"काँधे मूँज जनेऊ साजे" एक मूँज घास है जो खुरखुरी और तीखी होती है, पहले तपस्वी मूँज का जनेऊ धारण करते थे।
शायद इसीलिये धारण करते थे कि हमेशा हमारे कन्धे को खुजलाती रहे हमको विस्मरण न हो जायें, जैसे- समाज ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण ये विस्मृत न हो जायें इसलिये हमारी गर्दन को हर समय खुजलाती रहे, श्री हनुमानजी महाराज भी मूँज का जनेऊ इसलिये धारण करते थे कि श्री हनुमानजी ब्रह्मचर्य के प्रतीक है, तपस्वी के प्रतीक है।
ब्रह्मचारी के भी दो अर्थ है, एक तो जिसने शुक्र को स्खलन नहीं होने दिया, यह ब्रह्मचर्य का एक श्रेष्ठ सवरूप है, ऐसे बहुत से पहलवान हैं जिन्होंने अपने शुक्र का स्खलन नहीं होने दिया, लेकिन उन्हें कोई श्रेष्ठ ब्रह्मचारी नहीं माने जाते, ब्रह्मचर्य का अर्थ है जिसकी चर्या ब्रह्म जैसी हो, जो चौबीस घण्टे, प्रतिपल, प्रतिक्षण ब्रह्म की चर्या में डूबा है?
हम ब्रह्म की चर्चा तो करते हैं लेकिन हम ब्रह्म की चर्या में नहीं डूबते, आप वैष्णवों को पतित होते बहुत कम सुनेंगे, ज्ञानी का हो सकता है लेकिन भक्त का पतन नहीं होता है, भगवान श्री कृष्णजी ने गीता में भी घोषणा की है, कि मेरे भक्त का पतन नहीं होता, इसलिये वैष्णवों का भी पतन नहीं होता, क्यों? क्योंकि वैष्णव साधु सदैव भगवान् की सेवा में रहते हैं और जो चौबीस घण्टे सेवा में रत रहेगा वह विकृत नहीं हो सकता, उसका कभी पतन नहीं हो सकता।
प्रातःकाल से वैष्णव प्रभु की सेवा में कथा, जागरण, मंगला आरती करता है, स्नान कराना, श्रृंगार करना, फिर प्रात:काल की आरती करनी, भोग लगाना, शयन कराना, उत्थापन कराना, फिर संध्या आरती करता है, यानी प्रात:काल से लेकर एक क्षण भी इधर-उधर नहीं चौबीस घण्टे मन भगवान् की सेवा में और जो प्रतिपल भगवान् के सेवा में है तो से मन में पवित्रता ही तो होगी, शुद्धता ही तो होगी, शुद्ध और पवित्र मन में कभी विकार प्रवेश ही नहीं कर सकता,इसलिये वैष्णवों को ब्रह्मचर्य कहा गया है।
इसी को भजन कहा है भजन कोई क्रिया नही,भजन कोई डयूटी नहीं है, भजन एक जीवन जीने की शैली है, भजन जीवन की चर्या है, उठते-बैठते, सोते-जागते, चलते-फिरते भजन करना माने भगवान् में डूबे रहना, भजन करना माने भगवान् में जगना, उठना, बैठना, नहाना, खाना, चलना, पीना भगवान् के अतिरिक्त कुछ और है ही नहीं, हर श्वांस में उसी की धडकन, उसी की यादें, भगवान् सुमिरन में बने रहे, किसी ने बहुत अच्छा गाया है!
हर धड़कन में प्यास है तैरौ, श्वासों में तेरी खुशबू है।
इस धरती से उस अम्बर तक,मेरी नजर में तू ही तू है।
प्यार ये टूटे ना, तू मुझसे रूठो ना,साथ ये छूटे कभी ना।
तेरे बिना भी क्या जीना,प्रभु रे तेरे बिना भी क्या जीना।
फूलों में कलियो में,सपनों की गलियों में।
तेरे बिना कुछ कहीं ना, तेरे बिना भी क्या जीना।
तेरे बिना भी क्या जीना, प्रभु रे, तेरे बिना भी क्या जीना।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।।
जिसके बिना जीना व्यर्थ लगे, चौबीस घण्टे मन डुबाना न पडे, डूब जाए जैसे बृज की गोपियों, आपने किसी गोपी को अलग से बैठे भजन करते नहीं देखा होगा, चौबीस घण्टे भजन में ही डूबी, "मुरारी पादार्पित चित्तवृत्ति" उनकी चित्तवृत्ति भगवान के श्रीचरणों में ही डूब चुकी है, वैसे ही हनुमानजी हमेशा भगवान् श्री रामजी के भजन में डूबे रहते हैं।
भगवान् श्री रामजी ने भी कितने स्नेह से कहा है कि हनुमान तुम्हारे जैसा मेरा भक्त संसार में कभी और नहीं होगा, इसलिये जो तुम्हें कोई भक्त भजेगा, तुम्हारा गुणगान करेगा, तुम्हारी भक्ति करेगा, उसे वही फल मिलेगा जो मुझे भजने से मिलता है, इसलिये भाई-बहनों! भगवान् श्री रामजी के अनन्य भक्त श्री हनुमानजी की भक्ति के साथ आज के पावन दिवस की पावन शुभकामनाएं आप सभी के लिये मंगलमय् हो।
!! जय श्री राम !!
करूँ राम से प्रार्थना, दें तुमको आनंद।
फूल भरी हो जिंदगी, और रहो सानंद।।
जय श्रीराम
🙏जय श्री रामजी🙏
🙏जय श्री हनुमानजी🙏
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