क्या आप जानते हैं कि ये रूस का यूक्रेन से झगड़ा क्या है
हुआ दरअसल ये था ,कि USSR के जमाने में , जब ये सारे देश जिन्हें Russian Block कहा जाता है , रूस के कब्जे में थे तो रूस की Communist सरकार ने जो पहला काम किया वो इन भौगोलिक क्षेत्रों की अपनी देसी भाषाओं को सुनियोजित तरीके से खत्म कर उनपे रूसी थोप दी । शिक्षा व्यवस्था में और आम सामाजिक जीवन , रहन सहन बोल चाल में लोग अपनी देसी बोलियाँ भाषाएं भूल गए और रूसी हो गए । फिर उसके बाद अगला हमला हुआ खानपान और वेश भूषा पे ........ धीरे धीरे लोग अपनी Ethnic Nationalties भूल के रूसी बन गए ।
कालांतर में गोर्बाचेव के युग में जब ये पूरा Russian Block आज़ाद हुआ तो Cremia और सामरिक व्यापारिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण उसका Port यूक्रेन में चला गया ।
रूसी President पुतिन ने 2012 में Cremia पे वापस कब्जा करने का प्लान बनाया । वहां उसके पास सबसे बड़ा हथियार था वो Russian Speaking लोग , जो मूलतः थे तो यूक्रेन के , परंतु भाषा , खानपान , रहन सहन से रूसी हो गए थे , उनको पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह में खड़ा कर दिया । जनमत संग्रह हुआ और उस जनमत संग्रह में Russain Speaking लोगों ने यूक्रेन छोड़ रूस के साथ जाना तय किया , और इस तरह क्रीमिया यूक्रेन से अलग हो रूस के कब्जे में आ गया ।
अब समझ आया कि जब आपकी भाषा और मजहब बदलता है तो कैसे आपकी Nationality बदल जाती है ? कैसे आपकी आस्थाएँ बदल जाती हैं ?????? जब आप अपनी पारंपरिक वेशभूषा , खान पान , रहन सहन , रीति रिवाज़ भूल के कोई विदेशी रंग ढंग , रीति रिवाज़ अपनाने लगते है तो कैसे आपकी सोच बदलती है ???????
मैंने आजतक किसी हिंदी मीडियम , हिंदी इस्पीकिंग , या फिर किसी देसी आदमी को 25 Dec पे ये हूले लूइया हूले लूइया करते नही देखा ।
गांव देहात में किसी को 25 Dec को नकली पेड़ पूजते , नकली पेड़ पे लाइट लगा के नाचते नही देखा ।
ये चुल्ल सिर्फ शहरी , इंग्रेजी इंगलिसस्स मीडियम पढ़े , अपनी जड़ों से कटे जड़ विहीन लोगों को मचती है ।
एक नई पीढ़ी पैदा की है इस इंग्रेजी शिक्षा ने और इस इंग्रेजी टीवी ने , जिसने हर विदेशी ब्रांड , बिदेसी कलाकार , बिदेसी Event , बिदेसी त्योहार के पीछे पागलों की तरह नाचते देखा है ।
गोरी चमड़ी के नाम पे Justin बीबर जैसा दो कौड़ी का C ग्रेड तो छोड़ो E , F या G ग्रेड भांड भी भारत मे show करके महफ़िल लूट लेता है ।
जिन मूर्खों ने ने भिंडी , गोभी और पनीर के अलावा ज़िंदगी मे कोई अन्य भारतीय भोजन नही खाया , वो जिनको घीया कद्दू तुरई परवल देख के घिन आती है , वो 600 रु का इतालवी पिज़्ज़ा ऐसे भकोसते हैं जैसे साक्षात महादेव का प्रसाद हो ......... जब आप केक काट के हैप्पी बड्डे मनाने लगें , नारियल फोड़ने की जगह फीता काटने लगें , जब किसी को हाथ से दाल भात खाता देख आपको घिन आने लगे , तो समझ लीजिये कि आपकी Nationality change हो रही है ।
अंग्रेजी भाषा बहुत अच्छी है ,तो उसे सिर्फ ज्ञानार्जन का माध्यम बनाइये , अंग्रेजियत से बचिए ।
इस सांस्कृतिक हूले लूइया से बचिए ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.