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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

चक्रवर्ती विक्रमादित्य...

🇮🇳चक्रवर्ती विक्रमादित्य...।।।।।।।🙏
🇮🇳कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य मालव का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया।💯
विक्रमादित्य मालव ईसा मसीह के समकालीन थे और उस वक्त उनका शासन अरब तक फैला था। विक्रमादित्य मालव के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में भी वर्णन मिलता है। नौ रत्नों की परंपरा उन्हीं से शुरू होती है। विक्रमादित्य मालव उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे।

विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे। विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे। विक्रमादित्य मालव अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था। 

देश में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं, जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य मालव द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं। इसके अनुसार विक्रमादित्य मालव ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया। नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य मालव के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है।
भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्की, अफ्रीका, सऊदी अरब, नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कमबोडिया, श्रीलंका, चीन का बड़ा भाग इन सब प्रदेशो पर विश्व के बड़े भूभाग पर था ओर इतना ही नही सम्राट विक्रमादित्य मालव ने रोम के राजाओं को हराकर विश्व विजय भी कर लिया था।

"यो रूमदेशाधिपति शकेश्वरं जित्वा "।।

अर्थ: उन्होंने रोम के राजा और शक राजाओं को जीता। कुल मिलाकर 95 देश जीतें। आज भारत मे प्रजातंत्र है, लेकिन भारत में शांति नही है लेकिन इस प्रजातंत्र की नींव डालने की शुरुवात ही खुद महान राजा विक्रमादित्य ने की थी विक्रमादित्य की सेना का सेनापति प्रजा चुनती थी।
वह प्रजा द्वारा चुना हुआ धर्माध्यक्ष होता था प्रजा द्वारा अभिषिक्त निर्णायक होता था आज के समय मे अमरीका और रूस के राष्ट्रपति की जो शक्ति है वही शक्ति महाराज विक्रमादित्य मालव के सेनापति की होती थी। लेकिन यह सब भी अपना परम् वीर विक्रम को ही मानते थे।  महाराज विक्रम ने भी अपने आप को शासक नही, प्रजा का सेवक मात्र घोषित कर रखा था।

महाराज विक्रम बहुत ही शूरवीर और दानी थे।  शुंग वंश के बाद पंजाब के रास्ते से शकों ने भारत को तहस नहस कर दिया था लेकिन वीर विक्रम ने इन शकों को पंजाब के रास्ते से ही वापस भगाया। पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के बाद जो भारतीय असंगठित होकर शकों का शिकार हो रहे थे उन भारतीय को जीवन मंत्र देकर महाराज विक्रम ने विजय का शंख फूंककर पूरे भारत को संगठित कर दिया।

महाराजा वीर विक्रम जमीन पर सोते थे अल्पाहार लेते थे वे केवल योगबल पर अपने शरीर को वज्र सा मजबूत बनाकर रखते थे।  इन्होंने महान सनातन राष्ट्र की स्थापना कर सनातन धर्म का डंका पुनः बजाया था।

महाभारत के युद्ध के बाद वैदिक धर्म का दिया लगभग बुझ गया था, हल्का सा टिमटिमा मात्र रहा था।  इस युद्ध के बाद भारत की वीरता, कला, साहित्य, संस्कृति सब कुछ मिट्टी में मिल गयी थी।

ऐसा भी एक समय आया जब सारे भारतीय  ही "अहिंसा परमोधर्म" वाला बाजा बजा रहे थे। विदेशों से हमले हो रहे थे ओर हम अहिंसा में पंगु होकर बैठ गये भारत के अस्ताचल से सत्य सनातन धर्म के सूर्य का अस्त होने को चला था। प्रजा दुखी थी, विदेशी शक, हूण, कुषाण शासकों के आक्रमणों से त्राहि त्राहि मची थी। ऐसे महान विपत्तिकाल में "धर्म गौ ब्राह्मण हितार्थाय" की कहानी को चरितार्थ करने वाला प्रजा की रक्षा करने वाला, सत्य तथा धर्म का प्रचारक वीर पराक्रमी विक्रम मालव पैदा हुए।

#इनके पराक्रम का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि जावा सुमात्रा तक के सुदूर देशों तक इन्होंने अपने सेनापति नियुक्त कर रखे थे।
उत्तर पश्चिमी शकों का मान मर्दन करने के लिए मुल्तान के पास जागरूर नाम की जगह पर महाराज विक्रम और शकों के भयानक युद्ध हुआ।  विशेषकर राजपुताना के उत्तरपश्चिमी राज्य में शकों ने उत्पात मचा रखा था। मुल्तान में विक्रम की सेना से परास्त होकर शक जंगलो में भाग गए उसके बाद इन्होंने फिर कभी आंख उठाने की हिम्मत नही की लेकिन उनकी संतान जरूर फिर से आती रही।

विक्रमादित्य मालव के काल के सिक्कों पर "जय मालवाना" लिखा होता था विक्रमादित्य के मातृभूमि से प्रेम से इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है सिक्को पर अपना नाम न देकर अपनी मातृभूमि का नाम दिया।

आज हमारी सनातन संस्कृति केवल विक्रमादित्य मालव के कारण अस्तित्व में है अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था।  भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था।

#जब रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया। विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया। 
विक्रमादित्य मालव के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा,  भारत का इतिहास है अन्यथा भारत का इतिहास क्या हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे। आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है।

महाराज विक्रमादित्य मालव ने केवल धर्म ही नही बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है।

विक्रमादित्य मालव के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे। भारत में इतना सोना आ गया था कि, विक्रमादित्य मालव काल में सोने की सिक्के चलते थे।
कई बार तो देवता (श्रेष्ठ ज्ञानी व्यक्ति) भी उनसे न्याय करवाने आते थे, विक्रमादित्य मालव के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे। न्याय, राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था। विक्रमादित्य मालव का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनी और धर्म पर चलने वाली थी।

#महान सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जैन की सड़कों पर घुमाया था तथा बाद में उसे छोड़ दिया गया था।

विक्रमादित्य के काल में दुनियाभर के ज्योतिर्लिंगों के स्थान का जीर्णोद्धार किया गया था। कर्क रेखा पर निर्मित ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख रूप से थे मुक्तेश्वर, गुजरात के सोमनाथ, उज्जैन के महाकालेश्वर और काशी के विश्वनाथ बाबा।

कर्क रेखा के आसपास 108 शिवलिंगों की गणना की गई है। विक्रमादित्य मालव ने नेपाल के पशुपतिनाथ, केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों को फिर से बनवाया था। इन मंदिरों को बनवाने के लिए उन्होंने मौसम वैज्ञानिकों, खगोलविदों और वास्तुविदों की भरपूर मदद ली। विक्रमादित्य मालव के समय ज्योतिषाचार्य मिहिर, महान कवि कालिदास थे।
विक्रमादित्य तो एक उदाहरण मात्र है, भारत का पुराना अतीत इसी तरह के शौर्य से भरा हुआ है। भारत पर विदेशी शासकों के द्वारा लगातार राज्य शासन के बावजूद निरंतर चले भारतीय संघर्ष के लिए ये ही शौर्य प्रेरणाएं जिम्मेदार हैं।

हम सबको इस महान सम्राट से प्रेरणा ले कर राष्ट्र व धर्म की रक्षा में उद्यत रहना चाहिए एवं हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को जानना चाहिए।
#संपूर्ण_व्यवस्था_परिवर्तन
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प्राचीन सनातनी भारत में, शिक्षा और ज्ञान का एक विशाल इतिहास है। हमारे प्राचीन भारत के 25 प्राचीन विश्वविद्यालय...

#प्राचीन सनातनी भारत में, शिक्षा और ज्ञान का एक विशाल इतिहास है। 

हमारे प्राचीन भारत के 25 प्राचीन विश्वविद्यालय... 

दुनिया भर से हजारों प्रोफेसर और लाखों छात्र यहां रहते थे और कई विज्ञानों और विषयों का अध्ययन और अध्यापन करते थे। यहाँ पर कुछ प्रमुख प्राचीन विश्वविद्यालयों की जानकारी दी जा रही है......

1.#नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University):

स्थान: बिहार
स्थापना: 5वीं शताब्दी ईस्वी
विशेषता: यह बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था और इसमें विभिन्न विज्ञान, दर्शन, और धर्म का अध्ययन किया जाता था। यहाँ पर 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक थे।

2.#तक्षशिला विश्वविद्यालय (Taxila University):

स्थान: #पाकिस्तान
स्थापना: 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व
विशेषता: यह भारत का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। यहाँ पर चिकित्सा, कानून, कला, सैन्य विज्ञान आदि की शिक्षा दी जाती थी।

3.#विक्रमशिला विश्वविद्यालय (Vikramshila University):

स्थान: बिहार
स्थापना: 8वीं शताब्दी ईस्वी
विशेषता: यह भी बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।

4.ओदंतपुरी विश्वविद्यालय (Odantapuri University):

स्थान: बिहार
स्थापना: 8वीं शताब्दी ईस्वी
विशेषता: बौद्ध शिक्षा और साहित्य का प्रमुख केंद्र।

5.मिथिला विश्वविद्यालय (Mithila University):

स्थान: #बिहार
विशेषता: न्यायशास्त्र और तंत्र की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध।

6.वल्लभी विश्वविद्यालय (Vallabhi University):

स्थान: #गुजरात
स्थापना: 6वीं शताब्दी ईस्वी
विशेषता: यहां पर धर्म, कानून, और चिकित्सा की शिक्षा दी जाती थी।

7.स्रृंगेरी मठ (Sringeri Math):

स्थान: कर्नाटक
विशेषता: अद्वैत वेदांत का प्रमुख केंद्र।

8.#कांचीपुरम विश्वविद्यालय (Kanchipuram University):

स्थान: तमिलनाडु
विशेषता: यहाँ पर तमिल साहित्य और दर्शन का अध्ययन किया जाता था।

9.पुष्पगिरी विश्वविद्यालय (Pushpagiri University):

स्थान: #ओडिशा
विशेषता: यह बौद्ध और जैन शिक्षा का केंद्र था।

10.उज्जयिनी विश्वविद्यालय (Ujjayini University):

स्थान: #मध्यप्रदेश
विशेषता: यहाँ पर ज्योतिष, खगोल विज्ञान, और गणित की शिक्षा दी जाती थी।

11.कृष्णापुर विश्वविद्यालय (Krishnapur University):

स्थान: #पश्चिम_बंगाल
विशेषता: विभिन्न विज्ञानों और संस्कृत की शिक्षा का केंद्र।

12.#नेल्लोर विश्वविद्यालय (Nellore University):

स्थान: आंध्र प्रदेश
विशेषता: यहां पर धर्म और तंत्र की शिक्षा दी जाती थी।

13.#सोमपुरा विश्वविद्यालय (Somapura University):

स्थान: #बांग्लादेश
विशेषता: यह बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।

14.अमरावती विश्वविद्यालय (Amravati University):

स्थान: आंध्र प्रदेश
विशेषता: बौद्ध और जैन शिक्षा का केंद्र।

15.नागरजुनकोंडा विश्वविद्यालय (Nagarjunakonda University):

स्थान: #आंध्र प्रदेश
विशेषता: बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र।

16.रत्नागिरी विश्वविद्यालय (Ratnagiri University):

स्थान: #ओडिशा
विशेषता: बौद्ध धर्म और तंत्र का केंद्र।

17.माल्कापुरम विश्वविद्यालय (Malkapuram University):

स्थान: #आंध्र प्रदेश
विशेषता: विभिन्न धर्मों और विज्ञानों की शिक्षा।

18.#त्रिसूर विश्वविद्यालय (Trissur University):

स्थान: केरल
विशेषता: कला, साहित्य और ज्योतिष की शिक्षा।

19.#विजयपुरा विश्वविद्यालय (Vijayapura University):

स्थान: कर्नाटक
विशेषता: धर्म, तंत्र, और ज्योतिष की शिक्षा।

20.कादयर विश्वविद्यालय (Kadayar University):

स्थान: #तमिलनाडु
विशेषता: तमिल साहित्य और कला का अध्ययन।

21.#मयंकट विश्वविद्यालय (Manyaket University):

स्थान: कर्नाटक
विशेषता: धर्म और तंत्र का प्रमुख केंद्र।

23.उडीपी मठ (Udipi Math):

स्थान: #कर्नाटक
विशेषता: अद्वैत वेदांत और धर्म की शिक्षा।

23.कण्णूर विश्वविद्यालय (Kannur University):

स्थान: #केरल
विशेषता: साहित्य, कला और ज्योतिष की शिक्षा।

24.अन्नूरधपुर विश्वविद्यालय (Anuradhapura University):

स्थान: श्रीलंका
विशेषता: बौद्ध धर्म और तंत्र का केंद्र।

25.कंथालूर शाला (Kanthaloor Shala):

स्थान: तमिलनाडु
विशेषता: विभिन्न विज्ञानों और तंत्र का प्रमुख केंद्र।

ये #प्राचीन विश्वविद्यालय शिक्षा के उच्चतम मानकों के प्रतीक थे और यहाँ पर #दुनिया भर से छात्र और शिक्षक ज्ञान प्राप्त करने और साझा करने के लिए आते थे। इन संस्थानों में विभिन्न विज्ञान, धर्म, कला, और तंत्र की शिक्षा दी जाती थी, जो #भारत की समृद्ध #सांस्कृतिक और बौद्धिक #धरोहर का हिस्सा हैं।

पूरा पढ़ने के लिए साभार...🙏
जयतु सनातन #संस्कृति...🚩

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