धोखे से भी जिसके मुख से भगवान का नाम निकलता है वह आदमी भी आदर के योग्य है। जो प्रेम से भगवान का चिन्तन, ध्यान करता है, भगवतत्त्व का विचार करता है उसके आदर का तो कहना ही क्या ? उसके साधन-भजन को अगर सत्संग का संपुट मिल जाय तो वह जरूर हरिद्वार पहुँच सकता है। हरिद्वार यानी हरि का द्वार। वह गंगा किनारे वाला हरि द्वार नहीं, जहाँ से तुम चलते हो वहीं हरि का द्वार हो। संसार में घूम फिरकर जब ठीक से अपने आप में गोता लगाओगे, आत्म-स्वरूप में गति करोगे तब पता चलोगे कि हरिद्वार तुमसे दूर नहीं, हरि तुमसे दूर नहीं और तुम हरि से दूर नहीं।
वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था।
आता न था नजर तो नजर का कसूर था।।
अज्ञान की नजर हटती है। ज्ञान की नजर निखरते निखरते जीव ब्रह्ममय हो जाता है। जीवो ब्रह्मैव नापरः। यह अनुभव हो जाता है।
वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था।
आता न था नजर तो नजर का कसूर था।।
अज्ञान की नजर हटती है। ज्ञान की नजर निखरते निखरते जीव ब्रह्ममय हो जाता है। जीवो ब्रह्मैव नापरः। यह अनुभव हो जाता है।
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