#विखंडन
आज से तीन हजार वर्ष पूर्व भारत में दो महाशक्तियां थीं-कुरु राज्य संघ और यादव गण संघ।
पहले आपसी फूट से कुरु राज्य संघ का पतन हुआ।
इसके बाद यादव गणसंघ एकमात्र शक्ति बन गया।
लेकिन वहां भी एक नासूर पक रहा था।
यादवों के वृष्णि कुल में अक्रूर जी स्यमंतक मणि को लेकर कृष्ण से विरोध पाल बैठे और फिर भोज वंशी कृतवर्मा ने अक्रूर को साथ लेकर पूरे संघ को दो गुटों में बाँट दिया जिसकी चरम दुःखद परणिति यादव गणसंघ के विनाश में हुई।
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सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति बन गया।
लेकिन अक्रूर व कृतवर्मा की तरह अमेरिकी कारपोरेट समूह की राजनैतिक महत्वकांक्षाए बढ़ गई और वे विश्व राजनीति को अपने इशारों पर नचाने लगे और उनके हथियार बने वामपंथी, वोक-लिबरल्स, फेमनिस्ट, ट्रांसजेंडर -होमोसेक्सुअल माफिया जैसे परिवार विरोधी अराजकतावादी गैंग और इस्लामिक आतंकवाद।
जॉर्ज सोरोस तो मात्र एक चेहरा है।
असली खिलाड़ी तो अमेरिका की हथियार लॉबी, मेडिसिन लॉबी और बैंकर लॉबी है जो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का संचालन करती हैं।
अगर एलोन मस्क का बेटा ट्रांसजेंडर न बना होता और ट्रंप को इतना उकसाया न होता तो यह लॉबी आज बहुत भयंकर रूप धारण कर चुकी होती।
खाड़ी युद्ध,
इस्लामिक आतंकवाद
अफगान युद्ध,
रूस-युक्रेन युद्ध
और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो हमास-इजरायल युद्ध भी इसी लॉबी की देन है क्योंकि यहूदी लॉबी भी दो फाड़ हो चुकी है और इजरायल वाली यहूदी लॉबी सोरोस के वैश्विक नियंत्रण की योजना से दूर थी अतः उसे सबक सिखाने के लिए चीन व ईरान के माध्यम से हमास से हमला करवाया गया।
एक तीर चार शिकार -
-इजरायल की यहूदी लॉबी युद्ध व युद्धजनित खर्च में फंस गई।
-इजरायल, सऊदी अरब व मिस्र का गठबंधन बनने से पहले ही टूट गया।
-ईरान के न्यूक्लियर मिशन को झटका दे दिया।
-हथियार लॉबी के लिए अरबों डॉलर के बिजिनेस का मौका खोल दिया।
अब सोरोस की पूरी कोशिश जल्द से जल्द और पाकिस्तान के विखंडन जो कि निश्चित है, से पूर्व भारत में गृहयुद्ध भड़काने की है ताकि भारत एशिया में दूसरा पॉवर सेंटर न बन जाये क्योंकि भारत की सैन्य क्षमता से इस लॉबी को डर नहीं लगता बल्कि उन हिंदू मूल्यों व संस्कृति से लगता है जो इस्कॉन के माध्यम से पुनः परिवार, सदाचरण व सतगुणी जीवन को प्रेरित करता जा रहा है और एकीकृत व संगठित हिंदू भारत इसे और गति दे देगा।
बांग्लादेश व पूर्वोत्तर में जो कुछ चल रहा है, वह और कुछ नहीं भारत में गृहयुद्ध को जल्दी शुरू करवाने का प्रपंच है लेकिन वर्तमान वैश्विक स्थिति में अभी यह भारत के हित में नहीं है और इसीलिये भारतद्रोही कांग्रेसी पप्पू और उसके बांग्लादेशी सहयोगी मुहम्मद यूनुस के उकसाने पर भी भारत चुप्पी साधकर बैठ गया है।
भारत के लिए ऐसी अभूतपूर्व स्थिति इतिहास में शायद ही कभी बनी हो।
सही चालें अगर भारत को एशिया में चीन के समक्ष खड़ा कर सकती हैं तो एक.... केवल एक गलत चाल और अधैर्य भारत को अंतहीन बर्बर गृहयुद्ध में धकेल देगी।
गृहयुद्ध तो फिर भी तय है पर हिंदू नेतृत्व के ऊपर निर्भर करेगा कि वह गृहयुद्ध को हिंदुओं की न्यूनतम जनहानि से जीता जायेगा या ऐसी प्रभूत हानि से जिससे उबरने में भारत को दशकों का समय लग जाये।
इंतज़ार है तो ट्रंप के आने और उसकी नीतियों का क्योंकि मुझे अंदेशा है कि शुरू में ट्रंप व मोदी सरकार के बीच तनातनी हो सकती है।
अस्तु!
अच्छी और खराब बात यह है कि सर्वशक्तिशाली अमेरिका ही आंतरिक रुप से दो भागों में बंट चुका है।
ट्रंप व मस्क प्रतिशोधी गुट का नेतृत्व कर रहे हैं जो लिबरल्स के परिवार विखंडनवादियों के विरुद्ध प्रतिशोधी हैं।
मुझे अंदेशा है कि कार्यकाल के अंत तक आते-आते अमेरिका में ही गृहयुद्ध शुरू न हो जाये जिसकी एक हल्की झलक हमने ट्रंप समर्थकों द्वारा कांग्रेस भवन पर हमले के रूप में देखी थी।
सबसे खराब बात यह है कि चीन इसी मौके के इन्तजार में है।
वर्तमान घटनाक्रम में अमेरिका में यादवी संघर्ष शुरू हो चुका है लेकिन भारत की भावी पीढ़ी एक और महाभारत का दर्द न झेले, हिंदू नेतृत्व को बस यही देखना है।
साभार whatsapp MSG
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