*जाकी रही भावना जैसी*, *प्रभु मूरत देखी तिन तैसी …*…
जो हमारे दिमाग में चल रहा होता है, जैसी अच्छी बुरी भावना उस वस्तु या व्यक्ति विशेष के प्रति रखते हैं, उसी दृष्टि से हम आस पास का आंकलन करते हैं और अपनी बात को सबके सामने रखते हैं।
*जो जैसा देखना चाहता है*, *पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर देखता है …*…
निम्नलिखित कहानी से स्पष्ट हो जाएगाः-
*प्रसंग 1–* एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे, जलेबी और दही ली और वहीं खाने बैठ गये, इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला।
हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा, कौए की किस्मत खराब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।
ये घटना देख कवि हृदय जगा, वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी *…*…
*काग दही पर जान गँवायो* दही में चोंच मारने के कारण कौए को अपनी जान गंवानी पड़ी।
*प्रसंग 2–* तभी वहां एक लेखपाल महोदय जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए, कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी है, क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा *…*…
*कागद ही पर जान गंवायो* लेखपाल महोदय के दिमाग में उनके कागज चल रहे थे, अतः उन्हें काग दही कागद ही पढ़ने में आए।
*प्रसंग 3–* तभी एक मजनू टाईप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया, उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था *…*…
*का गदही पर जान गंवायो* उस मजनूँ ने लड़की के कारण मार खाई, कष्ट होने पर लड़के को लड़की गदही जैसी लगने लगी, उसने दु:खी होकर इस पंक्ति को वैसे पढ़ा।
शायद इसीलिए तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था *…*…
*जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी* हम वह नहीं देखते जो सच में होता है, हम वह देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं।
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