यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

अधिकांश हिंदुओं के चिंतन में सबसे पहले "मैं" फिर "मेरा परिवार" आता है ।

सुबह सुबह अपने ही कालोनी के बुजुर्ग अब्दुल चच्चा तांगा वाले अपने घोड़े को जीन पहना रहे थे । 
मैने पूछा कैसे हो चचा ? 
वो बड़े खुश मिजाजी से बोले "अल्लाह का करम है, सब इत्मीनान से हैं"। मैने कहा कि "चच्चा,, अब तो आपकी उम्र हो गई,कब तक तांगा चलाओगे ?" वो तपाक से बोले, "बेटा घोड़ा और आदमी तब तक जवान रहते हैं जब तक बैठ कर न रह जाएं।" 

उनसे दुआ सलाम के बाद मैं आगे बढ़ा तो सलीम अपनी मेकेनिक की गुमठी खोल कर सामान जमा रहा था। मैने वही सवाल उससे पूछा "और सलीम भाई कैसे हो ?"
 वो बोला "भाईजान मजे में हैं ऊपर वाले का करम है, दुकानदारी की तैयारी कर रहा हूं, दरोगा जी की ये मोटर साइकिल आज सही करके देना है"। 

मैं और आगे बढ़ा तो पंचर वाले कुर्रेशी ब्रदर्स अपनी दुकान पर चाय पीते मिल गए। एक भाई ट्रक के टायर में हथौड़ा बजा कर उसे रिम पर ढीला कर रहा था। मैने वही सवाल उनसे भी पूछ धरा,"और मियां कैसे हो ?" वो बोले कि "आ जाओ भैया चाय पी लो, सब लोगों की दुआ से बढ़िया हैं"। फिर चाय देते हुए बोले कि "सकीना की शादी भी अल्लाह के करम से चंदेरी पक्की हो गई है। दूल्हा भाई भी खाते कमाते घर के हैं। उनसे थोड़ी गपशप के बाद मैं आगे बढ़ा।"

इसके बाद मैं अपने दोस्त शर्मा जी की दुकान पर पहुंचा,उनसे भी वही सवाल दाग दिया "और पंडित जी कैसे हो,क्या हाल चाल है ?" ये सवाल जैसे पंडित जी के फोड़े पर चीरा लगा गया, सड़े मुंह से गहरी सांस लेकर बोले, "कुछ मत पूछो भाई,गिन गिन कर दिन काट रहे हैं । जीएसटी ने मार दिया, महंगाई कमर तोड़ रही है, बिट्टू को इंदौर MBA करने भेजा है, बेरोजगारी इतनी है कि समझ में नहीं आ रहा उसे कौन सी लाइन में भेजूं ?" 

मैने कहा "पंडित जी आपको GST से क्या मतलब,आप तो सारा व्यापार कच्चे बिल पर करते हो, दुकान भी पहले से बढ़िया जमा ली है । बिट्टू को दुकान ही सम्हलवा देते, एक ही तो लड़का है आपका ।" लेकिन पंडित जी मानो दुनिया के सबसे दुखी इंसान लगे वो बोले,"अरे नही यार, व्यापार में दम नहीं है बिट्टू तो नौकरी करने की कह रहा है।"

       पंडित जी के दुख से मैं भी मायूस होकर आगे बढ़ा, सब्जी मंडी में ठाकुर साहब मिल गए । उनसे राम राम के बाद बात हुई। वही सवाल मैने उन पर दाग दिया । "कैसे हो भाई साहब,क्या हाल चाल है ?" वो बोले "बुढ़ापा है यार, समय काट रहा हूं। तुम्हारी भाभी भी बीमार है । शिवेंद्र की शादी कर दी थी, प्राइवेट नौकरी में था, उसने नौकरी छोड़ दी, बोला काम ज्यादा था, अब पेंशन के भरोसे हैं " । मैने कहा "शिवेंद्र कोई और काम क्यों नहीं कर लेता ?" वो बोले "ग्रेजुएट है उसके लायक काम मिल नही रहा" । फिर इधर उधर की बातों के साथ मैं आगे बढ़ गया ।

घर लौटते में गर्ग साहब मिल गए, वो ऑफिस जा रहे थे । मैने गुड मॉर्निंग की और वही सवाल उनसे किया । "सर कैसे हैं ?" वो बोले "क्या बताऊं आज कल नौकरी बड़ी कठिन हो गई है, अफसर कुछ समझते नहीं हैं और नेता हर काम में हस्तक्षेप करते हैं । तीन साल बचे हैं जैसे तैसे काट रहा हूं ।" इतना कहते हुए वो कार से आगे बढ़ गए ।

तभी आकाश आ गया। मुझसे नजर मिलते ही उसने सिगरेट इस तरह फेंक दी थी जैसे पी ही नही रहा था । मैने आवाज देकर बुला लिया। पूछा, "भाई कहां है आजकल,कैसा है तू?" वो बोला "यहीं हूं चाचा, बड़ी दिक्कत है,जॉब ढूंढ रहा हूं, आपकी नजर में कोई जॉब हो तो बताना" । इतने में उसने मेरी नजर बचा कर दो तीन बार पाउच की पीक भी सड़क पर पिच्च कर दी थी । 

अब मैं सोच रहा हूं कि क्या ये कौम की परवरिश और सीख का अंतर है या कोई और वजह कि घोड़े की जीन कस रहे, बुजुर्ग अब्दुल से लेकर मैकेनिक सलीम और पंचर वाले कुर्रेशी ब्रदर्स मजे में हैं। उन्हें अपनी मेहनत और ऊपर वाले पर भरोसा है । जो कुछ भी उन पर है वो उसी में खुश हैं । मैने कभी इस कौम के लोगों को जीएसटी,महंगाई, बेरोजगारी की बातें करते नहीं देखा । अलबत्ता कौम और धर्म के लिए लड़ते जरूर देखा है ।

जबकि दूसरी ओर हिंदुओं को हमेशा ही सरकारों को कोसते, रोते ही देखा है। सुबह घर में नाश्ते की लड़ाई से शुरू होने वाली ये लड़ाई दिन भर सोशल मीडिया पर सरकारों को भला बुरा कहते हुए रात को पसंद की तरकारी न बनने से होने वाली तकरार पर जाकर खत्म होती है । अधिकांश हिंदुओं के चिंतन में सबसे पहले "मैं" फिर "मेरा परिवार" आता है । 

कौम की बात पर तो सब जाति के अनुसार पहले ही अलग अलग बंटे हुए हैं । फिर जाति में भी पंथ के आधार पर अलग अलग फिरके आपस में बंटे हुए हैं जैसे जैन को ही लें, तो मैं श्वेतांबर, मैं दिगंबर । ब्राह्मणों को लें तो ये कान्यकुब्ज, मैं सरयूपारीण, मैं सारस्वत, मैं मैथिल, मैं गौड़। मजे की बात ये है कि कोई किसी को श्रेष्ठ मानने तैयार नहीं । 
देश या धर्म की बात करने वालों को ऐसे ही लोग अंधभक्त, भाजपाई या संघी (आरएसएस) घोषित कर देते हैं । यदि मेरा ये अनुभव गलत हो तो सुधिजन खुद ही परीक्षण कर लें । 

हकीकत के इस लेख में बस नाम ही काल्पनिक हैं ।
(कॉपी+संशोधित)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

function disabled

Old Post from Sanwariya