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रविवार, 26 मार्च 2017

भारतीय नववर्ष - नव संवत्सर विक्रम संवत 2074 || 28 March 2017

|| भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2074 ||   28 March 2017
हम कैसे मनायें नव वर्ष-नव संवत्सर..????
भारतीय और वैदिक नव वर्ष की पूर्व संध्या पर हमें दीपदान करना चाहिये। घरों में शाम को 7 बजे लगभग घण्टा-घडियाल व शंख बजाकर मंगल ध्वनि से नव वर्ष का स्वागत करें। इष्ट मित्रों को एसएमएस, इमेल एवं दूरभाष से नये वर्ष की शुभकामना भेजना प्रारम्भ कर देना चाहिये। नव वर्ष के दिन प्रातःकाल से पूर्व उठकर मंगलाचरण कर सूर्य को प्रणाम करें। हवन कर वातावरण शुद्ध करें। नये संकल्प करें। नवरात्रि के नो दिन साधना के शुरू हो जाते हैं तथा नवरात्र घट स्थापना की जाती है।
नव वर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घर-द्वार को आम के पत्तों से अशोक पत्र से द्वार पर बन्दनवार लगाना चाहिये। नवीन वस्त्राभूषण धारण करना चाहिये। इसी दिन प्रातःकाल स्नान कर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल ले कर ‘ओम भूर्भुवः स्वः संवत्सर-अधिपति आवाहयामि पूजयामि च’ मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिये एवं नव वर्ष के अशुभ फलों के निवारण हेतु ब्रह्माजी से प्रार्थना करनी चाहिये। हे भगवन्! आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष मंगलमय एवं कल्याणकारी हो। इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाये।

नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतु काल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवाइन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग होने की संभावना नहीं रहती है तथा वर्षभर हम स्वस्थ रह सकते हैं। इतना न कर सके तो कम-से-कम चार-पाँच नीम की कोमल पत्त्यिाँ ही सेवन कर ले तो पर्याप्त रहता है। इससे चर्मरोग नहीं होते हैं। महाराष्ट्र में तथा मालवा में पूरनपोली या मीठी रोटी बनाने की प्रथा है। मराठी समाज में गुड़ी सजाकर भी बाहर लगाते हैं। यह गुड़ी नव वर्ष की पताका का ही स्वरूप है।

गुड़ी का अर्थ विजय पताका होती है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘ । आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा‘ के रूप में मनाया जाता है। विक्रमादित्य द्वारा शकों पर प्राप्त विजय तथा शालिवाहन द्वारा उन्हें भारत से बाहर निकालने पर इसी दिन आनंदोत्सव मनाया गया । इसी विजय के कारण प्रतिपदा को घर-घर पर ‘ध्वज पताकाएं’ तथा ‘गुढि़यां’ लगाई जाती है गुड़ी का मूल …संस्कृत के गूर्दः से माना गया है जिसका अर्थ… चिह्न, प्रतीक या पताका ….पतंग….आदि- कन्नड़ में कोडु जिसका मतलब है चोटी, ऊंचाई, शिखर, पताका आदि। मराठी में भी कोडि का अर्थ है शिखर, पताका। हिन्दी-पंजाबी में गुड़ी का एक अर्थ पतंग भी होता है। आसमान में ऊंचाई पर फहराने की वजह से इससे भी पताका का आशय स्थापित होता है।

भारत भर के सभी प्रान्तों में यह नव-वर्ष विभिन्न नामों से मनाया जाता है जो दिशा व स्थानानुसार सदैव मार्च-अप्रेल के माह में ही पड़ता है | गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।

सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार प्रसार और नाटकीयता से परे हो कर मनाते हैं। हम सब भारतवासियों का कर्तव्य है कि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक और भारतीय कैलेण्डर विक्रम संवत् के अनुसार इस दिन का स्वागत करें। पराधीनता एवं गुलामी के बाद अंग्रेजों ने हमें एक ऐसा रंग चढ़ाया कि हम अपने नव वर्ष को भूल कर-विस्मृत कर उनके रंग में रंग गये। उन्हीं की तरह एक जनवरी को नव वर्ष अधिकांश लोग मनाते आ रहे हैं। लेकिन अब देशवासी को अपनी भारतीयता के गौरव को याद कर नव वर्ष विक्रमी संवत् मनाना चाहिये जो आगामी 28 मार्च को है।

भारतीय कैलेंडर के 12 महीने :
1) चैत्र
2) वैशाख
3) ज्येष्ठ
4) आषाढ़
5) सावन
6) भाद्रपद
7) अश्विन
8) कार्तिक
9) मार्गशीष
10) पौष
11) माघ
12) फाल्गुन

भारतीय कैलेंडर की गणना :
1) 1 महीने में 30 तिथि अथवा दिन
2) 1 दिवस दिन में 27 नक्षत्र
3) नक्षत्रो में भी 27 योग
4) 1 तिथि में भी 30 कर ( कर मतलब तिथि का आधा)

यह पूरी गणना सूर्य और चन्द्र के ऊपर निर्धारित होती हे जबकि अंग्रेजी कैलेंडर में ऐसा कुछ नहीं होता.

भारतीय नववर्ष पर क्या करे :
1) प्रातकाल ब्रह्म मोहरत में जागकर घर में धार्मिक कार्य की शुरुआत करे
2) नववर्ष पूर्व संध्या पर घर में रौशनी करे
3) घर की छत पर भगवा ॐ का ध्वज लगाये
4) नववर्ष पर मोहल्ले वासियों को तिलक लगाए
5) अपने मित्र संबंधियों को नववर्ष के शुभकामना भेजे
6) नववर्ष की संध्या पर आतिशबाजी करे
7) सामाजिक संस्था द्वारा आयोजन कराये जाए
8) गरीब बस्ती में किताबे, धर्म प्रचार सामग्री बाटे
क्या करें नव-संवत्सर के दिन (गुड़ी पड़वा विशेष)—-
—घर को ध्वजा, पताका, तोरण, बंदनवार, फूलों आदि से सजाएँ व अगरबत्ती, धूप आदि से सुगंधित करें।
—-दिनभर भजन-कीर्तन कर शुभ कार्य करते हुए आनंदपूर्वक दिन बिताएँ।
—सभी जीव मात्र तथा प्रकृति के लिए मंगल कामना करें।
—नीम की पत्तियाँ खाएँ भी और खिलाएँ भी।
—ब्राह्मण की अर्चना कर लोकहित में प्याऊ स्थापित करें।
—इस दिन नए वर्ष का पंचांग या भविष्यफल ब्राह्मण के मुख से सुनें।
—इस दिन से दुर्गा सप्तशती या रामायण का नौ-दिवसीय पाठ आरंभ करें।
—इस दिन से परस्पर कटुता का भाव मिटाकर समता-भाव स्थापित करने का संकल्प लें।


भारतीय नववर्ष की पुनः जीवन में लाने के लिए युवाओ को आगे आना होगा, ज्यादा से ज्यादा उस दिन नववर्ष कार्यकर्म करे और फेसबुक, twitter, whats app के जरिये सभी को शुभकामना सन्देश भेजे. पहले पहले सभी हेरान होंगे परन्तु देश के स्वाभिमान के लिए लोग इसे याद जरुर रखेंगे.

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