*(चैत्र कृष्ण चतुर्थी/भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी)*
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी. चतुर्थी व्रत के पालन से संकट से मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही आर्थिक लाभ भी प्राप्त होता है.
संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा करने से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं, शान्ति बनी रहती है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं.
संकष्टी चतुर्थी की चार व्रत कथाएं बहुचर्चित हैं. जिनमें से एक कथा इस प्रकार है. एक बार सभी देवी-देवता संकटों में घिरे हुए थे, तो वे समाधान के लिए भगवान शिव के पास आए. तब उन्होंने भगवान गणेश और कार्तिकेय से संकट का समाधान करने के लिए कहा, तो दोनों भाइयों ने कहा कि वे इसका समाधान कर सकते हैं.
अब शंकर जी दुविधा में पड़ गए. उन्होंने कहा कि जो भी इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा, वह देवताओं के संकट के समाधान के लिए जाएगा. भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है, वे उस पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े. गणेश जी की सवारी मूषक है, उसके लिए मोर की तुलना में पहले परिक्रमा कर पाना संभव नहीं था.
गणेश जी बहुत ही बुद्धिमान हैं. वे जानते थे कि चूहे पर सवार होकर वह पहले पृथ्वी की परिक्रमा नहीं कर सकते हैं. उन्होंने एक उपाय सोचा. वे अपने स्थान से उठे और दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव और माता पार्वती की 7 बार परिक्रमा की, फिर अपने आसन पर विराजमान हो गए.
उधर भगवान कार्तिकेय जब पृथ्वी की परिक्रमा करके आए, तो उन्होंने स्वयं को विजेता घोषित किया क्योंकि गणेश जी को वे वहां पर बैठे हुए देखे. तब महादेव ने गणेश जी से पूछा कि वे पृथ्वी परिक्रमा क्यों नहीं किए और उनकी परिक्रमा क्यों की?
इस पर गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही पूरा संसार है. इस कारण से उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर दी. गणेश जी के इस उत्तर से भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने को भेजा.
साथ ही भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन गणेश पूजन करेगा और चंद्रमा को जल अर्पित करेगा, उसके सभी दु:ख दूर हो जाएंगे. उसके संकटों का समाधान होगा और पाप का नाश होगा. उसके जीवन में सुख एवं समृद्धि आएगी.
चैत्र माह की कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. प्रत्येक माह में दो बार चतुर्थी पड़ती है. एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में. चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और विघ्नहर्ता लोगों के सारे कष्ट हर लेते हैं. भगवान गणेश के भक्त भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की कृपा पाने के लिए व्रत रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं. संकष्टी चतुर्थी व्रत मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस व्रत को करने से भक्तों की सभी परेशानियां और दुख दूर होते हैं.
*भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त*
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थ- 21 मार्च 2022 (सोमवार) पूजा का शुभ मुहूर्त- 21 मार्च प्रातः 8 बजकर 20 मिनट से 22 मार्च प्रातः 6 बजकर 24 मिनट तक चन्द्रोदय- रात्रि 8 बजकर 23 मिनट पर.
हिन्दू धर्म में भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. भगवान् श्री गणेश को सर्वप्रथम पूजनीय देव माना गया है. यही कारण है कि हर शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है. गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है. व्रत करने और सच्चे मन से उनकी अराधना करने से भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान गणेश की पूजा-अर्चना से यश, धन, वैभव और अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है. इस दिन पूरा दिन उपवास रखा जाता है और चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत खोला जाता है. इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों को शुभ फल देते हैं.
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