दान जरूर दें, पर किसे?
==========================
दान करना बहुत अच्छी बता है,क्योंकि उससे त्याग करने की क्षमता बढ़ती है;और ‘सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणाम वैराग्यं एवाभवम्’ के अनुसार संसार में त्याग ही एकमात्र ऐसी वस्तु है,जो अभय प्रदान करती हैं,वरना प्रत्येक वस्तु भय उत्पन्न करनेवाली होती है। गांधीजी के राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले ने भारतीय परंपरा के अनुसार सार्वजनिक जीवन में त्याग करने पर विशेष बल दिया था। उनका कहना था -‘त्याग नेक जीवन का सिद्धांत है और लोग जो कुछ प्राप्त करते हैं,उससे महान नहीं बनते;बल्कि वे जो कुछ त्यागते हैं, उससे महान बनते हैं।’
उपर्युक्त के आधार पर त्याग और दान उपयोगिता और महत्ता की दृष्टि से जुड़वाँ भाई हैं। लेकिन त्याग विवेकपूर्ण होना चाहिए और दान सुपात्र को दो दिया जाना चाहिए। आगे की पंक्तियों में किसी भारी दान की बात न करके केवल भिक्षा या भीख जैसे रोजमर्रा के दान की बात की गई है।
भिक्षा या भीख माँगनेवाले हट्टे-कट्टे भिक्षार्थी कभी सुपात्र नहीं हो सकते, क्योकि वे हाथ फैलाने के अलावा कुछ नहीं करते। यदि आप अंध धार्मिक या अति भावुक बनकर उनके भोजन-पानी आदि की व्यवस्था में सहयोग देते हैं तो आप उन्हें और भी नाकारा बनाते हैं। वे अपना पेट पालने के लिए अंधविश्वासी भक्तों और विवेकहीन दानियों को बेवकूफ बनाने का धंधा करते हैं। कई बार तो वे भिखमंगे लोग ठग ही नहीं,चोर-उचक्के भी होते हैं।वे आपसे कुछ माँगने तक तो आपके हितैषी बनकर कहते हैं कि वे आपके नाम का दिया जलाएँगे, आपके लिए दुआ माँगेंगे; पर यदि आपने उन्हें कुछ नहीं दिया, तक वे तत्काल आपका बुरा सोचते हुए आपके विरूद्ध बड़बड़ाते हुए निकल जाते हैं। उनका यह कहना कि उनकी दुआओं से आप संपन्न हो जाएँगे,निहायत मूर्खता की बात होती हैं; क्योंकि यदि उनकी दुआओं में थोड़ा भी दम होता तो वे अपने लिए भी दुआ माँगकर स्वयं संपन्न हुए बिना नहीं रह सकते थे।
कभी-कभी वे मंगते आपको डराकर-यदि आपने उन्हें दान नहीं दिया तो आपका अमुक नुकसान हो जाएगा,आपको झुकाना चाहते हैं; पर यह उनका सिर्फ चालूपन होता है। ऐसे दान-भुक्खड़ों से सावधान रहिए।
यदि आपको दान देना ही तो होनहार गरीब बच्चों को छात्रवृत्ति दीजिए, अनाथों की जिंदगी बनाइए, अपाहिजों की मदद कीजिए, बेसहारा बीमारों का इलाज करवाइए, अभागी और संकटग्रस्त विधवाओं का विवाह करवाइए।
यदि आपका पेट अच्छी तरह से भर रहा है तो ओवर-ईटिंग की बिलकुल जरूरत नहीं हैं। अपनी समृद्धि में से थोड़ा अभाववालों के लिए भी कुछ करके देखिए, आपकी आत्मा खिल उठेगी। अपनी संपत्ति का सही उपयोग कीजिए। आप अपने साथ उसमें से कुछ भी लेकर जानेवाले नहीं हैं।
==========================
दान करना बहुत अच्छी बता है,क्योंकि उससे त्याग करने की क्षमता बढ़ती है;और ‘सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणाम वैराग्यं एवाभवम्’ के अनुसार संसार में त्याग ही एकमात्र ऐसी वस्तु है,जो अभय प्रदान करती हैं,वरना प्रत्येक वस्तु भय उत्पन्न करनेवाली होती है। गांधीजी के राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले ने भारतीय परंपरा के अनुसार सार्वजनिक जीवन में त्याग करने पर विशेष बल दिया था। उनका कहना था -‘त्याग नेक जीवन का सिद्धांत है और लोग जो कुछ प्राप्त करते हैं,उससे महान नहीं बनते;बल्कि वे जो कुछ त्यागते हैं, उससे महान बनते हैं।’
उपर्युक्त के आधार पर त्याग और दान उपयोगिता और महत्ता की दृष्टि से जुड़वाँ भाई हैं। लेकिन त्याग विवेकपूर्ण होना चाहिए और दान सुपात्र को दो दिया जाना चाहिए। आगे की पंक्तियों में किसी भारी दान की बात न करके केवल भिक्षा या भीख जैसे रोजमर्रा के दान की बात की गई है।
भिक्षा या भीख माँगनेवाले हट्टे-कट्टे भिक्षार्थी कभी सुपात्र नहीं हो सकते, क्योकि वे हाथ फैलाने के अलावा कुछ नहीं करते। यदि आप अंध धार्मिक या अति भावुक बनकर उनके भोजन-पानी आदि की व्यवस्था में सहयोग देते हैं तो आप उन्हें और भी नाकारा बनाते हैं। वे अपना पेट पालने के लिए अंधविश्वासी भक्तों और विवेकहीन दानियों को बेवकूफ बनाने का धंधा करते हैं। कई बार तो वे भिखमंगे लोग ठग ही नहीं,चोर-उचक्के भी होते हैं।वे आपसे कुछ माँगने तक तो आपके हितैषी बनकर कहते हैं कि वे आपके नाम का दिया जलाएँगे, आपके लिए दुआ माँगेंगे; पर यदि आपने उन्हें कुछ नहीं दिया, तक वे तत्काल आपका बुरा सोचते हुए आपके विरूद्ध बड़बड़ाते हुए निकल जाते हैं। उनका यह कहना कि उनकी दुआओं से आप संपन्न हो जाएँगे,निहायत मूर्खता की बात होती हैं; क्योंकि यदि उनकी दुआओं में थोड़ा भी दम होता तो वे अपने लिए भी दुआ माँगकर स्वयं संपन्न हुए बिना नहीं रह सकते थे।
कभी-कभी वे मंगते आपको डराकर-यदि आपने उन्हें दान नहीं दिया तो आपका अमुक नुकसान हो जाएगा,आपको झुकाना चाहते हैं; पर यह उनका सिर्फ चालूपन होता है। ऐसे दान-भुक्खड़ों से सावधान रहिए।
यदि आपको दान देना ही तो होनहार गरीब बच्चों को छात्रवृत्ति दीजिए, अनाथों की जिंदगी बनाइए, अपाहिजों की मदद कीजिए, बेसहारा बीमारों का इलाज करवाइए, अभागी और संकटग्रस्त विधवाओं का विवाह करवाइए।
यदि आपका पेट अच्छी तरह से भर रहा है तो ओवर-ईटिंग की बिलकुल जरूरत नहीं हैं। अपनी समृद्धि में से थोड़ा अभाववालों के लिए भी कुछ करके देखिए, आपकी आत्मा खिल उठेगी। अपनी संपत्ति का सही उपयोग कीजिए। आप अपने साथ उसमें से कुछ भी लेकर जानेवाले नहीं हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.