"शादी का एफिडेबिट"
आज निशा जी और अमरनाथ जी के छोटे बेटे अभिषेक के लिए लड़की देखने जाना था। सुबह से सब तैयारियों में लगे थे,अमरनाथ जी ने निशा जी को आवाज़ लगाई 'तैयार हो गए सब तो चलें'?
निशा जी एक पारंपरिक घरेलू महिला है। ज्यादा पढाई तो नहीं कर पाईं, मगर हाँ उनकी बौद्धिक क्षमता से परिवार वाले भली भांति परिचित थे।
अमरनाथ जी उनके तो क्या कहने, ज्ञान का भंडार थे। उच्च शिक्षित और उच्च विचारधाराओं के धनी । इन विषमताओं के बावजूद दोनों ने एक आदर्श पति पत्नी की छवि बनाई थी। निशा जी भी सामाजिक मापदंडों पर खरी उतरने वाली एक आदर्श महिला थी।
सब गाड़ी में बैठ कर चल दिए और निशा जी अपने अतीत में खो गयी। अक्सर ये होता है कि यात्रा करते वक्त अतीत जरूर सामने आता है , निशा जी को भी याद आया जब वो ब्याह कर इस घर में आईं थी ,सास को बिलकुल नहीं भांती थी ।
उनकी सास थोड़ी सख्त मिज़ाज थी और बात बात पर ताने उलाहने देना उनकी आदत थी।बहू मतलब घर की नौकरानी जिसे मुँह खोलने की आज़ादी ना थी । घर में सारी पाबंदियां थी जो आमतौर पर बहुओं पर लगाई जाती थी या यूँ कहूँ कि हर वो अत्याचार जो जायज था उस समय बहुओं पर , हालांकि अमरनाथ जी यथासंभव प्रयास करते थे अपनी माँ को समझाने का , मगर सब व्यर्थ थे , वो किसी की सुनने वाली महिला नहीं थी । उल्टा अमरनाथ जी बीवी के पक्षधर कहलाए । निशा जी के लिए अमरनाथ जी का साथ ही संजीवनी था और वो बखूबी अपना हर पारिवारिक दायित्व निभाती चली गई ।
उनके दो बेटे हुए आशुतोष और अभिषेक । वो इसी उधेड़बुन में थीं और गाड़ी लड़की वालों के घर पहुँच गई। स्वागत सत्कार चाय नाश्ते का दौर चला,और बातें होनी शुरू हुई । बात लेन देन की आई निशा जी फिर अतीत में उलझ गई । उनके बड़े बेटे आशुतोष की शादी याद आ गई ।
अमरनाथ जी निशा जी के हर फैसले का सम्मान करते थे मगर कभी-कभी वो सारे फैसले स्वयं कर लेते थे और एक आदर्श पत्नी की तरह वो मौन स्वीकृति दे देती थीं । उसकी शादी में अमरनाथ जी ने लड़की वालों से साफ कह दिया हमें दहेज नहीं चाहिए, बस हमारे बारातियों का अच्छा स्वागत-सत्कार हो , भेंट स्वरूप मिले सारे पैसे और ऊपर से कुछ अपनी तरफ से मिलाकर बहु को गहने बनवाकर दे दिए ।
मगर कहते हैं अच्छों के साथ ही ज्यादातर बुरा होता है ,! बहु आते ही बेटे के साथ चली गई अलग रहने । फिर भी मन ना भरा तो दहेज का मुकदमा कर दिया ससुराल वालों पर कुछ साल तक आशुतोष कोर्ट कचहरी के चक्करों में परेशान रहा और फिर वही बीवी को लेकर अलग रहने लगा।
सहसा अमरनाथ जी की आवाज़ ने उन्हें चौंका दिया और वो अतीत से वर्तमान में लौट आई। अमरनाथ जी फिर वही पुराना जुमला कह रहे थे हमें दहेज नहीं चाहिए वगैरह वगैरह। मगर इस बार निशा जी ने हस्तक्षेप किया और सहसा बोल पड़ी ' हमें कुछ नहीं चाहिए अपितु #शादी का #एफिडेबिट# चाहिए'। सब आश्चर्य से निशा जी को देखने लगे अमरनाथ जी कुछ कहते इससे पहले निशा जी बोली,,,,
'आप उसमें साफ शब्दों में लिखवाए कि
1-हमने आपसे कोई दहेज नहीं लिया । हमें अपने बेटे पर पूरा भरोसा है वो यथासंभव अपना खर्च वहन कर सकता है।
2- आपकी बेटी को पुरी आज़ादी रहेगी जो आपने दी है, मगर बड़ों का अपमान करने की आज़ादी हम उसे नहीं देंगे।
3- उसे पारिवारिक दायित्व का निर्वहन पुरी इमानदारी से करना होगा
हम सब उसकी यथासंभव मदद करते रहेंगे।
4- उसे फैसले लेने अपना मत रखने और घर की हर बात जानने का पूरा हक होगा अजनबी सा व्यवहार नही किया जाएगा । उसका हर फैसला मान्य होगा मगर वो फैसले परिवार हित में हो, और उसमें सभी की सहमति अनिवार्य है।
5- मेरे बेटे का ये दायित्व है कि वो उसका पूरी तरीके से ख्याल रखे । जितना सम्मान अपने माँ-बाप को देता है उतना ही उसके माँ बाप को देगा और यही बात आपकी बेटी पर भी लागू होगी ।
लास्ट बट नाट द लिस्ट
हम बेटी नहीं बहू ही लेकर जाएँगे क्यों की हम सब जानते हैं कि बहु को प्यार देने में हमेशा कमियाँ हुई है । हम यथासंभव उन कमियों को दूर करने का प्रयास करेंगे। हमें कोई जल्दी नहीं आप सोच समझ कर निर्णय ले । हमें दहेज में ये एफिडेबिट ही चाहिए।'
और इतना कहकर निशा जी ने हाथ जोड़कर जाने की आज्ञा माँगी ।
दोनों बेटे आश्चर्य से अपनी माँ को देख रहे थे, और अमरनाथ जी अपने किताबी ज्ञान और निशा जी के जिंदगी के तजुर्बों के ज्ञान की तुलना कर रहे थे जिसमें निशा जी का पलड़ा ही भारी पड़ रहा था ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.