विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स और बीबीसी की डोक्युमेंट्री 'इंडिया द मोदी क्वेश्चन' में एकमात्र अंतर ये है कि एक ने सत्य को नंगी आंखों से देखा, और दूसरे ने आंखों पर हरा चश्मा लगा कर सत्य को देखा।
जिसने नंगी आंखों से सत्य को देखा, उसे लाउड स्पीकरों से गरजता आतंक दिखा, नंगी तलवारें लिए जेहादी दिखे और कटते मरते निर्दोष पंडित और हिंदु दिखे।
जिसने हरा चश्मा लगा कर सत्य को देखा उसे सत्य दिखा या नहीं दिखा, ये तो वो स्वयं ही जाने, परंतु तिस्ता सेतलवाडो और राणा अय्युबों द्वारा बड़े ही परिश्रम से गढ़ा गया झूठ अवश्य ही दिखा।
सत्य और झूठ में जो फर्क है वहीं फर्क द कश्मीर फाइल्स और इंडिया द मोदी क्वेश्चन में है।
गुजरात 2002 का संपूर्ण सत्य ये है 👇
प्रश्न यह उठता है कि बीबीसी ने इसे अनदेखा क्यों किया?
इन कारसेवकों का दोष क्या था जो उन्हें इतनी भयानक मौत दी गई?
प्रश्नकर्ता कदाचित इसका बेहतर उत्तर दे सकें!!
🙏
इमेज़ गूगल से ली है।
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