21.10.2012 को मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि.......
कालरात्रि : मां पार्वती काल अर्थात् हर तरह के संकट का नाश करने वाली है, इसीलिए कालरात्रि कहलाती है ।
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है, अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है । नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है । सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत
कालरात्रि : मां पार्वती काल अर्थात् हर तरह के संकट का नाश करने वाली है, इसीलिए कालरात्रि कहलाती है ।
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है, अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है । नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है । सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत
की तरह चमकने वाली माला है । अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं, कालरात्रि ।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभू षणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
इस दिन साधक का मन 'भानु चक्र' में अवस्थित होता है l काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है । इस देवी के तीन नेत्र हैं । ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं । इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है । ये गर्दभ की सवारी करती हैं ।
ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है । दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है, यानी भक्त हमेशा निडर, निर्भय रहें । बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है ।
इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं । इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं, अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं । उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है ।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं । इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है ।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं । इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं ।
*मां भगवती सपूर्ण ब्रम्हांड की आदि शक्ति हैं । 'त्रिपुरा-रहस्य' में भगवती के विग्रह के निम्न 12 प्रमुख स्थान बताए गए हैं ।
01. कामाक्षी या कामाख्या, कांचीपुर असम में.
02. भ्रामरी या भ्रामराम्बा, मलियागिरी में.
03. कन्याकुमारी, केरल में.
04. अम्बा, गुजरात में.
05. महालक्ष्मी, कोल्हापुर में.
06. कालिका, उज्जैन में.
07. ललिता (अलोपी), प्रयाग इलाहाबाद में.
08. विंध्यवासिनी, विंध्याचल में.
09. विशालाक्षी, वाराणसी में.
10. मंगलावती, गया बिहार में.
11. सुंदरी या काली, कोलकाता प. बंगाल में और
12. गुह्यकेश्वरी, नेपाल में।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभू
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
इस दिन साधक का मन 'भानु चक्र' में अवस्थित होता है l काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है । इस देवी के तीन नेत्र हैं । ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं । इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है । ये गर्दभ की सवारी करती हैं ।
ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है । दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है, यानी भक्त हमेशा निडर, निर्भय रहें । बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है ।
इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं । इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं, अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं । उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है ।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं । इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है ।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं । इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं ।
*मां भगवती सपूर्ण ब्रम्हांड की आदि शक्ति हैं । 'त्रिपुरा-रहस्य' में भगवती के विग्रह के निम्न 12 प्रमुख स्थान बताए गए हैं ।
01. कामाक्षी या कामाख्या, कांचीपुर असम में.
02. भ्रामरी या भ्रामराम्बा, मलियागिरी में.
03. कन्याकुमारी, केरल में.
04. अम्बा, गुजरात में.
05. महालक्ष्मी, कोल्हापुर में.
06. कालिका, उज्जैन में.
07. ललिता (अलोपी), प्रयाग इलाहाबाद में.
08. विंध्यवासिनी, विंध्याचल में.
09. विशालाक्षी, वाराणसी में.
10. मंगलावती, गया बिहार में.
11. सुंदरी या काली, कोलकाता प. बंगाल में और
12. गुह्यकेश्वरी, नेपाल में।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.