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सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

भगवान् किसको मिलते है ?


भगवान् किसको मिलते है ?


निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥

जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते।


वृंदावन में एक भक्त रहते थे जो स्वाभाव से बहुत ही भोले थे । उनमे छल ,कपट ,चालाकी बिलकुल नहीं थी । बचपन से ही वे भक्त जी वृंदावन में रहते थे , श्री कृष्ण स्वरुप में उनकी अनन्य निष्ठा थी और वे भगवान् को अपना सखा मानते थे । बहुत शुद्ध आत्मा वाले थे , जो मन में आता है वही भगवान से बोल देते है ।वो भक्त कभी वृंदावन से बहार गए नहीं थी ।एक दीन भोले भक्त जी को कुछ लोग जगन्नाथ पुरी में भगवान् के दर्शन करने लग गए । पुराने दिनों में बहुत भीड़ नहीं होती थी अतः वे सब लोग जगन्नाथ भगवान् के बहुत पास दर्शन करने गए । भोले भक्त जी ने जगन्नाथ जी का स्वरुप कभी देखा नहीं था , उसे अटपटा लगा ।

उसने पूछा – ये कौनसे भगवान् है ? ऐसे डरावने क्यों लग रहे है ? सब पण्डा पूजारी लोग कहने लगे – ये भगवान् श्री कृष्ण ही है , प्रेम भाव में इनकी ऐसी दशा हो गयी है । जैसे ही उसने सुना – वो जोर जोर से रोने लग गया और ऊपर जहां भगवान् विराजमान है वहाँ जाकर चढ़ गया । सब पण्डा पुजारी देखकर भागे और उससे कहने लगे की निचे उतरो परंतु वह निचे नहीं उतरा । उसने भगवान् को आलिंगन देकर कहा – अरे कन्हैया ! ये क्या हालात बना र खी है तूने ? ये चेहरा कैसे फूल गया है तेरा , तेरे पेट की क्या हालात होंगयी है । यहां तेरे खाने पिने का ध्यान नहीं रखा जाता क्या ? मैं प्रर्थना करता हूं ,तू मेरे साथ अपने ब्रिज में वापस चल । मै दूध, दही ,मखान खिलाकर तुझे बढ़िया पहले जैसा बना दूंगा ,सब ठीक हो जायेगा तू चल ।

पण्डा पुजारी उन भक्त जी को निचे उतारने का प्रयास करने लगे , कुछ तो निचे से पीटने भी लगे परंतु वह रो रो कर बार बार यही कह रहा था की कन्हैया , तू मेरे साथ ब्रज में चल , मै तेरा अच्छी तरह ख्याल करूँगा । तेरी ऐसी हालात मुझसे देखी नहीं जा रही । अब वहाँ गड़बड़ मच गयी तो भगवान् ने अपने माधुर्य श्रीकृष्ण रूप के उसे दर्शन करवाये और कहा – भक्तो के प्रेम में बंध कर मैंने कई अलग अलग रूप धारण किये है , तुम चिंता मत करो । जो जिस रूप में मुझे प्रेम करता है मेरा दर्शन उसे उसी रूप में होता है , मै तो सर्वत्र विराजमान हूँ । उसे जगन्नाथ जी ने समझा बुझाकर आलिंगन वरदान किया और आशीर्वाद देकर वृंदावन वापस भेज दिया । इस लीला से स्पष्ट है की जिसमे छल कपट नहीं है ,जो शुद्ध हृदय वाला भोला भक्त है उसे भगवान् सहज मिल जाते है ।

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