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रावण ने अभिमान में आकर श्री हनुमान जी से प्रश्न कर दिया कि आखिर तुम हो कौन जो लंका में घुसकर लंका को ही तहस नहस करने लग गयेतो हनुमान जी ने अपना परिचय कुछ यूँ दिया
सुनु रावन ब्रह्माण्ड निकाया । पाइ जासु बल बिरचति माया ।। जाकें बल बिरंचि हरि ईसा । पालत सृजत हरत दससीसा ।। जा बल सीस धरत सहसानन । अंडकोस समेत गिरि कानन ।। धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता । तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता ।। हर को दंड कठिन जेहिं भंजा । तेहि समेत नृप दल मद गंजा ।। खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली । बधे सकल अतुलित बलसाली ।। जाके बल लवलेस तेँ जितेहु चराचर झारि । तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ।। अर्थात् हनुमान जी बोले ः हे रावण सुन जिनका बल पाकर माया सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के समूहों की रचना करती है जिसके बल से ब्रह्मा विष्णु महेश सृष्टि का सृजन पालन व संहार करते हैं जिनके बल से सहस्त्र फनों वाले शेष जी पर्वत और वन सहित समस्त ब्रह्माण्ड को सिर पर धारण करते हैँ जो देवताओं की रक्षा के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की देह धारण करते हैं और
तुम्हारे जैसे मूर्खों को शिक्षा देने वाले हैं जिन्होनें शिव जी का धनुष
तोड़ डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का गर्व तोड़ डाला था जिन्होनें खर दूषण त्रिशिया और बालि को मारा जिन्हें तुम अतुलनीय बलवान मानते रहे जिनके लेश मात्र से तुमऩे चराचर जगत को जीत लिया और जिनकी पत्नी को तुम चुरा कर ले आये मै उन्ही भगवान श्रीराम का दूत हूँ और नाम है = हनुमान = ।। जय जय श्रीराम ।।
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