🌿 तालाब क्रांति: आत्मनिर्भर किसान, समृद्ध गांव – एक समाधान अनेक समस्याओं का 🌿
🧭 प्रस्तावना:
क्या आपने कभी सोचा है कि एक छोटा सा गांव का तालाब कितनी बड़ी क्रांति ला सकता है?
आज हम जिस पर्यावरण संकट, खेती में लागत, जल स्तर की कमी, और बिमारियों से जूझ रहे हैं, उसका हल हमारे गांव की मिट्टी और पानी में छुपा है।
💧 तालाब खुदेगा, तो होगा…
✅ किसान आत्मनिर्भर बनेगा – खेतों को सिंचाई के लिए मुफ्त पानी मिलेगा, खेती की लागत घटेगी।
✅ अन्न होगा शक्तिशाली – रासायनिक खाद की जगह जैविक खेती होगी।
✅ भूजल स्तर बढ़ेगा – बारिश का पानी बहकर नहीं जाएगा, तालाब में जमा होकर धरती को पोषित करेगा।
✅ गर्मी और जलवायु परिवर्तन घटेगा – गांव में हरियाली बढ़ेगी, पर्यावरण शुद्ध होगा।
✅ भूकंप और लावा जैसे आपदाओं की सम्भावना घटेगी – भूजल संतुलन से धरती की सतह स्थिर रहती है।
✅ गौमाता को मिलेगा चारा और पानी – पशुपालन सशक्त होगा।
✅ असंख्य अदृश्य जीव-जंतु बचेंगे – तालाब पारिस्थितिकी का केंद्र है।
🧑🌾 केवल इतना कर दीजिए…
सिर्फ एक छोटा कदम चाहिए – तालाब की खुदाई से निकली मिट्टी किसानों के खेतों तक पहुँचा दी जाए।
अगर सरकार और भामाशाह यह समझ जाएं और मिलकर किसानों को थोड़ा सहयोग दें –
जैसे कि डीज़ल का खर्च उठाना या मिट्टी की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था करवा देना –
तो बाकी सारा काम प्रकृति और किसान खुद कर सकते हैं
हमने नेडली तालाब (गांव) पर गूंदे का पेड़ लगाया था, आज गांव वाले सौ किलो गूंदा बिना किसी लागत के खा रहे हैं। यह गौमाता की आत्मनिर्भरता का भी उदाहरण है।
तालाब से खुदी हुई मिट्टी किसान के खेत तक पहुँचा दीजिए – चाहे डीज़ल खर्च सरकार या भामाशाह उठाएं।
बाकी सारा काम किसान और प्रकृति खुद कर देगी।
🌳 जीता-जागता उदाहरण: नेडली तालाब, गांव
हमने गांव के नेडली तालाब के पास गूंदे का पेड़ लगाया था।
आज वहाँ से सैकड़ों किलो गूंदा गांव वाले बिना किसी खर्च के खा रहे हैं।
ये पेड़ गौमाता के लिए भी चारा बन गया है।
परिणाम – गांव की आत्मनिर्भरता का बीज अंकुरित हुआ है।
🧠 सवाल सरकार और भामाशाह से…
जब सीधा रास्ता सामने है, तो इधर-उधर करोड़ों क्यों खर्च किए जा रहे हैं?
सरल रास्ता है –
✅ तालाब खुदवाइए
✅ मिट्टी खेत में पहुंचाइए
✅ किसान को साधन दीजिए, subsidy नहीं
✅ *गांव को दोस्त
आज आवश्यकता है – सरल मार्ग अपनाने की, किसान से दोस्ती की, और संसाधनों का सदुपयोग करने की।
सरकारें और समाज करोड़ों रुपये इधर-उधर भटका रहे हैं जबकि समाधान गांव के तालाब और किसान में छिपा है।
भामाशाहों और समाजसेवियों से विनम्र निवेदन है – इस दिशा में सोचें और साथ चलें।
संपर्क करें –
लेखक: केवलचंद जैन, जोधपुर
“कचरा बनाना बंद करना सीखें”
मो.: 94141 31279

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