प्राचीन भारत के १५ विश्वविद्यालय जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था
भारत के इतिहास्यकार और तथाकथित बुद्धिजीवी हमें समझाते हैं कि क्षत्रिय और ब्राह्मण खुद पढ़ता लिखता था पर तुमलोगों को शिक्षा नहीं देता था क्योंकि तुमलोग शूद्र हो. संस्कृत सवर्णों कि भाषा थी, ब्राह्मण तुम्हे संस्कृत नहीं पढने देते थे. क्या सचमुच ऐसा था? आइये पता करते हैं.
तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे और चन्द्रगुप्त मौर्य भी वहीँ का विद्यार्थी था. पर उपर्युक्त लोग तो चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय नहीं मानते हैं? नालंदा और बिक्रमशिला विश्वविद्यालयों में भी पूरे विश्व के लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे. क्या वे क्षत्रिय और ब्राह्मण थे? ये लोग तो यहाँ तक कहते हैं नालंदा, बिक्रमशिला बौद्ध विहार था यानि बौद्धों का शिक्षालय. तो क्या बुद्धिष्ट शिक्षक केवल क्षत्रियों और ब्राह्मणों को ही शिक्षा देते थे? आठवीं शताब्दी का बौद्धधर्मी शासक धर्मपाल ने करीब ५० विद्यालय स्थापित किये थे जिसमें कुछ विश्वविद्यालय भी थे. क्या उसने ये सब क्षत्रियों और ब्राह्मणों केलिए बनबाये थे? विदेशी यात्रियों के वर्णन और खुद अरबी यात्रियों के वर्णन में आता है कि “भारतीय शिक्षित और कुशल होते हैं.” अर्थात भारतीय सिर्फ किताबी ज्ञान रखनेवाले ही नहीं थे बल्कि कुशल यानि तकनिकी ज्ञान में भी निपुण थे.
तो फिर सच क्या है
सच यह है कि भारतवर्ष पर मुस्लिम आक्रमण और मुस्लिम शासन ने विश्वगुरु भारत को ध्वस्त कर दिया. आक्रमणकारियों ने भारतवर्ष के सभी विश्वविद्यालयों, पाठशालाओं को नष्ट कर दिया. उन्होंने ज्ञान, विज्ञान, अनुसन्धान के न केवल सारे ग्रन्थ नष्ट कर दिए बल्कि उनके दरवाजे भी बंद कर दिए.
इस्लाम में शिक्षा अनावश्यक कार्य माना गया है और केवल कुरान की शिक्षा को ही पर्याप्त माना गया है. इसका कारन सम्भवतः यह था कि इस्लाम के प्रवर्तक मोहम्मद पैगम्बर पढ़े-लिखे नहीं थे. कांग्रेसियों वामपंथियों के महान शासक अकबर और अलाद्दीन खिलजी भी अनपढ़ थे. इसके अतिरिक्त मुसलमानों के आदर्श मोहम्मद कासिम और गजनवी भी अनपढ़ थे. इसलिए वे जहाँ भी जाते पाठशालाओं और विश्वविद्यालयों को लूटपाट कर नष्ट कर देते थे. भारतवर्ष के तक्षशिला, नालंदा, बिक्रमशिला सहित करीब पन्द्रह विश्वविद्यालयों को इन्होने नष्ट कर दिया. परिणामतः ८०० वर्षों के मुस्लिम शासन में भारत में शिक्षण कार्य लगभग ठप्प हो गया था.
फिर ब्राह्मण और क्षत्रिय शिक्षित क्यों
इन विषम परिस्थितियों में शिक्षित ब्राह्मण और क्षत्रिय केवल अपने पुत्र पुत्रियों को अपने स्तर पर ही किसी प्रकार शिक्षा दे पाते थे. फिर भी ब्राह्मण चोरी छुपे स्थानीय स्तर पर गुरुकुल बनाकर शिक्षा दे रहे थे. मुगलों के समय आनेवाले एक यूरोपीय लिखता है, “किसी बड़े पेड़ के निचे गुरुकुल लगता था. विद्यार्थी जमीन पर मिटटी में बैठते थे और मिटटी में ऊँगली से अक्षर लिखना सीखते थे.”
दूसरी ओर, ब्राह्मण अपने पुत्रों को संस्कृत और वेदों का विद्वान तो बना देते थे पर उससे अब न उन्हें रोजगार मिलता था और न प्रतिष्ठा. थोड़ी बहुत उम्मीद होती भी तो नया भाषा अरबी, फारसी ने खत्म कर दिया. परिणामतः ब्राह्मणों को छोड़कर आम लोगों से संस्कृत भाषा दूर और खत्म होती चली गयी. फिर जैसे जैसे मुस्लिम शासन का भारत में अंत होता गया गुरुकुल खुलने लगे. हमें तो ब्राह्मणों का आभार प्रकट करना चाहिए की उन विषम परिस्थितियों में भी, गरीबी और कंगाली की हालातों में भी, भूखे रहकर भी, भारतीय सभ्यता संस्कृति की धरोहर देववाणी संस्कृत और संस्कृत ग्रंथों को कंठस्त कर बचाए रखा.
अब आइये आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किये गये विश्वविद्यालयों का वर्णन प्रस्तुत करते हैं:
इसकी स्थापना गुप्त वंश के शक्रादित्य उर्फ़ कुमारगुप्त-I ने किया था. तबकाते नासिरी के लेखक मिन्हाज उल सिराज अपने किताब में इस्लामिक आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी के बारे में लिखा है, “सिर्फ दौ सौ घुड़सवारों के साथ बिहार दुर्ग (नालंदा विश्वविद्यालय) के द्वार तक गया और बेखबर शत्रुओं (यानि छात्र और शिक्षकगण) पर टूट पड़ा. उनमे दो बड़े बुद्धिमान भाई थे-एक का नाम निजामुद्दीन और दुसरे का शमसुद्दीन था. जब लड़ाई प्रारम्भ हो गयी तब इन दो भाईओं ने बहुत बहादुरी दिखाई. बख्तियार खिलजी को लूट का काफी माल हाथ लगा. महल के अधिकांश निवासी केश-मुंडित ब्राह्मण थे. उन सभी को खत्म कर दिया गया. वहां मुहम्मद ने पुस्तकों के ढेर को देखा. उसके बारे में जानकारी केलिए आदमियों को ढूंढा पर वहां सभी मारे जा चुके थे. इस विजय के बाद लूट के माल से लदा बख्तियार खिलजी कुतुबुद्दीन के पास आया जिसने उसका काफी मान और सम्मान किया. (पृष्ठ ३०९, ग्रन्थ-२, तबकाते नासिरी, लेखक मिन्हाज उल सिराज)
कहा जाता है बख्तियार खिलजी ने उन किताबों के ढेर में आग लगा दिया जो अगले तीन महीने तक जलता रहा. नालंदा विश्वविद्यालय में करीब १०००० विद्यार्थी थे और करीब २००० शिक्षकगण थे.
२. तेलाहारा विश्वविद्यालय
यह नालंदा विश्वविद्यालय से ४० किलोमीटर दूर है. यहाँ २००९ से २०१४ में हुई खुदाई में यह मिला है. हेंत्सोंग और इत्सिंग ने इसकी चर्चा नालंदा विश्वविद्यालय के समकक्ष के रूप में की है. इसकी स्थापना संभवतः राजगृह का शासक बिम्बिसार ने किया था. हेंत्साग ने अपने वर्णनों में इसे तिन मंजिला इमारत कहा है. यहाँ १००० से ज्यादा शिक्षकों और छात्रों के बैठने का स्थान. नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करने के बाद बख्तियार खिलजी ने इसे भी लूट लिया, छात्रों और शिक्षकों का कत्लेआम कर इसे भी नष्ट कर दिया.
३. ओदंतपुरी विश्वविद्यालय
इस विश्वविद्यालय की स्थापना पालवंश का शासक गोपाल ने ८ वीं शताब्दी में किया था. तिब्बती स्रोत से पता चलता है कि यहाँ १२००० से अधिक विद्यार्थी पढ़ते थे. यह मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा और सम्भवतः बख्तियार खिलजी के द्वारा ही नष्ट कर दिया गया.
४. बिक्रमशिला विश्वविद्यालय
इसकी स्थापना पालवंश के शासक धर्मपाल ने ७ वीं शताब्दी में किया था. शैतान बख्तियार खिलजी सारनाथ, कुशीनारा, नालंदा आदि प्राचीन विश्वविख्यात हिन्दू, बौद्ध शिक्षा केन्द्रों को नष्ट करता हुआ बंगाल की ओर बढ़ा. रस्ते में उसने धर्मपाल के द्वारा स्थापित विक्रमशीला विश्वविद्यालय पर हमला किया और उसे भी लूट लिया और पूरी तरह नष्ट कर दिया.
५. सोमपुरा विश्वविद्यालय
इस विश्वविद्यालय की स्थापना भी पाल शासक धर्मपाल ने ७ वीं शताब्दी में किया था. यह अब बांग्लादेश में है. सेन वंशी शासकों की राजधानी नवद्वीप पर आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी द्वारा अधिकार करने के बाद इस विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र जान बचाने केलिए विश्वविद्यालय छोड़कर भाग गये जिससे यह वीरान और अनारक्षित हो गया जिसे बाद में मुसलमानों द्वारा लूट लिया गया और धीरे धीरे यह नष्ट हो गया. विकिपीडिया लिखता है, “The ruins of the temple and monasteries at Pāhāpur do not bear any evident marks of large-scale destruction. The downfall of the establishment, by desertion or destruction, must have been sometime in the midst of the widespread unrest and displacement of population consequent on the Muslim invasion.”
यह ओड़ीशा के जयपुर जिला में स्थित था. यह विश्वविद्यालय नालंदा से अधिक पुराना, सम्भवतः अशोक के द्वारा निर्मित माना जाता है. यह तिन पहाड़ियों ललितगिरी, उदयगिरी और रत्नागिरी के बीच विस्तृत था. तीसरी शताब्दी के आन्ध्र के इच्छ्वाकू राजा विरापुरुषदत्ता के द्वारा इस विश्वविद्यालय को अनुदान देने का उल्लेख मिलता है. नौवीं शताब्दी में बुद्धिष्ट प्रजन गान्धार से यहाँ आकर निवास किया था. यह विश्वविद्यालय भी मुस्लिम शासन में शिक्षा की उपेक्षा का शिकार हो नष्ट हो गया.
तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन को दिया जाता है. उसने अपने ननिहाल गांधार में अपनी माँ गांधारी की स्मृति में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. मुस्लिम आक्रमण से पहले गांधार में हिन्दुशाही वंश के ब्राह्मणों का शासन था. हिन्दुशाही वंश के पराक्रमी राजा जयपाल ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दिए थे परन्तु एक युद्ध में वो उनसे हार गया और उसे गांधार छोड़कर लाहौर दुर्ग में आना पड़ा. उधर आक्रमणकारियों ने उसकी प्रजा पर वीभत्स अत्याचार किए. अपने प्रजा पर हुए अत्याचार की जिम्मेदारी लेकर वह अग्नि में प्रवेश कर आत्मदाह कर लिया. आक्रमणकारियों ने विश्वविख्यात सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला को नष्ट भ्रष्ट कर खंडहर बना दिया.
८. शारदापीठ विश्वविद्यालय
यह विश्वविख्यात ५१ शक्तिपीठों में से एक और तक्षशिला की तरह ही प्राचीन विश्वविद्यालय था. अब यह पाक अधिकृत कश्मीर में है. इस विश्वविद्यालय के महान विद्यार्थीयों में कल्हण, आदि शंकराचार्य, वैरोत्सना, तिब्बती बुद्धिष्ट कुमारजीव, त्होंमी सोमभोटा जिसने तिब्बती लिपि का आविष्कार किया आदि प्रमुख है.
९. वल्लभी विश्वविद्यालय
गुजरात के सौराष्ट्र में शासन करनेवाले गुप्तों के सम्बन्धी मैत्रका वंश ने इसकी स्थान की थी जिसने अपनी राजधानी वल्लभी को बनाया था. अर्थशास्त्र, राजनीती, नीतिशास्त्र, विज्ञान, साहित्य आदि की शिक्षा का यह प्रमुख केंद्र था. बौद्ध यात्री इत्सिंग जिसने नालंदा में पढ़ा था वह वल्लभी का भ्रमण किया था और इसे शिक्षा का महान केंद्र बताया है. यह विश्वविख्यात विश्वविद्यालय ८ वीं शताब्दी में अरबों के आक्रमण में नष्ट हो गया.
यह अब मुंशीगंज, बांग्लादेश में है. इसकी स्थापना पाल वंश के शासक धर्मपाल ने ७ वीं शताब्दी में किया था. २०१३ में इसकी खुदाई हुई. यहाँ ८००० से अधिक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे. यह भी मुस्लिम आक्रमणकारियों के लूट और उपेक्षा का शिकार हो नष्ट हो गया.
११. मुरैना विश्वविद्यालय
यह मध्यप्रदेश के आधुनिक चम्बल डिविजन में स्थित था. इसका निर्माण ८ वीं शताब्दी में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के वंशज गुर्जर प्रतिहारों ने करवाया था. चौंसठ योगिनी मन्दिर से प्राप्त जानकारी के अनुसार मितावली, पदावली और बटेश्वर मन्दिरों के बीच यह विश्वविद्यालय स्थित था. यह विश्वविद्यालय स्थापत्यकला का शिक्षण प्रशिक्षण के लिए विश्वविख्यात था. मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा या उनके शासन में यह विश्वविद्यालय नष्ट हो गया
१२. कंठालूरशाला विश्वविद्यालय
यह तिरुअनंतपुरम, केरल में स्थित था. यह विश्वविद्यालय मन्दिर समूहों के बीच ९-१२ वीं शताब्दी तक स्थित था. यहाँ ६४ विभिन्न विषयों की शिक्षा दिया जाता था. इसे दक्षिण का नालंदा कहा जाता था. यहाँ अस्त्र शस्त्रों का भी प्रशिक्षण दिया जाता था.
१३. जगदल विश्वविद्यालय
यह अब वारेन्द्र, उत्तर बंगाल, बांग्लादेश में स्थित है. इसकी स्थापना पाल वंश के शासक रामपाल ने ११ वीं शताब्दी में किया था. तिब्बती स्रोत से पता चलता है कि यह उत्तर-पूर्वी भारतवर्ष के ५ सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक था. अन्य चार नालंदा, ओद्न्तपुरी, सोमपुरा और बिक्रमशिला था. यह संस्कृत शिक्षा केलिए प्रसिद्ध था. यह भी मुस्लिम आक्रमणकारियों के शिकार हो नष्ट हो गया.
१४. नागार्जुनकोंडा विश्वविद्यालय
इस विश्वविद्यालय की स्थापना बौद्ध संत नागार्जुन की स्मृति में किया गया था. यह भी बहुत प्राचीन विश्वविद्यालय था. उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह विश्वविद्यालय ७-८ वीं शताब्दी में सबसे अधिक विख्यात था. यहाँ विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा, भूगोल आदि विषयों की शिक्षा दी जाती थी. यहाँ से सातवाहन और इच्छ्वाकू राजाओं के सिक्के और अभिलेख मिले हैं
१५. मिथिला विश्वविद्यालय
माना जाता है कि यह विश्वविद्यालय राजा जनक के समय से ही चला आ रहा था. यहाँ मुख्य रूप से वेद, वेदांग, उपनिषद, दर्शन, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य आदि की शिक्षा दी जाती थी. उस प्राचीन विश्वविद्यालय के स्थान पर अब आधुनिक मिथिला विश्वविद्यालय का निर्माण हो गया है.
इसके अतिरिक्त Godfrey Higgins के ग्रन्थ The Celtic Druids के पृष्ठ ४३ से ५९ पर उल्लेख है कि “भारत के नगरकोट, कश्मीर और वाराणसी नगरों में, रशिया के समरकंद नगर में बड़े विद्याकेंद्र थे जहाँ विपुल संस्कृत साहित्य था।
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