रक्षाबंधन से श्रवण कुमार का संबंध
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वास्तविक कारण चूँकि कारण थोड़ा दुःखद है तो शायद लोक परम्परा ने कारण को भुला दिया किंतु वचन को जिंदा रखा !
तो मूल घटना इस प्रकार है....!!👇
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को नेत्रहीन माता पिता का एकमात्र पुत्र श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांवड में बिठा कर तीर्थ यात्रा कर रहे थे ,मार्ग में प्यास लगने पर वे एक बार रात्रि के समय जल लाने गए थे, वहीं कहीं हिरण की ताक में दशरथ जी छुपे थे। उन्होंने घड़े के में पानी भरने से हवा के बुलबुलों के निकलने के शब्द को पशु का शब्द समझकर शब्द भेदी बाण छोड़ दिया, जिससे श्रवण की मृत्यु हो गई।
श्रवण कुमार ने मरने से पहले दशरथ से वचन लिया कि वे ही अब उनके बदले माता पिता को जल पिलाएँगे। दशरथ ने जब यह कार्य करना चाहा तो नेत्रहीन माता पिता ने अपने पुत्र के अनुपस्थित रहने का कारण पूछा तो दशरथ ने उन्हें सत्य बताया। यह सुनकर उनके माता-पिता बहुत दुखी हुए। तब दशरथ जी ने अज्ञान वश किए हुए अपराध की क्षमा याचना की।
श्रवण कुमार के माता पिता ने अपने एक मात्र पुत्र के मर जाने पर अपना वंश नष्ट हो जाने का शोक व्यक्त किया तब दशरथ ने श्रवण के माता-पिता को आश्वासन दिया कि वे श्रावणी को श्रवण पूजा का प्रचार प्रसार करेंगे। अपने वचन के पालन में उन्होंने श्रावणी को श्रवण पूजा का सर्वत्र प्रचार किया।
उस दिन से संपूर्ण सनातनी श्रवण पूजा करते हैं और उक्त रक्षा सूत्र सर्वप्रथम श्रवण को अर्पित करते हैं।
भारतीय लोक परम्परा पर प्रश्न उठाने वाले अनेक इतिहास कार अक्सर यह प्रश्न उठाते हैं कि यदि यह सत्य है तो प्रमाण क्या है।राम जन्म भूमि के संदर्भ में न्यायालय में यह प्रश्न बार बार उठा विद्वान वकीलों ने मुक़द्दमा जीतने के लिए यहाँ तक घोषणा कर डाली कि राम कभी हुए ही नहीं !
दिन भर के प्रयास मात्र से मिली यह कथा बताती है कि
मुख और कान से ज़िंदा रखा गया इतिहास कितना शक्ति शाली है कि राम जन्म से पूर्व एक साधारण ग़रीब पितृभक्त बालक की गाथा को कितने चतुराई से ज़िंदा रखा है ।
हमारे द्वारा बनाए जाने वाला चित्र भी लगभग ऐसा ही है किंतु यह अधिक श्रेष्ठ है। इसे गेरू और रुई लिपटी सींक से द्वार के ओर बनाते हैं और इसे ही तिलक पूजा कर राखी अभिमंत्रित कलावा बांधा चिपकाया जाता है। इसके बाद वही पूजा की थाली भाई को राखी बांधने के लिए प्रयुक्त होती है।
इसमें अधिक ध्यान देने की बात यह है कि इसे सरल ज्यामितिक त्रिकोण ,आयत वर्ग और वृत द्वारा ही बनाया गया ताकि चित्रकारी विशेषज्ञ की आवश्यकता न हो रंगोली बनाने वाली गृहणी ही आसानी से इसे बना सके !
एक प्रकार से देखा जाए तो यही कार्टून कला का प्रारम्भ भी कहा जा सकता है। भारत के हर प्रदेश में हर उत्सव पर रंगोली,मंडवा, गणगौर, सांझी आदि अनेक चित्र बनाए जाते हैं ,दिए गए वेब site पर मध्य प्रदेश मालव क्षेत्र में बनाए जाने वाले रेखा चित्र दिए गए हैं
सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा और बच्चों को संस्कारी करने के लिए उपयोगी परम्परा है। भाई दीर्घायु हो इतना ही काफ़ी नहीं है। वह माता पिता की सेवा करने वाला भी हो।
राजा दशरथ का धर्म और वचन निभाने का उदाहरण देखिए कि मुझे जानें या न जाने लेकिन श्रवण कुमार को सब जानें !
आइए इस धरोहर को पुष्पित पल्लवित करें।
🌹🙏 हर हर महादेव 🙏🌹
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