अश्वगंधा को आधुनिक वैज्ञानिक जगत में वंडर हर्ब (Wonder Herb) कहा है और प्राचीन आयुर्वेद में इसे रसायन का दर्जा प्राप्त है। प्राचीन परंपरा और आधुनिक विज्ञान के मध्य अगर मैं सेतु (ब्रिज़) बना कर लिखने की कोशिश करूं तो अश्वगंधा के गुणों के बखान में जगह और समय दोनो कम पड़ जाएंगे। फिर भी मैं कोशिश करता हूं। संयोग है कि आज सुबह ही मैने अश्वगंधा की तस्वीर भी ली थी।
राज-निघण्टु के मतानुसार अश्वगंधा स्तम्मक या कसैला, उष्ण, तिक्त, मद्यगंधयुक्त, बलकारक, वातनाशक, तथा खाँसी, श्वास, क्षय और व्रण को नष्ट करने वाली है।
भाव-प्रकाश के मतानुसार अश्वगंधा वात, कफ, सूजन, श्वेत कुष्ठ और कफ-रोगनाशक तथा बलकारक, रसायन, कसैली, तिक्त, उष्णवीर्य, और अत्यंत वीर्यवर्धक है।
अश्वगंधा: प्राचीन आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान
एक अन्य मतों के अनुसार अश्वगंधा के पत्तों का लेप गाँठ, गलगाँठ आदि ग्रंथि रोगों को दूर करने वाला है। यह निद्रा लाने वाली और मूत्र बढ़ाने वाली अत्यंत गुणकारी औषधि है। शुक्र-वृद्धिकारक होने के कारण इसको शुक्ला भी कहते हैं।
इसके प्रयोग से गठिया, क्षीणता, प्रमेह, कटिशूल, क्षयरोग, बंधत्व, वात रक्त, दिल-दिमाग की कमजोरी, बुढ़ापे की कमजोरी और सिर के रोगों में बहुत लाभ होता है। जिनको वीर्य की कमी से नामर्दी अथवा क्षय हो उनके लिये तो अश्वगंधा अमृत है।
अश्वगंधा: स्त्रियों के लिए भी हितकारी
यूनानी चिकित्सा पद्धति में असगंध को पुष्ट
करने वाली, श्वास में लामदायक तथा नलियों के प्रदाह को मिटाने वाली है ।
यह ऋतुस्राव को नियमित करने वाली, गर्भाधान में सहायक तथा कटिवात और
संधि-प्रदाह में लाभकारी है|
- उपरोक्त लेख वनौषधि चंद्रोदय खंड-1 और अश्वगंधा पर केंद्रित कई आधुनिक विज्ञान के शोध पत्रों के अध्यन से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिखा है
- सभी तस्वीरों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।
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