भारत की एक भेंट से पुरा
जाॅर्जिया भावुक कैसे हो गया ......
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर जाॅर्जिया के यात्रा पर हैं। पुराने समय से यह देश अपने भौगोलिक स्थिति के कारण इस्लाम और ईसाइयत के अखाड़े का ऐतिहासिक गवाह रहा है। जब जयशंकर रानी केतेवन के अवशेषों को जाॅर्जिया के विदेश मंत्री डेविड जलकलियानी को सौंप रहे थें तो स्थिति सामान्य ही थी लेकिन जैसे ही अवशेष को चर्च में ले जाया गया और ईसाई पादरियों ने उसका दर्शन करना शुरू किया और अवशेषों को थोङी दूर चूमना शुरू किया और उसके सामने टखनों पर झुकना शुरू किया तो पुरा माहौल भावुकता से भर गया। पुरे जाॅर्जिया में टीवी चैनल पर यह क्लिप वायरल हो गया और बहुत हद तक पुरा जाॅर्जिया भावुक सा हो गया। यह कहानी है 400 वर्ष पुराने इस्लामिक जघन्यता को पुनः नंगा करने की और उसपर विश्व के करोड़ों लोगों के प्रतिक्रिया की।
कौन थी शहीद रानी केतेवन?? हर हिंदू को क्यों उनकी कहानी जानना चाहिए??
शहीद केतेवन (1540 - 13 सितंबर, 1614) पूर्वी जॉर्जिया के एक राज्य काखेती की रानी थी। वह 1605 से 1614 तक अपने बेटे तीमुराज़ प्रथम की अल्पव्यस्क उम्र के दौरान काखेती की रीजेंट थी। काखेती पर ईरानियों यानी सफ़ावीद वंश का दबदबा था। सफ़ावीद (ईरान) के इस्लामिक सेनापतियों द्वारा रानी केतेवन को ईसाई धर्म को छोड़कर इस्लाम अपनाने से इनकार करने के कारण लंबे समय तक यातनाएँ दी गई, बाद में शिराज, ईरान में लाकर उनकी जघन्य तरीके से तङपा तङपाकर हत्या कर दी गई। जॉर्जियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च द्वारा केतेवन को अपने धर्म के प्रति निष्ठा के कारण संत के रूप में स्वीकार किया गया है।
कहते हैं समय सच्चाई की परत खोल देती है।
2008 में यह पता चला कि पुर्तगाल के लिस्बन के ग्राका कॉन्वेंट में फारस में शहीद हुए रानी केतवन की शहादत का हुबहू चित्रण करने वाला एक पुराना चित्र कई सदियों से कांवेंट का धुल फांक रहा था। यह चित्रकारी पुर्तगाली ऑगस्टिनियन मिशनरियों द्वारा उनकी शहादत के दृश्यों पर आधारित था, जिन्होंने उनकी मृत्यु को करीब से देखा था। पैनोरमिक टाइलवर्क यानी यह मनोरम दृश्य वाला चित्रकारी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था और खबर लगते ही जॉर्जिया ने इसके मरम्मत के लिए हज़ारों यूरो की पेशकश की। 2017 में, केतेवन की शहादत के पुर्तगाली चित्रण की एक हुबहू नकल का जॉर्जिया में अनावरण किया गया और शैतो मुखरानी(जगह) में प्रदर्शित किया गया। अक्टूबर 2017 में, जॉर्जिया के राष्ट्रपति जियोर्गी मार्गवेलशविली ने पुर्तगाल की अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान ग्राका कॉन्वेंट में रानी केतेवन के भित्ति चित्र का दौरा किया, यह जाॅर्जिया द्वारा पहली बार अपनी विरासत को पाने की चाह की शुरूआत भर दी। यह कार्य जारी रहा और पुर्तगाली कॉन्वेंट और जॉर्जिया के संस्कृति मंत्रालय की सांस्कृतिक विरासत संरक्षण की राष्ट्रीय एजेंसी के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। अब जाॅर्जिया की भूख रानी केतेवन की विरासत को लेकर बढ़ती जा रही थी। वहाँ के चर्चों ने लगातार सरकार पर इस विषय को लेकर दबाव सा बनाए रखा।
गोवा का पुर्तगालीयों से रिश्ता!
गोवा को पुर्तगालीयों ने 1510 में ही जीत लिया था। यह भारत में सिकंदर लोदी का समय था।
भारत से क्या है रानी केतेवन का रिश्ता??
जॉर्जियाई लोगों के लिए रानी केतेवन के महत्व ने पिछले दशकों के दौरान विशेष रूप से गोवा में एक अवशेष खोजकर्ताओं की टोली ने कार्य करना शुरू किया दरअसल पुर्तगाल से एक काफी पुराना दस्तावेज मिला था जिसमें ईरान से रानी केतेवन के शरीर के कुछ अवशेषों को लाकर भारत के गोवा में पत्थर के कलश में डालकर रखने का उल्लेख था।
1989 के बाद से, जॉर्जिया से आने वाले विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के साथ मिलकर गोवा के ओल्ड गोवा में ऑर लेडी ऑफ ग्रेस के ऑगस्टिनियन कॉन्वेंट के खंडहरों के भीतर केतेवन की कब्र का पता लगाने की काफी कोशिश की। ये प्रयास विफल रहा क्योंकि टीमें पुर्तगाली दस्तावेजों की सही व्याख्या करने में असमर्थ ही रही और लोकेशन मिलने के बावजूद सही जगह की खोज नहीं हो पाई, लेकिन इतना पक्का था की केतेवन के दफन शारीरिक अवशेषों का सुराग तो मिल ही चुका था। उस ऐतिहासिक स्रोतों में बताया गया था कि केतेवन की हथेली और बांह की हड्डी के टुकड़े ऑगस्टिनियन कॉन्वेंट के चैप्टर चैपल के भीतर एक आकर्षक खिड़की के नीचे एक पत्थर के कलश के अंदर रखे गए थें। समय बीतता गया और खोज जारी रहा।
अंततः मई 2004 में पुर्तगाली दस्तावेज में वर्णित चैपल और खिड़की भारत के विदेशी नागरिक और वास्तुकार सिद्ध लोसा मेंदीरत्ता और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, गोवा-सर्कल के प्रमुख पुरात्तवविद् निज़ामुद्दीन ताहेर के संयुक्त प्रयास से खोज लिया गया। हालांकि दस्तावेज में बताया गया पत्थर का कलश गायब था, लेकिन पुर्तगाली स्रोतों में उल्लिखित खिड़की के पास का उल्लेखित पत्थर और हड्डी के कई टुकड़े थोङी खुदाई करने पर वहीं पाए गएं लेकिन अभी एक और शोध बाकि था, वह यह की हड्डी के डीएनए जाँच से ही यह स्पष्ट होगा की यह हड्डी कौन से मानव की प्रजाति की है और क्या यह स्त्री की हड्डी है या पुरूष की••
फिर से विज्ञान का सहारा लिया गया।
सीएसआईआर(CSIR) - सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी(CCMB) हैदराबाद, भारत के डॉ. नीरज राय, मानवेंद्र सिंह और डॉ. ज्ञानेश्वर चौबे ने माइटोकॉन्ड्रियल के अनुक्रमण और जीनोटाइपिंग द्वारा सेंट ऑगस्टाइन कॉन्वेंट से खोदे गए इस मानव अस्थि अवशेषों पर प्राचीन डीएनए विश्लेषण किया। अवशेषों की जांच में एक असामान्य एमटीडीएनए हापलोग्रुप यू1बी का पता चला, जो भारत में अनुपस्थित है यानी भारत मे हापलोग्रुप यू1बी के लोग नहीं रहते।
शोध के दौरान यह स्पष्ट हो गया की यह हापलोग्रुप जॉर्जिया और आसपास के क्षेत्रों में मौजूद है। चूंकि आनुवंशिक विश्लेषण पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य की पुष्टि करता है, इसलिए संभावना थी कि खुदाई की गई हड्डी जॉर्जिया की रानी केतेवन की है।
एक अड़चन और यह थी जिस पत्थर के कलश का उल्लेख किया गया था उसमें दो यूरोपीय मिशनरियों, तपस्वी जेरोनिमो दा क्रूज़ और तपस्वी गुइलहर्मे डी सैंटो एगोस्टिन्हो के भी कुछ अवशेष थें और वो भी यूरोप से ही थें लेकिन पुरूष थें।
इसलिए, निर्णायक परिणाम प्राप्त करने के लिए परीक्षण किए गए टुकड़ों के लिंग और प्रकार की हड्डी का निर्धारण करना महत्वपूर्ण हो गया। "अतिरिक्त परीक्षणों ने पुष्टि की कि U1b की मिली हुई हड्डी एक महिला की ही है, अंततः 2013 में यह साबित हो गया कि 2005 में दो टुकड़ों में मिली हड्डी जॉर्जियाई रानी केतेवन की ही है"
2017 में भारत और जॉर्जिया के बीच राजनयिक संबंधों का जश्न मनाते हुए, अवशेषों को छह महीने की अवधि के लिए जॉर्जिया भेजा दिया गया था लेकिन संधि के अनुसार पुनः भारत वापस ले आ गया था, शायद यह धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों घटनाओं का सबसे बेहतरीन मिलन कहा जा सकता है।
औपचारिक रूप से भारत-जॉर्जियाई राजनयिक संबंध के पच्चीस वर्ष पुरा होने के अवसर पर 10 जुलाई 2021 को भारतीय विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर की पहली यात्रा के दौरान जॉर्जियाई विदेश मंत्री के माध्यम से पूरे सांस्कृतिक और पारंपरिक समारोह के दौरान जॉर्जिया के लोगों को भारत के द्वारा रानी केतेवन की अवशेष सौंप दी गई।
कहते हैं कहानियाँ दफन नहीं होती, हमारे आस-पास ही जिंदा रहती है। बस सीखने की जरूरत है जाॅर्जिया के लोगों से और हमलोंगो को अपने अंदर थोङा सा झांकने की भी जरूरत है।
हमारा कोहिनूर ब्रिटेन में है, हजारों मूर्तियां ब्रिटेन और अन्य देशों में है और हमारे हजारों विरासत की पहचान को हमने अपने देश में ही कभी खोजने की कोशिश नहीं की। जेम्स प्रिंसेप न होता तो शायद हम महान सम्राट अशोक से भी अनभिज्ञ ही रहते। हमारे मंदिरों को ढ़ाहकर बने ज्ञान व्यापी मस्जिद (बनारस) और अटाला मस्जिद (जौनपुर) जैसे ढ़ाचों की हजारों दिवारें तो हर दिन सिसकती होगी अपने मुक्ति के लिए।
सभ्यता के इस संघर्ष में हम आखिर कहाँ खङे हैं यह सोचना होगा!! शायद दूर-दूर तक नहीं फिर भी राम मंदिर का संघर्ष कुछ तो साहस दे ही जाती
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