भगत ध्यानु ने माँ के मंदिर जाकर माँ ज्वाला देवी से प्रार्थना की और
घोड़ा वापिस जिंदा हो गया | बादशाह अकबर हैरान हो गया | उसने अपनी सेना
बुलाई और खुद नंगे पाँव मंदिर की तरफ चल पड़ा | वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन
में शंका हुई | उसने अपनी सेना से पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता
की ज्वाला बुझी नहीं| तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सोने
का छतर चढ़ाया | लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर किसी अन्य
पदार्थ में परिवर्तित हो गया |
आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं |
आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं |
जय माता दी _/\_ —
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