दस महाविद्याएं, संकट का तुरंत करें समाधान
दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।
देवी, अप्सरा, यक्षिणी, डाकिनी, शाकिनी और पिशाचिनी आदि में सबसे सात्विक
और धर्म का मार्ग है 'देवी' की पूजा, साधना और प्रार्थना करना। कैलाश पर्वत
के ध्यानी की अर्धांगिनी सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया था।
इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। मां पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती
थीं। नौ दुर्गा भी पार्वती का ही रूप हैं। इस माता सती और पार्वती की
पूजा-साधना करना सनातन धर्म का मार्ग है बाकि की पूजा आराधना सनातन धर्म का
हिस्सा नहीं है।
शास्त्रों अनुसार इन दस महाविद्या में से किसी
एक की नित्य पूजा अर्चना करने से लंबे समय से चली आ रही बीमार, भूत-प्रेत,
अकारण ही मानहानी, बुरी घटनाएं, गृहकलह, शनि का बुरा प्रभाव, बेरोजगारी,
तनाव आदि सभी तरह के संकट तत्काल ही समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति परम सुख
और शांति पाता है। इन माताओं की साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और
सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक मानी गई है।
उत्पत्ति कथा :
पुराणों अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा
तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस इनकार पर माता ने क्रोधवश पहले काली
शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपनी शक्ति की
झलक दिखला दी। इस अति भयंकरकारी दृश्य को देखकर शिवजी घबरा गए। क्रोध में
सती ने शिव को अपना फैसला सुना दिया, 'मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी ही। या तो
उसमें अपना हिस्सा लूंगी या उसका विध्वंस कर दूंगी।'
हारकर शिवजी
सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से पूछा- 'कौन हैं ये?' सती ने
बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके
ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के
पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर
सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं
खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।' यही दस
महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का
उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।
नौ दुर्गा :
1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4.कुष्मांडा, 5.स्कंदमाता,
6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी और 9.सिद्धिदात्री।
दस महा
विद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता,
6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि
(त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली,
छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर
भैरवी)।
दस महाविद्या रू शक्ति एवं साधन आदि ग्रंथों में दस
महाविद्याओं का उल्लेख किया गया है जो विभिन्न शक्तियों की दाता हैं।
व्यक्ति आवष्यकतानुसार शक्ति प्राप्त करने हेतु उस महाविद्या के मूल मंत्र
द्वारा महाविद्या की साधना कर सकता है और अभीष्ट फल प्राप्त कर सकता है।
विभिन्न महाविद्याओं की शक्तियां एवं मूल मंत्र निम्नलिखित हैं- देवी
महाकाली महाविद्या देवी काली काम रुपिणी है।
महाकाली साधना के
माध्यम से व्यक्ति शत्रुओं को निस्तेज एवं परास्त करने में सक्षम हो जाता
है, चाहे वह शत्रु आंतरिक हों या बाहरी। इस साधना के द्वारा साधक उन पर
विजय प्राप्त कर लेता है, क्योंकि महाकाली ही मात्र वह शक्ति स्वरूप है, जो
शत्रुओं का संहार कर अपने भक्तों को रक्षा कवच प्रदान करती है। इनकी साधना
को बीमारी नाश, दुष्ट आत्मा व दुष्ट ग्रह से बचने के लिए, अकाल मृत्यु के
भय से बचने के लिए, वाक सिद्धि के लिए तथा कवित्व के लिए किया जाता है।
मंत्र-ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहाः
देवी तारा महाविद्या तारा को तारिणी भी कहा गया है। भगवती तारा नित्य अपने
साधक को स्वर्णाभूषणों का उपहार देती है। तारा महाविद्या दस महाविद्याओं
में एक श्रेष्ठ महाविद्या है। तारा साधना को प्राप्त करने के बाद साधक को
जहां आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैं, वहीं उसके अंदर ज्ञान के
बीज का भी प्रस्फुटन होने लगता है। इनकी साधना से वाक सिद्धि तो अतिशीघ्र
प्राप्त होती है साथ ही साथ तीव्र बुद्धि रचनात्मकता, डाॅक्टर, इंजीनियर,
काव्य संबंधीं गुणों का उन्मेष होता है।
तारा शत्रु को जड़ से खत्म कर
देती है।
मंत्र-ऊँ ह्रीं स्रीं हुं फट
षोडशी त्रिपुर सुंदरी महाविद्या जिस
काम में देवता का चयन करने में कोई दिक्कत हो तो देवी त्रिपुर सुंदरी की
उपासना कर सकते हैं। यह भोग और मोक्ष दोनों ही साथ-साथ प्रदान करती है।
त्रिपुर सुंदरी साधना मन, बुद्धि और चित्त को नियंत्रित करती है, जिससे वह
शक्ति जाग्रत होती है।
भू, भुवः, स्वः ये तीनों लोक इसी
महाशक्ति से उद्भूत हुए हैं, इसीलिए इसे त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है।
गृहस्थ सुख, अनुकूल विवाह एवं पौरुष प्राप्ति हेतु इस साधना का विशेष महत्व
है। मनोवांछित कार्य-सिद्धि के लिए भी यह साधना उपयुक्त है। मंत्र-ऊँ ऐं
ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमःः
देवी भुवनेश्वरी महाविद्या भुवन अर्थात्
इस संसार की स्वामिनी भुवनेश्वरी, जो ‘ह्रीं’ बीज मंत्र धारिणी हैं। वे
भुवनेश्वरी ब्रह्मा की भी अधिष्ठात्री देवी हैं।
महाविद्याओं में
प्रमुख भुवनेश्वरी ज्ञान और शक्ति दोनों की समन्वित देवी मानी जाती है। जो
भुवनेश्वरी सिद्धि प्राप्त करता है, उस साधक का आज्ञा चक्र जाग्रत होकर
ज्ञान-शक्ति, चेतना-शक्ति, स्मरण-शक्ति अत्यंत विकसित हो जाती है।
भुवनेश्वरी को जगतद्वात्री अर्थात जगत-सुख प्रदान करने वाली देवी कहा गया
है।
दरिद्रता नाश, कुबेर सिद्धि, रतिप्रीति प्राप्ति के लिए
भुवनेश्वरी साधना उŸाम मानी गयी है। इस महाविद्या की आराधना एवं साधना करने
वाले व्यक्ति की वाणी में सरस्वती का वास होता है- मंत्र-ऊँ ऐं ह्रीं
श्रीं नमः
देवी छिन्नमस्ता महाविद्या यह देवी शत्रु का तुरंत नाश
करने वाली, वाक सिद्धि देने वाली, रोजगार में सफलता, नौकरी में पदोन्नति
के लिए कोर्ट के केस से मुक्ति दिलाने में सक्षम, सरकार को आपके पक्ष में
करने वाली, कुंडली-जागरण में सहायक, पति-पत्नी को तुरंत वश में करने वाली
चमत्कारी देवी है। शत्रु हावी हांे, बने हुए कार्य बिगड़ जाते हों या किसी
प्रकार का आपके ऊपर कोई तंत्र प्रयोग हो, तो यह साधना अत्यंत प्रभावी है।
इस साधना द्वारा कारोबार में सुदृढ़ता प्राप्त होती है, आर्थिक अभाव
समाप्त हो जाते हैं, साथ ही व्यक्ति के शरीर का कायाकल्प भी होना प्रारंभ
हो जाता है। मंत्र-श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट
स्वाहाः
देवी भैरवी महाविद्या जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक
सुख के साथ वशीकरण, आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है।
सुंदर पति या पत्नी की प्राप्ति के लिए, प्रेम विवाह, शीघ्र विवाह, प्रेम
में सफलता के लिए भैरवी देवी साधना करनी चाहिए।
माता भैरवी साधना से
जहां प्रेत बाधा से मुक्ति प्राप्ति होती है, वही शारीरिक दुर्बलता भी
समाप्त होती है, असाध्य और दुष्कर से दुष्कर कार्य भी पूर्ण हो जाते है।
मंत्र-ऊँ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहाः
देवी धूमावती
महाविद्या हर प्रकार की दरिद्रता के नाश के लिए, तंत्र-मंत्र के लिए,
जादू-टोना, बुरी नजर और भूत-प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए, सभी
रोगों के लिए, अभय प्राप्ति के लिए, साधना में रक्षा के लिए, जीवन में आने
वाले हर प्रकार के दुःखों का निदान करने वाली देवी है। आये दिन और नित्य
प्रति ही यदि कोई रोग लगा रहता हो या शारीरिक अस्वस्थता निरंतर बनी ही रहती
हो, तो वह भी दूर होने लग जाती है। उसकी आखों में प्रबल तेज व्याप्त हो
जाता है, जिससे शत्रु अपने आप में ही भयभीत रहते हैं। यदि किसी प्रकार की
तंत्र-बाधा या प्रेत बाधा आदि हो, तो इस साधना के प्रभाव से वह भी क्षीण हो
जाती है।
मंत्र-ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहाः
देवी
बगलामुखी महाविद्या बगलामुखी महाविद्या भगवान विष्णु की संहारक शक्ति है।
प्रबल से प्रबल शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए
इससे अधिक उपयुक्त कोई साधना नहीं है। इसके प्रभाव से रुका धन पुनः प्राप्त
हो जाता है। भगवती अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैं, जो
साधक को आजीवन हर खतरे से बचाता रहता है। वाक-्शक्ति से तुरंत परिपूर्ण
करने वाली, शत्रु का नाश, कोर्ट कचहरी में विजय, हर प्रकार की प्रतियोगिता
परीक्षा में सफलता के लिए, सरकारी कृपा के लिए मां बगलामुखी की साधना करें।
इस विद्या का उपयोग तभी किया जाता है जब और कोई रास्ता न बचा हो---
मंत्र-ऊँ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ऊँ नमः दूसरा मंत्र-ऊँ ह्रीं
बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचंमुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय
हुं फट् स्वाहा।
देवी मातंगी महाविद्या देवी मातंगी महाविद्या
घर गृहस्थी में आने वाले सभी विघ्नों को हरने वाली है। जिसकी शादी न हो रही
हो, संतान प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति के लिए या किसी भी प्रकार की गृहस्थ
जीवन की समस्या के दुख हरने के लिए देवी मातंगी की साधना उत्तम है। इनकी
कृपा से स्त्रियों का सहयोग सहज ही मिलने लगता है चाहे वह स्त्री किसी भी
वर्ग की क्यों न हो। जीवन में सरसता, आनंद, भोग-विलास, प्रेम, सुयोग्य
पति-पत्नी प्राप्ति के लिए मातंगी साधना अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है।
मंत्र-ऊँ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहाः
देवी कमला महाविद्या इस संसार में जितनी भी सुदंर लड़किया हैं, सुंदर
वस्तु, पुष्प आदि हैं, ये सब कमला महाविद्या का ही सौंदर्य है। हर प्रकार
की साधना में रिद्धि-सिद्धि दिलाने वाली, अखंड धन धान्य प्राप्ति, ऋण का
नाश और महालक्ष्मी जी की कृपा के लिए कमल पर विराजमान देवी कमला की साधना
करें। प्रत्येक महाविद्या साधना अपने आप में ही अद्वितीय है। साधक अपने
पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर
इनमें से कोई भी साधना कर सकते हैं। एक महाविद्या की साधना सफल हो जाने पर
ही साधक के लिए सिद्धियों का द्वार खुल जाता है और वह एक-एक करके सभी
साधनाओं में सफल होता हुआ पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।
मंत्र-ऊँ ह्रीं अष्ट महालक्ष्म्यै नमः।
नवरात्रों में महाविद्या की उपासना शीघ्र फलदायी है। अतः इन दिनों में
इच्छित महाविद्या का सवा लाख मंत्र जप व दशांश का हवन करने से इच्छित फल
प्राप्त होता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.