मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा सही या गलत
किसी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करना या उस को जाग्रत मानना श्रद्धा भाव
से ही संभव है पर इस का ये अर्थ बिलकुल भी नहीं है की ये सिर्फ एक मान्यता
या श्रद्धा है .इस का बड़ा ही ठोस वैज्ञानिक आधार है।
इस के लिए हमें पहले प्राण क्या है ये समझना होगा।
प्राण का अर्थ उस वायु से है जो हमारे शारीर में सपंदन या कम्पन के लिए
उत्तरदाई है। सनातन विज्ञानं में हमारा शरीर ५ प्रकार की वायु और १० प्रकार
की उप वायु से निर्मित माना गया है .जिस में से सिर्फ प्राण ही है जो
सपंदन के लिए उत्तरदाई है। और इसी लिए ये जीवन का प्रतीक है।
यदि
हम आधुनिक विज्ञानं को समझे तो उस के अनुसार प्रत्येक वस्तु परमाणु से बनी
है। ये परमाणु अपनी माध्य स्तिथि के दोनों तरफ दोलन करते रहते है अर्थात
प्रत्येक परमाणु की आवृत्ति होती है .इस प्रकार पत्येक परमाणु में प्राण है
जो उस स्पंदन के लिए उत्तरदाई है।
आप चाहे उसे विज्ञानं की भाषा
में उर्जा बोले पर सनातन विज्ञानं में उसे हम प्राण ही कहेंगे . अर्थात
मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा में कुछ भी गलत नहीं।
अब प्रश्न ये है की क्या किसी भी देव मूर्ति के प्राण का स्तर इतना उठ जाता है की वो याचको की मनोकामना पूर्ण कर सके।
आखिर मनोकामना कैसे पूर्ण होती है इस पर मैं अपने विचार अगले लेख में रक्खूँगा .आप के विचार का भी स्वागत है।
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