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गुरुवार, 30 जनवरी 2025

महीनों के अनुसार विभिन्न सब्जियों को बोने और उगाने के सुझाव दिए गए हैं

कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली द्वारा तैयार की गई है, जिसमें प्रत्येक माह में उगाई जाने वाली सब्जियों की जानकारी दी गई है। इसमें अलग-अलग महीनों के अनुसार विभिन्न सब्जियों को बोने और उगाने के सुझाव दिए गए हैं
विस्तार से जानकारी:

1. जनवरी: बैंगन, मिर्च, गाजर, मूली, पालक, टमाटर, शलगम जैसी फसलें उगाने के लिए उपयुक्त समय है।
2. फरवरी: मूली, गाजर, पालक, धनिया, टमाटर, बीन्स और लौकी जैसी सब्जियों के लिए अच्छा महीना है।
3. मार्च: गर्मियों की सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, तरबूज, ककड़ी और करेला उगाने के लिए सही समय है।
4. अप्रैल: लौकी, ककड़ी, करेला, तोरई, तरबूज, टिंडा आदि की बुवाई उपयुक्त है।
5. मई: ग्रीष्मकालीन सब्जियों जैसे लौकी, ककड़ी, करेला, तोरई और टिंडा का उत्पादन हो सकता है।
6. जून: भिंडी, लौकी, करेला, तोरई, तरबूज जैसी सब्जियों के लिए सही समय है।
7. जुलाई: भिंडी, तोरई, लौकी, तरबूज, खीरा, करेला, पालक आदि की बुवाई के लिए उपयुक्त है।
8. अगस्त: पालक, मूली, गाजर, मेथी, धनिया और चौलाई जैसी फसलें लगाई जा सकती हैं।
9. सितंबर: आलू, टमाटर, गोभी, मटर, मूली, गाजर, धनिया जैसी फसलें इस माह लगाई जा सकती हैं।
10. अक्टूबर: गोभी, मूली, गाजर, पालक, धनिया और ब्रोकली उगाने के लिए सही समय है।
11. नवंबर: मटर, गोभी, गाजर, धनिया, ब्रोकली और पालक जैसी फसलें लगाई जा सकती हैं।
12. दिसंबर: टमाटर, बैंगन, गोभी, गाजर, पालक, मटर जैसी फसलें इस महीने उगाई जा सकती हैं।

लाभ:

इस चक्र से किसान यह जान सकते हैं कि किस महीने में कौन-सी फसल उपयुक्त है यह जानकारी मौसम के अनुसार खेती की योजना बनाने में मदद करती है।
उपयुक्त समय पर फसल लगाने से उत्पादन बेहतर होता है।........

रविवार, 12 जनवरी 2025

जॉर्ज सोरोस तो मात्र एक चेहरा है। असली खिलाड़ी तो अमेरिका की हथियार लॉबी, मेडिसिन लॉबी और बैंकर लॉबी है जो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का संचालन करती हैं।

#विखंडन 

आज से तीन हजार वर्ष पूर्व भारत में दो महाशक्तियां थीं-कुरु राज्य संघ और यादव गण संघ। 

पहले आपसी फूट से कुरु राज्य संघ का पतन हुआ। 

इसके बाद यादव गणसंघ एकमात्र शक्ति बन गया। 

लेकिन वहां भी एक नासूर पक रहा था।

यादवों के वृष्णि कुल में अक्रूर जी स्यमंतक मणि को लेकर कृष्ण से विरोध पाल बैठे और फिर भोज वंशी कृतवर्मा ने अक्रूर को साथ लेकर पूरे संघ को दो गुटों में बाँट दिया जिसकी चरम दुःखद परणिति यादव गणसंघ के विनाश में हुई। 
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सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति बन गया। 

लेकिन अक्रूर व कृतवर्मा की तरह अमेरिकी कारपोरेट समूह की राजनैतिक महत्वकांक्षाए बढ़ गई और वे विश्व राजनीति को अपने इशारों पर नचाने लगे और उनके हथियार बने वामपंथी, वोक-लिबरल्स, फेमनिस्ट, ट्रांसजेंडर -होमोसेक्सुअल माफिया जैसे परिवार विरोधी  अराजकतावादी गैंग और इस्लामिक आतंकवाद। 

जॉर्ज सोरोस तो मात्र एक चेहरा है। 

असली खिलाड़ी तो अमेरिका की हथियार लॉबी, मेडिसिन लॉबी और बैंकर लॉबी है जो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का संचालन करती हैं। 

अगर एलोन मस्क का बेटा ट्रांसजेंडर न बना होता और ट्रंप को इतना उकसाया न होता तो यह लॉबी आज बहुत भयंकर रूप धारण कर चुकी होती। 

खाड़ी युद्ध,
इस्लामिक आतंकवाद 
अफगान युद्ध,
रूस-युक्रेन युद्ध

और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो हमास-इजरायल युद्ध भी इसी लॉबी की देन है क्योंकि यहूदी लॉबी भी दो फाड़ हो चुकी है और इजरायल वाली यहूदी लॉबी सोरोस के वैश्विक नियंत्रण की योजना से दूर थी अतः उसे सबक सिखाने के लिए चीन व ईरान के माध्यम से हमास से हमला करवाया गया। 

एक तीर चार शिकार -

-इजरायल की यहूदी लॉबी युद्ध व युद्धजनित खर्च में फंस गई। 
-इजरायल, सऊदी अरब व मिस्र का गठबंधन बनने से पहले ही टूट गया। 
-ईरान के न्यूक्लियर मिशन को झटका दे दिया। 
-हथियार लॉबी के लिए अरबों डॉलर के बिजिनेस का मौका खोल दिया। 

अब सोरोस की पूरी कोशिश जल्द से जल्द और पाकिस्तान के विखंडन जो कि निश्चित है, से पूर्व भारत में गृहयुद्ध भड़काने की है ताकि भारत एशिया में दूसरा पॉवर सेंटर न बन जाये क्योंकि भारत की सैन्य क्षमता से इस लॉबी को डर नहीं लगता बल्कि उन हिंदू मूल्यों व संस्कृति से लगता है जो इस्कॉन के माध्यम से पुनः परिवार, सदाचरण व सतगुणी जीवन को प्रेरित करता जा रहा है और एकीकृत व संगठित हिंदू भारत इसे और गति दे देगा। 

बांग्लादेश व पूर्वोत्तर में जो कुछ चल रहा है, वह और कुछ नहीं भारत में गृहयुद्ध को जल्दी शुरू करवाने का प्रपंच है लेकिन वर्तमान वैश्विक स्थिति में अभी यह भारत के हित में नहीं है और इसीलिये भारतद्रोही कांग्रेसी पप्पू और उसके बांग्लादेशी सहयोगी मुहम्मद यूनुस के उकसाने पर भी भारत चुप्पी साधकर बैठ गया है। 

भारत के लिए ऐसी अभूतपूर्व स्थिति इतिहास में शायद ही कभी बनी हो। 

सही चालें अगर भारत को एशिया में चीन के समक्ष खड़ा कर सकती हैं तो एक.... केवल एक गलत चाल और अधैर्य भारत को अंतहीन बर्बर गृहयुद्ध में धकेल देगी। 

गृहयुद्ध तो फिर भी तय है पर हिंदू नेतृत्व के ऊपर निर्भर करेगा कि वह गृहयुद्ध को हिंदुओं की न्यूनतम जनहानि से जीता जायेगा या ऐसी प्रभूत हानि से जिससे उबरने में भारत को दशकों का समय लग जाये। 

इंतज़ार है तो ट्रंप के आने और उसकी नीतियों का क्योंकि मुझे अंदेशा है कि शुरू में ट्रंप व मोदी सरकार के बीच तनातनी हो सकती है। 

अस्तु! 

अच्छी और खराब बात यह है कि सर्वशक्तिशाली अमेरिका ही आंतरिक रुप से दो भागों में बंट चुका है। 

ट्रंप व मस्क प्रतिशोधी गुट का नेतृत्व कर रहे हैं जो लिबरल्स के परिवार विखंडनवादियों के विरुद्ध प्रतिशोधी हैं। 
मुझे अंदेशा है कि कार्यकाल के अंत तक आते-आते अमेरिका में ही गृहयुद्ध शुरू न हो जाये जिसकी एक हल्की झलक हमने ट्रंप समर्थकों द्वारा कांग्रेस भवन पर हमले के रूप में देखी थी। 

सबसे खराब बात यह है कि चीन इसी मौके के इन्तजार में है। 

वर्तमान घटनाक्रम में अमेरिका में यादवी संघर्ष शुरू हो चुका है लेकिन भारत की भावी पीढ़ी एक और महाभारत का दर्द न झेले, हिंदू नेतृत्व को बस यही देखना है।

साभार whatsapp MSG 

बुधवार, 8 जनवरी 2025

हार्ट अटैक..हमारे देश भारत में 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे महाऋषि वागवट..इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है..अंत तक जरुर पढ़े🧵

हार्ट अटैक..हमारे  देश  भारत  में  3000 साल  पहले  एक  बहुत  बड़े ऋषि  हुये थे महाऋषि वागवट..

इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है..अंत तक जरुर पढ़े🧵
उनका नाम था महाऋषि वागवट जी उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम (Astang hrudayam) और इस पुस्तक में उन्होंने बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखें थे 
यह उनमें से ही एक सूत्र है वागवट जी लिखते हैं कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है !
तो इसका मतलब है कि रक्त (blood) में , acidity (अम्लता ) बढ़ी हुई है अम्लता आप समझते हैं जिसको अँग्रेजी में कहते हैं acidity 
अम्लता दो तरह की होती है एक होती है

पेट की अम्लता और एक होती है रक्त (blood) की अम्लता आपके पेट में अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट में जलन सी हो रही है खट्टी खट्टी डकार आ रही हैं मुंह से पानी निकल रहा है 
और अगर ये अम्लता (acidity) और बढ़ जाये 
तो hyperacidity होगी और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त में आती है तो रक्त अम्लता (blood acidity) होती है और जब blood में acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त (blood) दिल की नलियों में से निकल नहीं पाती और नलियों में blockage कर देता है


तभी heart attack होता है इसके बिना heart attack नहीं होता और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं 
क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है इलाज क्या है ?वागवट जी लिखते हैं कि जब रक्त (blood) में अम्लता (acidity) बढ़ गई है तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो क्षारीय हैं आप जानते हैं दो तरह की चीजें होती हैं अम्लीय और क्षारीय 
acidic and alkaline अब अम्ल और क्षार को मिला दो तो क्या होता है ?acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है ? neutral
होता है सब जानते हैं तो वागवट जी लिखते हैं कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय (alkaline) चीजें खाओ तो रक्त की अम्लता (acidity) neutral हो जाएगी

और रक्त में अम्लता neutral हो गई तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं ये है सारी कहानी अब आप पूछेंगे कि ऐसी कौन सी चीजें हैं जो क्षारीय हैं और हम खायें ? आपके रसोई घर में ऐसी बहुत सी चीजें है जो क्षारीय हैं जिन्हें आप खायें तो कभी heart attack न आए और अगर आ गया है तो दुबारा न आए यह हम सब जानते हैं कि सबसे ज्यादा क्षारीय चीज क्या हैं और सब घर मे आसानी से उपलब्ध रहती हैं, तो वह है लौकी जिसे दुधी भी कहते हैं English में इसे कहते हैं bottle gourd जिसे आप सब्जी के रूप में खाते हैं !

इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है
तो आप रोज लौकी का रस निकाल-निकाल कर पियो या कच्ची लौकी खायो वागवट जी कहते हैं रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी में ही है तो आप लौकी के रस का सेवन करें कितना सेवन करें ? रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो कब पिये ? सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते हैं या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते हैं इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय बना सकते हैं इसमें 7 से 10 पत्ते तुलसी के डाल लो तुलसी बहुत क्षारीय है इसके साथ आप पुदीने के 7 से 10 पत्ते मिला सकते हैं पुदीना भी बहुत क्षारीय है इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले 
ये भी बहुत क्षारीय है लेकिन याद रखें नमक काला या सेंधा ही डाले वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है

तो आप इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करें 
2 से 3 महीने की अवधि में आपकी सारी heart की blockage को ठीक कर देगा 21 वें दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा 
कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी 
घर में ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा और आपका अनमोल शरीर और लाखों रुपए आपरेशन के बच जाएँगे आपने पूरी पोस्ट पढ़ी , आपका बहुत- बहुत धन्यवाद !

चौरासी लाख योनियों के चक्र का शास्त्रों में रहस्य..यह जानकार होश उड़ जायेंगे आपके..अंत तक जरुर पढें🧵

चौरासी लाख योनियों के चक्र का शास्त्रों में रहस्य..यह जानकार होश उड़ जायेंगे आपके..अंत तक जरुर पढें🧵
हिन्दू धर्म में पुराणों में वर्णित ८४००००० योनियों के बारे में आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा। हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं वो भी उन चौरासी लाख योनियों में से एक है। अब समस्या ये है कि कई लोग ये नहीं समझ पाते कि वास्तव में इन योनियों का अर्थ क्या है? ये देख कर और भी दुःख होता है कि आज की पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी इस बात पर व्यंग करती और हँसती है कि इतनी सारी योनियाँ कैसे हो सकती है। कदाचित अपने सीमित ज्ञान के कारण वे इसे ठीक से समझ नहीं पाते। गरुड़ पुराण में योनियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है। तो आइये आज इसे समझने का प्रयत्न करते हैं।

सबसे पहले ये प्रश्न आता है कि क्या एक जीव के लिए ये संभव है कि वो इतने सारे योनियों में जन्म ले सके? तो उत्तर है, हाँ। एक जीव, जिसे हम आत्मा भी कहते हैं, इन ८४००००० योनियों में भटकती रहती है। अर्थात मृत्यु के पश्चात वो इन्ही ८४००००० योनियों में से किसी एक में जन्म लेती है। ये तो हम सब जानते हैं कि आत्मा अजर एवं अमर होती है इसी कारण मृत्यु के पश्चात वो एक दूसरे योनि में दूसरा शरीर धारण करती है। अब प्रश्न ये है कि यहाँ "योनि" का अर्थ क्या है? अगर आसान भाषा में समझा जाये तो योनि का अर्थ है जाति (नस्ल), जिसे अंग्रेजी में हम स्पीशीज (Species) कहते हैं। अर्थात इस विश्व में जितने भी प्रकार की जातियाँ है उसे ही योनि कहा जाता है। इन जातियों में ना केवल मनुष्य और पशु आते हैं, बल्कि पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ, जीवाणु-विषाणु इत्यादि की गणना भी उन्ही ८४००००० योनियों में की जाती है। आज का विज्ञान बहुत विकसित हो गया है और दुनिया भर के जीव वैज्ञानिक वर्षों की शोधों के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस पृथ्वी पर आज लगभग ८७००००० (सतासी लाख) प्रकार के जीव-जंतु एवं वनस्पतियाँ पाई जाती है। इन ८७ लाख जातियों में लगभग २-३ लाख जातियाँ ऐसी हैं जिन्हे आप मुख्य जातियों में लगभग २-३ लाख जातियाँ ऐसी हैं जिन्हे आप मुख्य जातियों की उपजातियों के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं। अर्थात अगर केवल मुख्य जातियों की बात की जाये तो वो लगभग ८४ लाख है। अब आप सिर्फ ये अंदाजा लगाइये कि हमारे हिन्दू धर्म में ज्ञान-विज्ञान कितना उन्नत रहा होगा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों वर्षों पहले केवल अपने ज्ञान के बल पर ये बता दिया था कि ८४००००० योनियाँ है जो कि आज की उन्नत तकनीक द्वारा की गयी गणना के बहुत निकट है।

हिन्दू धर्म के अनुसार इन ८४ लाख योनियों में जन्म लेते रहने को ही जन्म-मरण का चक्र कहा गया है। जो भी जीव इस जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है, अर्थात जो अपनी ८४ लाख योनियों की गणनाओं को पूर्ण कर लेता है और उसे आगे किसी अन्य योनि में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है, उसे ही हम "मोक्ष" की प्राप्ति करना कहते है। मोक्ष का वास्तविक अर्थ जन्म-मरण के चक्र से निकल कर प्रभु में लीन हो जाना है। ये भी कहा गया है कि सभी अन्य योनियों में जन्म लेने के पश्चात ही मनुष्य योनि प्राप्त होती है। मनुष्य योनि से पहले आने वाले योनियों की संख्या ८०००००० (अस्सी लाख) बताई गयी है। अर्थात हम जिस मनुष्य योनि में जन्मे हैं वो इतनी विरली होती है कि सभी योनियों के कष्टों को भोगने के पश्चात ही ये हमें प्राप्त होती है। और चूँकि मनुष्य योनि वो अंतिम पड़ाव है जहाँ जीव अपने कई जन्मों के पुण्यों के कारण पहुँचता हैं, मनुष्य योनि ही मोक्ष की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन माना गया है। विशेषकर कलियुग में जो भी मनुष्य पापकर्म से दूर रहकर पुण्य करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति की उतनी ही अधिक सम्भावना होती है। किसी भी अन्य योनि में मोक्ष की प्राप्ति उतनी सरल नहीं है जितनी कि मनुष्य योनि में है। किन्तु दुर्भाग्य ये है कि लोग इस बात का महत्त्व समझते नहीं हैं कि हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि हमने मनुष्य योनि में जन्म लिया है।

एक प्रश्न और भी पूछा जाता है कि क्या मोक्ष पाने के लिए मनुष्य योनि तक पहुँचना या उसमे जन्म लेना अनिवार्य है? इसका उत्तर है, नहीं। हालाँकि मनुष्य योनि को मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक आदर्श योनि माना गया है क्यूंकि मोक्ष के लिए जीव में जिस चेतना की आवश्यकता होती है वो हम मनुष्यों में सबसे अधिक पायी जाती है। इसके अतिरिक्त कई गुरुजनों ने ये भी कहा है कि मनुष्य योनि मोक्ष का सोपान है और मोक्ष केवल मनुष्य योनि में ही पाया जा सकता है। हालाँकि ये अनिवार्य नहीं है कि केवल मनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति होगी, अन्य जंतुओं अथवा वनस्पतियों को नहीं। इस बात के कई उदाहरण हमें अपने वेदों और पुराणों में मिलते हैं कि जंतुओं ने भी सीधे अपनी योनि से मोक्ष की प्राप्ति की..


महाभारत में पांडवों के महाप्रयाण के समय एक कुत्ते का जिक्र आया है जिसे उनके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, जो वास्तव में धर्मराज थे। महाभारत में ही अश्वमेघ यज्ञ के समय एक नेवले का वर्णन है जिस युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ से उतना पुण्य नहीं प्राप्त हुआ जितना एक गरीब के आंटे से और बाद में वो भी मोक्ष को प्राप्त हुआ। विष्णु एवं गरुड़ पुराण में एक गज और ग्राह का वर्णन आया है जिन्हे भगवान विष्णु के कारण मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। वो ग्राह पूर्व जन्म में गन्धर्व और गज भक्त राजा थे किन्तु कर्मफल के कारण अगले जन्म में पशु योनि में जन्मे। ऐसे ही एक गज का वर्णन गजानन की कथा में है जिसके सर को श्रीगणेश के सर के स्थान पर लगाया गया था और भगवान शिव की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। महाभारत की कृष्ण लीला में श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में खेल-खेल में "यमल" एवं "अर्जुन" नमक दो वृक्षों को उखाड़ दिया था। वो यमलार्जुन वास्तव में पिछले जन्म में यक्ष थे जिन्हे वृक्ष योनि में जन्म लेने का श्राप मिला था। अर्थात, जीव चाहे किसी भी योनि में हो, अपने पुण्य कर्मों और सच्ची भक्ति से वो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
एक और प्रश्न पूछा जाता है कि क्या मनुष्य योनि सबसे अंत में ही मिलती है। तो इसका उत्तर है, नहीं। हो सकता है कि आपके पूर्वजन्मों के पुण्यों के कारण आपको मनुष्य योनि प्राप्त हुई हो लेकिन ये भी हो सकता है कि मनुष्य योनि की प्राप्ति के बाद किये गए आपके पाप कर्म के कारण अगले जन्म में आपको अधम योनि प्राप्त हो। इसका उदाहरण आपको ऊपर की कथाओं में मिल गया होगा। कई लोग इस बात पर भी प्रश्न उठाते हैं कि हिन्दू धर्मग्रंथों, विशेषकर गरुड़ पुराण में अगले जन्म का भय दिखा कर लोगों को डराया जाता है। जबकि वास्तविकता ये है कि कर्मों के अनुसार अगली योनि का वर्णन इस कारण है ताकि मनुष्य यथासंभव पापकर्म करने से बच सके।

हालाँकि एक बात और जानने योग्य है कि मोक्ष की प्राप्ति अत्यंत ही कठिन है। यहाँ तक कि सतयुग में, जहाँ पाप शून्य भाग था, मोक्ष की प्राप्ति अत्यंत कठिन थी। कलियुग में जहाँ पाप का भाग १५ है, इसमें मोक्ष की प्राप्ति तो अत्यंत ही कठिन है। हालाँकि कहा जाता है कि सतयुग से उलट कलियुग में केवल पाप कर्म को सोचने पर उसका उतना फल नहीं मिलता जितना करने पर मिलता है। और कलियुग में किये गए थोड़े से भी पुण्य का फल बहुत अधिक मिलता है। कई लोग ये समझते हैं कि अगर किसी मनुष्य को बहुत पुण्य करने के कारण स्वर्ग की प्राप्ति होती हैतो इसी का अर्थ मोक्ष है, जबकि ऐसा नहीं है। स्वर्ग की प्राप्ति मोक्ष की प्राप्ति नहीं है। स्वर्ग की प्राप्ति केवल आपके द्वारा किये गए पुण्य कर्मों का परिणाम स्वरुप है। स्वर्ग में अपने पुण्य का फल भोगने के बाद आपको पुनः किसी अन्य योनि में जन्म लेना पड़ता है। अर्थात आप जन्म और मरण के चक्र से मुक्त नहीं होते। रामायण और हरिवंश पुराण में कहा गया है कि कलियुग में मोक्ष की प्राप्ति का सबसे सरल साधन "राम-नाम" है।

पुराणों में ८४००००० योनियों का गणनाक्रम दिया गया है कि किस प्रकार के जीवों में कितनी योनियाँ होती है। पद्मपुराण के ७८/५ वें सर्ग में कहा गया है: जलज नवलक्षाणी,
स्थावर लक्षविंशति
कृमयो: रुद्रसंख्यकः
पक्षिणाम् दशलक्षणं
त्रिंशलक्षाणी पशवः
चतुरलक्षाणी मानव

अर्थात,

जलचर जीव: ९००००० (नौ लाख)
वृक्ष: २०००००० (बीस लाख)
कीट (क्षुद्रजीव): ११००००० (ग्यारह लाख)
पक्षी: १०००००० (दस लाख)जंगली पशु: ३०००००० (तीस लाख)
मनुष्य: ४००००० (चार लाख)
इस प्रकार ९००००० + २०००००० + ११००००० + १०००००० + ३०००००० + ४००००० = कुल ८४००००० योनियाँ होती है।

जैन धर्म में भी जीवों की ८४००००० योनियाँ ही बताई गयी है। सिर्फ उनमे जीवों के प्रकारों में थोड़ा भेद है।

जैन धर्म के अनुसार:पृथ्वीकाय: ७००००० (सात लाख)
जलकाय: ७००००० (सात लाख)
अग्निकाय: ७००००० (सात लाख)
वायुकाय: ७००००० (सात लाख)
वनस्पतिकाय: १०००००० (दस लाख)
साधारण देहधारी जीव (मनुष्यों को छोड़कर): १४००००० (चौदह लाख)
द्वि इन्द्रियाँ: २००००० (दो लाख)  
त्रि इन्द्रियाँ: २००००० (दो लाख)चतुरिन्द्रियाँ: २००००० (दो लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (त्रियांच): ४००००० (चार लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (देव): ४००००० (चार लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (नारकीय जीव): ४००००० (चार लाख)
पञ्च इन्द्रियाँ (मनुष्य): १४००००० (चौदह लाख)

इस प्रकार ७००००० + ७००००० + ७००००० + ७००००० + १०००००० + १४००००० +२००००० + २००००० + २००००० + ४००००० + ४००००० + ४००००० + १४००००० = कुल ८४०००००


अतः अगर आगे से आपको कोई ऐसा मिले जो ८४००००० योनियों के अस्तित्व पर प्रश्न उठाये या उसका मजाक उड़ाए, तो कृपया उसे इस शोध को पढ़ने को कहें। साथ ही ये भी कहें कि हमें इस बात का गर्व है कि जिस चीज कोसाबित करने में आधुनिक/पाश्चात्य विज्ञान को हजारों वर्षों का समय लग गया, उसे हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों ने सहस्त्रों वर्षों पूर्व ही सिद्ध कर दिखाया था।

सनातन धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है 🚩🙏

गुरुवार, 2 जनवरी 2025

मंगल ग्रह पर पानी की खोज सबसे पहले वराह मिहिर ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में की थी और नासा ने हाल ही में जुलाई 2018 में इसकी खोज की थी.

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*_मंगल ग्रह पर पानी की खोज सबसे पहले वराह मिहिर ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में की थी और नासा ने हाल ही में जुलाई 2018 में इसकी खोज की थी..._*

वराह मिहिर ने अपने कार्यों के बारे में विनम्रतापूर्वक कहा, *"ज्योतिष विज्ञान एक विशाल महासागर है और हर किसी के लिए इसे पार करना आसान नहीं है। मेरा ग्रंथ एक सुरक्षित नाव प्रदान करता है।"*

पहली शताब्दी ईसा पूर्व के खगोलशास्त्री, गणितज्ञ, ज्योतिषी *वराह मिहिर ने सबसे पहले ‘मंगल ग्रह पर पानी’ की खोज की थी।* वे राजा विक्रमादित्य के दरबार में थे, *जिन्होंने उस युग में भारत और पड़ोसी देशों पर शासन किया था।*

इस राजा के नाम पर, विक्रमार्क शक नामक एक हिंदू युग की शुरुआत हुई, जो सौर ग्रेगोरियन कैलेंडर से 56.7 साल आगे (गिनती में) था।

वराह मिहिर का *जन्म ब्राह्मणों के परिवार में हुआ था।* उनके पिता *आदित्यदास सूर्य देव के उपासक थे* और उन्होंने अपने बेटे को ज्योतिष की शिक्षा दी थी।

*`वराह मिहिर के नाम की पृष्ठभूमि`*

उनका मूल नाम *मिहिर* (सूर्य देव का पर्यायवाची) था और वे एक ऐसे *परिवार से थे जो सूर्य को भगवान के रूप में पूजते थे।*

मिहिर ने 5 वर्षीय राजा के बेटे की *वराह के कारण मृत्यु की भविष्यवाणी करके अपनी ज्योतिषीय योग्यता साबित की,* जबकि अन्य सभी ज्योतिषी उसके लिए लंबी आयु की भविष्यवाणी कर रहे थे। *राजा ने अपने बेटे को एक बेहद सुरक्षित टॉवर महल में रखा,* जो एक ही टॉवर पर आधारित था और जिसमें से केवल *एक ही निकास/निकास था।* उसने सैनिकों को सभी जंगली *जानवरों की जांच करने और उन्हें अपने बेटे के महल से मीलों दूर रखने का आदेश दिया।* हालांकि, छत पर झंडे के खंभे के साथ खेल रहे राजा के बेटे ने उसे *नीचे खींचने की कोशिश की और झंडे के खंभे के ऊपर रखी गई धातु की वराह मूर्ति (राजा के परिवार द्वारा पूजे जाने वाले भगवान विष्णु के वराह अवतार) उस पर गिर गई।* वराह के धातु के गेंडे ने बच्चे को मार डाला। राजा उस समय पहुंचे, जब वराह ने अपने बेटे की मृत्यु की भविष्यवाणी की और पाया कि *वराह के तीखे गेंडे ने उसके शव को छेद दिया है।* राजा विक्रमादित्य ने ज्योतिष में मिहिर की सटीकता की सराहना की *और उसका नाम बदलकर वराह मिहिर रख दिया।* वराह मिहिर द्वारा षष्ठ्यमसा चार्ट (डी-60) का विश्लेषण, मूल दशा समय के साथ समझाया गया, जो पिछले जीवन की घटनाओं/कर्मों के मूल (मूल) से आने वाले परिणामों का संकेत देता है।

कई अन्य वैज्ञानिकों और ऋषियों से बहुत पहले, *वराहमिहिर ने घोषणा की थी कि पृथ्वी गोलाकार है।* उनकी पुस्तकों *पंच सिद्धांतिका और सूर्य सिद्धांत में सौर मंडल, ग्रहों, उनके आकार, धूमकेतु आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।* विज्ञान के इतिहास में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दावा किया कि कुछ *“बल” पिंडों को गोल पृथ्वी से चिपकाए हुए है (प्रस्नोपनिषद और सूर्य सिद्धांत के बाद)।* इस बल को अब *गुरुत्वाकर्षण* कहा जाता है। उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि चंद्रमा और ग्रह अपने स्वयं के प्रकाश के कारण नहीं *बल्कि सूर्य के प्रकाश के कारण चमकदार हैं।* वराहमिहिर का मुख्य कार्य पंच सिद्धांतिका (पांच खगोलीय सिद्धांतों पर ग्रंथ) पुस्तक है। *ऐसा लगता है कि यह कार्य गणितीय खगोल विज्ञान पर एक ग्रंथ है और इसमें पाँच पहले के खगोलीय ग्रंथों का सारांश दिया गया है,* अर्थात् सूर्य सिद्धांत, रोमक सिद्धांत, पौलिसा सिद्धांत, वशिष्ठ सिद्धांत और पैतामा सिद्धांत। *पंच सिद्धांतिका में वराहमिहिर ने बुध, शुक्र, मंगल, शनि और बृहस्पति जैसे ग्रहों के व्यास का अनुमान लगाया था।* उन्होंने मंगल ग्रह के व्यास की गणना 3,772 मील की थी, जो वर्तमान में स्वीकृत व्यास 4,218 मील के लगभग 11% की त्रुटि के साथ थी। *इनके अलावा, वराहमिहिर ने मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी के बारे में भी लिखा (अध्याय XVIII)।* इस पुस्तक में मंगल ग्रह का विस्तृत वर्णन था। उन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा कि *मंगल ग्रह की सतह पर पानी और लोहा दोनों मौजूद हैं, जिसका खुलासा अब नासा और इसरो ने किया है।* उनका सूर्य सिद्धांत अब भारत में नहीं मिलता है (हालांकि इसका कुछ भाग पंच सिद्धांतिका में शामिल है) *और कई लोग मानते हैं कि इसे आक्रमणकारियों ने चुरा लिया और इसे पश्चिम में ले गए* या हमारे कई प्रामाणिक ज्ञान की तरह नष्ट कर दिया। *प्रसिद्ध अरब यात्री इब्न बतूता (14वीं शताब्दी ई.) और अल बिरूनी (10वीं शताब्दी ई.) भारत आए और उन्होंने अपनी पुस्तकों में लिखा कि, जर्मन वैज्ञानिक पहले ही भारत आ चुके थे और अपने अध्ययन के लिए वराह मिहिर के कार्यों की प्रतियां ले गए थे।*

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