे। 5000 वर्षों का ज्ञान, असीम स्मृति वाले, अपरिमित क्षमता
वाले थे राजीव भाई। आर्थिक मामलों पर उनका स्वदेशी विचार सामान्य जन से
लेकर बुद्धिजीवियों तक को आज भी प्रभावित करता है। उनकी जिव्हा पर स्वयं माँ
सरस्वती जी विराजमान रहते थे। उनकी आवाज में इतना ओज है की जो भी उनको एक बार
सुन ले वो उनका भक्त हो जाये। मीडिया ने कभी भी श्री राजीव दीक्षित को
एवं उनके व्याख्यानों को नहीं दिखाया नहीं तो आज हमारा देश महाशक्ति बन चुका
होता लेकिन फिर भी उनके पुरुषार्थ की वजह से आज देश जाग रहा है तथा उनके
सपनों के भारत को बनाने के लिए लाखों करोडों लोग तैयार हो चुके है,तथा
दिन-रात कार्य कर रहे है। अब इस देश को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता
क्योकि इसकी नीव श्री राजीव दीक्षित के हाथो से स्थापित की गई है। श्री
राजीव दीक्षित के समर्थक उनके कार्यो को पूरा करने के लिए अपनी जान तक देने
को तैयार रहते है।बहुत ही जल्द एक नए भारत का उदय आप देखेंगे।एक श्री राजीव
दीक्षित जी के शरीर को तो मिटा दिया गया है पर अब इस देश में लाखो-करोडो
राजीव भाई पैदा हो गए है उन्हें मिटाना मुश्किल ही नहीं वरन असंभव भी है,
हम सब मिलकर स्वर्णिम भारत का निर्माण अवश्य करेंगे चाहे कुछ भी हो जाये।
श्री राजीव दीक्षितजी कोई व्यक्ति नहीं थे, अपितु वो एक “दिव्य-आत्मा”, एक
विचार, एक क्रांति का आगाज,एक स्वदेशी अलख थे। वो भारत मां के अनमोल रत्न
थे। जब वह बोलते थे तो घण्टों मन्त्र-मुग्धहोकर लोग उनको सुनते रहा करते
थे। राजीव भाई का मानना था कि उदारीकरण, निजीकरण,तथा वैश्वीकरण, ये तीन ऐसी
बुराइयां है,जो हमारे समाज को तथा देश की संस्कृति व विरासत को तोड़ रही
है।भारतीय न्यायपालिका तथा क़ानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा
कि भारत अभी भी उन कानूनों तथा अधिनियमों में जकड़ा हुआ है जिनका निर्माण
ब्रिटिश राज में किया गया था और इससे देश लगातार गर्त में जाता जा रहा है।
राजीव दीक्षित जी स्वदेशी जनरल स्टोर्स कि एक श्रृंखला बनाने का समर्थन करते
थे, जहाँ पर सिर्फ भारत में बने उत्पाद ही बेंचे जाते हैं। इसके पीछे के
अवधारणा यह थी, कि उपभोक्ता सस्ते दामों पर उत्पाद तथा सेवाएं ले सकता है
और इससे निर्माता से लेकर उपभोक्ता,सभी को सामान फायदा मिलता है, अन्यथा
ज्यादातर धन निर्माता व आपूर्तिकर्ता कि झोली में चला जाता है। राजीव भाई ने
टैक्स व्यवस्था के विकेन्द्रीकरण की मांग की और कहा कि वर्तमान व्यवस्था
दफ्तरशाही में भ्रष्टाचार का मूल कारण है। उनका दावा था कि कि टैक्स का
80 प्रतिशत भाग राजनेताओं व अधिकारी वर्ग को भुगतान करने में ही चला जाता है,
और सिर्फ 20 प्रतिशत विकास कार्यों में लगता है। उन्होंने वर्तमान बजट
व्यवस्था की पहले कि ब्रिटिश बजट व्यवस्था से तुलना की और इन दोनों
व्यवस्थाओं को सामान बताते हुए आंकड़े पेश किये। राजीव भाई का स्पष्ठ मत था
कि आधुनिक विचारकों ने कृषि क्षेत्र को उपेक्षित कर दिया है। किसान का
अत्यधिक शोषण हो रहा है तथा वे आत्महत्या की कगार पर पहुँच चुके हैं। वो हर
बात तथ्यों, सबूतों,आकडो एवं दस्तावेजों के साथ कहते थे. जब वो भारत के
स्वर्णिम अतीत का गुण-गान करते अथवा विदेशियों के द्वारा की गई आर्थिक लूट के
आँकडे गिनवाना शुरू होते थे तो प्रतीत होता था जेसे उनका दिमाग कम्प्यूटर से
भी तेज चलता हो। उस “दिव्य-आत्मा” के दिमाग में ५,००० से भी ज्यादा वर्षों
का ज्ञान समाहित था। उन्हें चलता-फिरता सुपर कम्पुटरकहा जाता था। श्री राजीव
दीक्षित जी को अगर ज्ञात-अज्ञात इतिहास के सबसे महान स्वदेशी महापुरुष कहा
जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। श्री राजीव भाई जी का जीवन
सादगी,पवित्रता, समर्पण, उत्साह, जोश, स्वदेशी भाव से पूर्ण था। उन्होंने
पहले “आज़ादी बचाओ आंदोलन” और फिर “भारत स्वाभिमान” के तहत पुरे देश को
संगठित और आंदोलित किया। बारम्बार प्रणाम है ऐसे माता-पिता के चरणों
में जिन्होंने इस “दिव्य-आत्मा” को जन्म दिया। वो अपने माता-पिता के ही नहीं
अपितु सम्पूर्ण देश के प्यारे-दुलारे है. वो माँ भारती के लाल है। उपरोक्त
लिखी गयी इन सभी बातो के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए श्री राजीव
दीक्षित के व्याख्यान सुने। www.rajivdixit.com एक बार विकिपीडिया पर भी उनके
बारे में अवश्यपढ़े।...धन्यवाद..
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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शनिवार, 30 नवंबर 2013
शुक्रवार, 29 नवंबर 2013
हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप" था....?????
क्या आप जानते हैं कि....... ....... हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????
साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप" था....?????
परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....??????
दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????
क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!
लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......।
आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।
परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।
लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।
अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।
परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .
इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।
वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।
चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष" पड़ा....।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।
इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.........।
ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।
हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।
परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।
इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।
परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।
परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????
सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!
आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????
इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।
हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।
ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।
और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।
परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?
विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।
और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।
क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।
इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!
हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...!
साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप" था....?????
परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....??????
दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????
क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!
लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......।
आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।
परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।
लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।
अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।
परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .
इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।
वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।
चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष" पड़ा....।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।
इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.........।
ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।
हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।
परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।
इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।
परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।
परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????
सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!
आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????
इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।
हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।
ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।
और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।
परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?
विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।
और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।
क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।
इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!
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